8.6.11

क्या व्यर्थ है टिप्पणियों की मशक्कत....!


        हमारे रोजमर्रा के भोजन में दाल के महत्व से हम सभी बखूबी परिचित हैं । किसी को ये दाल तडके के बगैर अधूरी लगती है तो किसी को कोथमीर के बगैर । लेकिन महत्व तो दाल का ही होता है । मैंने एक परिचित महिला को कभी यह कहते सुना था कि कोथमीर के बगैर दाल ऐसी लगती है जैसे विधवा की मांग । ठीक यही स्थिति हमारे हिन्दी ब्लाग जगत में किसी भी पोस्ट के सन्दर्भ में टिप्पणियों के बाबद इस रुप में देखने में आती है कि यदि किसी पोस्ट के नीचे टिप्पणियां नहीं दिख रही है तो न लेखक को मजा आता है और न ही पाठक को । दोनों को ही एक प्रकार के अधूरेपन का एहसास होता है । पाठक तो फिर भी पढकर निकल जाते हैं किन्तु लेखक को लगता है जैसे मेरी तो सारी मेहनत ही व्यर्थ हो गई, मैंने इतने जतन से लिखा और किसी भी पाठक की ओर से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं मिली ।

            मैं अंग्रेजी ब्लाग्स के अधिक सम्पर्क में नहीं आया हूँ इसलिये कह नहीं सकता कि वहाँ इन टिप्पणियों का क्या और कितना महत्व है किन्तु हिन्दी ब्लाग जगत में तो करीब-करीब हम सभी ब्लागर साथियों की अधिकांश उर्जा अपने ब्लाग व पोस्ट पर टिप्पणियों की मात्रा बढवाने में ही अक्सर उपयोग में आते देखी जाती है । क्या वाकई ये टिप्पणियां हमारी इस ब्लाग-यात्रा को गतिमान बनाये रखने के लिये इतनी ही आवश्यक है जितनी प्रायः हम ब्लागर समुदाय के मध्य देखी, सुनी व पढी जाती है । शायद नहीं...  ये कुछ उदाहरण इस बात को समझ पाने में शायद माध्यम बन सकें ।

            1. परिकल्पना ब्लाग में श्री रविन्द्र प्रतापजी की किसी पोस्ट में कुछ समय पूर्व किसी ब्लाग के सन्दर्भ में यह पढा था कि उन ब्लागर ने अपने ब्लाग पर टिप्पणियों का विकल्प ही बन्द किया हुआ है फिर भी उनका ब्लाग सफलतापूर्वक चल रहा है । ये पोस्ट तारीख के हिसाब से मेरे ध्यान में नहीं आ पाने के कारण मैं उस पोस्ट की लिंक यहाँ नहीं दे पा रहा हूँ । अतः क्षमा...

            2. किसी भी ब्लाग में लोकप्रिय पोस्ट का निर्धारण हम नहीं करते बल्कि हम तो लोकप्रिय पोस्ट का गूगल का बना-बनाया विजेड अपने ब्लाग पर लगा देते हैं फिर पाठक संख्या के आधार पर लोकप्रिय पोस्ट का निर्धारण वह विजेड स्वयं ही करता रहता है । इस मापदण्ड पर मेरे ब्लाग स्वास्थ्य-सुख में सर्वाधिक पढी जा रही टाप 7 पोस्ट में तीसरे क्रम पर मौजूद पोस्ट "सुखी जीवन के सरल सूत्र" को देखकर भी लगाया जा सकता है जिसमें उसके प्रकाशन दि. 16 नवम्बर 2010 से लगाकर आज तक एक भी टिप्पणी नहीं आई है किन्तु वह पोस्ट लोकप्रियता की दौड में निरन्तर उपर की यात्रा तय करते हुए उस ब्लाग पर तीसरे क्रम पर शोभायमान हो रही है ।

