वर्षों पूर्व मेरे
ससुराल के 40-45 वर्ष के आसपास की
उम्र के दो रिश्तेदार । दोनों ही सीने में
दर्द के रोगी, और दोनों ही मुझे
ससुराल पक्ष के होने के कारण कंवर साब कहकर सम्बोधित करते थे । एक जब भी मिलते
कहते - कंवर साब मेरा क्या भरोसा ? दूसरे जब भी मिलते कहते
- अरे कंवर साब जब भी सीने में दर्द उठता है मैं बाम बगैरह लगा लेता हूँ, कुछ देर आराम कर लेता हूँ और फिर अपने
काम पर लग जाता हूँ और बिल्कुल सत्य घटना यह घटी कि जो कहते थे मेरा क्या भरोसा ? वो उतनी ही जल्दी इस दुनिया को अलविदा
कर गये, जबकि बाम वगैरह लगाकर
आराम करके अपने काम पर लग जाने वाले आज भी उसी स्थिति में किंतु मानसिक रुप से मजे
में अपनी जिन्दगी गुजार रहे हैं ।
कुछ उपाय जो इस स्थिति से बचाव के सामने आते हैं वे यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास है...
“क्योंकि हम जो सोचते हैं, वो ही बन भी जाते हैं”
Law Of Attraction (LOA) अर्थात् आकर्षित करने का नियम कहता है कि हम जो भी सोचते हैं उसे अपने जीवन में आकर्षित करते हैं, फिर चाहे वो चीज अच्छी हो या बुरी । उदाहरण के लिए- अगर कोई सोचता है कि वो हमेशा परेशान रहता है, बीमार रहता है और उसके पास पैसों कि कमी रहती है तो असल जिंदगी में भी ब्रह्माण्ड घटनाओं को कुछ ऐसे सेट करता है कि उसे अपने जिंदगी में परेशानी, बीमारी और तंगी का सामना करना ही पड़ता है । वहीँ दूसरी तरफ अगर वो सोचता है कि वो खुशहाल है, सेहतमंद है और उसके पास बहुत पैसे हैं तो LOA कि वजह से असल जिंदगी में भी उसे खुशहाली, अच्छी सेहत और समृद्धि देखने को मिलने लगती है ।
“हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं, किंतु विचार हैं, जो दूर तक यात्रा करते हैं” जो लोग LOA मानते हैं वे समझते हैं कि सकारात्मक सोचना कितना ज़रूरी है…
वे जानते हैं कि हर एक नकारात्मक सोच हमारे जीवन को सकारात्मकता से दूर ले जाती है और हर एक सकारात्मक सोच जीवन में खुशियां लाती है । किसी ने कहा भी है- ”अगर इंसान जानता कि उसकी सोच कितनी पावरफुल है - तो वो कभी नकारात्मक नहीं सोचता !”
परन्तु क्या हमेशा सकारात्मक सोचना संभव है ? यहीं पर काम आते हैं हमारे लेकिन, किन्तु, परन्तु...
कुछ और उदाहरण देखते हैं-
मैं पढ़ने में कमजोर हूँ...लेकिन अब मैंने मेहनत शुरू कर दी है और जल्द ही मैं पढ़ाई में भी अच्छा हो जाऊँगा ।
मेरे अफसर बहुत जालिम हैं... पर धीरे -धीरे वो बदल रहे हैं और उन्हें ज्ञान भी बहुत है, मुझे काफी कुछ सीखने को मिलता है उनसे ।
मेरे पास पैसे नहीं हैं...लेकिन मुझे पता है मेरे पास बहुत पैसा आने वाला है, इतना कि न मैं सिर्फ अपने बल्कि अपने अपनों के भी सपने पूरे कर सकूँ ।
मेरे साथ हमेशा बुरा होता आया है...लेकिन मैं देख रहा हूँ कि पिछले कुछ दिनों से सब अच्छा अच्छा ही हो रहा है, और आगे भी होगा ।
मेरे बच्चे की शादी नहीं हो रही...परंतु अब मौसम शादीयों का है, भाग्य ने उसके लिए बहुत ही बेहतरीन रिश्ता सोच रखा होगा, जो जल्द ही तय होगा ।
मित्रों... यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात ये महसूस करना है कि कब आपके मन में एक नकारात्मक सोच आई है और तुरंत सावधान हो कर व इसे- “लेकिन” लगा कर सकारात्मक सोच में परिवर्तित कर देना है, और ये आपको सिर्फ तब नहीं करना जब आप किसी के सामने बात कर रहे हों, बल्कि सबसे अधिक तो आपको ये अकेले रहते हुए अपने साथ करना है, आपको अपनी सोच पर ध्यान देना है, सावधान रहना है कि आपकी सोच सकारात्मक है या नकारात्मक ? और जैसे ही नकारात्मक सोच आये आपको तुरंत उसे सकारात्मक में परिवर्तित कर देना है । तब आप इस बात की चिंता ना करें की आपने ‘लेकिन‘ के बाद जो लाइन जोड़ी है वो सही है या गलत,
आपको तो बस एक सकारात्मक वाक्य जोड़ना है, और आपका अवचेतन मस्तिष्क उसे ही सही मानेगा और ब्रह्माण्ड आपके जीवन में वैसे ही अनुभव प्रस्तुत करेगा !
