30.11.10

जुगलबन्दी एक झकझकी की.

   इस ब्लागवुड में नये-पुराने, छोटे-बडे, गद्य-पद्य सभी प्रकार के चिट्ठाकारों की एक चाह जो शिद्दत से उभरकर सामने आते दिखती है वो ये कि मेरे आलेख के नीचे चारों दिशाओं से टिप्पणियों की भरपूर फसल लहलहाते दिखे । चिट्ठाकार इसके लिये जहाँ खडा है वहीं पूरी जागरुकता से विषय तलाश रहा है । कुछ ज्यादा जागरुक लेखक तो जैसे जब भी अपने कम्प्यूटर से अलग हटते होंगे तो तत्काल केमरा भी उनके साथ चल रहे जरुरी सामान यथा पर्स, चाबी, चश्मा, रुमाल जैसी एक अनिवार्य आवश्यकता के रुप में साथ लग लेता होगा कि विषय के साथ ही चित्र भी तत्काल लपेटे में आ जावे तो सोने में सुहागा । क्या पता कब ऐसा चित्र ही मिल जावे कि बगैर किसी लेख की मेहनत के ही टिप्पणियों का जलजला हमारे लिये लेता आवे और माफी चाहते हुए निवेदन करना चाहूँगा कि मैं भी कोई इस चाहत से अलग नहीं हूँ । 

तो मेरी व ऐसे सभी चिट्ठाकारों के लिये मेरे मस्तिष्क में एक झकझकी कुलबुला रही है जिसे मैं यहाँ परोसना चाह रहा हूँ । सभी विद्वजनों से निवेदन है कि इसे कविता समझने की गल्ति ना करें क्योंकि मेरे परम आदरणीय स्व. पिताजी सहित मेरे काका, ताऊ और उनके सभी वंशज जहाँ तक मेरी नजरें जा सकती है जिसमें अपनी कल्पना भी जोड दूँ तो मेरी सात पुश्तों ने आज तक कभी कविता नहीं की, तो मेरा तो प्रश्न ही नहीं बचता । हाँ इस चिट्ठा-जगत की सोहबत में कभी मैं तुकबन्दी भिडाना चालू करदूँ और मुझसे बाद की पीढियों के लिये ये मार्ग प्रशस्त हो जावे तो जुदा बात है । फिलहाल तो आप मेरी इस झकझकी से ही काम चलालें-

एक बात और साहित्य में प्रेरणा कहीं से भी ली जा सकती है फिर भी इस झकझकी को शुरु करने के पहले मैं इस ब्लागवुड के परम आदरणीय भीष्म-पितामह को विशेष रुप से नमन करते हुए उनसे क्षमा या आशीष अवश्य चाहूँगा । निवेदन है-

             चिट्ठे जो सब पसन्द कर सकें
             ऐसा ज्ञान कहाँ से लाऊँ,

             टिप्पणी से समृद्ध जो करदे,
             वो आलेख कहाँ से लाऊँ.

             छपते ही वाहवाही करलें
             वो पाठक मैं कहाँ से लाऊँ.

             टिप्पी जो लेखक को पसन्द हो
             वो अल्फाज कहाँ से लाऊँ.


             शेअर से पैसा जो जुटाए
             ऐसी टिप्स कहाँ से लाऊँ


             बैठे-बैठे खर्च चल सके,
             ऐसा काम कहाँ से लाऊँ 


             घर में सबको सदा सुहाए
             वो व्यवहार कहाँ से लाऊँ,


             खेमेबाजी में भी घुस सकूँ
             वो चमचाई कहाँ से लाऊँ


             टिप्पणी से समृद्ध जो करदे,
             वो आलेख कहाँ से लाऊँ.


             चिट्ठे जो सब पसन्द कर सकें
             ऐसा ज्ञान कहाँ से लाऊँ,

27.11.10

दिखावे की दुनिया.