            3. हिन्दी ब्लाग-जगत के अधिकांश ब्लागर साथियों के निर्विवाद रुप से सर्वाधिक लोकप्रिय मित्र ब्लागर भाई श्री सतीश सक्सेना जिनकी किसी भी पोस्ट पर औसतन 70 से लगाकर 85-90 व कभी-कभी इससे भी ज्यादा तक की मात्रा में टिप्पणियां अब तक देखी जाती रही हैं उनके ब्लाग मेरे गीत की पिछली दो पोस्ट मैं इस अनुरोध के साथ देख चुका हूँ कि -
अनुरोध  : आपके आने का आभार ...आगे सेमेरे गीत पर कमेन्ट न करने का अनुरोध है , आशा है मान रखेंगे  !  तो क्या हमें यह मान लेना चाहिये कि उनके ब्लाग से पाठक कम हो गये होंगे ?

           शायद ब्लाग्स का प्रोफार्म बनाते समय इसके निर्माताओं ने यह सोचकर टिप्पणी के इस माध्यम के लिये स्थान आरक्षित किया होगा कि यदि किसी पाठक के मन में सम्बन्धित ब्लाग-पोस्ट को पढकर उसके विषय में कोई प्रतिक्रिया यदि उपजे तो वो इस टिप्पणी बाक्स के माध्यम से उसे आसानी से अभिव्यक्त कर उसके लेखक तक अपनी बात पहुँचा सके । जबकि हम इस टिप्पणी बाक्स का उपयोग अक्सर यह दिखाने के लिये करते हैं कि मैंने आपकी पोस्ट पढ ली है अतः आप भी कृपया मेरी पोस्ट पढकर अपनी उपस्थिति का प्रमाण इस टिप्पणी बाक्स के माध्यम से मेरे ब्लाग पर भी दर्ज करें, अथवा मैं किसी की पोस्ट पढूं या न पढूं किन्तु शुरु व आखिर के पैरेग्राफ पर नजर डालकर जैसे भी बने अपनी टिप्पणी अधिक से अधिक ब्लाग्स पर छोड आऊँ जिससे कि मेरे ब्लाग पर भी अधिक से अधिक पाठकों की टिप्पणियां दिखती रह सकें, अथवा अपने ब्लाग पर प्रकाशित पोस्ट की लिंक इस टिप्पणी बाक्स के माध्यम से दूसरे ब्लाग पर छोड आऊँ जिससे कि अधिकतम पाठक उस लिंक के द्वारा मेरे ब्लाग पर आते रह सकें, अथवा ये तेरी मेरी यारी की प्रथा को जीवित रखने के लिये टिप्पणियों की आवक-जावक के क्रम को मैनेज रखने के माध्यम के रुप में इसे पल्लवित-पोषित करता चलूँ ।

           हम किसी भी रुप में टिप्पणियों के इस क्रम को जीवित रखें इसमें कहीं कोई विरोधाभास नहीं है किन्तु यदि दो बातों का इस सन्दर्भ में हम ध्यान रखकर चल सकें तो हमारी बहुत सी उर्जा व तनाव बचाया जा सकता है पहली यह कि सिर्फ टिप्पणी करने के लिये टिप्पणी न करें बल्कि वास्तव में टिप्पणी के माध्यम से उस पोस्ट के सन्दर्भ में लेखक तक कोई बात यदि पहुँचाना हो तो टिप्पणी अवश्य करें और दूसरी यह कि मैंने तो फलां ब्लाग पर टिप्पणी की किन्तु सामने वाले ने मेरे ब्लाग पर टिप्पणी नहीं की इस भावना से किसी भी ब्लाग पर टिप्पणी न करें ।

