स्कूटर पर आने-जाने वाले बैंक आफिसर
पिता और स्कूटी की मदद से इमीटेशन ज्वेलरी का कारोबार करने वाली माता ने अपने मकान
के नवीनीकरण अभियान में अपने इकलौती सन्तान 22 वर्षीय पुत्र की वैवाहिक तैयारियों के
अनुसार उसकी भावी आवश्यकताओं की सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए मकान की उपरी
मंजिल पर सबकुछ समय की आवश्यकता के साथ ही बच्चे की इच्छापूर्ति के मुताबिक
सर्वश्रेष्ठ निर्माण कार्य अत्याधुनिक इन्टीरियर के द्वारा करवा लिया था । परिवार
के स्टेटस के मुताबिक घर में कार भी थी जिसका उपयोग या तो पूरा परिवार एक साथ कहीं
जाने के समय काम में लेते थे या फिर शौकिया तौर पर उनका ये बालक अपने दोस्तों के
साथ कर लिया करता था ।
होनहार पुत्र कालेज में ग्रेजुएशन की परीक्षा में
उच्चतम अंकों से पास हुआ तो प्रसन्नता के दौर में माँ-पिता ने बच्चे की इच्छापूर्ति
हेतु उसकी मनपसन्द मोटर बाईक भी तोहफे में उसे दिलवा दी । वैसे भी माँ-पिता दोनों
की उस बालक के प्रति सोच यह रहती थी कि हमारा सबकुछ इसी का तो है । इसलिये यदि
इसकी चाहत बाईक के इस मेक व माडल की है तो यही बाईक इसे हम क्यों न दिलवाएँ ।
पिछले दिनों में अखबारो में छपने वाली एक नहीं दो घटनाएँ...
एक बाईक पर दो लडके हाईवे पर ऐसी ही तेज गति से जा रहे थे दूसरी ओर से एक गेहूँ काटने वाली मशीन चली आ रही थी । अचानक बाईक चलाने वाले लडके का पल भर के लिये ध्यान हटा और बाईक उस मशीन से जा टकराई । बाईक चलाने वाले को तो गम्भीर चोटें आई किन्तु पीछे बैठा लडका इस टक्कर से उछलकर उस मशीन में लगे दांतों से टकरा गया जो इतने नुकीले थे कि उस लडके के सीने को चीरते हुए आर-पार हो गए । जब आस पास के लोग वहाँ पहुँचे वो लडका दर्द से छटपटा रहा था । लोगों ने सामूहिक प्रयासों से कोशिश करके उसे उन नुकीले दांतों से अलग किया किन्तु उसकी जिन्दगी नहीं बचाई जा सकी ।
दूसरी घटना में तेज रफ्तार से जा रही बाईक उसके आगे चल रहे टाटा मेजिक वाहन के अचानक ब्रेक लगा देने से उससे तेजी से टकराई जिससे बाईक चलाने वाला लडका सडक के बीच में गिर गया और दूसरी ओर से आते हुए ट्रक का अगला पहिया उसकी कमर के निचले हिस्से को रौंदता हुआ निकल गया । कुछ देर पानी-पानी की गुहार लगाते हुए उस लडके ने भी वहीं दम तोड दिया ।
इन दोनों हादसों में भी मरने वाले युवकों की उम्र 20 और 25 वर्ष के मध्य ही थी और बाईक की गति हद से ज्यादा तेज तो थी ही । ऐसी कितनी ही घटनाएँ हम सभी अपने-अपने क्षेत्रों में अक्सर घटते हुए देख रहे हैं । जिनमें बाईक सवार बाईक को चलाकर नहीं उडाकर निकलते दिखने की कोशिश करते दिखते हैं और अंततः इन आकस्मिक स्थितियों की चपेट में आकर या तो शेष जीवन के लिये अपाहिज होकर रह जाते हैं या फिर दुनिया से रुखसत होकर अपने माता-पिता को जिन्दगी भर के लिये किश्तों में रोते रहने की सौगात दे जाते हैं ।
क्या वास्तव में उन्हें इतनी जल्दी रहती है जबकि इससे कई गुना अधिक समय इन्हीं युवकों का मोबाईल पर SMS भेजते रहने में और इन्टरनेट पर फेसबुक या इस जैसी अन्य सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर अनावश्यक चेटिंग करने में गुजर जाता है, या फिर हालीवुड-बालीवुड की फिल्मों के ऐसे दृश्य देखकर रफ्तार का ये जुनून उनके दिलो-दिमाग में इस सीमा तक छाया रहता है, या जैसी कि आम धारणा रहती है कि लडकियों को इम्प्रेस करने के चक्कर में इस गति से ये खुली सडक दिखते ही इतनी अनियंत्रित बाईक चलाना प्रारम्भ कर देते हैं । कारण चाहे जो हो परिणाम तो आप भी डूबे, देश भी डूबे, जनता को भी ले डूबे वाला ही बनता है ।
आखिर विज्ञान की आधुनिकतम उपलब्धियों का पूरा रोमांच प्राप्त करने की ये कीमत इस रुप में कब तक ?
