3.5.11

क्या हिन्दी चिट्ठाकार अंग्रेजी में ज्यादा सहज हैं ?



          इन दिनों मेरे देखने में ऐसा क्यों आ रहा है कि पोस्ट-दर-पोस्ट टिप्पणीकर्ता अपनी टिप्पणियों में हिन्दी का दामन छोडकर इंग्लिश की बोर्ड के साथ रोमन लिपि में अपनी टिप्पणियां देने को प्राथमिकता देते दिखाई दे रहे हैं । पहले तो सिर्फ कडुवा सच ब्लाग के उदयजी व उनके जैसे कोई इक्का दुक्का ब्लागर्स की ही टिप्पणी इस पैटर्न पर देखने में आती थी और चूंकि उनके अपने ब्लाग में भी लेटर हमेशा एक जैसे छोटे-छोटे दिखाई देते हैं तो ये समझने में आता था कि शायद उनके पास मौजूद कम्प्यूटर के विशेष ओल्ड माडल में होने के कारण उनके लिये ये मजबूरी रहती हो । कुछ और सीमित ब्लागर्स जैसे क्षितिज ब्लाग के जगदीश बालीजी की टिप्पणी भी ऐसी ही आती थी वहाँ भी ये समझ में आता था कि इनके तीन में से दो ब्लाग अंग्रेजी के हैं इसलिये इनका हाथ स्वाभाविक रुप से  इंग्लिश की बोर्ड पर ही अधिक चलता होगा । लेकिन फिर  इस सूचि में कभी हिन्दी तो कभी रोमन इंग्लिश में टिप्पणी देने वाले चिट्ठाकारों के नाम बढते हुए क्रम में यूं देखने में आने लगे-
       In search of saanjh ब्लाग की Saanjh, खुदको खोजने का एक सफर ब्लाग की मंजूलाजी, बहुत सीमित अनुपात में परवाज...शब्दों...के पंख ब्लाग की डा मोनिका वर्माजी, झरोखा ब्लाग की पूनम श्रीवास्तवजी, Mridula's ब्लाग की Mridula Pradhanji, नमस्कार ब्लाग के श्री विवेक रंजन श्रीवास्तवजी, सृजन शिखर ब्लाग के श्री उपेन्द्र उपेनजी, अनकवि ब्लाग के श्री हर्षवर्द्धन वर्माजी, झंझट के झटके ब्लाग के श्री सुरेन्द्रसिंह झंझटजी, स्पर्श ब्लाग की दीप्ति शर्माजी, काव्य-कल्पना ब्लाग के Er. सत्यम् शिवमजी, आदत मुस्कराने की ब्लाग के श्री संजय भास्करजी, पछुवा पवन ब्लाग के श्री पवन कुमार मिश्रजी, काव्या ब्लाग की नीलिमा गर्ग जी, बालाजी ब्लाग के Shri G. N. SHAW, काव्यवाणी ब्लाग के श्री शेखर कुमावत, गजलयात्रा ब्लाग की डा. वर्षासिंहजी, मेरी सोच मेरी अभिव्यक्ति ब्लाग के श्री सी. एस. देवेन्द्र कुमार, मसिकागद ब्लाग के श्री दीपक मशालजी, अमृतरस ब्लाग की डा. नूतन डिमरी गैरोला, भगत भोपाल ब्लाग के श्री भगत सिंह पंथीजी, यादें... सदा के लिये ब्लाग के श्री ओम कश्यपजी, मेरे अरमान मेरे सपने ब्लाग की श्री दर्शन कौर धनौएजी, झील ब्लाग की डा. दिव्या श्रीवास्तवजी, चैतन्य का कोना ब्लाग के श्री चैतन्य शर्माजी, राम राम भाई ब्लाग के श्री वीरेन्द्र शर्माजी, कुंवर कुसुमेश ब्लाग के श्री कुंवर कुसुमेशजी, दादा का चश्मा, दादी का संदूक ब्लाग के श्री अरशद अली, अपनत्व ब्लाग के अपनत्व (सरिताजी), अनामिका की सदायें ब्लाग की अनामिकाजी, कासे कहूँ ब्लाग की कविता वर्माजी, वानभट्ट ब्लाग के श्री वानभट्टजी, स्वप्न मेरे ब्लाग के श्री दिगम्बर नासवाजी, मेरा हमसफर ब्लाग के श्री पी. के .शर्माजी, कुछ कही कुछ अनकही ब्लाग के श्री विजय रंजनजी, सुरभित सुमन ब्लाग की सुश्री सुमनजी, कवि योगेन्द्र मौदगिलजी, बस यूं ही...अमित ब्लाग के श्री अमित श्रीवास्तवजी, रोशी ब्लाग की रोशी अग्रवालजी, मेरे सपने ब्लाग के श्री विवेक जैन जी व अन्य अनेक नाम जिन तक पहुँचने की कोशिश आगे नहीं की गई ।