              अजी शादी में जाना है, मेरी सभी साडियां पहनी हुई लग रही हैं, मैं क्या पहनूँगी ? ऩई साडी दिलवादो ना । श्रीमतिजी की इस मीठी सी मनुहार को मैं सुनता रहा और मन ही मन यह सोचता भी रहा कि आलमारी में साडियां रखने की जगह तक तो दिख नहीं रही है । दो तीन सूटकेस और पलंग के ड्राज तक में भी बंधी हुई पोटलियों में साडियों के ढेर लगे हैं, लेकिन विरोधस्वरुप कुछ बोलना तर्कसंगत नहीं था । क्योंकि तब अच्छी भली सुख की जान को छोटी-मोटी बहस के दुःख में डालना भी तय होता । लिहाजा साथ जाकर श्रीमतिजी की इच्छापूर्ति करवा लाया, समस्या सुलझ गई । जबकि समस्या क्या थीसिर्फ ये दिखावा कि उसकी कमीज मेरी कमीज से ज्यादा सफेद कैसे

       इधर आज सुबह समाचार पत्र में पढा- एक बिल्डर से किसी मिडिल क्लास नेताजी के मतभेद होने पर सत्तामद में चूर नेताजी आधी रात को अपने पट्ठों को साथ लेकर बिल्डर के घर में तोडफोड करने के साथ ही उसकी सुताई भी कर आए । बिल्डर भी अपने पैसों की ताकत में मार खाकर चुप कैसे रह जाते । उन्होंने तुरन्त एक परिचित पुलिस अधिकारी को फोन लगाकर ओपन आफर दे दिया कि मेरे सामने इन नेताजी को जितने भी थप्पड पडवा सकते हो उतने दस हजार रुपये नगद दूँगा । प्रति थप्पड दस हजार रुपये का आफर पर्याप्त आकर्षक था । लिहाजा उन नेताजी को भी रात में ही अचानक थाने लाया गया और वे कुछ समझ पाते तब तक एक छोटे अधिकारी ने तडा-तड छः थप्पडों से नेताजी को बिल्डर के सामने नवाज दिया और तब बिल्डर ने भी तत्काल उन अधिकारी महोदय को 60,000/- रु. का नगद भुगतान करके नेताजी को दिखा दिया कि हम किसी से कम नहीं ।

        कल आयकर विभाग के अधिकारियों ने इन्दौर के सराफा बाजार के जिन दो बडे व्यापारियों के यहाँ दबिश दी वे महाशय अपने धन्धे से करोडों करोड की सम्पत्ति बनाकर एक करोड की आमदनी भी नहीं दिखा रहे थे । जबकि हमारे एक परिचित कम इन्कम के कारण अपनी आमदनी बढा-चढाकर इन्कम टेक्स में दिखा रहे हैं । जिससे कि एक नम्बर की इन्ट्री पर उधारी दिखाते हुए दो नम्बर वालों से निश्चित आमदनी बनाए रखी जा सके ।

       इधर अमिताभ बच्चन भी ट्रेक्टर पर बैठकर फोटो-शोटो खिंचवाकर जनता व सरकार को ये दिखाने में लगे हैं कि खेती की जो जमीन मैंने खरीदी हुई है उस पर वाकई में मैं ही खेती कर रहा हूँ ।

      सुबह से शाम तक हममें से प्रत्येक के सामने अनेकों उदाहरण गुजरते दिखते हैं जहाँ लोग नकली चेहरे के आधार पर सामने वालों को सिर्फ अपने दिखावे से भरमाने के प्रयास में लगे दिख रहे होते हैं । एक ही लक्ष्य कि जो हम हैं वो न दिखेंजो नहीं हैं वो दिखते रहें । क्या हमारा ये ब्लागवुड इसका अपवाद है ? शायद नहीं । क्योंकि यदि यहाँ भी दिखावे का बोलबाला न होता तो आए दिन यहाँ विरोधाभासी लेख आरोप-प्रत्यारोपों के क्यों पढने को मिल रहे होते ?

        बेचारे स्व. गुरुदत्त. इस विरोधाभासी स्थिति से तालमेल न बिठा पाने के कारण ये कहते हुए इस दुनिया से रुखसत हो गए-

         ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ?

बडी समस्या - छोटा समाधान.


        आजकल हम सडकों के सीमेंटीकरण के युग में रह रहे हैं । सडकों से नालियां गायब हो गई हैं । सीमेंट सडक के बनने के बाद रहवासी बची हुई साईड की सडकें भी या तो गार्डनिंग के नाम पर जालियों के द्वारा अपने कब्जे में कर लेते हैं, या अपने घर के बाहर सुन्दरता बढा लेने के प्रयास में टाईल्स लगवाकर पेक कर देते हैं । सीमेन्ट की सडकें भी ब्लाक बनाकर छोटे-छोटे हिस्से में बनती हैं अतः रोड निर्माता ठेकेदार चाहे जितना आश्वासन दे वो सडक का ढाल व्यवस्थित नहीं रख पाता और लगभग हर दूसरे घर के सामने बारिश के मौसम में लगातार बरसने पर उत्पन्न जल-जमाव की बडी समस्या की तो अलग बात, सामान्य दिनों में भी घरों व गाडियों की साफ-सफाई और गार्डनिंग से बहता हुआ पानी घरों के बाहर लगातार जमा रहकर गन्दगी व मच्छरों की महामारी में बढौतरी करते दिखाई देता है और नागरिक  इस समस्या को झेलने पर मजबूर रहते हैं ।
 