वैसे देखने में ये आसान लग सकता है ! हो सकता है ये आपको बड़ा सामान्य भी लगे, कुछ लोगों के लिए वाकई में हो भी, पर अधिकांश लोगों के लिए विचारों को नियंत्रित करना और उनके प्रति सतर्क बने रहना चैलेंजिंग ही होता है । इसलिए अगर आप इस तरीके को आजमाते वक़्त कई बार नकारात्मक सोच को miss भी कर जाते हैं तो चिंता न करें...
वाकया
याद यूं भी आया कि मेरे एक अभिन्न मित्र अच्छा कमाने-खाने के बावजूद हर जगह, हर परिस्थिति में नकारात्मकता को ही
देखते हैं । नजदीकी सम्बन्धों में भी उन विषयों तक में जिनका न तो उनसे कोई
लेना-देना हो, और न ही उनसे उस बारे
में उनकी कोई राय मांगी गई हो, किंतु फिर भी बेवजह
बीच में कूदना और अपनी नकारात्मक शैली में उस व्यक्ति की ही छिछालेदारी करने लगना
जो उन्हें अपना सर्वाधिक घनिष्ठ मानता रहा हो । नतीजा - वर्ष भर में उनके दो मंहगे
और बडे आकार के ऑपरेशन हो गये । तमाम मितव्ययिता के बावजूद रास्ते चलते दो-तीन लाख
रुपये के खर्च में भी आ गये किंतु आदत है कि छूटती नहीं और कहीं भी अपनी नकारात्मक
शैली में पूरी वजनदारी के साथ घुसपैठ कर ही बैठते हैं । अपनी इसी कमी के कारण ये
इनकी नजदीकी रिश्तेदारी में भी अच्छे-खासे उपेक्षित ही रहते हैं किंतु आदत है कि
"दिल है के मानता नहीं" की तर्ज पर कभी छूटती नहीं ।
निःसंदेह
जिंदगी में हमारा नजरिया ही हमारा मार्ग और हमारा भाग्य निर्धारित करता है । हो
सकता है कि नकारात्मक सोच को प्रधानता देते रहने वाले लोगों के जीवन में कुछ वाकये
ऐसे कभी गुजरे हों जिन्होंने हमेशा के लिये उनकी सोच का मार्ग यह बना दिया हो, यह भी हो सकता है कि उन्हें अपने
पूर्वजों से विरासत में ही सोचने का यही तरीका मिला हो किंतु दोनों ही स्थितियों
में इसके नुकसान तो इन्हें ही उठाने पडते हैं जिनकी सोच-शैली
नकारात्मक हो जाती है । प्रश्न तब यह उठता है कि ऐसे में क्या किया जावे कि हमारे
अपने जीवन से इस मनहूसियत को हम दूर कर पाएं क्योंकि मुद्दे यदि सिर्फ दो हैं तो
इसका मतलब देश व दुनिया की कमोबेश लगभग आधी आबादी इस समस्या से पूर्णतः या अंशतः
ग्रसित है...
कुछ उपाय जो इस स्थिति से बचाव के सामने आते हैं वे यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास है...
अन्धेरों से घिरे हों
तो घबराएं नहीं,
क्योंकि सितारों को
चमकने के लिए घनी रात ही चाहिए होती है, दिन की रोशनी नहीं ।
कैसे
करें नकारात्मक सोच को सकारात्मक में परिवर्तित ?
“क्योंकि हम जो सोचते हैं, वो ही बन भी जाते हैं”
Law Of Attraction (LOA) अर्थात् आकर्षित करने का नियम कहता है कि हम जो भी सोचते हैं उसे अपने जीवन में आकर्षित करते हैं, फिर चाहे वो चीज अच्छी हो या बुरी । उदाहरण के लिए- अगर कोई सोचता है कि वो हमेशा परेशान रहता है, बीमार रहता है और उसके पास पैसों कि कमी रहती है तो असल जिंदगी में भी ब्रह्माण्ड घटनाओं को कुछ ऐसे सेट करता है कि उसे अपने जिंदगी में परेशानी, बीमारी और तंगी का सामना करना ही पड़ता है । वहीँ दूसरी तरफ अगर वो सोचता है कि वो खुशहाल है, सेहतमंद है और उसके पास बहुत पैसे हैं तो LOA कि वजह से असल जिंदगी में भी उसे खुशहाली, अच्छी सेहत और समृद्धि देखने को मिलने लगती है ।
“हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि आप क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं, किंतु विचार हैं, जो दूर तक यात्रा करते हैं” जो लोग LOA मानते हैं वे समझते हैं कि सकारात्मक सोचना कितना ज़रूरी है…
वे जानते हैं कि हर एक नकारात्मक सोच हमारे जीवन को सकारात्मकता से दूर ले जाती है और हर एक सकारात्मक सोच जीवन में खुशियां लाती है । किसी ने कहा भी है- ”अगर इंसान जानता कि उसकी सोच कितनी पावरफुल है - तो वो कभी नकारात्मक नहीं सोचता !”
