प्रायः सभी एकल
भारतीय परिवारों में यदि बच्चे बहुत छोटे न रहे हों और मुख्य गृहिणी नौकरी-पेशा न
हो तो एक समस्या अक्सर सामने आती है और वो है पति के काम पर व बच्चों के अपने
स्कूल-कॉलेज निकल जाने के बाद सबके बारे में सोचते रहना और उनकी वापसी की
प्रतिक्षा में उनके आते ही उनकी कुशल-क्षेम पूछने के साथ दिन-भर की उनकी दिनचर्या
से सम्बन्धित कुछ बातें करने की सोच रखना व उनकी अपनी सोच के मुताबिक आवश्यक लगने
पर अपनी ओर से उन्हें कुछ सुझाव भी दे लेना ।
एक रविवार तीनों उसके पास आए और पतिदेव बोले तबियत ठीक है ना ? क्या हुआ है ? इतने दिनों से चुप ही हो, बच्चे भी हैरान थे ।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो बोली- मैं तुम लोगो की पंचिंग बैग हूँ क्या ? जो भी आता है अपना गुस्सा, चिड़चिड़ाहट व भडास मुझपे ही निकाल देता है । मैं भी दिन भर इंतज़ार करती हूं तुम लोगों का । पूरा दिन काम करके कि अब मेरे बच्चे आएंगे, पति आएंगे, दो बातें करेंगे प्यार से, और तुम सब आते ही मुझे ही पंच करना शुरु कर देते हो ।
अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नहीं गया तो क्या वो मेरी गलती होती है ? हर बार मुझे झिड़क देना क्या सही है ? कभी तुमने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई । तीनो चुप थे, सही तो कहा मैंने- दरवाजे पे लटका पंचिंग बैग समझ लिया है मुझे, जो आता है मुक्का मार के चलता बनता है । तीनों शर्मिंदा थे ।
हर माँ, हर बीवी अपने बच्चों और पति के घर लौटने का इंतज़ार करती है । उनसे पूछती है कि दिन भर में सब ठीक तो था, लेकिन अक्सर हम उनको हल्के में लेते हैं । हर चीज़ का गुस्सा उन पर निकाल देते हैं । कभी-कभार तो यह ठीक है, लेकिन अगर ये आपके घरवालों की आदत बन जाए तो ? तब तो गृहिणी के लिये यही उत्तम है कि अनावश्यक सवाल-जवाब से वह अपने को मुक्त ही रखें ।
सामान्य
स्थिति में कमोबेश यही क्रम हर परिवार में दुखम्-सुखम् चलता रहता है जिसमें प्रायः
सभी सदस्यों की दिन भर में जुडी नकारात्मक परिस्थितियों की झुंझलाहट अक्सर
गृहिणियों पर ही हस्तांतरित होती रहती है । यह झुंझलाहट कभी-कभी इस सीमा तक भी उन
पर उतरते दिखती है कि वह सोचने लगती है कि आखिर मेरा कसूर क्या है ? एक उदाहरण-
बेटा घर में घुसते
ही बोला- "मम्मी कुछ खाने को
दे दो, बहुत भूख लगी है । माँ ने कहा- "बोला था, ले जा कुछ कॉलेज, सब्जी तो बन ही गई
थी । "बेटा बोला- "यार मम्मा अपना
ज्ञान अपने पास ही रखो,
अभी
जो कहा है वो कर दो बस, और हाँ रात में कुछ ढंग का
खाना बनाना,
पहले
ही मेरा दिन अच्छा नहीं गया है ।
उसके खाने की
व्यवस्था कर कमरे में माँ बुलाने गई तो उसकी आंख लग गई थी । भूखा है, सोचते हुए माँ ने
जैसे ही उसे जगाया कि कुछ खा कर सो जाए । तभी बेटा चीख कर बोला- जब सो गया था तो
उठाया क्यों तुमने ? माँ ने कहा तूने ही
तो कुछ खिलाने को कहा था । वो बोला- "मम्मी एक तो कॉलेज में टेंशन, ऊपर से तुम भी अजीब
काम करती हो,
कभी
तो दिमाग भी लगा लिया करो ।
तभी घंटी बजी तो
बेटी भी आ गई थी । माँ ने प्यार से पूछा- "आ गई मेरी बेटी, कैसा रहा दिन ?" तो बैग पटक कर वो
बोली, "मम्मी आज पेपर
अच्छा नहीं हुआ।" माँ ने कहा," कोई बात नहीं, अगली बार कर लेना
