9.12.10

भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार


      वर्तमान समय में जब भ्रष्टाचार का दानव देश मैं अपनी पूरी विभत्सता के साथ सब तरफ तांडव करते दिख रहा है और लगभग सभी देशवासी यह मानने लगे हैं कि यह समस्या अब शिष्टाचार का रुप ले चुकी है, तब ठंडी हवा के झोंके जैसा एक उदाहरण मध्य-प्रदेश के देवास से सामने आया है । यहाँ की एक अदालत ने मार्च 2002 में शाजापुर के लोकनिर्माण विभाग के तत्कालीन उपयंत्री प्रीतमसिंह निवासी देवास को जो अपनी आय से 51 लाख रु. की अनुपातहीन सम्पत्ति अधिक रखने के दोषी पाए गए थे इन्हें विशेष प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश श्री पी. के. व्यास ने अनुकरणिय कदम उठाते हुए 5 करोड रुपये के भारी-भरकम जुर्माने के साथ ही 3 वर्ष के कठोर कारावास की सजा से दंडित करके भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की दिशा में  सख्त पहल की है ।

      अपना फैसला सुनाते हुए माननीय न्यायाधीश ने कहा कि ये भ्रष्टाचारी अपनी काली कमाई से अर्जित बेहिसाबी सम्पत्ति को इस प्रकार से रखते हैं कि उन्हे पकड पाना लगभग असंभव होता है और इसीलिये इन भ्रष्ट लोकसेवकों के मन में यह प्रबल धारणा बन जाती है कि इन्हें कोई पकड नहीं पाएगा और ये अवैद्य साधनों से ऐसे ही धन व संपत्तियां अर्जित करके ऐशो-आराम से रह सकेंगे, इसलिये इन्हें ऐसी सजा मिलना आवश्यक है जिससे कि लोकसेवक के पद पर बैठे किसी भी व्यक्ति के मन में यह भय बना रहे कि यदि किसी दिन वो पकड में आ जावेगा तो न सिर्फ ये सम्पत्ति उसके पास से छिन जावेगी बल्कि जेल में बैठकर उसके पास पछताने के सिवा कुछ भी बाकि नहीं रहेगा ।

       भ्रष्टाचार के खिलाफ मील के पत्थर जैसे उपरोक्त फैसले के आधार पर मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि वर्तमान में देशभर में चर्चारत पूर्व संचार मंत्री ए. राजा जो 2जी स्पेक्ट्रम के आवंटन में 176 लाख करोड के घोटाले के आरोपी हैं और जिनका सिर्फ पद गया है वे, या मधु कोडा जो एक साधारण मजदूर से अपनी जोड-जुगाड के बल पर झारखंड के मुख्यमंत्री के पद तक जा पहुँचे और जिन पर 4,000 करोड रुपये की संपत्ति बनाने का आरोप चल रहा है, भले ही ये जेल गये हों लेकिन कोर्ट से अभी इन्हें कोई सजा नहीं मिली है, या कामनवेल्थ गेम्स आयोजन समिति के चेयरमेन के रुप में सुरेश कलमाडी जिन पर 8,000 करोड रुपये के भ्रष्टाचार का आरोप चल रहा है जिसके चलते अभी तक तो सिर्फ इनका कांग्रेस संसदीय सचिव का पद ही गया है, या मध्य-प्रदेश के निलंबित प्रमुख सचिव अरविन्द जोशी व टीनू जोशी दम्पत्ति जिन्होंने 300 करोड रुपये तो शेयर बाजार में ही लगा दिये थे और गिरफ्तारी के वक्त 3 करोड रुपये की अनुपातहीन संपत्ति जिनसे बरामद हुई थी इनका भी सिर्फ पद से निलंबन ही हो पाया है । ये सभी और इन जैसी और भी उल्लेखित नामवर हस्तियों को कोर्ट से क्या सजा मिलनी चाहिये ? जबकि प्रश्न यह भी दिखता हो कि   जोड-जुगाड की इस व्यवस्था में जिसके ये महारथी साबित हो चुके हैं क्या कोर्ट में इनके अपराध साबित भी हो पाएँगे ?

