पिछले दिनों
बहुचर्चित निर्भया केस में कोर्ट रुम के एक विशेष दृश्य के बारे में समाचारपत्रों
में पढा कि मुजरिम को फांसी दी जाए या मुजरिम की फांसी को टाल दिया जाए इस विषय
पर दो माताएं न्यायाधीश महोदय के समक्ष अपनी-अपनी भरी आँखों से समुचित न्याय की
कामना कर रही थीं, जिनमें एक इस वीभत्स त्रासदी की शिकार हुई
निर्भया की मां थी जो अपनी बेटी की युवावस्था में दुर्गति कर उसे अकाल मृत्यु की
गोद में पहुंचाने वाले दरिंदो के लिये अविलंब फांसी की सजा की मांग कर रही थी जबकि
दूसरी ओर उन्हीं प्रमाणित दरिंदों में से एक की मां थी जो अपने बेटे के जीवन के
लिये याचना कर रही थी ।
इस प्रकरण
में हम जितना भी पलटकर पीछे तक देखें, निर्भया के हक की लडाई
में जहाँ उसके माता-पिता की सार्वजनिक सक्रियता को गौर से देखा जावे तो उसके पिता
से कहीं अधिक मुखर व जुझारु तौर पर उसकी मां ही लगातार अधिक सक्रिय दिखती आ रही हैं
।
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बहुत पहले किसी
कॉर्पोरेट हाउस ने मैनेजमेंट गुरुओं के एक सम्मेलन में प्रश्न पूछा गया था कि आप सफलतम
प्रबंधक किसे मानते हैं ? तब विशेषज्ञों ने रोनाल्ड रेगन, नेल्सन मंडेला, चर्चिल, गांधी,
टाटा, हेनरी फोर्ड, चाणक्य,
बिस्मार्क व इन जैसे कई और नाम अपने उत्तर में बताये थे ।
किन्तु निर्णायकों के निर्धारित उत्तर था कि सर्वाधिक सफलतम प्रबंधक “एक आम गृहिणी" होती
है ।
एक गृहिणी जो
परिवार में किसी का भी ट्रांसफर, सस्पेंड या टर्मिनेशन नहीं कर
सकती, ना ही किसी को वो अपॉइंट कर सकती है । किंतु फिर भी लगभग
सभी से काम करवाने की क्षमता रखती है । किससे, क्या और कैसे करवाना है, कब प्रेम से काम करवाना है और कब झूठी-सच्ची नाराजगी दिखाकर काम निकलवाना
है यह वो बखूबी जानती है और इसीलिये सफलतम प्रबंधक के रुप में उससे उपर किसी का
स्थान नहीं माना जा सकता ।
बड़े-बड़े उद्योगों में भी कभी इसलिए काम रुक जाता
है कि आवश्यक संसाधन समय पर उपलब्ध नहीं हो पाए । किंतु किसी गरीब से गरीब घर भी
नमक जैसी छोटी सी चीज तक भी कभी कम नहीं पड़ती । बहुत याद करने पर भी आप शायद ही कभी
ऐसा कोई दिन याद कर पाएं जिस दिन आपको
खाने में इसलिए कुछ न मिल पाया हो कि आज घर में बनाने को कुछ नही था या गैस खत्म
हो गई थी या प्रेशर कूकर का रिंग खराब हो गया था । कमोबेश हर समस्या का विकल्प सामान्य
गृहिणी बिल्कुल खामोशी से अपने घर में रखती है ।
प्रबंधन एवं संचालन का इससे बेहतर उदाहरण क्या हो
सकता है कि अचानक कोई बड़ा खर्च आ जाने पर या किसी की बीमारी पर जब सब सदस्य सोच
में पड जाते हैं, तब भी वो अपने पुराने संदूक या अलमारी में छुपा कर रखे बचत के
पैसे निकाल लाती है । आवश्यकता होने पर कभी कुछ गहने गिरवी रख देती है । कुछ परिचित
घरों से अपनी साख के आधार पर उधार ले आती है, पर उस समय आवश्यक रकम का जुगाड कर ही
लाती है । संकटकालीन अर्थ-प्रबंधन का इससे बेहतर और क्या उदाहरण मिल सकता है ?
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निचले इलाके के घरों में बेमौसम बारिश में कभी अकस्मात
पानी भर जाए, बिना खबर अचानक चार-पांच मेहमान आ जाएं । सब के लिए उसके पास आपदा
प्रबंधन की योजना होती है । जबकि इन सभी इंतजाम के लिए उसके पास सिर्फ आंसू और
मुस्कान ही माध्यम होते हैं और इसके साथ होता है उसकी जिजीविषा, समर्पण और प्रेम की भावना ।
सफल गृहिणी का संबल होता है सब्र । जिसके बारे में कहते
हैं कि सब्र का घूंट दूसरों को पिलाना ही आसान है, लेकिन यदि ख़ुद को पीना पडे तो एक-एक
क़तरा ज़हर समान लगता है । कुशल प्रबंधन के इन नैसर्गिक गुणों से परिपूर्ण उसी
गृहिणी को उसके समर्पण के अनुपात में अधिकतम परिवारों में सम्मान प्रायः नहीं मिल
पाता है यह देखकर दुःख ही होता है ।
इन विदेशी महिला का संस्कृत भाषा में मंत्रों का
सटीक उच्चारण
व मंत्रों के प्रति इनकी भावनाएं देखिये...
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