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11.1.20

परिपूर्ण जीवन यात्रा हेतु - खुशवंतसिंह...


         इन  सूत्रों को पढ़ने के बाद पता चला कि सचमुच खुशहाल ज़िंदगी के बाद शानदार मौत के लिए ये सूत्र बहुत ज़रूरी हैं... 
      
           1. अच्छा स्वास्थ्य - अगर आप पूरी तरह स्वस्थ नहीं हैं, तो आप कभी खुश नहीं रह सकते । बीमारी छोटी हो या बड़ी, ये आपकी खुशियां छीन लेती हैं । 
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         2. ठीक ठाक बैंक बैलेंस - अच्छी ज़िंदगी जीने के लिए बहुत अमीर होना ज़रूरी नहीं । पर इतना पैसा बैंक में हो कि आप जब चाहें बाहर खाना खा पाएं, सिनेमा देख पाएं, समंदर और पहाड़ घूमने जा पाएं, तो आप खुश रह सकते हैं । उधारी में जीना आदमी को खुद की निगाहों में गिरा देता है ।

           3. अपना मकान - मकान चाहे छोटा हो या बड़ा, वो आपका अपना होना चाहिए । अगर उसमें छोटा सा बगीचा हो तो आपकी ज़िंदगी बेहद खुशहाल हो सकती है ।

           4. समझदार जीवन साथी - जिनकी ज़िंदगी में समझदार जीवन साथी होते हैं, जो एक-दूसरे को ठीक से समझते हैं, उनकी ज़िंदगी बेहद खुशहाल होती है, वर्ना ज़िंदगी में सबकुछ धरा का धरा रह जाता है, सारी खुशियां काफूर हो जाती हैं । हर वक्त कुढ़ते रहने से बेहतर है अपना अलग रास्ता चुन लेना ।

           5. दूसरों की उपलब्धियों से न जलना - कोई आपसे आगे निकल जाए, किसी के पास आपसे ज़्यादा पैसा हो जाए, तो उससे जले नहीं । दूसरों से खुद की तुलना करने से आपकी खुशियां खत्म होने लगती हैं । 

          6. गपबाजी से बचना - लोगों को गपशप के ज़रिए अपने पर हावी मत होने दीजिए । जब तक आप उनसे छुटकारा पाएंगे, आप बहुत थक चुके होंगे और दूसरों की चुगली व निंदा से आपके दिमाग में कहीं न कहीं ज़हर भर चुका होगा ।

              7.  अच्छी आदत - कोई न कोई ऐसी हॉबी विकसित करें, जिसे करने में आपको मज़ा आता हो,  मसलन गार्डेनिंग, पढ़ना, लिखना । फालतू बातों में समय बर्बाद करना ज़िंदगी के साथ किया जाने वाला सबसे बड़ा अपराध है । कुछ न कुछ ऐसा करना चाहिए, जिससे आपको खुशी मिले और उसे आप अपनी आदत में शुमार करके नियमित रूप से करते रह सकें ।

          8. ध्यान - रोज सुबह कम से कम दस मिनट ध्यान करना चाहिए । ये दस मिनट आपको अपने ऊपर खर्च करने चाहिए । इसी तरह शाम को भी कुछ वक्त अपने साथ गुजारें । इस तरह आप खुद को जान पाएंगे । 

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            9. क्रोध से बचना - कभी अपना गुस्सा ज़ाहिर न करें । जब कभी आपको लगे कि आपका दोस्त आपके साथ तल्ख हो रहा है, तो आप उस वक्त उससे दूर हो जाएं, बजाय इसके कि वहीं उसका हिसाब-किताब करने पर आमदा हो जाएं ।

         10. अंतिम समय - जब यमराज दस्तक दें, तो बिना किसी दु:ख, शोक या अफसोस के उनके साथ निकल पड़ना चाहिए, अंतिम यात्रा पर खुशी-खुशीशोकमोह के बंधन से मुक्त हो कर जो यहां से निकलता हैउसी का जीवन सफल होता है ।

              मुझे नहीं पता कि खुशवंतसिंह ने पीएचडी की थी या नहीं ।  पर इन्हें पढ़ने के बाद लगता है कि ज़िंदगी के डॉक्टर भी होते हैं । ऐसे डॉक्टर ज़िंदगी बेहतर बनाने का फॉर्मूला देते हैं । ये ज़िंदगी के डॉक्टर की ओर से ज़िंदगी जीने के लिए दिए गए महत्वपूर्ण नुस्खे हैं ।

1.11.19

कहानी घर-घर की...