        इस सन्दर्भ में जो विशेष बात जो मेरे देखने में आई और जिसके कारण यह विषय सार्वजनिक रुप से जानकारी में लाने का ये विचार मेरे मन में आया वह ये रहा कि शुरुआती नामों में पहले जहाँ जिक्र किया जावे तो अनेक चिट्टाकारों की पहले जो टिप्पणी रोमन लिपी में दिखी वो बाद में हिन्दी में परिवर्तित होती चली गई जिनमें मुख्य नाम- डा. मोनिका वर्माजी, श्री उपेन्द्र उपेनजी, इं. सत्यम शिवमजी, श्री संजय भास्करजी, डा. वर्षा सिंहजी, डा. नूतन डिमरीजी इन सभी के लिये जा सकते हैं । जबकि आखरी के नामों में विरोधाभास यह देखने में आ रहा है कि श्री अमित श्रीवास्तवजी, डा. दिव्या श्रीवास्तवजी, दर्शन कौर धनौएजी ये ऐसे नाम दिख रहे हैं जिनकी टिप्पणियां अच्छी भली हिन्दी से चलते-चलते अब अंग्रेजी में परिवर्तित होते दिखाई दे रही हैं ।

          ये सभी नाम जिनकी मैं यहाँ चर्चा कर रहा हूँ ये सभी मेरे मित्र व शुभचिंतक हैं, इनमें से अधिकांश तो मेरे ब्लाग्स के फालोअर्स भी हैं इसलिये मेहरबानी करके कोई भी ये न समझें कि मैं किसी को कमतर दिखाने के नजरिये से उनके नामों का उल्लेख कर रहा हूँ बल्कि मैं सही मायनों में ये समझने का प्रयास करना चाह रहा हूँ कि हिन्दी में जब हमारी बडी से बडी पोस्ट हम अपने ब्लाग पर प्रकाशित कर लेते हैं तो दो-चार लाईन या कभी-कभी तो दो चार शब्दों की हमारी टिप्पणी में अंग्रेजी टायपिंग हमें अधिक सहज क्यों लगने लगती है ? जबकि मात्र Alt + Shift  key's को एक साथ दबाकर हम तत्काल इंग्लिश से हिन्दी व हिन्दी से इंग्लिश पर शिफ्ट हो जाते हैं ।



47 टिप्‍पणियां:

  1. सुशील जी ,
    कारण तो सभी मित्र ब्लॉगर खुद ही बता सकते हैं लेकिन मुझे लगता है कि एक कारण कम से कम ये तो है ही कि बहुत सारे ब्लॉगर अब मोबाइल पर भी पोस्ट पढ के टिप्पणी कर लेते हैं और जाहिर सी बात है कि सभी मोबाइल पर हिंदी टायपिंग की सुविधा उपलब्ध नहीं होती होगी । आपकी बात ठीक है कि बटन दबा कर हिंदी को इंगलिश और इंगलिश को हिंदी किया जा सकता है लेकिन ये वहां हो सकता है जहां बाराहा , जैसे अन्य हिंदी टूल किट इंस्टॉल हों हां अब गूगल ने भी बहुत सुविधा कर दी हिंदी में टाईप करने की इसलिए आपकी बातों से सहमत हूं कि अगर थोडी सी मुश्किल बढा के हिंदी में टिप्पणी कर सकें तो ये सोने पे सुहागा वाली बात होगी अन्यथा टिप्पणी रोमन में हो या अंग्रेजी में सदा ही स्वागत है उसका :)

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  2. Sushil ji apni samasya to yeh hai ki ham to adhiktar samay mobile se hi post padhte hain... Aur hamaare Mobile se Devnagri mein typing ki suvidha nahi hai. Isliye Roman mein hi type karna padta hai... Ho sakta hai kuchh aur logo ke sath bhi yahi samasya ho...

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  3. एक बढ़िया लेख के लिए आभार ....