बाईक खरीदें एक माह भी नहीं हुआ होगा कि पास ही के
गांव में रहने वाले बालक के मित्र की शादी का संयोग बन गया । पिता ने बालक को
निर्देशित भी कर दिया कि तुम अपने इस मित्र की शादी में बाईक से नहीं जाओगे ।
तुम्हे जितनी बार भी आना-जाना करना है कार के द्वारा ही करना है जिसे उपरी तौर पर
तो बालक ने मान लिया किन्तु मन से नहीं मान पाया । सुबह पिता के समक्ष कार लेकर
निकला वह बालक दूसरी बार घर आने पर पिता की गैरमौजूदगी में अपनी नई बाईक लेकर ही
निकला । शादी के घर में दूल्हे के कपडे लांड्री से लाने का काम बाकि था जिसकी जिम्मेदारी
इसी बालक ने दूसरे दोस्त के लांड्री के नजदीक रहने के बावजूद स्वयं ले ली और अपनी
नई मोटर बाईक से लांड्री से कपडे लेकर वहीं नजदीक रहने वाले मित्र के साथ वापस
शादी वाले घर की ओर दोनों मित्र चल पडे । दूसरा मित्र भी अपनी स्वयं की मोटर बाईक
पर ही चल रहा था । रास्ते में अनजाने ही दोनों में रेस चालू हो गई और अपनी नई बाईक
की रफ्तार का कौशल दिखाने में एक मोड पर तेजी से टर्न लेने में बालक गाडी का
बेलेन्स कन्ट्रोल नहीं कर पाया और लगभग 8 फीट
गहरे बडे से गड्ढे में बाईक के साथ जो गिरा तो बालक नीचे और बाईक उसके उपर जा गिरी
। जब तक पीछे से दूसरा मित्र वहाँ पहुँचा और दो-चार लोगों को रोककर उस बालक को
गड्ढे में से निकाला तब तक उसके प्राण पखेरु उड चुके थे । इन दम्पत्ति के साथ यही
बालक हमारी बैंकाक-पटाया की स्वप्न-यात्रा में हमारे साथ भी कुछ समय बिता चुका था
।
यह बालक तो अकाल मृत्यु के द्वारा दुनिया से रुखसत
हो गया और माँ-पिता की आगे की शेष पूरी जिन्दगी उजाड हो गई । नसीब से ये एक सन्तान
मिलने वाले रिटायरमेंट के करीब पहुँच रहे पिता व माता की उम्र ऐसी भी नहीं रह गई
थी कि वे इस दुर्घटना के बाद दूसरी सन्तान को जन्म देकर अपनी सामर्थ्य के दौर में
उसे आत्मनिर्भर बनता देख पाते । प्रायः इसमें की घटना में लोग सोचते हैं कि
लडकियों को इम्प्रेस करने के चक्कर में नवयुवक ऐसी दुर्घटनाएँ कर बैठते हैं किन्तु
यहाँ ऐसा कोई चक्कर नहीं था यदि कुछ था तो नई उम्र और नई बाईक के साथ कहीं न कहीं
हवा में उडने जैसा जुनून था । लगभग तीन साल पहले घटने वाली इस घटना का यहाँ उल्लेख
क्यों हो गया अब उसका कारण भी देखें-
पिछले दिनों में अखबारो में छपने वाली एक नहीं दो घटनाएँ...