     प्रायः सभी एकल भारतीय परिवारों में यदि बच्चे बहुत छोटे न रहे हों और मुख्य गृहिणी नौकरी-पेशा न हो तो एक समस्या अक्सर सामने आती है और वो है पति के काम पर व बच्चों के अपने स्कूल-कॉलेज निकल जाने के बाद सबके बारे में सोचते रहना और उनकी वापसी की प्रतिक्षा में उनके आते ही उनकी कुशल-क्षेम पूछने के साथ दिन-भर की उनकी दिनचर्या से सम्बन्धित कुछ बातें करने की सोच रखना व उनकी अपनी सोच के मुताबिक आवश्यक लगने पर अपनी ओर से उन्हें कुछ सुझाव भी दे लेना ।

         सामान्य स्थिति में कमोबेश यही क्रम हर परिवार में दुखम्-सुखम् चलता रहता है जिसमें प्रायः सभी सदस्यों की दिन भर में जुडी नकारात्मक परिस्थितियों की झुंझलाहट अक्सर गृहिणियों पर ही हस्तांतरित होती रहती है । यह झुंझलाहट कभी-कभी इस सीमा तक भी उन पर उतरते दिखती है कि वह सोचने लगती है कि आखिर मेरा कसूर क्या है ?  एक उदाहरण- 

        बेटा घर में घुसते ही बोला- "मम्मी कुछ खाने को दे दोबहुत भूख लगी है  माँ ने कहा- "बोला था, ले जा कुछ कॉलेजसब्जी तो बन ही गई थी  "बेटा बोला- "यार मम्मा अपना ज्ञान अपने पास ही रखो, अभी जो कहा है वो कर दो बस, और हाँ रात में कुछ ढंग का खाना बनाना, पहले ही मेरा दिन अच्छा नहीं गया है । 

      उसके खाने की व्यवस्था कर कमरे में माँ बुलाने गई तो उसकी आंख लग गई थी । भूखा है, सोचते हुए माँ ने जैसे ही उसे जगाया कि कुछ खा कर सो जाए । तभी बेटा चीख कर बोला- जब सो गया था तो उठाया क्यों तुमने ?  माँ ने कहा तूने ही तो कुछ खिलाने को कहा था । वो बोला- "मम्मी एक तो कॉलेज में टेंशन, ऊपर से तुम भी अजीब काम करती हो, कभी तो दिमाग भी लगा लिया करो ।

        तभी घंटी बजी तो बेटी भी आ गई थी । माँ ने प्यार से पूछा- "आ गई मेरी बेटीकैसा रहा दिन ?" तो बैग पटक कर वो बोली, "मम्मी आज पेपर अच्छा नहीं हुआ।" माँ ने कहा," कोई बात नहींअगली बार कर लेना ।" बेटी चीख कर बोली- अगली बार क्या ? रिजल्ट तो अभी खराब हुआ नामम्मी यार तुम जाओ यहाँ सेतुमको कुछ नहीं पता ।" माँ उसके कमरे से भी निकल गई ।

       शाम को पतिदेव आए तो उनका भी मुँह लाल था । थोड़ी बात करने कीकुछ जानने  की कोशिश कि तो वो भी झल्ला के बोले- "यार मुझे अकेला छोड़ दो । पहले ही बॉस ने क्लास ले ली है और अब तुम शुरू हो गई ।"

      कितने सालों यही सब सुनती आ रही थी वो । सोचा सबकी पंचिंग बैग मैं ही हूँ । हम औरतें भी ना अपनी इज्ज़त करवाना हमें आता ही नहीं । सबको खाना खिला कर वो अपने कमरे में चली गई ।

      अगले दिन से उसने किसी से भी कुछ भी पूछना-कहना बंद कर दिया । जो जैसा कहता, कर के दे देती । पति आते तो चाय दे देती और अपने कमरे में चली जाती । पूछना ही बंद कर दिया कि दिन कैसा रहा ? बेटा कॉलज और बेटी स्कूल से आती तो माँ ना कुछ बोलती ना पूछती । यह सिलसिला काफी दिन चला...

