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1.11.19

कहानी घर-घर की...


     प्रायः सभी एकल भारतीय परिवारों में यदि बच्चे बहुत छोटे न रहे हों और मुख्य गृहिणी नौकरी-पेशा न हो तो एक समस्या अक्सर सामने आती है और वो है पति के काम पर व बच्चों के अपने स्कूल-कॉलेज निकल जाने के बाद सबके बारे में सोचते रहना और उनकी वापसी की प्रतिक्षा में उनके आते ही उनकी कुशल-क्षेम पूछने के साथ दिन-भर की उनकी दिनचर्या से सम्बन्धित कुछ बातें करने की सोच रखना व उनकी अपनी सोच के मुताबिक आवश्यक लगने पर अपनी ओर से उन्हें कुछ सुझाव भी दे लेना ।

         सामान्य स्थिति में कमोबेश यही क्रम हर परिवार में दुखम्-सुखम् चलता रहता है जिसमें प्रायः सभी सदस्यों की दिन भर में जुडी नकारात्मक परिस्थितियों की झुंझलाहट अक्सर गृहिणियों पर ही हस्तांतरित होती रहती है । यह झुंझलाहट कभी-कभी इस सीमा तक भी उन पर उतरते दिखती है कि वह सोचने लगती है कि आखिर मेरा कसूर क्या है ?  एक उदाहरण- 

        बेटा घर में घुसते ही बोला- "मम्मी कुछ खाने को दे दोबहुत भूख लगी है  माँ ने कहा- "बोला था, ले जा कुछ कॉलेजसब्जी तो बन ही गई थी  "बेटा बोला- "यार मम्मा अपना ज्ञान अपने पास ही रखो, अभी जो कहा है वो कर दो बस, और हाँ रात में कुछ ढंग का खाना बनाना, पहले ही मेरा दिन अच्छा नहीं गया है । 

      उसके खाने की व्यवस्था कर कमरे में माँ बुलाने गई तो उसकी आंख लग गई थी । भूखा है, सोचते हुए माँ ने जैसे ही उसे जगाया कि कुछ खा कर सो जाए । तभी बेटा चीख कर बोला- जब सो गया था तो उठाया क्यों तुमने ?  माँ ने कहा तूने ही तो कुछ खिलाने को कहा था । वो बोला- "मम्मी एक तो कॉलेज में टेंशन, ऊपर से तुम भी अजीब काम करती हो, कभी तो दिमाग भी लगा लिया करो ।

        तभी घंटी बजी तो बेटी भी आ गई थी । माँ ने प्यार से पूछा- "आ गई मेरी बेटीकैसा रहा दिन ?" तो बैग पटक कर वो बोली, "मम्मी आज पेपर अच्छा नहीं हुआ।" माँ ने कहा," कोई बात नहींअगली बार कर लेना ।" बेटी चीख कर बोली- अगली बार क्या ? रिजल्ट तो अभी खराब हुआ नामम्मी यार तुम जाओ यहाँ सेतुमको कुछ नहीं पता ।" माँ उसके कमरे से भी निकल गई ।

       शाम को पतिदेव आए तो उनका भी मुँह लाल था । थोड़ी बात करने कीकुछ जानने  की कोशिश कि तो वो भी झल्ला के बोले- "यार मुझे अकेला छोड़ दो । पहले ही बॉस ने क्लास ले ली है और अब तुम शुरू हो गई ।"

      कितने सालों यही सब सुनती आ रही थी वो । सोचा सबकी पंचिंग बैग मैं ही हूँ । हम औरतें भी ना अपनी इज्ज़त करवाना हमें आता ही नहीं । सबको खाना खिला कर वो अपने कमरे में चली गई ।

      अगले दिन से उसने किसी से भी कुछ भी पूछना-कहना बंद कर दिया । जो जैसा कहता, कर के दे देती । पति आते तो चाय दे देती और अपने कमरे में चली जाती । पूछना ही बंद कर दिया कि दिन कैसा रहा ? बेटा कॉलज और बेटी स्कूल से आती तो माँ ना कुछ बोलती ना पूछती । यह सिलसिला काफी दिन चला...

