बात कुछ पुरानी है, चिकित्सा के क्षेत्र में इन्दौर के एक सिद्धहस्त चिकित्सक के पास शहर से लगभग 100 कि. मी. दूर के किसी गांव से एक बीमार-वृद्ध महिला का पोस्टकार्ड आया, लिखा था- डॉ. साहेब बीमारी के कारण मैं भयंकर तकलीफ में अपना समय गुजार रही हूँ, मेरे लिये ये सम्भव नहीं है कि मैं आपको दिखाने शहर तक आ सकूँ । निवेदन है कि यदि कभी आपका इधर से गुजरना हो तो आप मुझ गरीब को भी थोडा समय अवश्य देने की कृपा करें और वे मशहूर व व्यस्त चिकित्सक अपने सभी अपॉइन्टमेंट समायोजित कर स्वयं की कार लेकर उस वृद्धा के गांव पहुँच गये । मरीजा की हालत बिस्तर से उठने लायक भी नहीं थी, जाँच के दरम्यान महिला को मुंह में कफ आगया, जिसे थूकने के लिये वह इधर-उधर देखने लगी, तब उन्हीं डॉक्टर साहब ने उस महिला के मुंह के समक्ष अपना हाथ रखते हुए उसे अपनी हथेली में ही उस कफ को थूक लेने की सुविधा प्रदान की ।
ऐसी सेवा-भावना वाकई दुर्लभ है, किन्तु विलुप्त नहीं हुई है, भारत देश के ऐसे वास्तविक हीरो प्रायः जनसामान्य के सामने भी नहीं आ पाते किन्तु उनके द्वारा किये जाने वाले सेवाकार्य दस-पच्चीस से होते हुए हजारों लाखों लोगों के लिये कई बार निरन्तर उपयोगी बने रहते हैं । लोगों के आवागमन में सुविधा के उद्देश्य को दिमाग में रखकर दशरथ मांझी ने पूरे पहाड को काटकर रास्ता बना देने में अपनी जिंदगी खपा दी, ऐसे ही कुछ रियल हीरो और उनके सेवाकार्यों को यहाँ भी देखिये...
हमारे आस-पास के माहौल में भी ऐसे छुपे हुए चेहरे प्रायः देखने में आ ही जाते हैं- प्रस्तुत उदाहरण एक लाभार्थी महिला द्वारा-
ऑफिस के लिये
बस से आती जाती एक महिला के अनुसार- उस दिन बस लगभग आधे-पौन घंटे देर से आई ।
खड़े-खड़े पैर दुखने लगे थे, पर बस मिल गई । देर से आने के कारण पहले से ही बस काफी
भरी हुई थी । बस
में चढ़ कर मैंनें चारों तरफ नज़र दौडाई तो पाया कि सभी सीटें भर चुकी थी । उम्मीद
की कोई किरण नज़र नही आई । तभी एक मजदूरन ने मुझे आवाज़ लगाकर अपनी
सीट देते हुए कहा, "मैडम
आप यहां बैठ जाएँ ।" मैंनें उसे धन्यवाद देते हुए उस सीट पर बैठकर राहत की सांस ली । वो महिला भी मेरे साथ बस स्टाप पर ही खड़ी थी मैंने जिस पर ध्यान नही
दिया था । कुछ
देर बाद मेरे पास वाली सीट खाली हुई, मैंने
उसे बैठने का इशारा किया, तब उसने एक ऐसी महिला को उस सीट पर बिठा दिया जिसकी गोद
में छोटा बच्चा था ।
वो मजदूरन भीड़ की धक्का-मुक्की सहते हुए एक पोल को पकड़कर खड़ी
थी । थोड़ी देर बाद बच्चे वाली औरत अपने गन्तव्य पर उतर गई । इस बार उसने वही सीट
एक बुजुर्ग को दे दी, जो
लम्बे समय से बस में खड़े थे । मुझे आश्चर्य हुआ कि हम दिन-रात बस की सीट के लिये
लड़ते हैं, और ये सीट मिलने के बाद दूसरे को दे रही है ।
कुछ देर बाद
वो बुजुर्ग भी अपने स्टांप पर उतर गए, तब
वो सीट पर बैठी । मुझसे रहा नही गया, तो
उससे पूछ बैठी, "तुम्हें
तो तीन बार सीट मिल गई थी फिर तुमने बार-बार सीट क्यों छोड़ी ? तुम
दिन भर ईंट-गारा ढोती हो, आराम
की जरूरत तो तुम्हें भी होगी, फिर
क्यो नही बैठी ?
मेरी इस बात
का जो जवाब उसने दिया उसकी उम्मीद मैंने कभी नही की थी । उसने कहा, "मैं भी थकती हूँ ।
आपके पहले से स्टाप पर खड़ी थी, मेरे भी पैरों में
दर्द होने लगा था । जब मैं बस में चढ़ी तब यही सीट खाली थी । मैंने देखा आप पैरों की तकलीफ के कारण धीरे-धीरे बस में चढ़ी । ऐसे में आप कैसे खड़ी रहती,
इसलिये मैंने आपको सीट दे दी । उस बच्चे वाली महिला को सीट इसलिये दी क्योंकी उसकी
गोद का छोटा बच्चा बहुत देर से रो रहा था । उसने सीट पर बैठते ही सुकून महसूस किया
। बुजुर्ग के खड़े रहते मैं कैसे बैठती, सो
उन्हें दे दी । मैंने उन्हें सीट देकर ढेरों आशीर्वाद पाए । कुछ देर का सफर है
मैडमजी, सीट
के लिये क्या लड़ना । वैसे भी सीट को बस में ही छोड़ कर जाना हैं, घर
तो नहीं ले जाना ना । मैं ठहरी ईट-गारा ढोने वाली, मेरे पास क्या है, न
दान करने लायक पैसे हैं, न
कोई पुण्य कमाने लायक करने को कुछ । रास्ते से कचरा-पत्थर हटा देती हूं, कभी
कोई पौधा लगा देती हूं । यहां बस में अपनी सीट दे देती हूं । यही है मेंरे पास, यही करना मुझे आता
है ।" वो तो मुस्करा कर चली गई पर मुझे आत्ममंथन करने को मजबूर कर गई ।
मुझे उसकी
बातों से एक सीख मिली कि हम बड़ा कुछ नही कर सकते तो क्या ? समाज में एक छोटा सा, नगण्य दिखने वाला
कार्य तो कर ही सकते हैं ।
मुझे वो मज़दूर महिला उन सभी लोगों को एक सबक के रुप में दिखी
जो समाजसेवा के नाम पर बाते
तो बड़ी-बड़ी बातें कर लेते हैं किन्तु वास्तव में कभी कुछ नहीं करते ।मैंने
मन ही मन उस महिला को नमन किया तथा उससे सीख ली कि यदि हमें समाज के लिए, लोगों की
भलाई के लिये कुछ करना हो, तो
वो दिखावे के लिए न हो, बल्कि खुद की संतुष्टि के लिए हो ।
चलते-चलते इनके भी सेवाकार्य पर एक नजर डाल लें..
चलते-चलते इनके भी सेवाकार्य पर एक नजर डाल लें..
मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
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