7.2.11

सबसे अनमोल क्या...?

            
      जीवन में अनेकों बार एकान्त में या सामूहिक चिन्तन के दौर में ये प्रश्न जब भी सामने आता है तो तात्कालिक सोच या लक्ष्य के मुताबिक प्रायः अलग-अलग उत्तर जो मिलते हैं वे कितने सही हो पाते हैं ये पडताल करने के उद्देश्य से- 
  
           एक बार सम्राट अकबर ने अपने दरबार में यह प्रश्न सभी विद्वानों से पूछा कि जीवन में सबसे अनमोल क्या होता है ? तब किसी ने कहा- जीवन में धन सबसे अनमोल होता हैइन्सान सारा ज्ञान इसीके लिये हासिल करता है और इसीके लिये जीवन भर नाना प्रकार के उद्योग-धंधे करता है ।  किसी ने कहा- ज्ञान सबसे अनमोल होता है, इसी से समाज में इज्जत मिलती है और धन कमाने की योग्यता भी इसीसे मिल पाती है ।  किसी ने कहा- इज्जत सबसे अनमोल होती है, यदि वह चली जावे तो धनी या ज्ञानी होने का क्या मतलब ? किसी ने कहा कि जीवन में लक्ष्य सबसे अनमोल होता है, लक्ष्यहीन जीवन बिना पतवार की नाव के समान ही रहता है । अंततः जब यही प्रश्न अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा कि बीरबल तुम बताओ जीवन में सबसे अनमोल क्या होता है ? बीरबल ने उत्तर दिया- महाराज जीवन में सबसे अनमोल अपनी जान होती है ।
  
            बीरबल का ये उत्तर किसी भी दरबारी के गले नहीं उतरासबने एक स्वर में विरोध करते हुए बादशाह से शिकायती लहजे में कहा- महाराज ये भी कोई उत्तर हुआ कि सबसे अनमोल अपनी जान होती है । अरे ये तो बिल्कुल स्वार्थीपने की बात है । हम सब जानते हैं कि ये जान तो सिपाही अपने देश पर, मां-बाप अपने बच्चों पर और कई बार तो दोस्त अपने दोस्त पर हँसते-हँसते न्यौछावर कर देते हैं इसलिये सबसे अनमोल अपनी जान कैसे हो सकती है ?
  
            सभी दरबारियों के एक स्वर में उठे विरोध के स्वरों को देखकर अकबर ने बीरबल से कहा- बीरबल क्या तुम अपने इस उत्तर को साबित करके दिखा सकते हो ? जी महाराज कहते हुए बीरबल ने दुसरे दिन सुबह तक खुले मैदान में एक गहरा व बडा गड्ढा खुदवाया जिसके बीचों बीच थोडी उंचाई पर एक छोटा टीला छुडवा दिया । उसके बाद बादशाह व सभी दरबारियों की मौजूदगी में उस गहरे गड्ढे में एक बिल्ली व उसके बच्चे को छोडकर उस गड्ढे में धीमी गति से पानी भरवाना शुरु किया । जब पानी गड्ढे में इतना भर गया कि बिल्ली का बच्चा उसमें डूबने लगा तब उस बिल्ली ने अपने बच्चे को यत्नपूर्वक उस टीले पर चढा दिया और जब गड्ढे के पानी में बिल्ली भी डूबने लगी तो बिल्ली स्वयं भी प्रयत्न करके उस टीले पर चढ गई ।
  
            गड्ढे में पानी भरने का क्रम जारी रहा । जब पानी टीले पर भी इतना आ गया कि बच्चा वहाँ भी उस पानी में डूबने लगा तो बिल्ली ने अपने बच्चे को प्रयत्नपूर्वक अपने हाथों में उठाकर अपने सिर से उपर कर बच्चे को पानी से उपर उठा दिया । पानी बदस्तूर उसी गति से गड्ढे में बढता रहा । थोडी देर में टीले पर भी उस पानी में बिल्ली के भी डूबने की स्थिति बनने लगी । कुछ देर तक तो बिल्ली अपने बच्चे को हाथों में उठाए उचक-उचक कर अपनी व अपने बच्चे की जान बचाने की कोशिश करती रही लेकिन थक जाने पर अंततः जब स्थिति बिल्ली को काबू से बाहर लगने लगी तो बादशाह सहित सभी दरबारी आश्चर्य से देखते ही रह गये कि उस बिल्ली ने अपने बच्चे को जिसे वह शुरु से हर तरह से बचाने की लगातार कोशिश कर रही थी अचानक उसी बच्चे को टीले पर रखा और स्वयं उस बच्चे पर ही खडे होकर अपने आपको उस भरते जा रहे पानी से उपर उठा लिया । 
   