परन्तु क्या हमेशा सकारात्मक सोचना संभव है ? यहीं पर काम आते हैं हमारे लेकिन, किन्तु, परन्तु...
प्रायः
ये शब्द ज्यादातर नकारात्मक सोच में प्रयुक्त
होते
हैं । आप लोगों को कहते
सुन सकते हैं - मैं सफल हो जाता लेकिन..., सब सही चल रहा था
किन्तु..., पर ऐसे शब्दों के
प्रयोग में नकारात्मकता के अंत में कुछ वृद्धि करके उन्हें सकारात्मक सोच में परिवर्तित
कर सकते हैं । इसे कुछ उदाहरण से समझते हैं-
जैसे
ही आपके मन में विचार आये, “दुनिया बहुत बुरी है” तो आप इतना कह कर या सोच कर रुके नहीं, तुरंत महसूस करें कि आपने एक नकारात्मक
शब्द बोला है इसलिए तुरंत सचेत हो जाएं और वाक्य को कुछ ऐसे पूरा करें- ”दुनिया बहुत बुरी है, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं, बहुत से अच्छे लोग समाज में अच्छाई का
बीज बो रहे हैं और सब ठीक हो रहा है“
कुछ और उदाहरण देखते हैं-
मैं पढ़ने में कमजोर हूँ...लेकिन अब मैंने मेहनत शुरू कर दी है और जल्द ही मैं पढ़ाई में भी अच्छा हो जाऊँगा ।
मेरे अफसर बहुत जालिम हैं... पर धीरे -धीरे वो बदल रहे हैं और उन्हें ज्ञान भी बहुत है, मुझे काफी कुछ सीखने को मिलता है उनसे ।
मेरे पास पैसे नहीं हैं...लेकिन मुझे पता है मेरे पास बहुत पैसा आने वाला है, इतना कि न मैं सिर्फ अपने बल्कि अपने अपनों के भी सपने पूरे कर सकूँ ।
मेरे साथ हमेशा बुरा होता आया है...लेकिन मैं देख रहा हूँ कि पिछले कुछ दिनों से सब अच्छा अच्छा ही हो रहा है, और आगे भी होगा ।
मेरे बच्चे की शादी नहीं हो रही...परंतु अब मौसम शादीयों का है, भाग्य ने उसके लिए बहुत ही बेहतरीन रिश्ता सोच रखा होगा, जो जल्द ही तय होगा ।
मित्रों... यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात ये महसूस करना है कि कब आपके मन में एक नकारात्मक सोच आई है और तुरंत सावधान हो कर व इसे- “लेकिन” लगा कर सकारात्मक सोच में परिवर्तित कर देना है, और ये आपको सिर्फ तब नहीं करना जब आप किसी के सामने बात कर रहे हों, बल्कि सबसे अधिक तो आपको ये अकेले रहते हुए अपने साथ करना है, आपको अपनी सोच पर ध्यान देना है, सावधान रहना है कि आपकी सोच सकारात्मक है या नकारात्मक ? और जैसे ही नकारात्मक सोच आये आपको तुरंत उसे सकारात्मक में परिवर्तित कर देना है । तब आप इस बात की चिंता ना करें की आपने ‘लेकिन‘ के बाद जो लाइन जोड़ी है वो सही है या गलत,
आपको तो बस एक सकारात्मक वाक्य जोड़ना है, और आपका अवचेतन मस्तिष्क उसे ही सही मानेगा और ब्रह्माण्ड आपके जीवन में वैसे ही अनुभव प्रस्तुत करेगा !
वैसे देखने में ये आसान लग सकता है ! हो सकता है ये आपको बड़ा सामान्य भी लगे, कुछ लोगों के लिए वाकई में हो भी, पर अधिकांश लोगों के लिए विचारों को नियंत्रित करना और उनके प्रति सतर्क बने रहना चैलेंजिंग ही होता है । इसलिए अगर आप इस तरीके को आजमाते वक़्त कई बार नकारात्मक सोच को miss भी कर जाते हैं तो चिंता न करें...
जैसे तमाम चीजों को अभ्यास से सही किया जा सकता है वैसे ही अपने विचारों को भी अभ्यास से सकारात्मकता की ओर परिवर्तित किया जा सकता है ।
यहाँ इस
चित्र को ध्यान से देखें...!
बेशक, सकारात्मकता के साथ ही आगे बढ़ा जा सकता है और नकारात्मकता आगे बढ़ने वालों को पीछे धकेल देती है, काफी दिन बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ है, बीच में एक-आध बार सरसरी निगाह भर डाली थी... बहुत अच्छा लिखा है।
जवाब देंहटाएंलाख-टके की बात कही है आपने - सकारात्मक दृष्टि से किया गया उत्साह और प्रसन्नता पूर्ण प्रयास ही जीवन को सार्थक बनाता है .
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा सुशील जी, अच्छा सोचो अच्ठा ही होगा।
जवाब देंहटाएं