       एक रविवार तीनों उसके पास आए और पतिदेव बोले तबियत ठीक है ना ? क्या हुआ है ? इतने दिनों से चुप ही हो, बच्चे भी हैरान थे ।

     थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो बोली- मैं तुम लोगो की पंचिंग बैग हूँ क्या ? जो भी आता है अपना गुस्सा, चिड़चिड़ाहट व भडास मुझपे ही निकाल देता है । मैं भी दिन भर इंतज़ार करती हूं तुम लोगों का । पूरा दिन काम करके कि अब मेरे बच्चे आएंगेपति आएंगेदो बातें करेंगे प्यार से, और तुम सब आते ही मुझे ही पंच करना शुरु कर देते हो ।

     अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नहीं गया तो क्या वो मेरी गलती होती है ? हर बार मुझे झिड़क देना क्या सही है ? कभी तुमने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई । तीनो चुप थे, सही तो कहा मैंने- दरवाजे पे लटका पंचिंग बैग समझ लिया है मुझे, जो आता है मुक्का मार के चलता बनता है । तीनों शर्मिंदा थे ।

      हर माँ,  हर बीवी अपने बच्चों और पति के घर लौटने का इंतज़ार करती है । उनसे पूछती है कि दिन भर में सब ठीक तो थालेकिन अक्सर हम उनको हल्के में लेते हैं । हर चीज़ का गुस्सा उन पर निकाल देते हैं । कभी-कभार तो यह ठीक हैलेकिन अगर ये आपके घरवालों की आदत बन जाए तो ? तब तो गृहिणी के लिये यही उत्तम है कि अनावश्यक सवाल-जवाब से वह अपने को मुक्त ही रखें ।

       हम सभी वयस्कों के लिये भी उचित यही है कि यदि वो कभी हमसे दो बात करना चाहे और हमारा मूड दिन भर की किसी भी गतिविधि के संदर्भ में यदि खराब हो तो भी संक्षिप्त में बगैर चिढें जवाब देकर वहाँ से हट जावें जिससे न हमारा मूड और ज्यादा खराब हो और ना ही माँ अथवा पत्नी को यह हीनता महसूस हो कि आपकी नजरों में उसकी तो कोई इज्जत ही नहीं बची है ।

22.3.13

अनेकों में एक - क्रोध के दुष्परिणाम

    
           क्रोध जिसकी शुरुआत हमेशा मूर्खता से होती है और अन्त सदैव पश्चाताप पर होता है, यह बात हम सब जानते हैं कि क्रोध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है बल्कि इसके कारण सामान्य रुप से सुलझ सकने वाली समस्याएँ भी सदा-सर्वदा के लिये उलझकर रह जाती हैं किन्तु उसके बाद भी छोटे-बडे सभी उम्र व हैसियत के सामान्य व विशेष व्यक्ति इसके आवेग में आकर दुःख व नुकसान से बच नहीं पाते और अपने स्वयं के व अपने करीबी परिवारजनों के लिये समस्याओं के अंबार खडे कर लेते हैं-


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          ताजा उदाहरण में एक ऐसे दम्पत्ति सामने आ रहे हैं जिनके घर में काम करने वाले सेवक को काम के दरम्यान कुछ चोट लग गई । दम्पत्ति ने उसका उपचार व दवा की व्यवस्था कर दी । दो-एक बार उसके द्वारा दवाई के नाम पर मांगे गये पैसों की फरमाईश भी पूरी कर दी किन्तु जब फिर से उस सेवक ने अपनी मालकिन से उपचार के नाम पर पैसे माँगे तो मालकिन को लगा कि ये तो इसने पैसे वसूलने का बहाना बना लिया है नतीजतन उन्होंने कुछ तल्खी से उस सेवक से कह दिया कि अब जो भी पैसे मिलेंगे वे तुम्हारी तनख्वाह से कटकर ही मिलेंगे । सेवक को लगा मालकिन मेरे साथ ज्यादती कर रही है उसने भी तल्ख शैली में विरोध किया । मालकिन ने इसे उसकी बद्तमीजी मानते हुए क्रोध में उसे एक थप्प़ड जड दिया और अपने सामने से दफा होने का आदेश सुना दिया । मालिक के घर आने पर मालकिन व सेवक दोनों ने अपने-अपने तरीके से उनसे एक-दूसरे की शिकायत की, मालिक के सामने भी स्वयं की बीबी और घर के पैसे का महत्व ज्यादा था नतीजतन पैर का घुटने की दिशा में ही मुडने के नियमानुसार उन्होंने भी न सिर्फ उस सेवक को बुरी तरह से डांटा-फटकारा बल्कि आगे से ऐसी स्थिति बनने पर उसके खिलाफ पुलिस में कार्यवाही करने की धमकी भी दे डाली जिससे सेवक और भी मन ही मन उबलकर रह गया ।
       