            यदि आप भी इस समस्या का सामना कर रहे हैं तो इसका एक आसान उपाय यह है कि पानी के भराव स्थल को चिन्हित करके उस जगह 12”X12” इंच  का लगभग 12” या 15” इंच गहरा गड्ढा खुदवाकर उसमें सडक के लेबल तक गिट्टी भरवा दें । सीमेन्ट की सडक की मोटाई प्रायः 4” से 8” तक  होती है । आपके एक या सवा फीट के गड्ढे के कारण भरे हुए पानी को नीचे कच्ची जमीन मिल जाती है और वो आसानी से जमीन में उतर जाता है ।

            आपके इस उपाय से एक ओर जहाँ मात्र 400/-  500/- रु. के खर्च और थोडे से प्रयासों से आप हमेशा के लिये जल-जमाव के कारण उत्पन्न कीचड व मच्छरों की समस्या से मुक्ति पा लेते हैं वहीं जमीन जिससे लोग बोरिंग लगा-लगाकर निरन्तर पानी खींचते चले जा रहे हैं और जमीन का जलस्तर रिचार्जिंग की कमी के कारण निरन्तर नीचे उतरता जाकर न सिर्फ पर्यावरण के लिये बल्कि हमारी आने वाली संतति के लिये भी चिंता का कारण बनता जा रहा है, धीरे-धीरे ही सही उस समस्या का समाधान भी इस उपाय द्वारा होता चला जावेगा और यदि आपके घर में आपका अपना बोरिंग है तो इस माध्यम से आपको अपने बोरिंग में गर्मी के मौसम में भी पानी की कमी की समस्या नहीं देखनी पडेगी ।
 

अब इसके बाद क्या ? ....और कैसे ?



       पिछले 5 वर्ष की समयावधि में जब मैं अपनी दुनियावी जिम्मेदारियों के शायद सर्वाधिक व्यस्त दौर से गुजर रहा थासर्वाधिक व्यस्त इसलिये कि महज 4 वर्ष की उम्र के अन्तराल के मेरे दो पुत्र व एक पुत्री के अपने परिवार के शिक्षा व कैरियर सम्बन्धी जिम्मेदारियों के अन्तिम पडाव पर आने के बाद सबकी वैवाहिक जिम्मेदारियों की चुनौतियां सामने दिख रही थी । तभी से समाचार पत्रों में अभिव्यक्ति के सशक्त माध्यम के रुप में इन्टरनेट पर ब्लाग-विधा कैसे अपने पैर पसार रही है यह निरन्तर पढ रहा था जन-जन के परिचित अमिताभ बच्चन जैसी शख्सियतें भी यहाँ आकर अपने चाहने वालों से इस माध्यम द्वारा मुखातिब हो रही थी और आज किसने क्या कहा जैसी बातें समाचार-पत्रों में स्थाई कालम के रुप में शोभा बढा रही थी तब अपने राम को तो इधर झांकने की भी फुर्सत ही नहीं थी ।


नीचे लिंक पर क्लिक कर ये उपयोगी जानकारी भी देखें... धन्यवाद.