            बीरबल ने तत्काल पानी का प्रवाह बन्द करवाकर अकबर से सभी दरबारियों के सामने पूछा- महाराज साबित हुआ या नहीं कि जीवन में सबसे अनमोल सिर्फ अपनी जान ही होती है । बादशाह सहित किसी भी दरबारी के पास तब बीरबल की इस तर्कपूर्ण बात का विरोध करने का कोई कारण नहीं बचा था । 
  
           अपनी उपन्यासिका  "देख लूँ तो चलूँ"  में शिरोमणी ब्लागर श्री समीरलालजी 'समीर' भी इस तथ्य को कुछ यूं रेखांकित करते नजर आते हैं-

             "जन्म लेना और मरना हमारे हाथ में नहीं । मृत्यु एक अटल सत्य है किन्तु इन्सान उम्र के किसी भी पडाव पर हो, उसके जीने की लालसा कभी खत्म नहीं होती । इन्सान पैसा कमा-कमाकर अघा सकता है । कमाने के लिये उल्टे-सीधे हथकंडे अपनाना छोड सकता है । हलवाई मिठाई के बीच बैठा-बैठा मीठा खाने से उब सकता है । अपराधी जुर्म कर करके थक के जु्र्म की दुनिया से मुँह मोड सकता है, लेकिन जिन्दा रह रहकर भी जीने की लालसा खतम करना, कभी नहीं । यह इन्सानी स्वभाव नहीं है । 

            लालच की पराकाष्टा राजनीति तक से सारी जिन्दगी उसी दलदल में फँसे लोग एक उम्र पर निकल सकते हैं । प्रधानमंत्री रह चुके लोग भी घर बैठे राजनीति का मोह छोडकर कविता रचने लग जाते हैं लेकिन जीने का लालच, तौबा ! !  इसे छोडने की बात मत करो, यह नहीं हो पायेगा ।  बीमारी और शारीरिक व्याधियों से परेशान इन्सान लाख बोल ले कि हे भगवान ! !  अब नहीं जिया जाता, अब तो तू मुझे उठा ही ले, मगर जब मौत करीब आती है तो एकदम घबरा उठता है । जाने को तैयार ही नहीं होता ।"
  
            जबकि पानी पर खींची रेखा का जीवनकाल जितना अनिश्चित होता है उतना ही अनिश्चित जीवन भी माना जाता है और जीवन की इस क्षणभंगुरता को  समझने के बावजूद भी एक ओर जहाँ सामर्थ्यवान लोग अपने इसी जीवन की सुरक्षा के लिये अनेक बाडीगार्ड नियुक्त कर सुरक्षा घेरे में रहते हैं वहीं अपने स्वार्थ के आडे किसी भी दूसरे व्यक्ति को आते देखकर नैतिकता को दरकिनार कर नीचता की सभी हदें पार करते हुए छल-कपट से उसका जीवन छीन लेने के सभी हथकंडे अपनाने में जरा भी देर नहीं लगने देते । वर्तमान उपभोक्तावादी युग में ऐसे उदाहरणों की कोई कमी दिखती है क्या ?

29 टिप्‍पणियां:

  1. सुंदर आलेख। लेकिन इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जहाँ मनुष्यों ने अपनी जान की परवाह न कर औरों के प्राणों की रक्षा की है। ऐसे ही लोग अमर हो गए हैं।

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  2. यह जीवन के सीधे साधे तथ्य हैं जो सब विचारवान सोचते ही हैं।

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  3. आपने सोदाहरण अच्छा आलेख प्रस्तुत किया है!