एक बाईक पर दो लडके हाईवे पर ऐसी ही तेज गति से जा रहे थे दूसरी ओर से एक गेहूँ काटने वाली मशीन चली आ रही थी । अचानक बाईक चलाने वाले लडके का पल भर के लिये ध्यान हटा और बाईक उस मशीन से जा टकराई । बाईक चलाने वाले को तो गम्भीर चोटें आई किन्तु पीछे बैठा लडका इस टक्कर से उछलकर उस मशीन में लगे दांतों से टकरा गया जो इतने नुकीले थे कि उस लडके के सीने को चीरते हुए आर-पार हो गए । जब आस पास के लोग वहाँ पहुँचे वो लडका दर्द से छटपटा रहा था । लोगों ने सामूहिक प्रयासों से कोशिश करके उसे उन नुकीले दांतों से अलग किया किन्तु उसकी जिन्दगी नहीं बचाई जा सकी ।
दूसरी घटना में तेज रफ्तार से जा रही बाईक उसके आगे चल रहे टाटा मेजिक वाहन के अचानक ब्रेक लगा देने से उससे तेजी से टकराई जिससे बाईक चलाने वाला लडका सडक के बीच में गिर गया और दूसरी ओर से आते हुए ट्रक का अगला पहिया उसकी कमर के निचले हिस्से को रौंदता हुआ निकल गया । कुछ देर पानी-पानी की गुहार लगाते हुए उस लडके ने भी वहीं दम तोड दिया ।
इन दोनों हादसों में भी मरने वाले युवकों की उम्र 20 और 25 वर्ष के मध्य ही थी और बाईक की गति हद से ज्यादा तेज तो थी ही । ऐसी कितनी ही घटनाएँ हम सभी अपने-अपने क्षेत्रों में अक्सर घटते हुए देख रहे हैं । जिनमें बाईक सवार बाईक को चलाकर नहीं उडाकर निकलते दिखने की कोशिश करते दिखते हैं और अंततः इन आकस्मिक स्थितियों की चपेट में आकर या तो शेष जीवन के लिये अपाहिज होकर रह जाते हैं या फिर दुनिया से रुखसत होकर अपने माता-पिता को जिन्दगी भर के लिये किश्तों में रोते रहने की सौगात दे जाते हैं ।
क्या वास्तव में उन्हें इतनी जल्दी रहती है जबकि इससे कई गुना अधिक समय इन्हीं युवकों का मोबाईल पर SMS भेजते रहने में और इन्टरनेट पर फेसबुक या इस जैसी अन्य सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर अनावश्यक चेटिंग करने में गुजर जाता है, या फिर हालीवुड-बालीवुड की फिल्मों के ऐसे दृश्य देखकर रफ्तार का ये जुनून उनके दिलो-दिमाग में इस सीमा तक छाया रहता है, या जैसी कि आम धारणा रहती है कि लडकियों को इम्प्रेस करने के चक्कर में इस गति से ये खुली सडक दिखते ही इतनी अनियंत्रित बाईक चलाना प्रारम्भ कर देते हैं । कारण चाहे जो हो परिणाम तो आप भी डूबे, देश भी डूबे, जनता को भी ले डूबे वाला ही बनता है ।
आखिर विज्ञान की आधुनिकतम उपलब्धियों का पूरा रोमांच प्राप्त करने की ये कीमत इस रुप में कब तक ?
यह समाज का दुर्भाग्य ही है कि विज्ञान के आविष्कार हमारे सुखों की वृद्धि के लिए हुए हैं लेकिन हम इनता दुरुपयोग करते हैं। ऐसे युवा स्वयम तो चले जाते हैं लेकिन पीछे छोड़ जाते है एक सन्नाटा। यदि इस विषय में यातायात पुलिस सतर्क रहे तो ऐसे हादसे रोके जा सकते हैं। अमेरिका में मैंने देखा कि वहाँ बाईक बहुत तेज रफ्तार से चलायी जाती है लेकिन वे सुरक्षा के पूरे उपकरण साथ में रखते हैं। यातायात पुलिस भी उन्हें पूर्णतया मर्यादित रखती है। हमारे यहाँ ना तो परिवार मर्यादा सिखाता है और ना ही पुलिस। अक्सर परिवार वाले छोटी आयु में ही लाड़-प्यार के कारण बाइक दिला देते हैं, बड़ी डींगे मारते हुए समाज में कहते हैं कि हमारा बेटा तो बाइक चलाता है। अब इस मानसिकता का क्या करें?
जवाब देंहटाएंiski keemat maan baap chukate hai apne bdgape ke sahare ko kho kar , durbhagypurn
जवाब देंहटाएंदर्द नाक पोस्ट है आज की मगर नवजवान कौम को समझाने का काम हमारा है और शायद हम लोग उतना ध्यान नहीं दे पाते !
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
युवाओं में रेस लगाने जैसी हरकतों तथा कानून का पालन ना करने की आदत के कारण आये दिन इस तरह के एक्सीडेंट होते रहते हैं और केवल युवा ही नहीं बल्कि ट्रेफिक नियमों को तोड़ने में तो हर उम्र के लोग आगे हैं. एक तो कानून बहुत ज्यादा सख्त नहीं है, उसपर ट्रेफिक पुलिस भी कानून का पालन करवाने की जगह छुपकर शिकार तलाशती नज़र आती है. ऐसा लगता है जैसे चाह रहे हों कि लोग कानून तोड़ें और उनकी जेबें गर्म हो...
जवाब देंहटाएंशाह नवाज जी की टिप्पणी के साथ ...
जवाब देंहटाएं...सोचें ...पीछे रेह जानें वालों का हाल ...उन से प्यार करो !