      भले ही इसकी संभावना नगण्य हो किन्तु फिर भी अन्धकार में उजाले की किरण जैसे उदाहरण के रुप में वो जज सामने आते हैं जिन्होंने अपनी स्वयं की शादी में शराब के नशे में दहेज मांगकर और पूर्ति न हो पाने की स्थिति में वधूपक्ष के सभी सम्बन्धित परिजनों के साथ मार-पीट करके तोड-फोड मचाई थी, उनकी अग्रिम जमानत कोर्ट ने इस कथन के साथ रद्द कर दी कि जिनके उपर व्यवस्था बनाये रखने की जिम्मेदारी हो यदि वे ही इस प्रकार का अनैतिक आचरण सार्वजनिक रुप से करते पाए जाएँ तो उन्हें कडी सजा मिलना ही चाहिये, और वे जज महाशय अभी तक गिरफ्तारी के डर से इधर से उधर भागते फिर रहे हैं । दूसरे उदाहरण के रुप में हजारों करोड रुपये के स्टाम्प घोटाले के आरोपी रहे अब्दुल करीम तेलगी का नाम भी जेहन में आता है जिसकी सारी उम्र बीमारी और बेचारगी की स्थिति में जेल में गुजरी और उसके भ्रष्टाचार के शिखर के दिनों का कोई भी सम्पर्क उसके बचाव में सामने नहीं आ पाया । 

       एक बात और जो इन नामचीन हस्तियों के सन्दर्भ में देखने में आती रही है वो ये कि इनके भ्रष्टाचार के आंकडे चाहे जितने विशाल दिखें किन्तु यौवन के दिनों की इनकी शाही जीवन शैली और उपर से नीचे तक भ्रष्टाचार की गंगोत्री में सभी सम्बन्धितजनों को उनके हिस्से की रकम पहुँचाने के बाद जब संकट के दिनों का सामना करने की स्थिति आती है तब तक बमुश्किल चंद करोड रुपये भी इनके पास बचत में शायद ही सुरक्षित रह पाते होंगे । जबकि इनके सामान्य इन्सानी शरीर में रहता इनका दिल भी दसों दिशाओं से उठ रहे आरोप-प्रत्यारोपों की मार सहते-सहते इतना कमजोर भी हो जाता है कि सामान्य तौर पर ये मानव जीवन जिसे कुदरत का सर्वाधिक अमूल्य उपहार कहा जाता है इसका आनन्द लिये बगैर ही ये अतिशीघ्र दुनिया से कूच भी कर जाते हैं । क्या मेरी इस सोच के पक्ष में हजारों करोड रुपये के शेअर घोटाले के आरोपी रहे हर्षद मेहता जिसके ठाठ-बाट कभी धीरुभाई अंबानी से भी उपर दिखने लगे थे, का नाम नहीं लिया जा सकता जिसकी कारगुजारियों से न सिर्फ उस समय कई बैंकों में ताले लग गये थे बल्कि हजारों व्यक्तियों के जीवन भर की कमाई बचत भी धूल-धूसरित हो गई थी, अंततः उसे भी जेल की कोठरी में अपने ही जूतों का सिरहाना बनाकर सोना पडा था और फिर कम उम्र में ही  दुनिया से कूच भी कर जाना पडा था ?
   

41 टिप्‍पणियां:

  1. वर्तमान को आइना दिखाती पोस्ट|

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  2. sthitiyon ko spasht likha hai...
    saja to nischit hai..., niyati ne sab nirdharit kar rakha hai!!!

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  3. उल्लेखित नामवर हस्तियों को कोर्ट से क्या सजा मिलनी चाहिये ?
    इन्हें कानून से खेलना आता है.

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  4. ऐसे भ्रष्टाचारियों को कड़ा से कड़ा दंड मिलना चाहिए।

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  5. सत्य मेव जयते । सदा सत्य की विजय होती है । आगे भी होती रहेगी । देर है ,अंधेर नहीं है । आपने बहुत ही गहन विषय पर लिखा है , दरअसल यह एक विकराल समस्या बन चुका विषय है । मेरा मानना है अभी अति होने जा रही है ,अंत भी निकट ही होगा ।
    अच्छी पोस्ट , शुभकामनाएं । पढ़िए "खबरों की दुनियाँ"