।" बेटी चीख कर बोली- अगली बार क्या ? रिजल्ट तो अभी खराब
हुआ ना, मम्मी यार तुम जाओ
यहाँ से, तुमको कुछ नहीं पता ।" माँ उसके कमरे से
भी निकल गई ।
शाम को पतिदेव आए तो
उनका भी मुँह लाल था । थोड़ी बात करने की, कुछ जानने की कोशिश कि तो वो
भी झल्ला के बोले- "यार मुझे अकेला छोड़
दो । पहले ही बॉस ने क्लास ले ली है
और अब तुम शुरू हो गई ।"
कितने सालों यही सब
सुनती आ रही थी वो । सोचा सबकी पंचिंग बैग मैं ही हूँ । हम औरतें भी ना अपनी इज्ज़त
करवाना हमें आता ही नहीं । सबको खाना खिला कर वो अपने कमरे में चली गई ।
अगले दिन से उसने
किसी से भी कुछ भी पूछना-कहना बंद कर दिया । जो जैसा कहता, कर के दे देती ।
पति आते तो चाय दे देती और अपने कमरे में चली जाती । पूछना ही बंद कर दिया कि दिन
कैसा रहा ? बेटा कॉलज और बेटी
स्कूल से आती तो माँ ना कुछ बोलती ना पूछती
। यह सिलसिला काफी दिन चला...
एक रविवार तीनों उसके पास आए और पतिदेव बोले तबियत ठीक है ना ? क्या हुआ है ? इतने दिनों से चुप ही हो, बच्चे भी हैरान थे ।
थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो बोली- मैं तुम लोगो की पंचिंग बैग हूँ क्या ? जो भी आता है अपना गुस्सा, चिड़चिड़ाहट व भडास मुझपे ही निकाल देता है । मैं भी दिन भर इंतज़ार करती हूं तुम लोगों का । पूरा दिन काम करके कि अब मेरे बच्चे आएंगे, पति आएंगे, दो बातें करेंगे प्यार से, और तुम सब आते ही मुझे ही पंच करना शुरु कर देते हो ।
अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नहीं गया तो क्या वो मेरी गलती होती है ? हर बार मुझे झिड़क देना क्या सही है ? कभी तुमने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई । तीनो चुप थे, सही तो कहा मैंने- दरवाजे पे लटका पंचिंग बैग समझ लिया है मुझे, जो आता है मुक्का मार के चलता बनता है । तीनों शर्मिंदा थे ।
हर माँ, हर बीवी अपने बच्चों और पति के घर लौटने का इंतज़ार करती है । उनसे पूछती है कि दिन भर में सब ठीक तो था, लेकिन अक्सर हम उनको हल्के में लेते हैं । हर चीज़ का गुस्सा उन पर निकाल देते हैं । कभी-कभार तो यह ठीक है, लेकिन अगर ये आपके घरवालों की आदत बन जाए तो ? तब तो गृहिणी के लिये यही उत्तम है कि अनावश्यक सवाल-जवाब से वह अपने को मुक्त ही रखें ।
हम सभी
वयस्कों के लिये भी उचित यही है कि यदि वो कभी हमसे दो बात करना चाहे और हमारा मूड
दिन भर की किसी भी गतिविधि के संदर्भ में यदि खराब हो तो भी संक्षिप्त में बगैर चिढें
जवाब देकर वहाँ से हट जावें जिससे न हमारा मूड और ज्यादा खराब हो और ना ही माँ
अथवा पत्नी को यह हीनता महसूस हो कि आपकी नजरों में उसकी तो कोई इज्जत ही नहीं बची
है ।
मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
जवाब देंहटाएंBhojpuri Song Download
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (०२ -११ -२०१९ ) को "सोच ज़माने की "(चर्चा अंक -३५०७) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत बढ़िया सर...बहुत ही संजीदा लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत ही विचारणीय लेख,सर। आभार।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही
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