      समय-चक्र अपनी गति से चलता रहा । बच्चों की शादी-ब्याह की जिम्मेदारियों से निवृत्त हुए तो दो-बहुओं की मौजूदगी में 35 वर्ष पुराने घर की व्यवस्थाएँ अपर्याप्त लगने लगीं । घर बदलने की सोच बनी तो घर को बेचकर वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरुप नये घर का निर्माण करवाया । इसी अवधि में तीनों बच्चों के परिवार में तीन और नाती-पोतों के आगमन का सौभाग्य देखते हुए मात्र 4 माह पूर्व ही नूतन गृह प्रवेश के वर्तमान अभियान से मुक्त हुए । कोई आवश्यकता नहीं थी घर में कम्प्यूटर के साथ ही एक बालक के पास उसकी कामकाजी आवश्यकता की यदा-कदा पूर्ति करने वाला एक लेपटाप भी मौजूद था लेकिन स्वतन्त्र रुप से चाहे गेम खेलते रहने के लिये ही सही अपने अख्तियार में रहे ऐसा एक लेपटाप ले आए । हफ्ते दस दिन में मेरे भतीजे के लडके ने मेरे मोबाईल पर सीमित मासिक खर्च का नेट कनेक्शन एक्टिवेट करवाकर उसे मेरे लेपटाप से जोड दियातबसे इस नेट-कनेक्शन से जुडे लेपटाप से मेरी दोस्ती चल रही है । अब चाहे कम्प्यूटर-इन्टरनेट के तकनीकी ज्ञान की बात करें या हिन्दी लेखन कीअपना इतिहास तो इतना ही है अतः कदम-कदम पर गल्तियां होना भी स्वाभाविक ही है ।

        प्रिन्टिंग व्यवसाय से जुडे रहने के कारण कम्प्यूटर पे हल्का-फुल्का पेजमेकर साफ्टवेयर चला लेने के अलावा टेक्नीकली विशेष कुछ आता भी नहीं था । कभी सीरियसली इन्टरनेट भी नहीं चलाया था । लेकिन अपना हाथ जगन्नाथ की स्थिति में आकर भ्रमण करते हुए हिन्दी ब्लाग जगत पर आ गयेयहाँ आकर अपने लेपटाप को हिन्दी से जोडने का शौक जागृत हुआ । ई-पन्डित के लेख की जानकारी से हिन्दी भी चालू हो गईऔर येन-केन चिट्टाजगत पर ब्लाग भी बन गया । लेकिन अब लिखें क्या जिसमें पाठक भी रुचि ले सकेंयह अनुत्तरित प्रश्न सामने आ गया । यहाँ तो एक से बढकर एक धुरंधर व अनुभवी लेखक अपने-अपने क्षेत्र के नामचीन हस्ताक्षरचित्र में दिखने से विपरीत भूमिका संचालित करते महान कलाकार और गद्य व पद्य विधा के बडे-बडे महारथी भरे पडे हैं जबकि अपनी तो स्कूल-कालेज में भी इन वजनदार उक्तियों-सूक्तयों में डूबने की कभी रुचि नहीं रही । आवश्यकता के अनुरुप परीक्षा पास करते हुए कालेज से निकलते ही शादी-ब्याह के बंधनों में बंधकर रोजी-रोटी से लग गये थे ।
    
        न्यूजपेपर की किसी महत्वपूर्ण घटना पर अपनी राय व शैली को जोडते हुए कुछ लिखा जावे तो नकल या चोरी का इल्जाम लगना तय है । जिन्दगी के व्यवहारिक अनुभवों से जुडे किसी ज्ञानवर्धक सोच पर कुछ लिखना भी खतरनाक ही दिखता है क्योंकि भिन्न विचारधारा या अनुभव रखने वालों को वह नागवार लगता है । आदरणीय ताऊ ने तो अपनी प्रोफाईल में ही लिख रखा है- कृपया ज्ञान न बांटें यहाँ सभी ज्ञानी हैं । तो फिर... घण्टों गुजारकर कुछ लिखा भी जावे और उसे पढने वाला या उस पर उत्साहवर्द्धन करने वाला कोई ना दिखे तो ऐसी मगजपच्ची भी कहाँ तक की यात्रा कर सकती है ?


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        तो साहब समस्या गंभीर है, और आगे रास्ता कम व सुरंग ज्यादा दिख रही है । बाबा रामदेव के सामने की जमात में बैठकर योग कर लेना या पं. मुरारी बापू के सामने बैठकर भजन-प्रवचन सुन लेना या कवि सम्मेलन में बैठकर दाद दे लेना या पत्र-पत्रिकाओं में छपे को पढ लेना अलग बात है लेकिन इनके स्थान पर स्वयं मंच पर आ बैठना बिल्कुल जुदा अनुभव लगता है। लेकिन फिर भी हम अब "हिम्मते मर्दा-मददे खुदा" की सोच को सामने रखकर श्रोताओं की जाजम से उठकर वक्ताओं की जमात में खडे तो हो ही गए हैं । क्या दाल-दलिया कैसे बना पाते हैं प्रयास और चिन्तन जारी है, क्या आप भी इस मसले पर मेरी कुछ मदद कर सकते हैं ? बाकि तो हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम वाली स्थिति है ही.














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