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  6. एक सार्थक आलेख। जब हज़ारों लेखनियाँ चलेंगी तो भ्रष्टाचारियों का सफाया होना तयशुदा है।

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  7. सुशील जी,
    बहुत ही सामयिक पोस्ट लगाईं है आपने ! अब समय आ गया है कि हम ऐसे भ्रष्टाचारियों को सरेआम फांसी चढ़ाना शुरू करें तभी इस देश का कल्याण होगा ! आजादी के बाद से अब तक स्विस बैंकों में लाखों करोण रुपये जमा हैं !कौन किया है यह सब ? सबसे पहले नेताओंकी छानबीन होनी चाहिए जो कि रातोंरात अमीर हो जाते हैं!
    आपकी पोस्ट ने मन को उद्वेलित कर दिया !
    धन्यवाद !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  8. bohot khoob sir....ek positivity liye hue post hai aapki, ham sab baithe yahi kehte rehte hain ke kuch nahin ho sakta....par kuch karte nahin....aur kuch nahin, kam se kam ek sakaraatmak soch to kaayam karein....

    bohot sacchi post

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  9. भ्रष्टाचार हमारी नस नस में इतनी गहराई तक जडें जमा चुका है
    की कभी कभी मुझे अपने ऊपर भी शक होने लगता है की शायद
    मुझे कोई अवसर नही मिला होगा वरना मै स्वयं भी भ्रष्ट होता
    सभी प्रयास असफल लगते है फिर भी कोशिस तो जारी रहनी ही चाहिए

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  10. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  11. भ्रष्टाचार पर एक तार्किक एवं प्रशस्त प्रहार
    " शुभ"
    सुर्यदीप

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  12. भ्रस्टाचार समस्या तो गंभीर है, ऐसा हम सभी मानते हैं, लेकिन जब बात विरोध पर आती है तो कुछेक ही दिखाई देते हैं, यदि प्रत्येक वक्क्ति एक प्रण ले ले कि चाहे जो भी हो, मुझे विरोध करना है, स्वंय से सम्बंधित कार्यों से, तो भ्रस्टाचार को जाते देर नहीं लगती है.

    इसका विरोध न कर पाने के कारण हैं, "वैक्तिक भ्रष्टाचार", "जीवन मूल्यों के प्रति" भ्रष्टाचार. जो व्यक्ति स्वंय ही अपने कार्यों के प्रति उत्तरदायी नहीं है वो क्या विरोध करेगा. शायद इसका कारण मूल्यों का पतन ही है, हमें हमारा काम बनता चाहिए, चाहे कैसे भी?

    सार्थक रचना के लिए आपका साधुवाद.

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  13. आप सभी विद्वजनों का इस विषय पर अपनी सार्थक राय देने के लिये आभार । किन्तु दुःखद स्थिति यह भी दिख रही है कि भ्रष्टाचार की ये महामारी "दर्द बढता गया ज्यों-ज्यों दवा की" वाली तर्ज पर बढती और फलती-फूलती ही जा रही है । आज सुबह का समाचार-पत्र बता रहा है कि भ्रष्ट देशों की सूचि में दुनिया में भारत चौथे स्थान पर पहुँच गया है । जैसा राजा वैसी प्रजा वाली स्थिति चल रही है । इस गंगोत्री पर उपर से प्रतिबन्ध कैसे लगे ? शायद यही सर्वाधिक चिन्तनीय प्रश्न है.

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  14. व्यवस्था को आईना दिखाती पोस्ट ....आपने बहुत सशक्त तरीके से अपने विचारों को सामने रखा है .....शुक्रिया

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  15. भ्रष्टाचार ले विरूध सार्थक लेखन।

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  16. सामयिक विषय है...

    भ्रष्टाचार देश को दीमक की तरह खोखला कर रहा है...तमाम सरकारी योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाती हैं...
    भ्रष्टाचार पर कैसे रोक लगाई जाए, इस पर गंभीरता से बरते जाने की ज़रूरत है... साथ इस बात की भी ज़रूरत है की भ्रष्टाचारियों के ख़िलाफ़ सख्त कानूनी कारवाई की जाए, क्योंकि सिर्फ़ भाषणबाज़ी से कुछ होने वाला नहीं है...