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  4. रोमन में लिखी गयी टिप्‍पणी पढना दुरूह कार्य है, इसलिए जिस पोस्‍ट में भी रोमन में टिप्‍पणी होती हैं मैं तो उसे पढ़ती ही नहीं। हाँ मेरी पोस्‍ट पर होती है उसे कैसे न कैसे करके पढ़ती हूँ। इसलिए दूसरों को पढ़ने में कठिनाई होती है इस बात को भी समझना चाहिए।

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  5. सुशील जी धन्यवाद झकझोरने के लिए...समस्या नए ब्लोग्गेर्स क साथ तो है ही...जाट देवता कि मदद से मै हिंदी में टिपण्णी करने योग्य हुआ...आज आपके सौजन्य से शीर्षक भी हिंदी में बदल गया...हम सभी को हिंदी से प्रेम है, बस समस्या तकनीकी ज्ञान कि है...

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  6. टिप्पणी में अभी भी मेरा नाम अंग्रेजी में आ रहा है...तरीका बताएं...

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  7. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  8. ऊपर जो टिप्पणी की थी वह सुबह, अपने मोबाइल से ही की थी... अभी कार्यालय पहुँच चुका हूँ... इसलिए टिप्पणी को दोबारा देवनागरी में ही टाइप कर रहा हूँ.... जिससे पढने में आसानी रहे...



    "सुशील जी, अपनी समस्या तो यह है की हम अधिकतर समय मोबाइल से ही पोस्ट पढ़ते हैं... और हमारे मोबाइल से देवनागरी में टाइपिंग की सुविधा नहीं है. इसलिए रोमन में टाइप करना पड़ता है... हो सकता है कुछ और लोगो के साथ भी यही समस्या हो...."

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  9. हिन्दी में टिप्पणी सरल है। मोबाइल से भी संभव है।

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  10. सुशिल जी ,आपकी बातो से मै पूरी तरह सहमत हूँ --रोमन में लिखना और पढना मुझे बिलकुल पसंद नही है --रोमन लिपि लिखने की वजय सिर्फ यह है की कई बार नेट पर हिंदी वर्जन हो नही पता है --नेट स्लो रहता है --
    मुझे बार -बार अपने ब्लोक पर आ कर हिंदी में टैप करना पढता है फिर कापी पेस्ट करना पढता है --मुझे इसी सुविधा की आदत है --
    बहुत से ब्लोक पर हिंदी वर्जन का विजेट लगा हुआ होता है --पर ज्यादा तर नही होता --कापी पेस्ट करने में टाईम बहुत खराब होता है --मै ज्यातर हिंदी में ही कमेंट्स करती हूँ --कभी -कभी रोमन में टाईम न होने की वजय से ही टिपण्णी करती हूँ --
    अगर कोई और तरीका हो तो मुझे अवश्य बताए ..क्योकि मै खुद को भी हिंदी में ही सहज समझती हूँ ..
    मै चाहती हूँ की सब 'हिंदी वाला विजेट 'अपने ब्लोक पर लगाए ---आपकी नेक नियत पर हमे कोई एतराज नही है ..सार्थक पोस्ट के लिए धन्यवाद !

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  11. रोमन में लिखी टिप्पणी पढने में असुविधा देती है ...बहुत ज़रूरी ना हो तो मैं भी पढने से टालने की कोशिश करती हूँ ...
    जिन ब्लॉग पर हिंदी टाइप की सुविधा नहीं , मैं अपने मेल बॉक्स से कॉपी पेस्ट कर देती हूँ ...जरा सा समय ही तो ज्यादा लगता है !

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  12. बहुत ही अच्छा आलेख है...यह ध्यान देने वाली बेतें हैं...

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  13. सुशील जी,

    अच्छी बात कही है आपने | मेरे कंप्यूटर का की बोर्ड अंग्रेजी में है किन्तु साफ्टवेयर में टाईप करके टिप्पड़ियां पेस्ट करता हूँ हिंदी में | हाँ , कभी-कभी समस्या होने पर ऐसा नहीं कर पाता |

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  14. बहुत सार्थक पोस्ट..आभार

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  15. प्रिय सुशील जी
    मै हर संभव कोशिश करता हूँ कि टिप्पणी हिंदी में हो बल्कि मेरे दिल की यही बात है दूसरो के रोमन में की गयी टिप्पणिया कम सुहाती है किन्तु कभी कभी व्यावहारिक समस्यायों के चलते रोमन में करना पड़ता है. इसका अर्थ यह नही है कि यह मेरी प्रवृत्ति होने जा रही है बल्कि यह अपवादस्वरूप देखा जाना चाहिए. भाई शाहनवाज जी से सहमत

    --

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  16. आपकी बात सच है कि हिन्दी की टिप्पणी हिन्दी में ही अच्छी लगती है ,परन्तु कभी-कभी बरहा के काम न करने से ऐसा हो जाता है ।तब लगता है टिप्पणी न करने से अच्छा है कि अंग्रेज़ी में ही टिप्पणी कर दी जाये .....सादर !

