15.11.19

जाने कैसे लोग थे वो...?



     इन दिनों वॉट्सएप पर एक मैसेज दिख रहा है, जिसमें वर्षों बाद उन्नति के ऊंचे शिखर पर स्थापित एक छात्र अपने पूर्व प्रोफेसर से मिलने पर उसका धन्यवाद करते हुए कहता है कि- सर आज मैंने जो कुछ भी हासिल किया है वो आपकी उस एक दिन की उदारता का परिणाम है जब मैंने क्लास में आपके पीरियड के पूर्व कुछ विशेष मजबूर परिस्थिति में अपने एक साथी की घडी चुरा ली थी और आपको शिकायत मिलने पर आपने सभी छात्रों की आँखों पर पट्टी बंधवाकर सबकी तलाशी लेते हुए मेरी जेब से वो घडी निकालकर उस छात्र को वापस लौटा दी थी ।

          मैं अगले कुछ दिनों डर के कारण सो भी नहीं पा रहा था कि आप मेरी उस कमजोरी का जिक्र स्कूल में करवाकर मुझे बदनाम कर देंगे और तब मेरे सामने शर्म के कारण मर जाने के अलावा दूसरा कोई मार्ग नहीं बचेगा । किंतु आपने कभी किसी के भी सामने मेरी उस कमजोरी का जिक्र न करके मुझे सार्वजनिक रुप से बेइज्जत होने से बचा लिया और अपनी उसी आत्मग्लानि से पीछा छुडाने की लगातार कोशिश में मैं अपनी योग्यताएँ बढाते हुए आज यहाँ तक पहुँच पाया । मेरी जिन्दगी पर आपका ये ऐसा कर्ज है जिसकी जीते-जी मैं कभी भरपाई कर ही नहीं सकता ।

        प्रोफेसर ने उस पूर्व छात्र से पूछा अच्छा तो क्या वह तुम थे ?  छात्र ने जब आश्चर्य से पूछा कि मेरी जेब से आपने ही वो घडी निकाली और आप पूछ रहे हैं कि क्या वो मैं था, इसका क्या  मतलब  हुआ ? तब उन प्रोफेसर ने बताया कि दरअसल उस दिन क्लास में सबकी आँखों पर पट्टी बंधवाने के बाद मैंने भी अपनी आँखों पर पट्टी बांध ली थी, क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरी नजरों में भी उस छात्र की जिसने न जाने किन परिस्थितियों में वो घडी चुराई होगी, उसकी इज्जत तनिक भी कम हो, और वो भूतपूर्व छात्र अपनी सारी प्रतिष्ठा भूलकर रोते हुए उन प्रोफेसर महोदय के चरणों में गिर पडा ।

       साथियों ये कहानी यहाँ मैंने क्यों उद्धृत की अब उसका भी कारण जानिये- वर्षों पूर्व मेरे अपने छात्र जीवन में मेरा एक अभिन्न मित्र जो आठ भाई-बहनों से भरे-पूरे निम्न मध्यमवर्गीय परिवार में सातवें नंबर पर 13-14 वर्ष की उम्र का रहा होगा और अभावग्रस्त परिवार में रहने के कारण न सिर्फ अपने पिता से बल्कि बाकि सब बडों से भी निरन्तर प्रताडित होता रहता था, वो अपनी 6ठी या 7वीं की क्लास में मुश्किल से दिलवाई गई तीन किताबों की एक ही जिल्द बनवाकर लाया था और दुर्भाग्यवश उसकी वही सजिल्द तीन किताबों की मिश्रीत किताब स्कूल में किसी ने चुरा ली ।

        एक साथ तीनों किताबों के गुम हो जाने की खबर घर में मालूम पडने पर बहुत ही पिटाई होगी इस डर से उसने मध्यांतर में किसी दूसरे छात्र की उन तीन में से एक किताब चुरा ली अब कोढ में खाज ये कि तत्काल उस दूसरे छात्र को अपनी किताब चोरी हो जाने की जानकारी लग गई और उसने क्लास में मौजूद शिक्षक से उस किताब के चोरी हो जाने की शिकायत कर दी ।

        शिक्षक ने उसी छात्र से अन्य सभी छात्रों के स्कूल बैग व डेस्क की तलाशी लेने को कहा । मेरे अभागे मित्र के पास वो किताब बरामद हो गई और उसके बाद उन शिक्षक महोदय ने सबके सामने न सिर्फ उसकी जबर्दस्त पिटाई की बल्कि स्कूल से निकलवा देने की धमकी देकर माफ करवाने के एवज में उसे अपने पीरियड की दूसरी सभी क्लासों में लेकर गया और जहाँ-जहाँ जो-जो चोरियां हुईं वो सब भी स्कूल से न निकलवाने का लालच देते हुए उसी से कबूलवाई, उस वक्त जिनकी कोई चोरी नहीं हुई थी वे भी छात्र अपनी शिकायतें लेकर खडे होते गए और 40 से अधिक किताबों की चोरी मेरे उस मित्र के नाम करवाकर सगर्व उन शिक्षक महोदय ने उसे प्रिंसिपल के समक्ष ले जाकर खडा कर दिया ।

        प्रिंसिपल सर ने दूसरे दिन अपने पिताजी को लेकर आओ के आदेश के साथ उस मित्र को घर रवाना कर दिया, तब तक स्कूल की छुट्टी भी हो चुकी थी और बहुसंख्यक छात्रों का समूह चोर है, चोर है के नारे लगाता उस मित्र के पीछे पड गया । शर्मिंदगी के कारण वो मित्र अपने घर भी नहीं गया और मुंह छिपाकर घर से भी भाग गया ।

        आगे की कहानी बताने की आवश्यकता ही नहीं है, इसलिये कि उसके बाद उस मित्र का आगे का सारा जीवन पगडंडियों पर चलते ही बीता । इस घटना के सात वर्ष बाद पुनः उसमें आगे पढने की लालसा जागी, उसने प्रायवेट परीक्षाएं देकर अगले दो-तीन वर्ष पठाई नियमित रखने की कोशिश भी की किंतु लंगडा घोडा कहाँ तक दौड पाता । आज भी वो मित्र मिलता रहता है जिसके साथ यदि उस समय ये दुर्घटना नहीं हुई होती तो वो भी अपने भाई-बहनों के समान उच्च शिक्षित अवस्था में अपना जीवन अधिक व्यवस्थित रुप में गुजार रहा होता ।

        काश  उस समय उस शिक्षक ने स्वयं को प्रिंसिपल के समक्ष विजेता दिखाने के लोभ से बचकर उस मासूम छात्र के साथ रहमदिली दिखाई होती । तो...

        इस कथासार की शुरुआती कहानी कई बार वॉट्सएप पर सामने से गुजरी किंतु आज जब इसी कहानी पर मशहूर प्रणेता उज्जवल पाटनी का वीडिओ भी देखा तो जेहन में उस समय की ये घटना बिजली के समान कौंध गई और उसे मैंने यहाँ प्रस्तुत कर दी । शायद किस्से-कहानियों की जिंदगी और वास्तविक जिंदगी में यही अन्तर होता है ।

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