देश के राजतंत्र में विकराल रुप से बढ चुके भ्रष्टाचार से प्रत्यक्ष जुडी मंहगाई की मार से त्रस्त आम जनता की जो ऐतिहासिक शक्ति अण्णा के आंदोलन को समर्थन देने देश भर में जुटी उससे खौफ खाकर सभी राजनैतिक दलों ने अत्यन्त मजबूरी की स्थिति में अण्णा की मांगों को संसद में ध्वनिमत से पारित तो कर दिया क्योंकि यदि इतने लम्बे अनशन और इतने प्रबल जनसमर्थन के दौरान अण्णा के जीवन के साथ कुछ भी अप्रिय हो जाता तो सत्तापक्ष ही नहीं वरन सभी राजनैतिक दलों के इन प्रतिनिधियों को अगले आमचुनाव में अपने अस्तित्व के बचाव का खतरा स्पष्ट दिखने लगा था इसलिये अनशन तुडवाने के लिये अण्णा की ये मांगें स्टेंडिंग कमेटी में विचार हेतु भेज दिये जाने की स्थिति स्वीकार कर लेने के बाद एक बार तो ये सभी राजनैतिक दल इस समय तो देश व दुनिया के सामने अपना दामन बचा ले गये किन्तु स्टेंडिंग कमेटी में मसला भेज दिये जाने के बाद गेंद फिर इन्हीं के पाले में पहुंच जानी है और उस कमेटी में भी इन्हीं धुरंधर राजनीतिज्ञों को इस कानून को लागू करने का फैसला करना है जिन्होंने इतनी विपरित परिस्थितियों में भी इस आंदोलन की खिलाफत करने के प्रयासों में संसद में भी अपनी तरफ से पुरजोर विरोध करने के प्रयासों में कोई कमी नहीं रहने दी ।
अब जब अण्णा का अनशन समाप्त हो चुका है और धीरे-धीरे इस जनतंत्र का दबाव भी कम से कमतर ही होते चला जाना है, तो येन-केन प्रकारेण अपनी लेटलतीफ शैली में इन मुद्दों को लटकाते चले जाने के बाद कैसे इन्हें अपने निजी स्वार्थों के खिलाफ सख्त कानून बनने से रोका जा सके इस प्रकार के सियासी दांव-पेंच इनकी कार्यप्रणाली में फिर से चालू होते दिख सकते हैं और कानून बनने का मसला जब नियमों और बहुमत की आड में सप्ताहों और महिनों की हदें पार करवाते हुए वर्षों के दायरे तक लम्बित कर देने में यदि ये सफल हो जावेंगे तो इतने बडे व उग्र विरोध को भी आसानी से दबा लेने के प्रयासों में ये विशेषज्ञ अपनी ओर से कोई भी कसर कैसे बाकि रहने देंगे ?
अब जब अण्णा का अनशन समाप्त हो चुका है और धीरे-धीरे इस जनतंत्र का दबाव भी कम से कमतर ही होते चला जाना है, तो येन-केन प्रकारेण अपनी लेटलतीफ शैली में इन मुद्दों को लटकाते चले जाने के बाद कैसे इन्हें अपने निजी स्वार्थों के खिलाफ सख्त कानून बनने से रोका जा सके इस प्रकार के सियासी दांव-पेंच इनकी कार्यप्रणाली में फिर से चालू होते दिख सकते हैं और कानून बनने का मसला जब नियमों और बहुमत की आड में सप्ताहों और महिनों की हदें पार करवाते हुए वर्षों के दायरे तक लम्बित कर देने में यदि ये सफल हो जावेंगे तो इतने बडे व उग्र विरोध को भी आसानी से दबा लेने के प्रयासों में ये विशेषज्ञ अपनी ओर से कोई भी कसर कैसे बाकि रहने देंगे ?
दूसरी ओर अण्णा यह भी स्पष्ट कर ही चुके हैं कि आमजन के अधिकारों की सुरक्षा व सुधार हेतु उनके अगले अभियान क्या-क्या होंगे । कहने की आवश्यकता नहीं है कि उनके द्वारा चलाये जाने वाले सभी अभियान इनके उन्मुक्त अधिकारों के दायरों को सीमित करने के एक के बाद एक प्रयास रुप में ही होंगे और उनके प्रत्येक अभियान की सफलता इनके निजी स्वार्थपूर्ण मंसूबों को आघात पहुँचाने वाली ही होगी, ऐसी स्थिति में महात्मा गांधी के आधुनिक प्रतीक बन चुके अण्णा की आवाज व प्रयास भी किसी आकस्मिक पल में फिर किसी गोडसे के द्वारा बन्द कर दिये जाने की आशंका के प्रति भी आने वाले किसी भी कल में क्या देशवासियों को बेपरवाह रहना चाहिये ?
आपकी आशंकाए सही है , रक्त का स्वाद जब मुह को लग जाता है तो रिश्ते नाते सब छोटे हो जाते है और शाम दाम दंड भेद अपनाकर भी रक्त पिपाशु रक्त के पीछे ही भागता है . जन आन्दोलन को इस और भी सोचने की आवश्यकता है और प्रयाश भी किये जाने चाहिए .ये भी उतना ही सच है की अब जनता एक और गोडसे कृत्य बर्दास्त करने की स्थिति में नहीं है .
जवाब देंहटाएंकाश यह आन्दोलन संयत रहे।
जवाब देंहटाएंएकदम उम्दा .. सारगर्भित लेख...
