वर्तमान समय के प्रतिस्पर्धी माहौल में हर माता-पिता अपने बच्चे को
जीवन की दौड में आगे बढाने के लिये प्राण-प्रण से लगे दिखाई देते हैं इसके लिये आवश्यक
खर्च की पूर्ति करने के लिये वे घर व बाहर के मोर्चे पर लगातार अपनी सामर्थ्य से
अधिक मेहनत भी करते हैं, किंतु दुनियादारी
में हमेशा हर व्यक्ति सफलता के क्रम को बनाए नहीं रख सकता और तब उसे उस हताशा का
सामना कैसे करना है यह बताना-समझाना कतई जरुरी नहीं समझा जाता । ऐसे बच्चे सफल
होते-होते जब कभी-कहीं असफलता का सामना करते हैं तो निराशा के उन क्षणों में उनकी
पिछली पुरानी सभी सफलताएं किस प्रकार महत्वहीन हो जाती हैं वह आप इस सत्य वाकये से
समझें-
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एक बहुत होशियार छात्र जो हमेशा फर्स्ट डिविजन में पास होता जीवन में
आगे बढ रहा था उसका योग्यता के आधार पर IIT
चेन्नई में सिलेक्शन हुआ जहाँ उसने B.Tech क्लिअर किया फिर अमेरिका जाकर M.B.A. किया और वहीं बहुत
अच्छी नौकरी पर लगकर एक शानदार तीन बेडरुम का फ्लेट लेकर व अपने योग्य कन्या चुनकर
विवाह कर चैन से सुखपूर्वक अपनी जिंदगी गुजारने लगा । किंतु कुछ ही समय बाद अचानक
ऐसा कुछ हुआ कि उस होनहार व्यक्ति ने अपने उसी फ्लैट में आत्महत्या कर ली ।
उसके सुसाईड नोट में यह लिखा पाया गया कि वर्तमान परिस्थितियों में
मेरे लिये यही एक अन्तिम मार्ग बचा है इसलिये मैं आत्महत्या कर रहा हूँ । जब उसकी
पत्नी से उसकी आत्महत्या के कारणों के बारे में विस्तार से समझने की कोशिश की गई तो
मालूम हुआ कि अमेरिका में आर्थिक मंदी के दौरान उसकी नौकरी छूट गई । कम वेतन पर
काम चाहने की कोशिश करते एक वर्ष गुजर गया किंतु कहीं दूसरी नौकरी नहीं मिल पाई ।
मकान का किराया व रोजमर्रा की आवश्यकताएं पूरी करने के प्रयास में पास की सारी बचत
भी खर्च हो गई । मजबूरी में कुछ समय एक पेट्रोल पंप पर छोटा-मोटा काम करने का
प्रयास भी किया किंतु निरंतर बढते असंतोष के कारण अंततः उसने आत्महत्या जैसा कदम
उठाकर इस संघर्ष से हमेशा के लिये मुक्त होना ही अधिक बेहतर समझा ।
तब वहाँ के California Institute of clinical Phycholgoy ने इस विषय पर What Went Wrong सर्वे किया और वो इस निष्कर्ष पर पहुँची कि “This Man was programmed for success but he was not
trained now to handle failure.” याने इस व्यक्ति ने सफल कैसे हों ये तो समझ रखा था किंतु कभी सफल यदि
न हो पाए तो असफलता का सामना कैसे करना है यह नहीं सीखा था । इसके माता-पिता ने भी
हमेशा इसे फर्स्ट आने के लिये प्रोत्साहित तो किया किंतु जीवन में जब भी असफलता
मिले तो उसका सामना कैसे किया जा सकता है यह कभी नहीं सिखाया और नतीजा इस
आत्महत्या के रुप में सामने आया । इसलिये प्रत्येक जागरुक माता-पिता को अपने बच्चे को यह भी अनिवार्य रुप से सीखाना व समझाना ही चाहिये कि जीवन में तमाम प्रयत्नों के बाद भी कभी-कभी असफल भी होना पडेगा और तब उस निराश-हताश स्थिति का सामना तुम्हें कैसे करना चाहिये ।
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जबकि वास्तव में तो अभी भी बहुसंख्यक पैरेन्ट्स यही गल्ति कर रहे हैं, वे तभी प्रसन्न
हो पाते हैं जब उनका बच्चा क्लास व स्कूल में ही नहीं, बल्कि राज्य भर में टॉप करता दिखे । अब सभी कि किस्मत या योग्यता इस लायक तो नहीं होती कि वे निरंतर अपने पैरेन्ट्स की उम्मीदों पर खरे उतर सकें । तब फिर हमारा क्या
रुख रहना चाहिये ? वह भी आप इस वीडिओ में अवश्य देखिए...
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