एक उद्योगपति आवश्यक
मीटिंग के लिये कहीं जा रहा था । अचानक रास्ते में उसकी कार बंद हो गई । रुकने का
समय नहीं था अतः उसने कार की रिपेरिंग व घर पहुंचाने की जिम्मेदारी ड्रायवर पर
छोडते हुए कुछ दूर खडे एक ऑटो-रिक्शा को आगे चलने के लिये प्लान किया । जब वह उस
ऑटो तक पहुँचा तो उसने देखा कि उसका चालक पूरी रिलेक्स मुद्रा में अपना कोट उतारकर
पैसेन्जर सीट पर पसरी हुई अवस्था में आराम करते हुए कोई फिल्मी गीत गुनगुना रहा था
। उद्योगपति ने जब उसे चलने के लिये कहा तो वह 20/- रु.
किराया बताते हुए उनके बैठने की जगह साफ करते हुए उठ खडा हुआ । उद्योगपति यह सोचते
हुए उसकी रिक्शा में सवार हो गया कि सिर्फ 20/-
रु.
किराया लेकर भी उसी रिलेक्स मुद्रा में वैसे ही गीत गुनगुनाते हुए वह इतना
निश्चिंत जीवन कैसे जी पा रहा है ? ठिकाने पर पहुँचकर
उन्होंने उसे पैसे देते हुए फिर पूछा कि 15-20
मिनीट
इन्तजार करके मुझे मेरे इस ठिकाने तक छोड सकोगे । चालक ने फिर 30/- रु. किराया बताया और व्यवसायी का ईशारा
पाकर वहीं रुक गया ।
उद्योगपति के इशारे पर उस ऑटो चालक को भोजन के बाद फाईव स्टार होटल के समकक्ष रुम में विश्राम के लिये ठहरा दिया और वहाँ भी वह व्यवसायी कुछ छुपकर उसकी प्रतिक्रिया को नोट करने लगा । घोर आश्चर्य के साथ वहाँ भी उसने देखा कि उसके चेहरे पर कहीं कोई विशेष प्रसन्नता अथवा विस्मय के भाव नहीं आये और वो वैसे ही निश्चिंत मुद्रा में आराम करते दिखा ।
जबकि हममें से अधिकांश लोग खुशी में बौराये हुए और दुःखों में घबराये हुए ही अपनी जिंदगी गुजार रहे होते हैं और अपनी सामान्य शारीरिक उर्जा को अनावश्यक रुप से खर्चते हुए कभी भी वास्तविक रुप से सुखी नहीं रह पाते ।
इसलिये हमें भी जीवन का मुख्य सिद्धांत यही रखना चाहिये कि-
वापसी
में भी उस व्यवसायी ने उसे उसी निश्चिंत मुद्रा में चलते देखा । कुछ सोचकर उसने उस
चालक को अपने घर भोजन करने के लिये निमंत्रित किया जिसे उस चालक ने सहर्ष स्वीकार
कर लिया । घर पहुँचने पर अपने प्रमुख सेवक को उसने अपने साथ उस ऑटो चालक के लिये
शाही डिनर का इंतजाम करने का ईशारे में निर्देश दिया । भोजन का समय चल ही रहा था -
कुछ ही देर में डाईनिंग टेबल पर सूप, डेजर्ट, स्वीट्स व हर तरह के लजीज भोजन से
डाईनिंग टेबल सज गया ।
व्यवसायी
ने उसे डाईनिंग टेबल पर निमंत्रित कर भोजन शुरु किया तो वह ये देखकर फिर हैरान हो
गया कि वह ऑटो चालक बगैर किसी विशेष भाव अथवा प्रतिक्रिया के ऐसे खाना खाते दिख
रहा था जैसे अपना सामान्य भोजन कर रहा हो । तब एक कदम आगे बढते हुए व्यवसायी ने
उसे अपने यहाँ ही भोजन पश्चात् आराम करने का निमंत्रण दिया और उस ऑटो चालक ने वह
भी मान लिया ।
उद्योगपति के इशारे पर उस ऑटो चालक को भोजन के बाद फाईव स्टार होटल के समकक्ष रुम में विश्राम के लिये ठहरा दिया और वहाँ भी वह व्यवसायी कुछ छुपकर उसकी प्रतिक्रिया को नोट करने लगा । घोर आश्चर्य के साथ वहाँ भी उसने देखा कि उसके चेहरे पर कहीं कोई विशेष प्रसन्नता अथवा विस्मय के भाव नहीं आये और वो वैसे ही निश्चिंत मुद्रा में आराम करते दिखा ।
तब
उस उद्योगपति ने सोचा कि अब यदि इसे अचानक इसके ऑटो पर छोड दिया जावे तो निश्चय ही
इसे यहाँ के चकाचौंध भरे ये सुख-सुविधा पूर्ण साधनों की कमी महसूस होते दिखेगी ।
उस मुताबिक उसने अपने प्रमुख सेवक को इशारा किया और उस सेवक ने उस चालक के पास
जाकर पूछा कि आप यहाँ आराम व मजे में हैं ?
