किसी गांव में एक समय चार मित्र
बेहतर भविष्य की तलाश में भोजन-पानी की आवश्यक तैयारी के साथ शहर की ओर निकले ।
रास्ते में विश्राम के समय एक सन्यासी से मुलाकात के बाद उन्होंने अपना मकसद उन
सन्यासी को बताया, तब
सन्यासी ने उन्हें चार बत्तीयां देते हुए कहा कि सामने दिख रही पहाडी पर तुम जाओ ।
जहाँ भी कोई बत्ती गिरे वहीं थोडी खुदाई करने पर तुम्हें तुम्हारे उद्देश्य की
पूर्ति जितना धन प्राप्त हो जावेगा । सभी ने आपस में विचार-विमर्श कर
सन्यासीजी को धन्यवाद दिया और पहाडी की ओर चढना प्रारम्भ किया ।
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कुछ दूर चढने पर एक बत्ती गिर
गई । सबने वहाँ खुदाई की तो अन्दर लोहा ही लोहा दिखने लगा । एक मित्र ने कहा कि
अपना मकसद इस लोहे को बेचकर पूरा हो सकता है । किन्तु बाकि तीनों मित्रों को उसकी
बात समझ में नहीं आई । तब वह मित्र वहीं रुककर अपने लिये उस लोहे के भण्डार को ले
जाने की व्यवस्था में लग गया और शेष तीनों मित्र आगे निकल गये ।
और थोडी चढाई चढने पर फिर एक बत्ती गिरी । वहाँ तीनों ने खुदाई की तो भरपूर तांबा वहाँ मौजूद पाया । उनमें से फिर एक मित्र बोला ये उस लोहे की तुलना में कहीं अधिक बेहतर विकल्प है और इसमें हम तीनों का भविष्य बन सकता है । तब बाकि दो मित्रों को उसकी बात सही नहीं लगी और वह मित्र तांबे के द्वारा अपना भविष्य संवारने वहीं रुक गया व शेष दोनों मित्र फिर आगे चढने लगे ।
निकल गया ।
वह थोडा ही और उपर पहुंचा कि
चौथी बत्ती भी गिरी । उसने वहाँ खुदाई की तो उसकी उम्मीद के मुताबिक वहाँ सोने का
खजाना दिखने लगा । अब तो उसकी प्रसन्नता की सीमा न रही । उसने उपर की ओर देखा तो
पहाडी की चोटी थोडी ही दूरी पर दिख रही थी । तब उसने सोचा कि ये पहाड तो बहुमूल्य
संपदाओं से भरा पडा है और ये बत्तियां तो उन स्वामीजी ने प्रतीक रुप में ही दी हैं
। इस सोने पर तो मेरे अलावा अब और किसी का कोई हिस्सा भी नहीं बचा है किन्तु जिस
तरह इस पहाड पर लोहा, तांबा, चांदी व सोना मिला है ऐसे ही इस
पहाडी की चोटी पर हीरे-जवाहरात भी अवश्य ही मौजूद होंगे । लगे हाथों मैं उस चोटी
पर भी देख लूं ।
यह सोचकर वह व्यक्ति उस पहाडी की चोटी पर पहुंचा, लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से उसे वहाँ एक ऐसा आदमी दिखा जो हिल-डुल भी नहीं पा रहा था और उसके सिर पर एक बडा सा चक्र धंसा हुआ था जो निरन्तर घूम रहा था । बडे आश्चर्य़ के साथ उसने उस चक्र वाले व्यक्ति से पूछा- आप कौन हैं और आपके सिर में ये चक्र कैसे फंसा घूम रहा है ? उसके इतना पूछते ही चमत्कारिक तरीके से वह चक्र पहले से मौजूद व्यक्ति के सिर से उतरकर पहाड चढने वाले उस अन्तिम चौथे मित्र की सिर में धंस गया । मुक्त होने वाला व्यक्ति उससे बोला- धन्यवाद तुम्हारा जो अपने लालच के कारण तुम उपर तक आगए । अब न तुम्हें कभी भूख-प्यास लगेगी और न ही ये चक्र तुम्हारे सिर से हटेगा । हाँ यदि कोई तुमसे बडा लालची तुम्हारी किस्मत से यहाँ तक आ जावेगा तभी तुम अपनी मुक्ति का कामना कर सकते हो । मैं तो अब इस बोझ से मुक्त होकर जा रहा हूँ ।
पुरातन काल की ये कथा कितनी सत्य या असत्य है ये तो शायद कोई भी नहीं जानता किन्तु लालच का भूत तो ऐसा ही है जिसकी गिरफ्त में देश-दुनिया की नामी-गिरामी शख्सियतें भी सर पर ये चक्र धंसवाए भोजन-पानी कि चिन्ता से कहीं अधिक और बडे भण्डार की तलाश में घूम रही हैं, और भ्रष्टाचार व विध्वंस के नये-नये तरीके इजाद भी करवा रही हैं । आपका क्या ख्याल है ?