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  17. सामयिक विषय पर सार्थक पोस्ट्………सज़ा ऐसी होनी चाहिये कि आगे कोई ऐसा काम करने की सोचे भी नही तब तो फ़ायदा है वरना तो यहाँ और बडे घोटाले होते ही रहेंगे।

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  18. सुशिल जी,

    बहुत ही उत्प्रेरक विचारों से भरी है ये पोस्ट.....क्या किया जाये ये इस देश का दुर्भाग्य ही तो है की उसके अपने ही उसकी जड़े खोखली करने में लगे हुए है इसी देश में कितने लोग ऐसे भी हैं जिन्हें एक वक़्त की रोटी भी मुश्किल से ही मयस्सर होती है.....और कुछ ऐसे भी जो दूसरों के हिस्से का भी खा रहे हैं है....ख़ुशी इस बात की है की कुछ लोग है अभी जिनका ज़मीर पूरी तरह नहीं मरा और वो पहल कर रहे हैं ......शुभकामनायें आपको इस पोस्ट के लिए|

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  19. "जबकि इनके सामान्य इन्सानी शरीर में रहता इनका दिल भी दसों दिशाओं से उठ रहे आरोप-प्रत्यारोपों की मार सहते-सहते इतना कमजोर भी हो जाता है कि सामान्य तौर पर ये मानव जीवन जिसे कुदरत का सर्वाधिक अमूल्य उपहार कहा जाता है इसका आनन्द लिये बगैर ही ये अतिशीघ्र दुनिया से कूच भी कर जाते हैं ।"

    समसामयिक बातों पर प्रहार करता अच्छा लेख , मगर आपकी इस बात से काफी हद तक सहमत नहीं ! लालू और अर्जुन सिंह से बेहतर और क्या उदाहरण हो सकता है !

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  20. केवलरामजी,
    सुज्ञजी,
    इस विषय पर वैचारिक समानता के लिये आपका धन्यवाद.

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  21. फिरदौसजी,
    सरकारी योजनाएँ भ्रष्टाचार की भेंट इसी लिये चढ रही हैं कि इस गंगोत्री की शुरुआत ही वहीं से हो रही है ।

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  22. वर्तमान समय के मस्तक पर चोट करती पोस्ट
    आपके विचार वास्तव में मन को झकझोर देने वाले है।
    सार्थक रचना के लिए आपका आभार
    हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।

    मालीगांव
    साया
    लक्ष्य

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  23. वन्दनाजी,
    भ्रष्टाचारियों की सजा के नाम पर जनसामान्य में एक सुझाव आज ऐसा देखने में भी आया कि इन भ्रष्ट लोगों के घर-बार व बैंक बैलेन्स जैसी सारी नियामतें इनसे छिनकर इन्हें झोपडपट्टी में रहने भेजा जावे, जहाँ ये भी अपने परिवार को निम्नवर्गीय तबके के समान अभावग्रस्त जीवन जीता देखें और उनका पेट पालने के लिये मजदूरों जैसे पिलें ।
    हालांकि ये कितना संभव है ये हम सभी जानते हैं.

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  24. इमरानजी,
    ये बिल्कुल सत्य है कि एक ओर तो लोग एक वक्त के भोजन के लिये जूझ रहे हैं और ये भ्रष्टाचारी दुसरों के हिस्से का तो क्या समूचे समूह का हक हडपते ही जा रहे हैं ।
    निदान इन्हीं लोगों के लिये जरुरी है जो शिखर पर बैठकर देश की जडें खोखली किये जा रहे हैं ।

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  25. गोदियाल साहेब,
    आपका असहमत होना लाजमी है, लेकिन मेरे लेख में उदाहरण छोटी-बडी मछलियों के रुप में उन लोगों के लिये रहे जिन्हें जनसामान्य में रहते हुए मौका मिला और वे इस बहती गंगा में व्यवस्थाओं की कमियों का लाभ उठाकर हाथ साफ करने लगे । आप जिन मगरमच्छों के नाम दिखा रहे हैं ये शासन में बैठकर देश के लिये नीतियां निर्धारण कर रहे हैं और इन्हीं के प्रति मैंने अपनी चिन्ता उक्त लेख के बाद की पहली टिप्पणी में 'इस गंगोत्री पर उपर से प्रतिबन्ध कैसे लगे ?' के रुप में व्यक्त की है ।

