10.1.20

समस्याओं के चक्रव्यूह में...

        वर्तमान प्रतिस्पर्धी युग में एक ओर निरन्तर बढती मँहगाई, दूसरों को स्वयं से ज्यादा कमाते हुए देखना, खुद अपनी आय नहीं बढा पाना, परिवारजनों के लिये सब कुछ करते रहने के बावजूद उनके द्वारा स्वयं की मौके-बेमौके अवहेलना भी झेलना और ऐसे ही अनेकों ज्ञात-अज्ञात अवसरों पर प्रसन्नता के लिये निरन्तर प्रयत्नशील रहने के बावजूद किसी भी प्रकार की प्रसन्नता से कोसों दूर रह जाना जैसी थोक में समस्याएँ आज हममें से लगभग हर किसी को किसी न किसी बदले हुए स्वरुप में निरन्तर झेलते हुए अपनी जिन्दगी बिताना पड रही है ।

            परिणामतः हर समय खिन्न व उद्विग्न रहना, क्या करना कैसे करना ? जिससे कि न सिर्फ स्वयं के जीवन में बल्कि परिवारजनों में भी सन्तुष्टि का लेवल कुछ बढाया जा सके जैसी अगनित समस्याओं के दबाव में नाना प्रकार की छोटी-मोटी बीमारियों को भी अपने गले ओढ लेने के बाद भी जी के जंजाल जैसी दिखाई पडने वाली इन समस्याओं के बीच प्रसन्नता के वास्तविक पल कैसे निकाले जा सकें, इस चिंतन का थोडा सा समाधान इस जानी-पहचानी कहानी में थोडा-बहुत दिखाई देने के कारण यह कथासार आपके साथ इस पोस्ट के द्वारा शेअर करने का प्रयास किया है । आईये पहले इस कथा को ही एक बार फिर से अपने मस्तिष्क में रिवाईज करलें-

            किसी  शहर  में, एक आदमी प्राइवेट  कंपनी  में  जॉब  करता था, वो  अपनी  ज़िन्दगी  से  कतई खुश  नहीं  था, हर  समय  वो  किसी    किसी  समस्या  से  परेशान  रहता  था ।

           
एक बार  शहर  से  कुछ  दूरी  पर  एक  महात्मा  का  काफिला  रुकाशहर  में  चारों  और  उन्ही की चर्चा चलते हुए दिख रही थी ।  बहुत  से  लोग  अपनी  समस्याएं  लेकर  उनके  पास  पहुँचने  लगे ।

           
उस आदमी  ने  भी  महात्मा  के  दर्शन  करने  का  निश्चय  किया - और छुट्टी के दिन सुबह-सुबह ही उनके  काफिले  तक  पहुंचा । बहुत इंतज़ार  के  बाद उसका  का  नंबर  आया...
            वह  बाबा  से  बोला - बाबा, मैं  अपने  जीवन  से  बहुत  दुःखी  हूँहर  समय ढेरों समस्याएं  मुझे  घेरें  रहती  हैं, कभी ऑफिस  की  टेंशन  रहती  है, तो  कभी  घर  पर  अनबन  हो  जाती  है, और  कभी  अपने  सेहत  को  लेकर  परेशान रहता  हूँ….

           
बाबा  कोई  ऐसा  उपाय  बताइये  कि  मेरे  जीवन  से  सभी  समस्याएं  ख़त्म  हो  जाएं  और  मैं  चैन  से  जी सकूँ  ?

           
बाबा  मुस्कुराये  और  बोले,  “पुत्र, आज तो बहुत देर  हो  गयी  है, मैं  तुम्हारे  प्रश्न  का  उत्तर  कल  सुबह दे सकूंगा । लेकिन क्या  तब तक तुम  मेरा  एक  छोटा  सा  काम  कर सकोगे ?”

           
जी बाबा । उस आदमी ने महात्मा को जवाब दिया ।

            “
हमारे  काफिले  में  सौ ऊंट हैं, मैं  चाहता हूँ  कि  आज  रात  तुम  इनका  खयाल  रख लो । जब ये सौ  के  सौ  ऊंट बैठ जाएं तो तुम भी सो जाना

           
ऐसा कहते  हुए महात्मा अपने तम्बू  में  चले  गए ।

           
अगली सुबह जब महात्मा उस आदमी  से  मिले और उससे पुछा,  “कहो बेटा, रात नींद अच्छी आई ?”

     तो वो दुखी होते हुए बोला - कहाँ बाबामैं तो एक पल के लिये भी नहीं सो पाया  । मैंने  बहुत  कोशिश  की  पर  मैं  सभी  ऊंटों को  नहीं  बैठा  पाया,  कोई    कोई  ऊंट  खड़ा  हो  ही  जाता ।
            


      तब बाबा बोले,  “बेटा, कल  रात  तुमने  अनुभव  किया कि  चाहे  कितनी  भी  कोशिश  कर  लो  सारे  ऊंट  एक  साथ  बैठ ही नहीं सकते । तुम  एक  को  बैठाओगे  तो  कहीं  और  कोई  दूसरा  खड़ा  हो  जाएगा ।

           
बस इसी  तरह तुम एक समस्या का समाधान  करोगे तो किसी कारणवश दूसरी खड़ी हो  जाएगी । जब तक जीवन है, ये समस्याएं तो  बनी  ही  रहती हैं, कभी  कम  तो  कभी  ज्यादा….”

            “
तो  हमें  क्या  करना चाहिए ?”  उस आदमी  ने  जिज्ञासावश  पुछा । इन  समस्याओं  के  बावजूद  जीवन  का  आनंद  लेना  सीखो…" 

            कल  रात  क्या  हुआ ? कई  ऊंट  रात होते-होते  खुद ही  बैठ  गए, कई  तुमने  अपने  प्रयास  से  बैठा  दिए, और बहुत  से  ऊंट तुम्हारे लगातार प्रयास  के  बाद  भी  नहीं बैठे । जबकि बाद  में  तुमने  पाया  कि उनमे से कुछ खुद ही  बैठ  गए…. कुछ  समझे …? 

           
समस्याएं  भी  ऐसी  ही  होती  हैं - कुछ  तो  अपने आप ही ख़त्म  हो  जाती हैंकुछ  को  तुम  अपने  प्रयास  से  हल  कर लेते  हो, और कुछ  तुम्हारे  बहुत  कोशिश  करने  पर   भी  हल  नहीं  होतीं, ऐसी समस्याओं को समय के भरोसे पर  छोड़  दो । उचित  समय आने पर वे खुद ही ख़त्म हो  जाएंगी ।

           
जीवन है, तो कुछ समस्याएं तो रहेंगी ही । पर  इसका  ये  मतलब  नहीं  की तुम  दिन  रात उन्ही  के  बारे  में  सोचते  रहो, समस्याओं को एक तरफ  रखो और  जीवन  का  आनंद  लोचैन की नींद सोओ । जब भी उनका  समय  आएगा, तब वो  खुद  ही हल हो जाएँगी" ।

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