       एक रविवार तीनों उसके पास आए और पतिदेव बोले तबियत ठीक है ना ? क्या हुआ है ? इतने दिनों से चुप ही हो, बच्चे भी हैरान थे ।

     थोड़ी देर चुप रहने के बाद वो बोली- मैं तुम लोगो की पंचिंग बैग हूँ क्या ? जो भी आता है अपना गुस्सा, चिड़चिड़ाहट व भडास मुझपे ही निकाल देता है । मैं भी दिन भर इंतज़ार करती हूं तुम लोगों का । पूरा दिन काम करके कि अब मेरे बच्चे आएंगेपति आएंगेदो बातें करेंगे प्यार से, और तुम सब आते ही मुझे ही पंच करना शुरु कर देते हो ।

     अगर तुम लोगों का दिन अच्छा नहीं गया तो क्या वो मेरी गलती होती है ? हर बार मुझे झिड़क देना क्या सही है ? कभी तुमने पूछा कि मुझे दिन भर में कोई तकलीफ तो नहीं हुई । तीनो चुप थे, सही तो कहा मैंने- दरवाजे पे लटका पंचिंग बैग समझ लिया है मुझे, जो आता है मुक्का मार के चलता बनता है । तीनों शर्मिंदा थे ।

      हर माँ,  हर बीवी अपने बच्चों और पति के घर लौटने का इंतज़ार करती है । उनसे पूछती है कि दिन भर में सब ठीक तो थालेकिन अक्सर हम उनको हल्के में लेते हैं । हर चीज़ का गुस्सा उन पर निकाल देते हैं । कभी-कभार तो यह ठीक हैलेकिन अगर ये आपके घरवालों की आदत बन जाए तो ? तब तो गृहिणी के लिये यही उत्तम है कि अनावश्यक सवाल-जवाब से वह अपने को मुक्त ही रखें ।

       हम सभी वयस्कों के लिये भी उचित यही है कि यदि वो कभी हमसे दो बात करना चाहे और हमारा मूड दिन भर की किसी भी गतिविधि के संदर्भ में यदि खराब हो तो भी संक्षिप्त में बगैर चिढें जवाब देकर वहाँ से हट जावें जिससे न हमारा मूड और ज्यादा खराब हो और ना ही माँ अथवा पत्नी को यह हीनता महसूस हो कि आपकी नजरों में उसकी तो कोई इज्जत ही नहीं बची है ।

26.1.17

सबक और आशा...


            एक बेटा अपने वृद्ध पिता को रात्रि भोज के लिए एक अच्छे रेस्टॉरेंट में लेकर गया । खाने के दौरान वृद्ध पिता ने कई बार भोजन अपने कपड़ों पर गिराया ।  रेस्टॉरेंट में बैठे दुसरे खाना खा रहे लोग वृद्ध को तिरस्कारपूर्ण नजरों से देख रहे थे, लेकिन वृद्ध का बेटा शांत था ।

             खाने के बाद बिना किसी शर्म के बेटा, वृद्ध को वॉश रूम ले गयाउसके कपड़े साफ़ किये, चेहरा साफ़ किया, बालों में कंघी की, और चश्मा पहनाकर बाहर लाया । सभी लोग खामोशी से उन्हें ही देख रहे थे । बेटे ने बिल का पेमेन्ट किया और अपने परिवार सहित बाहर जाने लगा । तभी डिनर कर रहे एक अन्य वृद्ध ने बेटे को आवाज दी और उससे पूछा- "क्या तुम्हे नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो ?"

            बेटे ने जवाब दिया- "नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा ।"

            वृद्ध ने कहा "बेटे, तुम यहाँ छोड़ कर जा रहे हो, प्रत्येक पुत्र के लिए एक शिक्षा (सबक) और प्रत्येक पिता के लिए उम्मीद (आशा)...

            दोस्तों आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नही करते और कहते हैं क्या करोगे आप से चला तो जाता नही, ठीक से खाया भी नही जाता । आप घर पर ही रहो वही अच्छा होगा ।

            किंतु आप यह क्यों भूल जाते हैं कि जब आप छोटे थे और आप के माता पिता आप को अपनी गोद मे उठा कर ले जाया करते थे । आप जब ठीक से खा नही पाते थे तो माँ आपको अपने हाथ से खाना खिलाती थी और खाना गिर जाने पर डाँट नही प्यार जताती थी । फिर वही माँ बाप उनके बुढापे मे भार स्वरुप क्यो लगने लगते है ?

          इस पृथ्वी पर तो माँ-बाप की तुलना भगवान से ही की गई है इसलिये उनकी सेवा कीजिये और उन्हे प्यार दीजियेक्योकि एक दिन आप भी बूढे होंगे फिर अपने बच्चो से सेवा की उम्मीद कैसे करेंगे किंतु यदि इसे पढने के बाद अगर 10% लोगों में भी बदलाव आ गया तब तो यह पोस्ट अपने उद्देश्य में सार्थक है ही ।

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