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यह सोचकर वह व्यक्ति उस पहाडी की चोटी पर पहुंचा, लेकिन आश्चर्यजनक तरीके से उसे वहाँ एक ऐसा आदमी दिखा जो हिल-डुल भी नहीं पा रहा था और उसके सिर पर एक बडा सा चक्र धंसा हुआ था जो निरन्तर घूम रहा था । बडे आश्चर्य़ के साथ उसने उस चक्र वाले व्यक्ति से पूछा- आप कौन हैं और आपके सिर में ये चक्र कैसे फंसा घूम रहा है ? उसके इतना पूछते ही चमत्कारिक तरीके से वह चक्र पहले से मौजूद व्यक्ति के सिर से उतरकर पहाड चढने वाले उस अन्तिम चौथे मित्र की सिर में धंस गया । मुक्त होने वाला व्यक्ति उससे बोला- धन्यवाद तुम्हारा जो अपने लालच के कारण तुम उपर तक आगए । अब न तुम्हें कभी भूख-प्यास लगेगी और न ही ये चक्र तुम्हारे सिर से हटेगा । हाँ यदि कोई तुमसे बडा लालची तुम्हारी किस्मत से यहाँ तक आ जावेगा तभी तुम अपनी मुक्ति का कामना कर सकते हो । मैं तो अब इस बोझ से मुक्त होकर जा रहा हूँ ।
पुरातन काल की ये कथा कितनी सत्य या असत्य है ये तो शायद कोई भी नहीं जानता किन्तु लालच का भूत तो ऐसा ही है जिसकी गिरफ्त में देश-दुनिया की नामी-गिरामी शख्सियतें भी सर पर ये चक्र धंसवाए भोजन-पानी कि चिन्ता से कहीं अधिक और बडे भण्डार की तलाश में घूम रही हैं, और भ्रष्टाचार व विध्वंस के नये-नये तरीके इजाद भी करवा रही हैं । आपका क्या ख्याल है ?
लालच ऐसी ही चीज है।
जवाब देंहटाएंलालच बहुत बुरी बाला है|
जवाब देंहटाएंबेचारे के हीरे ........
जवाब देंहटाएंलालच न जाने कहाँ ले जाये, एकान्त, मुक्ति की कामना में।
जवाब देंहटाएंनिन्यान्बे का चक्कर.
जवाब देंहटाएंतभी तो कहती हैं कि लालच बुरी बला है। आभार।
जवाब देंहटाएंलालच बुरी बला ....
जवाब देंहटाएंतभी तो कहा है लालच बुरी बला है।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंबेहद प्रेरणादायी प्रसंग।
करोड़ों के घोटाले के बाद भी इनका पेट नहीं भरता। चक्र इनके सर से ज्यादा दूर नहीं है।
.
लालच को रेखांकित कर सार्थक बोध दिया गया है।
जवाब देंहटाएंमा गृधः कस्य स्वधनम्!
जवाब देंहटाएंलालच बुरी बाला है|
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !
जवाब देंहटाएंभाग कर शादी करनी हो तो सबसे अच्छा महूरत फरबरी माह मे.............
आ. शास्त्रीजी सा.,
जवाब देंहटाएंमा गृधः कस्य स्वधनम् ! यदि आपके इस संस्कृत पंक्ति का अर्थ लालच बुरी बला से कुछ हटकर हो तो कृपया हिन्दी में भी इसका अनुवाद पाठकों के हित में अवश्य बतावें । धन्यवाद सहित...
लालच को रेखांकित कर सार्थक बोध दिया गया है..........
जवाब देंहटाएंलालच बुरी बला है
जवाब देंहटाएंइस सच्चाई से रूबरू कराती है आपकी कथा
सही मुद्दा
जवाब देंहटाएं.
ज़रा सोंच के देखें क्या हम सच मैं इतने बेवकूफ हैं
bahut hi sunder shikh deti achchhi bodh katha...... sunder prastuti.
जवाब देंहटाएंअच्छी सीख्ा देती कहानी।
जवाब देंहटाएंअच्छी बोधकथा..... सच्ची सीख देती
जवाब देंहटाएंये कहानी लिखने के लिए धन्यवाद अभी हाल में ही इसी कहानी का जिक्र मैंने सुज्ञ जी के ब्लॉग पर किया था तब उन्होंने कहानी का विस्तार पूछा था अब उन्होंने इसे यहाँ पढ़ा लिया |
जवाब देंहटाएंजो ख्याल आपका है वही हमारा है। बहुत अच्छी सार्थक बोध कथा। बधाई।
जवाब देंहटाएंअंशुमालाजी
जवाब देंहटाएंवर्षों पूर्व लगभग अपने बचपन में यह कहानी मैंने किसी पुस्तक में पढी थी जिसकी पुनरावृत्ति बाद में किसी समाचार पत्र में भी देखी थी इसे ही वर्तमान संदर्भों में आप सबकी सेवा में प्रस्तुत कर देने का प्रयास किया है । धन्यवाद...
अच्छी सीख है. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी कथा...सतत स्मरणीय ...
जवाब देंहटाएंवर्तमान संदर्भों में अच्छी कथा है.
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