पिछले 3-4 माह से लगभग हर दूसरे रोज एक समाचार स्थान व पीडित स्त्री-पुरुषों के नाम बदल-बदलकर लगातार पढने-देखने में आ रहा है कि किसी भी अकेले जा रहे स्त्री-पुरुष को दो-तीन सादी अथवा नकली पुलिस वेषभूषा में मौजूद लोग रोककर कह रहे हैं- मां साहेब, भाई साहेब, आगे मर्डर हो गया है और आप इधर से ये सोने की चैन-अंगूठी, चूडियां या जेवरात पहनकर कहाँ जा रहे हैं ? इन्हें उतारकर रुमाल में या डिब्बी में रख लें । पैसे भी अपने पर्स में न रखें उन्हें भी अपने इसी रुमाल-डिब्बी में सम्हालकर रखलें । सम्बन्धित व्यक्ति उनके सामने ही जब अपने पास की जोखम को रुमाल में रखने का प्रयास करता है तो ये भाई लोग स्वयं हस्तक्षेप करते हुए उनके हाथ से जेवर नगदी लेकर उनके सामने उनके ही रुमाल नहीं तो कागज में बांधकर सम्हालकर रखने की हिदायत देते हुए उसे सुरक्षित जाने का कहकर वहाँ से बिदा कर देते हैं और वह स्त्री-पुरुष कुछ आगे या अपने घर जाकर जब अपना रुमाल या पुडिया खोलता है तो रुपये की जगह तह किये गये कागज और जेवर की जगह कांच की चूडियां या पथरीले टुकडे रुमाल, डिब्बी या उस पुडिया में से निकलते हैं ।
फिर रोना-धोना, पुलिस कम्प्लेन्ट, पेपर न्यूज और बस । दूसरे दिन नहीं तो तीसरे दिन फिर यही वाकया अखबारों में, और अभी तो हद हो गई है सिर्फ दो दिन में तीन वारदात इसी पेटर्न पर हमारे इन्दौर शहर में फिर हो गई । बार-बार लगातार एक ही प्रकार का रीपिटेशन । समझ में नहीं आता कि लोग अखबार नहीं पढते या उस परिस्थिति में इतने भोले कैसे हो जाते हैं ? और ये टोपी पहनाने वाले कलाकार... इन्हें तो फार्मूला बदलने तक की जरुरत भी पडते नहीं दिखती ।
Read Also-
याद ये रखना... भूल ना जाना...!
कैसी भी विपरीत परिस्थिति में हमेशा हमारा मददगार – माय हीरो.
अपने बचपन में जब लखपतियों की हैसियत वर्तमान करोडपतियों से कई गुना मजबूत हुआ करती थी एक किस्सा सुना- "रातों-रात लखपति बनने के अचूक नुस्खे" नामक पुस्तिका मूल्य सिर्फ 2/- रु. बाजार में तीनों तरफ स्टीचिंग की हुई बिकने आई और देश भर में लाखों प्रतियां बिक गई । अन्दर हर पेज पर सिर्फ एक ही बात लिखी हुई थी जो मैंने किया वह आप भी करलें ।
एक वाकया मुझसे सम्बन्धित- हमारे
बडे डा. भाई साहब के साथ पढने वाले उनके एक घनिष्ट मित्र जिनके पिता नामी ज्योतिष
रहे थे उनसे डाक्टरी की कठिन पढाई नहीं हो पाई तो अपने स्वर्गीय पिता की गादी
सम्हालकर ज्योतिषी का काम करने लगे । घर पर कई बार डाक्टर भाई साहेब से मिलने आने
के कारण और नजदीक ही रहने के कारण मैं भी उन्हें भाई साहब ही पुकारता था जो बाद
में गुरुजी के सम्बोधन में आ गये । मेरी शादी को लगभग डेढ वर्ष हो चुका था ।
सन्तान तब तक हुई नहीं थी और कुछ ही समय पूर्व "जितेन्द्र, मौसमी चटर्जी, विनोद मेहरा, शबाना आजमी व चलते फिरते टोपीबाज की
विशेष भूमिका में संजीव कुमार अभिनीत फिल्म स्वर्ग-नर्क" चलकर टाकीजों से उतर
चुकी थी । सायंकालीन ठंडाई के मेरे फिक्स टाईम पर एक दिन ये दादा भी मुझसे वहीं
टकरा गये । आदर सहित मैंने उनके लिये विशेष ठंडाई बनवाते हुए उन्हे पेश की जिसे
स्वीकारते हुए उन्होंने मुझसे पूछा- और सुशील कैसी गुजर रही है सुनीता के साथ ? बढिया गुजर रही है गुरुजी मैंने उन्हें
जवाब दिया । हाँ बढिया तो गुजरेगी लेकिन... कहते हुए प्रश्नवाचक मुद्रा में मुझे
लाकर वे चुप हो गये । तब मैंने पूछा इस लेकिन का मतलब क्या हुआ ? अपने स्कूटर के करीब आते हुए वो मुझसे
बोले- संतान पैदा करके दिखाओ तो जानें और उसमें भी लडका पैदा करके बताओ तो । कहते
हुए स्टार्ट स्कूटर पर बैठकर वे उडन-छू हो लिये । जाते-जाते मेरे लिये नींद चौपट
करने का पक्का इंतजाम कर गये ।