      यह दम्पत्ति प्रौढावस्था में थे और भरापूरा परिवार होने के बावजूद कारोबारी आवश्यकताओं के चलते शहर के अन्तिम छोर पर अकेले रहते थे, जबकि सेवक शारीरिक रुप से तरुणाई की उम्र में होने के कारण अधिक बलिष्ठ भी था । क्रोध के इसी दौर के चलते दूसरे दिन मालिक के काम पर जाने के बाद खुन्नस में मौका देखकर उस सेवक ने मालकिन की अनभिज्ञता का लाभ उठाया और पीछे से उनके गले में दुपट्टा डालकर उस दुपट्टे से तब तक उनका गला दबाता चला गया जब तक की मालकिन के प्राण नहीं निकल गये । इस दरम्यान मालकिन के भाई का घर पर फोन आने पर सेवक ने उन्हें बोल दिया कि मालकिन तो बाजार गई है । मोबाईल पर भी जब मालकिन से भाई का सम्पर्क नहीं हो पाया तो उसने अपने जीजाजी को खबर की कि बहन से कोई सम्पर्क नहीं हो रहा है उन्होंने भी फोन लगाया तो सेवक के द्वारा उन्हें भी यही जवाब मिला कि वे तो बाजार गई हैं, किसी अनहोनी की आशंका के साथ मालिक तत्काल घर की ओर दौडकर आये जहाँ उनके घर में घुसते ही खुन्नस में भरे उस सेवक ने उनके भी पीछे से काँच की एक वजनी चौकी उठाकर उनके सिर पर पूरी ताकत से दे मारी । काँच तो टूटना ही था, मालिक भी इस अचानक हुए प्रहार से चोटिल होकर अचेतावस्था में गिर पडे और तब उसी चौकी के बडे से काँच के एक टुकडे को कपडे से पकडकर उस नौकर ने अपना सारा क्रोध उंडेलते हुए मालिक के अचेत शरीर पर उनकी मृत्यु होने तक इतने वार किये कि पूरे घर में खून का सैलाब सा फैल गया ।


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       बाद के चिर-परिचित घटनाक्रम में शोक-संतप्त परिवारजनों का ह्रदयविदारक विलाप व भागे हुए सेवक की गिरफ्तारी ये सब तो होना ही था किन्तु समूचे घटनाक्रम में एकमात्र जिम्मेदार कारण सिर्फ क्रोध ही रहा जिसके कारण पति-पत्नी के रुप में दो जीवन अकाल मृत्यू की स्थिति में और एक सेवक जीवन भर के लिये सींखचों की गिरफ्त में चला गया और इन सभीके परिजनों को तो इनके न रहने का खामियाजा अब भुगतते रहना ही है ।


      यह भी सही है कि मानव जीवन में प्रत्येक के साथ ऐसे अवसर आते ही हैं जब उसका क्रोधित होना लगभग आवश्यक हो जाता है या वह क्रोध से बच नहीं पाता ऐसे में इस समस्या का समाधान क्या ? समस्त विचारकों की राय में जब भी क्रोध आवे तो हम तत्काल उस पर अपनी प्रतिक्रिया न करते हुए उस समय मौन रहकर उसका सामना करें और यदि यह सम्भव हो तो उस वक्त वहाँ से स्वयं को हटा लें । कुछ ही घंटे बाद हम उस समस्या का ठंडे मस्तिष्क से निश्चय ही अधिक बेहतर समाधान निकाल सकेंगें

माचिस की तीली का सिर्फ सिर होता है 
दिमाग नहीं, जबकि हमारे पास सिर भी 
होता है और दिमाग भी किन्तु फिर भी हम 
छोटी-छोटी बातों पर क्यों भभक उठते हैं ?

    
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