21.1.20

अविद्या – भेडचाल…!


      कुछ दिनों पूर्व हमारे शहर में 5/- रु. के अच्छे-भले नोट लोगों ने लेना बंद कर दिया । कारण क्या हुआ ?  जवाब किसी के पास भी नहीं, बस हम नहीं लेंगे । अब आप बैठे रहो अपने उन पांच रुपये के करंसी नोटों को लेकर, नहीं चलेंगे याने नहीं चलेंगे । पहले भी 10/- रु. के सिक्कों के साथ ऐसी हवा चली थी । जब कि एक परिचित बताने लगे कि कुछ दिनों पहले मैं जब अहमदाबाद गया तो वहाँ 50 पैसे का सिक्का भी अभी तक चल रहा है जिसे हमारे शहर में बंद हुए एक अर्सा बीत गया ।

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      ऐसे ही  इस समय देश के निति-नियंताओं द्वारा बनाया जा रहा बदलाव का दौर चल रहा है और इसीके साथ तर्कसंगत या अतर्कसंगत विरोध के बवंडर भी लगातार बने हुए हैं, बिना ये जाने कि वास्तव में यह सही है भी या नहीं । बस किसी न किसी नेता के अनुसरण में उस वर्ग की पूरी ताकत प्राण-प्रण से विरोध में लगी दिखाई दे रही है ।

       इसी भेडचाल को इतिहास में अविद्या के रुप में परिभाषित किया गया है । इस अविद्या का एक रोचक उदाहरण अकबर – बीरबल के इस दिलचस्प कथानक में देखें-

      एक बार अकबर ने बीरबल से पूछा की बीरबल यह अविद्या क्या है ? तब बीरबल ने कहा कि यदि आप मुझे चार-पांच दिन की छुट्टी दें तो मै आपको बता सकता हूं, कि ये अविद्या क्या है ! अकबर ने तब चाही गई छुट्टी बीरबल को दे दी ! दूसरे दिन बीरबल एक मोची के पास गया और बोला कि भाई एक जोड जूती बना दो, मोची ने जब नाप के लिये पूछा तो बीरबल बोला- आप तो बस डेढ़ फुट लंबी और एक बित्ता चौड़ी बना दो, और इसमें हीरे-जवाहरात जडकर, सोने व चांदी के तारों से इसकी सिलाई कर दो । खर्च की कोई चिंता नहीं है तुम जितना मांगोगे उतना मिल जाएगा । मोची ने तीसरे दिन जूतियां बनाकर बीरबल को देने का बोला और समय पर चाहत के मुताबिक जूती की आकर्षक जोडी बनाकर बीरबल की दे दी ।

      बीरबल ने उसमें से एक जूती अपने पास रखकर दूसरी रात में मस्जिद में फेंक दी । सुबह जब मुल्ला-मौलवी अजान व नमाज के लिए मस्जिद पहुंचे तो मौलवी को वो जूती वहां दिखी । मौलवी ने सोचा यह जूती किसी इंसान की तो नहीं हो सकती, जरूर अल्लाह नमाज पढ़ने आया होगा और ये यहीं छूट गई होगी, यह सोच उसने उस जूती को अपने सर पर रखकर मस्तक पर लगाया और उस जूती को प्रेम से चूम-चाट लिया क्योंकि वह अल्लाह की जूती थी ।


      फिर उसने वहां मौजूद सभी लोगों को उस जूती को दिखाया तो वे सब भी बोलने लगे कि, हां ! यह तो अल्लाह की ही जूती रह गई है और उन्होंने भी उसको सर पर रखा और बारी-बारी से सभी ने उसे चूमा व चाटा । अकबर तक यह बात पहुंची । अकबर ने भी उस जूती को देखा तो वह भी यही बोला कि वाकई यह तो अल्लाह की ही जूती है । फिर अकबर ने भी उसे अपने मस्तक पर रखा व उसे चूमते-चाटते बोला इसे हिफाजत से मस्जिद में ही रखवा दो !

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      इधर बीरबल की छुट्टी समाप्त हुई । वह आया, बादशाह को सलाम किया और उतरा हुआ मुंह लेकर एक ओर खड़ा हो गया । अकबर ने बीरबल से पूछा कि क्या हो गया, ऐसे मुंह क्यों लटका रखा है ? तब बीरबल ने कहा - महाराज हमारे यहां चोरी हो गई । अकबर ने पूछा कि क्या चोरी हो गया ? तब बीरबल ने बताया कि हमारे परदादा की पुश्तैनी जूती थी, कोई चोर उसमें से एक जूती उठाकर ले गया, अब एक ही बची है, तो अकबर ने पूछा कि क्या वो एक जूती तुम्हारे पास है ? बीरबल ने कहा जी वो तो मेरे पास ही है कहते हुए उसने वह दूसरी जूती अकबर को दिखाई । अब अकबर का माथा ठनका और उसने मस्जिद से दूसरी जूती मंगाई व उसे देखते हुए बोला- या अल्लाह मैंने तो सोचा कि यह जूती अल्लाह की है और मैंने तो इसे चाट-चाट कर चिकना बना डाला ।

      तब बीरबल ने कहा- महाराज यही है वह अविद्या, जिसमें किसी को भले ही कुछ भी पता न हो फिर भी सब भेड़चाल में चलते चले जा रहे हैं ।

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1 टिप्पणी:

  1. आपने सही कहा। लोग भेड़ चाल में कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। अविद्या को दर्शाने हेतु बहुत अच्छी कथा साझा की है आपने। आभार।

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