डेढ-पौने दो वर्ष की अवधि में खुशखबरी बन सकने जैसा योग तब तक हमारे दाम्पत्य में बन भी नहीं पाया था और जिन मित्रों की हम सगाई में शामिल हुए थे उनके परिवार को संतान सुख से पूरित देख चुके थे, लिहाजा उनकी उस चुनौतियुक्त बात का सार समझने मैं उनके कार्यालय पहुँचा और उनसे पूछा कि आपने इतनी बडी बात किस आधार पर कही । थोडे-बहुत हीले-हवाले करते हुए वो मुझसे बोले- तुम सुशील हो और पत्नी तुम्हारी सुनीता समराशि होने के कारण तुम दोनों की जोडी में नाडी दोष है जिसके चलते तुम्हारे लिये ये स्थिति बनती है । ठीक है यदि ऐसा भी है तो अब इसका उपाय क्या ? जब मैंने उनसे पूछा तो वे बोले- देखो भई सुशील यदि मैं इसका उपाय बताउंगा तो तुम्हें स्वर्ग-नर्क का संजीव कुमार लगने लगूंगा । जब मैंने कहा आप बताओ तो । तब वे मुझसे बोले तुम्हें मुझको 500/-रु. देना होंगे और यह पूछें बगैर की मैंने क्या उपाय किया वर्ना तुम्हारे पैसे व्यर्थ चले जाएँगे ।
1980 का समय । सोने का मूल्य तब 600/- प्रति 10 ग्राम चला करता था । उनके कर्मकांड में उलझने की बजाय तब मैं पहली बार अपनी पत्नी के साथ एक लेडी डाक्टर से मिला । उन्होंने आवश्यक जांच करके पत्नी का छोटा सा DNC आपरेशन किया और अगले वर्ष पुत्र का गृहआगमन हो गया जिसका नामकरण मैंने सुशील व सुनीता को जोडकर सुनील रखा और पुत्रजन्म के उपलक्ष में पार्टी आयोजित कर उसके निमन्त्रण कार्ड छपवाकर सबसे पहला कार्ड उन्हीं गुरुजी को देने गया जो चैलेन्ज कर चुके थे कि संतान (विशेष रुप से पुत्र) पैदा करके दिखाओ तो जानें । कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि उस समय मेरे सामने वह कार्ड पढते हुए उनकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी ।
ठग सम्राट चार्ल्स शोभराज जो एक जमाने
में वर्षों पुलिस व जनता को ठेंगा बताते हुए अपनी जालसाजी के कार्यक्रमों को निर्विघ्न
अमली जामा पहनाता रहा । संयोगवश उसके कानूनी गिरफ्त में आने के बाद पुलिस के एक
उच्च अधिकारी ने उससे दोस्ताना अंदाज में जब पूछा कि इतने बडे-बडे कारनामों को
तुमने इतनी आसानी से इतने लम्बे समय तक कैसे चला लिया ? शोभराज उन अधिकारी से बोला बडी लम्बी
गाथा है साहेब । गला पहले ही सूख रहा है, पानी ही नहीं सिगरेट भी पीने की इच्छा
हो रही है । उन अधिकरी महोदय ने तत्काल अपने मातहत से पानी मंगवाते हुए शोभराज को
पिलवाया और अपनी जैब से सिगरेट का पैकेट निकालकर शोभराज के हाथ में रख दिया । बडे
ठाठ से सिगरेट सुलगाते हुए शोभराज ने उन अधिकारी महोदय के समक्ष अपने हुनर का राज
बताया- जैसे मैंने आपसे सिगरेट मांगी और आपने स्वयं अपने हाथ से निकालकर मुझे दे
दी बस ऐसे ही मैं लोगों से रुपये, जेवर व गाडियां मांग लेता हूँ और वे मुझे दे देते हैं । अब इसमें
जालसाजी कहाँ से आ गई ।
तो जनाब, समय
कितना ही बदलता जावे टोपियां पहनाने वाले नये-नये फार्मुलों के साथ सामने आते रहे
हैं और आते ही रहेंगे । उन टोपीयों के लिये नये सिर तलाशने में इन्हें कभी निराश
भी नहीं होना पडता । दस के आगे चारा डालो एक-दो भी फंसे तो गाडी चलती रहे वाले
फार्मुले पर ये मजे में जीवन गुजार लेते हैं और इसी लिये इन जैसों की ही इजाद की
हुई ये कहावत हम लगातर सुनते रहते हैं कि जब तक बेवकूफ लोग जिन्दा हैं बुद्धिमान
भूखे कैसे मर सकते हैं ?
Read
Also-
अब ये हमारे उपर है कि अपने सिर को कैसे सुरछित रखें । वर्ना तो अब समानता के इस युग में लडकियां भी इस हुनर को छोटे या बडे पैमाने पर काम में लाने में पीछे नहीं दिख रही हैं । स्कीन सुरक्षित रखने के नाम पर जैसी नकाब ये घारण करके घूमती हैं उस स्थिति में अपने पर्स में एक जोडी कपडे अतिरिक्त रखकर व मित्र के सहयोग से परिधान बदलकर उस नकाब के साथ अपने भाई व पिता से भी स्वयं को सुरक्षित बचाकर रखते हुए अपने पुरुष मित्रों के साथ निर्विघ्न घूमने फिरने की इनकी ये वर्तमान सुविधा भी इसी विधा के दायरे में आते दिख रही है ।