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  4. मुझे सबसे अनमोल "समय " लगता है । Time is precious !

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  5. शायद "देख लूँ तो चलूँ" लिखने से पहले समीर जी ने यही कहानी पढी हो। सुन्दर आलेख। बधाई।

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  6. जीवन यात्रा कब अपने अंतिम पड़ाव पर आ पहुंचे, कोई निश्चित नहीं है। फिर भी लोग उसे बचाने के जतन करते ही रहते हैं, लेकिन यह तो प्रत्येक प्राणी के स्वभाव में है।

    प्रेरणा देता आलेख।

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  7. अच्छी सीख ! शुभकामनायें आपको !!

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  8. काश हम इन वास्तविकताओं के साथ जी पाते ....जिस नजरिये से आपने इस पोस्ट को लिखा है ....अपने मंतव्य में सफल है यह पोस्ट ...आपका आभार

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  9. सच कहा बीरबल ने जान हे तो जहान हे --उम्दा प्रस्तुति --बधाई सुशिल जी |

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  10. अप ने सही कहा की अपनी जान सबसे मुल्वान होती है किन्तु मुझे लगता है की ये कई बार परिस्थितियों पर भी निर्भर होता है की जीवन में सबसे मूल्यवान क्या है |

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  11. बहुत ही सुन्दर तरीके से प्रस्तुत किया है आपने, आभार.

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  12. अंशुमालाजी,
    आपका कहना सत्य है कि कई बार यह परिस्थितियों पर भी निर्भर होता है- जैसे कभी जब दो व्यक्ति मरने-मारने पर उतारु लडाई लड रहे हों और कोई तीसरा सिर्फ बीच-बचाव करने के नेक जज्बे के साथ उनके बीच ये कोशिश करता है और उन्हीं दोनों में से किसी के हाथों मारा जाता है । अब यहाँ ऐसी स्थिति में ये कोई सोची समझी शहादत तो नहीं हुई । लेकिन लोगों का नजरिया शायद उसे शहादत ही समझेगा ।

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  13. बहुत अच्छी बात कही है । इसे हम ऐसे भी पूछ सकते हैं --जिंदगी में मनुष्य सबसे ज्यादा किसे प्यार करता है ?

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  14. बहुत सार्थक और प्रेरणाप्रद लेख| आभार|

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  15. यह कथा इस बात का संकेत है कि हम जीवन को कूड़ा बनाने की लत मनुष्य के जीन में है। जिन्हें पाने के लिए हमने जीवन का अधिकांश लगा दिया,प्राप्ति के उपरांत उसकी निस्सारता का बोध ही जीवन की अंतहीन कामना का कारण है।

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  16. आदरणीय सुशिल जी
    नमस्कार !
    ...प्रेरणाप्रद लेख

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  17. शिक्षाप्रद एवं जीवन दर्शन से परिपूर्ण सुंदर लेख के लिए बधाई।

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  18. बहुत सार्थक और प्रेरणाप्रद लेख| आभार.....

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  19. यूँ तो आपकी हर बात सच है, पर हाँ, थोड़ा सा विरोधाभास तो है. बिल्ली का पता नहीं, पर आम तौर पर हर माँ अपने बच्चे से पहले खुद मर जायेगी. ममता का ये एक रिश्ता शायद अपनी जाँ से बढ़कर है....अलावा इसके हाँ, अपनी जाँ तो सभी को प्यारी है....और हाँ, इसके लिए लोग बोहोत स्वार्थी भी हो जाते है....सही ही कहा आपने....

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  20. यूँ तो आपकी हर बात सच है, पर हाँ, थोड़ा सा विरोधाभास तो है. बिल्ली का पता नहीं, पर आम तौर पर हर माँ अपने बच्चे से पहले खुद मर जायेगी. ममता का ये एक रिश्ता शायद अपनी जाँ से बढ़कर है....अलावा इसके हाँ, अपनी जाँ तो सभी को प्यारी है....और हाँ, इसके लिए लोग बोहोत स्वार्थी भी हो जाते है....सही ही कहा आपने....

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