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  17. एक अच्‍छी जागृत करने वाली पोस्‍ट
    समस्‍या के निवारण के लिए एक लिंक नुक्‍कड़डॉटकॉम पर मौजूद है। वह संजीव तिवारी जी की तैयार की गई पोस्‍ट है, उससे किसी तरह की समस्‍या नहीं आती है। लिंक देखिए, समझिए और इस्‍तेमाल कीजिए
    http://www.nukkadh.com/2009/09/blog-post_22.html समस्‍या बनी रहे तो nukkadh@gmail.com पर मेल कीजिए और जानकारी लीजिए।

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  18. कभी कभी समय की कमी या कंप्यूटर के असहयोग की वज़ह से ऐसा हो जाता है । लेकिन हिंदी में पढने में ही आनंद आता है ।

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  19. आपकी शिकायत एवं सुझाव सर माथे पे । आइंदा आपको शिकायत नही मिलेगी । हां आपसे ऐसी डांट सदैव अपेक्षित रहेगी ।

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  20. बोलो भैया दे दे तान हिंदी हिंदी हिन्दुस्थान...
    मैकाले की डाली आदत है जाते जाते ही जाएगी.,
    अक्सर लोग समय बचने के लिए ये करते हैं..क्युकी गूगल में हिंदी टाइप करते समय अक्सर वर्तनी अशुद्ध रहती है और समय लगभग दो गुना ज्यादा लगता है..

    आशुतोष की कलम से....: मैकाले की प्रासंगिकता और भारत की वर्तमान शिक्षा एवं समाज व्यवस्था में मैकाले प्रभाव :

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  21. बहुत अच्छी पोस्ट है !
    पहले कुछ समस्या थी इसलिए अंग्रेजी में टिप्पणी
    करना मज़बूरी थी ! पर अब नहीं........

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  22. bhaai saahib apne ko kopi pest karni aati hi nahin hai aur na is bakse me tippani bakse me hindi tankad kee suvidaa hai ,angreji se prem hotaa to angreji me likhte ,kyon itni mehnat karte ,apnaa muhaavraa soch kaa to hindi hi hai .
    veerubhai .
    ye roman se hindi devnaagri lipi me roopaantaran kee baat bhi samjh nahin aai hai ,karke dekhaa huaa nahin .Alt+shift ko ek saath dabaayaa bhi .

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  23. achhee charcha
    ise bhi dekhen
    अनवर जमाल को मजा आ गया धडाधड पोस्ट फेच्कुरिया कर (ऐसी पोस्टें दो चार लाइन में ही दम तोड़ जाती है) हाफ हाफ कर अपने को बड़ा ब्लागर मनवाने पर तुला है यहाँ तक कि वह टट्टी कैसे करता है इसको भी ब्लागिंग से जोड़ कर बता रहा
    है.ha ha ha

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  24. दिल्ली में ब्लागिंग पर एक कार्यक्रम क्या हुआ लगा तमाम नालायक लोग पो पो करने लगे हिंदी
    चिट्ठाकारिता करना ठग्गू के लड्डू जैसा हो गया खाओ तो पछताओ न खाओ तो पछताओ. एक महाशय को गम हो गया बच्चों जैसे मचलते हुए हिंदी ब्लागिंग से कूच कर गए (वैसे संभावनाओं के द्वार खोल कर गए है जैसे किसी कोटेवाली का अड्डा हो की कभी भी आओ और मन करे तो फूट लो ). अनवर जमाल को मजा आ गया धडाधड पोस्ट फेच्कुरिया कर (ऐसी पोस्टें दो चार लाइन में ही दम तोड़ जाती है) हाफ हाफ कर अपने को बड़ा ब्लागर मनवाने पर तुला है यहाँ तक कि वह टट्टी कैसे करता है इसको भी ब्लागिंग से जोड़ कर बता रहा
    है.
    दूसरी और यह रवीन्द्र प्रभात और अविनाश वाचस्पति को बढ़ाई देता है हद हो गयी दोगलेपन की.
    खत्री अलबेला छिला हुआ केला कि तरह या यूं कहे नंगलाल कि तरह पुंगी बजाने में रत है. अरे इन खब्तियों को कौन बताये की ये शुरू के छोटे छोटे कार्यक्रम आगे वृहद रूप धारण करेगी. कार्यक्रम में खामिया होगी पर उसमे सकारात्मकता देखने से ही सकारात्मक ब्लागिंग हो सकती है.
    गिरते है मैदाने जंग में शाह सवार ही
    वो तिल्फ़ क्या गिरेगे जो घुटनों पे चलते है.
    कार्य्रकम के आयोजको को बधाई

