देश भर
में पिछले 3 वर्षों से स्वच्छ शहरों में नं. 1 का खिताब जितने वाले इन्दौर में
पिछले सप्ताह खबर सामने आई कि यहाँ के नगर-निगम में बायोमेट्रिक प्रणाली से
उपस्थिति दर्शाने की अनिवार्यता के बावजूद 10 कर्मी ऐसे मिले जो पिछले कई वर्षों
से कभी निगम में गये ही नहीं, किंतु प्रतिमाह हजारों
रुपये उनके वेतन के सरकारी खजाने से निकलकर उनके बैंक खातों में जमा हो रहे हैं ।
चूंकि उपस्थिति बायोमेट्रिक प्रणाली से दर्ज होती थी इसलिये ये कर्मी निगम की किसी
भी दूसरी ब्रांच में जाकर मशीनी सिस्टम पर अपनी उपस्थिति दर्शा देते और घर आकर
दूसरे कामों में लग जाते । कर्मचारियों के काम की निगरानी उनके उपर जो भी अधिकारी
अपने रजिस्टर के आधार पर चैक करता, उनमें
कहीँ इनके नाम ही नहीं होते थे, लिहाजा इन्हें पकड पाने की
कोई आसान राह बचती ही नहीं थी ।
निगमायुक्त
के समक्ष जब वास्तविक कर्मियों की संख्या और वेतन लेने वालों की संख्या में ये
अन्तर आया और बारिकी से जांच हुई तो न सिर्फ यह गडबडी पकड में आई बल्कि यह भी
मालूम पडा कि ये सभी कर्मी निगम के ही एक दरोगा के रिश्तेदार थे और उसके ही
क्षेत्र में उसने ये फर्जी नियुक्तियाँ सालों पहले से करवा रखी थी, ऐसा नहीं
था कि उससे सम्बन्धित अन्य निगमकर्मियों को इसकी जानकारी नहीं थी, लेकिन
कुछ लोग उसके पावर से डरते हुए और कुछ लोग रहना तो इन्हीं के साथ है कौन लफडे में
पडे वाली सोच के चलते चुप रहे ।
कमोबेश देश के
शासक वर्ग में रहे नागरिकों की बात हो या सामान्य नागरिकों की सभी भ्रष्ट आचरण
द्वारा अपने अपनों को अवांछित लाभ दिलवाने में पीछे नहीं रहते । देश के पूर्व
वित्तमंत्री तक अपने शासनकाल में भ्रष्ट आचरण द्वारा अपने परिजनों को अनुचित लाभ
दिलवाने के आरोप में बीसियों दिन सींखचों के पीछे गुजार चुके हैं । यद्यपि हमारे
वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अभिनव
प्रयोग की अपने कार्यकाल के प्रारम्भ से ही उत्तम शुरुआत की है लेकिन वे भी ये
दावा नहीं कर सकते कि उनकी पार्टी के सभी सदस्य पाक-साफ तरीके से उनका साथ दे रहे
हैं ।
कुल मिलाकर
सारे कुएं में भांग पडी है, अंधा बांटे रेवडी, अपने-अपने को दे वाली तर्ज पर जो लोग गलत कर रहे हैं वे तो चुप रहेंगे ही
किंतु जो उन्हें गलत करते देख रहे हैं वे भी चुप रहकर नजारा देखते रहना ही अधिक
सुरक्षित समझते हैं । इस संदर्भ में एक पुराना कथानक दिमाग में आता है, यकीनन आपने कभी सुना होगा-
एक बार
एक हंस और हंसिनी अपने स्थान से भटकते हुए, वीरान रेगिस्तानी इलाके में आ गये ! हंसिनी ने हंस
से कहा कि ये हम कहाँ आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है, न जंगल
और न ही ठंडी हवाएं हैं, यहाँ तो
हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा
! भटकते हुए शाम हो चुकी थी तो हंस ने हंसिनी से
कहा- किसी तरह आज की रात बीता लो, सुबह हम
लोग अपने ठिकाने लौट चलेंगे !
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रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे
हंस-हंसिनी रुके थे, उस पर बैठा उल्लू जोरों से चिल्लाने
लगा । हंसिनी ने हंस से कहा- यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकते, ये उल्लू चिल्ला रहा
है । हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो, मैं
समझ गया हूँ कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ? ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो
वीरान और उजाड़ रहेगा ही । पेड़ पर बैठा उल्लू ये बातें सुन रहा था, सुबह हुई तो उल्लू
नीचे आया और बोला- भाई, मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई, मुझे
माफ़ कर दो । हंस ने कहा- कोई बात नही भैया, आपका धन्यवाद ! यह
कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा तो पीछे से उल्लू चिल्लाया भैया हंस मेरी पत्नी
को लेकर कहाँ जा रहे हो ?
अब हंस
चौंका- उसने कहा, आपकी
पत्नी ? अरे भाई, यह
हंसिनी है, मेरी पत्नी
है, मेरे साथ
आई थी, मेरे साथ
जा रही है ! उल्लू ने कहा- खामोश रहो, ये मेरी
पत्नी है । दोनों के बीच विवाद बढ़ गया । पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये । पंचायत
बुलाई गई , पंच भी
आगये- बोले- भाई किस बात का झगडा है ? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी
पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! पंचों ने किनारे होकर विचार
किया कि है तो हंसिनी हंस की पत्नी ही, लेकिन ये हंस और हंसिनी तो थोड़ी देर में गाँव से
चले जायेंगे, हमें तो
उल्लू के साथ ही रहना है, इसलिए
फैसला उल्लू के हक़ में सुनाना ही ठीक रहेगा, और पंचों
ने अपना फैसला सुना दिया- कि सारे तथ्यों और सबूतों की देखने के बाद पंचायत इस
नतीजे पर पहुँची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़कर
जाने का हुक्म दिया जाता है !
यह सुनते
ही हंस हैरान हो गया और रोते हुए बोला कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया है, इस उल्लू
ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते हुए जब वह जाने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई- मित्र हंस, रुको, हंस रोते
हुए बोला- भैया, अब क्या
करोगे ? पत्नी तो
तुमने ले ली, अब क्या
मेरी जान भी लोगे ? उल्लू ने
कहा- नहीं
दोस्त, ये हंसिनी
तुम्हारी पत्नी है और
रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो तुमने अपनी पत्नी से कहा था कि यह
इलाका उजाड़ और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है ! मित्र, ये इलाका
उजाड़ और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है, बल्कि
इसलिए है क्यों कि यहाँ ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में ही फैसला सुनाते
हैं !
शायद 70
साल की आजादी के बाद भी अपने देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हम देश के
कर्णधारों के चुनाव के समय उम्मीदवारों की योग्यता न देखते हुए, हमेशा अपनी जाति, अपनी
पार्टी के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाते हैं । देश क़ी
बदहाली और दुर्दशा के लिए इस प्रकार हम सब भी जिम्मेदार हैँ ।
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