हाँ
बिल्कुल, उस ऑटो चालक ने जवाब
दिया, तब वह सेवक बोला कि
नहीं हमारे साहब को लग रहा है कि आप यहाँ अपनी निजी जिंदगी को मिस कर रहे हैं -
इसलिये आपको आपके ठिकाने पर छोड दिया जावे । कोई बात नहीं ! कहते हुए तत्काल वह
ऑटो चालक उठकर चल पडने की मुद्रा में तैयार हो गया ।
उस
ऑटो चालक को तत्काल गाडी में बैठाकर वहाँ ले जाया गया जहाँ उसका ऑटो खडा हुआ था ।
वह उद्योगपति भी उसकी बदली हुई प्रतिक्रिया देखने दूसरी गाडी में स्वयं को छुपाते
हुए वहाँ तक पहुँचा और फिर यह देखकर चमत्कृत रह गया कि बिल्कुल सामान्य भाव से उस
चालक ने अपनी सीट झटकारी और फिर से अधलेटी मुद्रा में अपना वही गीत गुनगुनाने लगा
। अब तो उस उद्योगपति से रहा नहीं गया और वह उसके पास जाकर बोला - यार तुम गजब
आदमी हो, मैंने तुम्हें इतने
उंचे-नीचे परिवर्तन पिछले कुछ घंटों में महसूस करवाये किंतु कहीं भी तुम्हारी
विस्मयकारी अथवा दुःखी प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली । ऐसा कैसे ?
तब
उस ऑटो चालक का जवाब स्मरण रखने योग्य था - साहब, जिंदगी
तो हर किसी की हर समय परिवर्तनों से भरी ही रहती है यदि मैं सुख में पगलाने लगूँ
और फिर दुःख में विचलित रहने लगूँ तो मेरे लिये तो अनावश्यक रुप से मेरी उर्जा के
अपव्यय का रोज कोई ना कोई कारण तो बना ही रहेगा और मैं कभी खुशी व कभी दुःखों के
अतिरेक में अपनी स्वाभाविक जिंदगी कभी जी ही नहीं पाऊंगा ।
जबकि हममें से अधिकांश लोग खुशी में बौराये हुए और दुःखों में घबराये हुए ही अपनी जिंदगी गुजार रहे होते हैं और अपनी सामान्य शारीरिक उर्जा को अनावश्यक रुप से खर्चते हुए कभी भी वास्तविक रुप से सुखी नहीं रह पाते ।
इसलिये हमें भी जीवन का मुख्य सिद्धांत यही रखना चाहिये कि-
कर्णण्येवादिकारस्ते
माफलेषु कदाचन...
व्यस्त रहो, मस्त रहो और बदले में स्वस्थ रहो.
जियो तो ऐसे जियो
जैसे सब तुम्हारा है,
मरो तो ऐसे कि जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं ।
मरो तो ऐसे कि जैसे तुम्हारा कुछ भी नहीं ।
शास्त्रों में भी कहा गया है कि त्यागपूर्वक उपभोग करो। उपरोक्त कहानी से भी यही सीख मिलती है।
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