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  26. भ्रष्टाचार के विरुद्ध एक सार्थक आलेख के लिए धन्यवाद ......आपने जो उदाहर्ण सामने रखे हैं
    उस तरह के और कई निर्णय हों तो यक़ीनन जनता सोचने पर मजबूर होगी ...क़ानून में विश्वास बढेगा

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  27. बहुत खूब... कितने अच्छे से आपने वर्तमान को लिख दिया, और उस कीड़े को भी जिसने पूरे system का सत्यानाश कर रखा है...
    भ्रष्टाचारियों के ऊपर तो कसेस नहीं बल्कि सीधे फैसले होने चाहिए...

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  28. भ्रष्टाचारियों ने देश के सामान्यजन के रोजमर्रा के जीवन की समस्याओं में इजाफा करने के साथ ही दुनिया के नक्शे पर भी भारत को बदनाम कर भ्रष्ट देशों के शिखर पर खडा कर रखा है । इन्हें हरसंभव तरीके से कडी से कडी सजा मिलनी ही चाहिये ।

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  29. ागर ऐसे भ्रष्टाचारियों को कड़ा से कड़ा दंड सारी जनता के सामने फाँसी पर लटका कर दिया जाये तो बाकी लोगो को भी सबक मिले। मगर ये लोग अपने जुगाड से साफ बच जाते हैं और बाकी भ्रशःट लोगों के हौसले बुलन्द होते है। अच्छी पोस्ट के लिये धन्यवाद< शुभकामनायें

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  30. अत्यंत सामयिक पोस्ट
    आपने आज के हालात को बड़ी खूबी से चित्रित किया
    बहुत बढ़िया
    आभार



    क्रिएटिव मंच के नए कार्यक्रम 'सी.एम.ऑडियो क्विज़' में आपका स्वागत है.
    यह आयोजन कल रविवार, 12 दिसंबर, प्रातः 10 बजे से शुरू हो रहा है .
    आप का सहयोग हमारा उत्साह वर्धन करेगा.
    आभार

    जवाब देंहटाएं
  31. अच्छी खबर है ! सामायिक और आवश्यक लेख के लिए बधाई सुशील भाई !

    जवाब देंहटाएं
  32. -------------------
    "जबकि इनके सामान्य इन्सानी शरीर में रहता इनका दिल भी दसों दिशाओं से उठ रहे आरोप-प्रत्यारोपों की मार सहते-सहते इतना कमजोर भी हो जाता है कि सामान्य तौर पर ये मानव जीवन जिसे कुदरत का सर्वाधिक अमूल्य उपहार कहा जाता है इसका आनन्द लिये बगैर ही ये अतिशीघ्र दुनिया से कूच भी कर जाते हैं । क्या मेरी इस सोच के पक्ष में हजारों करोड रुपये के शेअर घोटाले के आरोपी रहे हर्षद मेहता जिसके ठाठ-बाट कभी धीरुभाई अंबानी से भी उपर दिखने लगे थे, का नाम नहीं लिया जा सकता जिसकी कारगुजारियों से न सिर्फ उस समय कई बैंकों में ताले लग गये थे बल्कि हजारों व्यक्तियों के जीवन भर की कमाई बचत भी धूल-धूसरित हो गई थी, अंततः उसे भी जेल की कोठरी में अपने ही जूतों का सिरहाना बनाकर सोना पडा था और फिर कम उम्र में ही दुनिया से कूच भी कर जाना पडा था ?"
    ------------------------
    श्री बाकलीवाल जी,

    आपने अपनी बात बेहतरीन तरीके से प्रस्तुत की और शानदार शब्दों में आलेख को समाप्त किया है। बधाई।

    इस आलेख का विरोध और समर्थन उतना मायने नहीं रखता। जितना कि इस बारे में किसी दिशा की ओर आगे बढने के बारे में कुछ किया जाना कि आखिर इसका उपचार क्या है?

    मेरा तो स्पष्ट मत है कि सत्ताधारी या प्रतिपक्ष के राजनैतिक लोग तो राजीखुशी भ्रष्टाचार को रोकने के लिये आगे आनेवाले हैं नहीं। आम व्यक्ति भय और स्वार्थ में लिप्त रहते हुए कुछ करने के लिये आगे नहीं आना चाहता।

    ऐसे में हम सोचें कि कोई भगतसिंह पैदा होगा, जो हमारे लिये फांसी का फन्दा गले में डालेगा और सरकार हिल उठेगी। असम्भव है!