ये बात तो बच्चों को समझानी चाहिये कि वो अपनी ज़िन्दगी से खेल रहे है अगर ऐसा करते हैं तो।
जवाब देंहटाएंदर्द नाक पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंआज की नौजवान पीढी को समझाने का काम हमारा है और शायद हम लोग उतना ध्यान ही नहीं दे पाते !
उफ, बुरा हुआ
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
उफ़ ! ज़वानी दीवानी तो होती है पर उसमे नादानी भी होती है । लेकिन दुःख तो मात पिता को ही झेलने पड़ते हैं ।
जवाब देंहटाएंगति में हम बहक न जायें, इसका ध्यान रखना होगा।
जवाब देंहटाएंसड़क पर अंधाधुंध चलने वाले की यही दुर्गति होती है !
जवाब देंहटाएंयहाँ पर ट्रेफिक पुलिस और माँ बाप दोनों की जुम्मेवारी बनती है कि इस बारे बच्चों को सावधान करें कि बच्चे तेज गति से बाइक न चलाएँ|
जवाब देंहटाएंbacche to jid karte hi hai per unko samjhane ka daitya hamara hai ............
जवाब देंहटाएंdardnak prasang
पूरी पोस्ट पढ़ी नहीं पायी ...माफ़ करें...
जवाब देंहटाएंशुरू से ही आशंका लग रही थी...कि ऐसा ही कुछ होने वाला है.
मुंबई में रोज दो,तीन ख़बरें तो पढ़ने को मिलती ही हैं...
बेहद अफसोसजनक
सही मुद्दा, सही चिन्तन...
जवाब देंहटाएंबाईक चलाना गलत नहीं है पर जिस तेज़ी से चलाई जाती है उस पर ध्यान देना चाहिए ... माता पिता तो अपने बच्चों को समझाते ही हैं ..पर ज़रूरत है कि बच्चे उनकी बात समझें ... अपने मन की करने के चक्कर में माता पिता की बात को अनदेखा कर देते हैं ...
जवाब देंहटाएंमार्मिक पोस्ट
ओह!! युवा खून समझता ही नहीं..क्या कहें.
जवाब देंहटाएंयुवाओंको कितना भी समझावो समझ्तेही नहीं !
जवाब देंहटाएंमार्मिक लगी पोस्ट .......
very true !!
जवाब देंहटाएंthese days youngsters have gone blind and insane and they try to outsmart each other for useless reasons..... Very serious issue. Every year numerous bikers loose their lives just for showing-off.
इस विषय पर अधिसंख्यक पाठकों की राय यही रही कि पेरेण्ट्स को ऐसे बच्चों को समझाना चाहिये । किन्तु सुश्री सुमनजी की राय वास्तविकता के अधिक करीब है कि "युवाओं को कितना ही समझाओ वे समझते ही नहीं हैं ।" सडक पर बाईक लेकर आते ही उनका जुनून शुरु हो जाता है । निःसंदेह इस बारे में ये कहा जा सकता है कि - समझें तो आप से नहीं तो किसी के बाप से भी नहीं समझें वाली स्थिति ही अधिकतर बनती देखी जाती है ।
जवाब देंहटाएंbadee marmik post.
जवाब देंहटाएंek kahavat hai na . vinash kale vipreet buddhee .
ऐसी घटनाएँ हर दिन देखने सुनने को मिलते हैं फिर भी अधिकांश युवा कहाँ बाज़ आते हैं इतना होने पर भी .......... रोचक पोस्ट जानकारी वर्धक ....
जवाब देंहटाएंbahut hi marmik katha.sach main baik paker ladake bhi hero ki nakal karne lagaten hain .aur durghatanaa ke shikaar ho jaten hain ,jinke ghar ke chirag unhe chod ker chale jaaten hain un maa pitaa ke dukh ka to koi andajaa bhi nahi lagataa,
जवाब देंहटाएंplease visit my blog and leave the comments also.thanks
दर्दनाक और दुर्भाग्यपूर्ण घटना...आज की पीढ़ी पता नहीं क्यों इन दुर्घटनाओं से सबक नहीं लेती..
जवाब देंहटाएंआज की पीढ़ी दुर्घटनाओं से सबक नहीं लेती..
जवाब देंहटाएंaaj ki yuva peedhi apni hi dunia me mast rahti hai na vo apne karne vale kamo ko dekhti hai na usse hone vale parinamo ko sochati hai.accedent hone ka ek bada karan kano me head phone laga kar gane sunana bhi hota hai.jisse inhe aas pas chalne vale vahanon ke horn sunai hi nahi dete..par parinam gambhir aur dukhad hote hai.
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