जवाब देंहटाएंआपकी आशंका काफी हद तक सही है .....हमें सचेत रहने की आवश्यकता है
जवाब देंहटाएंस्टैंडिंग कमेटी से बिल कैसा और कब पारित होता है यही देखना है .. आपकी आशंका सही है ..सचेत रहने की ज़रूरत है ..
जवाब देंहटाएंजो भी हो, अब यह देखना चाहिए: बिल ३ माह के अंदर पास हो, कम से कम जन लोकपाल के सभी बिंदु के आधार पर, याने उससे कम तथा उसे काटने वाली कोई बात न आने पाए;
जवाब देंहटाएंअन्ना ने कहा है की उनका आन्दोलन स्थगित हुआ है ख़त्म नहीं वो तो चलता ही रहेगा जब तक की कानून बन नहीं जाता है | सरकारे क्यों जन लोकपाल बिल से डरी थी इसीलिए क्योकि उन्हें पता था की दूसरे कानूनों की तरह वो सिर्फ उसे बना कर भूल नहीं सकती है क्योकि ये टीम बाद में उस कानून की मनेतारिंग भी करेगा |
जवाब देंहटाएंअब देखना है सरकार क्या खेल खेलती है इतनी आसानी से तो नहीं मानेंगी अच्छा आलेख
जवाब देंहटाएंआपका कहना भी सही है।
जवाब देंहटाएंआपकी शंका सच भी हो सकती है क्योंकि सच की आवाज को हमारे देश मैं हमेशा ही दबाई जाती है /अन्नाजी को भगवान् दीर्घायू करे / बहुत ही सारगर्भित लेख /जनता को पहली बार एकजुट होकर सरकार के खिलाफ लड़ते देखा फिर जीतने पर एक साथ ख़ुशी मनाते देखा /तब ना कोई जात बीच मैं आई ना कोई धर्म /बहुत अच्छा लगा / जनशक्ति जाग्रत हो गई है अब सरकार कितने ही पैंतरे दिखाए /इनको बिल पास करना ही होगा ,नहीं तो अन्ना और जनता इन्हें छोड़ेगी नहीं /बहुत अच्छा लिखा आपने बधाई आपको /
जवाब देंहटाएंPLEASE VISIT MY BLOG
www.prernaargal.blogspot.com
आज के गोडसे को गोली चलाने की ज़रूरत नहीं। वे हर शाख पर बैठे हैं। ज़रूरत एक से ज्यादा गांधी की है। देश कह भी रहा है कि अब तो सारा देश है अन्ना।
जवाब देंहटाएंI support Anna and believe in optimism.Hence, there is no place of Godse in my thoughts.
जवाब देंहटाएंअन्ना नारियल पानी पीला कर वापिस गाँव भेज दिया..
जवाब देंहटाएंपब्लिक को वापस घर भेजना था.... भेज दिया..
बाकि रही सरकार.... तो सरक सरक कर चलती रहेगी..
जैसे ही आसमान पे देखा हिलाले-ईद.
जवाब देंहटाएंदुनिया ख़ुशी से झूम उठी है,मनाले ईद.
ईद मुबारक
यह देश है वीर अन्नाओ का, अनपढ़ नेताओ का, गवार और नालायक सांसदों का.
जवाब देंहटाएंइन सांसदों का यारो क्या कहना, ये लगाते देश को लाखो करोडो का चूना.
बड़ी मोटी चमड़ी है इन सालो की, बड़े तीखे हैं दात चारा खाने वालो के.
यहाँ बसते है रावण संसद में.
ये सुनले है हमें तमन्ना मर मिटने की, कसम हमें तिरंगे की.
वक्त है आओ मिलकर इंकलाबी नारा बुलंद कर दे.
भारत माँ की छाती छलनी होती इन चोरो से, छाती पर लोटते सांपो से.
आओ दिलादे मुक्ति देश को इन गद्दारों से.
किरण बेदी और ओम पुरीजी ने कुछ भी गलत नहीं कहा है। हमें दिखाना है की राष्ट्र जग गया है, ईसके लिये हम सब आइये नेताओ को अनपढ़, गवार, नालायक , दोमुहे, चोर, देशद्रोही, गद्दार कहती हुई एक चिठ्ठी लोकसभा स्पीकर को भेजे(इक पोस्टकार्ड ). देखते हैं देश के करोडो लाखो लोगो को सांसद कैसे बुलाते है अपना पक्ष रखने के लिये। यदि इससे और कुछ नहीं हुआ तो भी बिना विसिटर पास के लोक तंत्र के मंदिर संसद को देखने और किरण बेदी के साथ खड़े होने का मौका मिलेगा। और संसद ने सजा भी दे दी तो भी एक उत्तम उद्देश्य के लिये ये जेल भरो होंगा।
में ये स्पष्ट कर दू की यह विचार मैने एक टिप्पणी से उठाये हैं पर में इससे १००% सहमत हूँ। कृपया इस विचार को अपने अपने ब्लॉग पर ड़ाल कर प्रसारित करे। आइये राष्ट्र निर्माण में हम अपनी भूमिका निभाये।
जय हिंद
अगर ये आंदोलन जनता का आन्दोलन बनेगा तो शायद ऐसा न हो सके .. पर अगर हुवा तो इसबार ये गौडसे सरकार ही होगी ...
जवाब देंहटाएं