    आम लोगों की आवाज में बहुत ताकत होती है, बशर्ते कि तरीके से, संगठित होकर और ईमानदारी से उठायी जाये।

    यदि हम मान लेंगे कि कुछ नहीं होने वाला है तो कुछ नहीं होगा और यदि हम मानेंगे कि हो सकता है, तो निश्चय ही उसकी शुरुआत होनी चाहिये। शुरुआत कौन करे? गले में फंदा कौन डाले? ये ऐसे सवाल हैं, जो लोगों को डराने के लिये खडे किये जाते हैं।

    हर कोई सक्षम है। जब किसी दुकानदार को हम पाँच रुपये मूल्य की वस्तु के ६ रुपये नहीं देते और अनेक लोग दुकानदारों से झगडते देखे जा सकते हैं। तो फिर हम सरकार को गैर-जरूरी कर वसूली करने के लिये क्यों नहीं झगडते?

    कर के रूप में सरकार द्वारा बेतहासा धन संग्रह ही तो भ्रष्टाचार का कारण है। जब खजाने में जरूरत से अधिक धन नहीं होगा तो क्यों और कैसे कोई भ्रष्टाचार करेगा?

    हम नल पर पानी का इन्तजार करते रहते हैं, जबकि पेट काटकर कर चुकाने को विवश आम व्यक्ति के धन से जनता के नौकर, जिन्हें संविधान में लोक सेवक कहा गया है, मिनरल वाटर पीने के अधिकारी हो गये हैं?

    कैसे कभी हम में से किसी ने सवाल पूछा है? यह कैसे सम्भव है कि मालिक (जनता) अभावों में जीने को मजबूर है और जनता के नौकर आलीशान कोठियों में पूर्ण एश-ओ-आराम का जीवन यापन करने के उपरान्त भी जनता के आदेश मानना तो दूर अपने वैधानिक कर्तव्यों का पालन तक नहीं करते हैं?

    यह सब इसलिये हो रहा है, क्योंकि मालिक को अपने घर के लुटने की परवाह नहीं है!

    जिस दिन इस देश की मालिक अर्थात् जनता जाग जायेगी, नौकरों को अपनी नानी ही नहीं, परनानियाँ भी याद आ जायेंगी।

    समय दूर नहीं है। अति हो रही है। जब अति होते-होते चरम पर पहुँच जाती हैं तो ही क्रान्तियाँ जन्म लेती हैं।

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  33. सुशील जी आपने एक बेहतरीन विषय पर लिखा है, इस पर शब्दों का ताना बाना जितना बुना जाये कम है, पर ये तो क्डुवा सच है कि हम ऐसे देश के वासी हैं, जहां सत्य सिर्फ़ बोलने को है, हर व्यक्ति अपने अपने हिसाब से सत्य को पेश करता है, जो कि सत्य नही है, यहां महाभारत के युधिष्ठर जैसा सच है, कुछ दबा तो कुछ स्वार्थी। पीछे क्र्ष्ण भी हैं साथ देने को । और जो देश झूठ के दम पर है वहां भ्र्ष्टाचार तो होगा ही, अपने अन्त:करण से समझौता करके हम इस तंत्र के एक पुर्जे हैं। डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश' जी ने जो कहा लगा कि मेरे विचार यहां सब दे चुके हैं। हम तो नये हैं जी पांचवी कक्षा तक के कच्चे मन से जो पढा था, सब व्यर्थ गया। आज इतना पढ्कर भी कुछ ना जाना। असली पढाई तो सरकारी तंत्र ने पढाई है, आज तक दंश सह रहे हैं।

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  34. जो देश कि जनता की खून पसीने कि कमाई को गलत तरीके से खा जाते है उनके लिए कि फांसी कि सजा भी कम है ... आपने बहुत अछा पोस्ट लिखा है ...

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  35. प्रत्येक वक्क्ति एक प्रण ले ले कि चाहे जो भी हो, मुझे भ्रष्टाचार का विरोध करना है,

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...

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