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  25. वैसे तो भाषा से क्या अंतर पड़ता है, चाहे देवनागरी में लिखें या रोमन में, पर हिंदी इस्तेमाल की कोशिश छोड़ना थोड़ा ठीक नहीं है!
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  26. Nice post.
    http://ahsaskiparten.blogspot.com/2011/05/3-urdu-learning-course.html

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  27. एक अच्छा 'आब्जर्वेशन' भरा चिट्ठा.

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  28. मै तो उन ब्लाग को ओर उन टिपण्णियो को बिना देखे ही आगे चल पडता हुं जो रोमन मे लिखी हो

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  29. श्रीमान जी, आपको उपरोक्त लेख पढ़कर अपने अनुभवों के आधार हिंदी "आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें" पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

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  30. एक बढ़िया लेख के लिए आभार|

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  31. आदरणीय सुशील बाकलिवाल जी नमस्कार इतने ढेर नामों की सूची आप ने बना डाली बहुत अच्छा लगा मैं भी अपना नाम खोजते रहा की कहीं खिंचाई न हो जाये आप से -होता क्या है की जल्दबाजी में लोग गूगल ट्रांसलेटर जो ब्लाग पर लगे भी है उन तक जाना नहीं चाहते और ये जानकारी जो आप ने दी बहुत कम लोग जानते हैं आल्ट + शिफ्ट का
    बहुत बहुत धन्यवाद आप का -यों ही नयी नयी जानकारियां प्रदान करते रहें
    शुक्ल भ्रमर ५

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  32. एक बात और भूल ही गया आप से कहना ये डॉ मोनिका शर्मा आप ने लिखा है या डॉ मोनिका वर्मा जी कोई और हैं ??
    धन्यवद

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  33. मातृभाषा पर जाग्रत आलेख!!

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  34. मैं हिन्‍दी में ही लिखने का हिमायती हूँ। कई बार कुछ एक जगहों पर मैनें रोमन शैली में हिन्‍दी का लेख लिखा देखा तो उसे पढ़ने के लिए फोण्‍ट कन्‍वट्रर का सहारा लिया। रोमन शैली में लिखी हिन्‍दी मुझे हमेशा हतोत्‍साहित करती है।

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  35. कोई जागे या ना जागे , हम तो आवाज लगाते रहेंगे , बहुत सुंदर आलेख , बधाई

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  36. एक नई पहल अच्छी लगी. बढ़िया पोस्ट. पर सबकी अपनी अपनी कोई न कोई मज़बूरी होती ही होगी
    आभार

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  37. भाई सुशील जी बधाई बहुत गहन विश्लेषण आपने किया है |सुंदर पोस्ट

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  38. इस समस्या पर बहस करने के लिये आभार

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  39. श्रीमान जी, क्या आप हिंदी से प्रेम करते हैं? तब एक बार जरुर आये. मैंने अपने अनुभवों के आधार ""आज सभी हिंदी ब्लॉगर भाई यह शपथ लें"" हिंदी लिपि पर एक पोस्ट लिखी है. मुझे उम्मीद आप अपने सभी दोस्तों के साथ मेरे ब्लॉग www.rksirfiraa.blogspot.com पर टिप्पणी करने एक बार जरुर आयेंगे. ऐसा मेरा विश्वास है.

    श्रीमान जी, हिंदी के प्रचार-प्रसार हेतु सुझाव :-आप भी अपने ब्लोगों पर "अपने ब्लॉग में हिंदी में लिखने वाला विजेट" लगाए. मैंने भी कल ही लगाये है. इससे हिंदी प्रेमियों को सुविधा और लाभ होगा.

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  40. मैं तो अधिकतर हिंदी में ही टिप्पणी देता हूँ.
    हाँ कहीं कहीं अंग्रेजी में कर देता हूँ.

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  41. हिंदी मे टिप्पणी करना ही सही है ।

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...

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