           वैसे भी टिप्पणी प्रायः पोस्ट प्रकाशित होने के पहले व दूसरे दिन ही अधिकतर चलती है जबकि वह पोस्ट सदा-सर्वदा तब तक जीवित रहती है जब तक कि हम स्वयं उसे हटा न दें जो कि बिना किसी विशेष कारण के कोई भी ब्लागर कभी भी नहीं हटाता, और जैसे हम किसी दुकान पर कुछ खरीदने जाते हैं और वहाँ कुछ और सामग्री भी अपने उपयोग की देखकर खरीदकर ले आते हैं उसी प्रकार किसी भी एग्रीगेटर अथवा सर्च इंजिन के माध्यम से आने वाले पाठक यदि रुचिकर या उपयोगी समझते हैं तो आपके ब्लाग की अन्य पोस्ट भी अवश्य पढते हैं और सर्च इंजिन के माध्यम से आते रहने वाले पाठक तो कभी टिप्पणी लिखने के झमेले में पडते दिखते ही नहीं हैं जबकि जितने ज्यादा पाठक हमारे ब्लाग पर आकर हमारी पोस्ट पढते हैं लोकप्रियता के मापदंड पर हमारा ब्लाग उतना ही आगे आते दिखता चलता है । अतः हम टिप्पणियां अवश्य करें किन्तु उन टिप्पणियों को ही सबकुछ समझकर अपनी तमाम उर्जा उधर ही न लगाते हुए अपनी पोस्ट की सामग्री को अधिक से अधिक रुचिकर व जनोपयोगी बनाये रखने के प्रयास में अपनी उसी उर्जा का उपयोग यदि करते रहें तो भी हमारे ब्लाग की लोकप्रियता को अपना बहुत सा समय व टिप्पणी नहीं मिली के अनावश्यक तनाव से बचाकर भी न सिर्फ लम्बे समय तक जीवन्त बनाये रख सकते हैं बल्कि इस लोकप्रियता को ब्लाग पर आने वाले पाठकों के आंकडों के माध्यम से निरन्तर जांचते हुए भी अपनी इस ब्लाग-यात्रा की निरन्तरता को तुलनात्मक रुप से कम समय में भी सफलतापूर्वक बनाये रख सकते हैं ।

33 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक टिपण्णी ही मन को भाती है | कॉपी पेस्ट टिपण्णी से दिल में कुछ कुछ होता है !!!

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  2. मेरा विचार तो यह है कि किसी पोस्ट को पढ़ने के बाद अगर दिल में कुछ आए तो उसे अवश्य ही व्यक्त करना चाहिए. जब किसी के बारे में कोई राय उत्पन्न होती है तो वह उसकी हो जाती है. इसलिए अगर उसे उक्त राय से अवगत नहीं कराया तो यह तो 'राय उधारी' चढ गई ना...

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  3. किसी विषय (पोस्ट ) पर विचारों का सार्थक आदान प्रदान लिए टिप्पणियां ज्यादा प्रभावित करती हैं ......

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  4. मुझे लगता है कि यह चर्चा तो चलती रहेगी. लेकिन सत्य तो यह है कि टिप्पणी उर्जा तो देती है. और फिर कुछ हद तक यह भी लगता है कि कुछ लोगों ने तो मेरी रचना पढ़ी है चाहे आधी अधूरी ही सही. मोनिका जी ने सही कहा सार्थक आदान प्रदान एक दुसरे से होना ही चाहिए.

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  5. टिप्पणियों के विषय में आपने कई बातें मेरे दिल की लिख दी ....

    बड़ा अच्छा लगता है, जब टिप्पणियों की बरसात होती है ! लेखक को अपना कद बढ़ा हुआ महसूस होने लगता है और लगता है ब्लॉग लेखन सफल हो गया !

    निस्संदेह नए ब्लोगर के लिए यह जीवन अमृत का काम करती हैं, चाहे वे लेख को बिना पढ़े ही क्यों न मिले !

    टिप्पणियों के बारे में मेरा अनुभव...

    - ४० प्रतिशत टिप्पणियां बिना रचना पढ़े दी जाती हैं !

    - ६० प्रतिशत टिप्पणियों को देने के पीछे हाजिरी लगाना भर होता है !

    -केवल २०-४० प्रतिशत लोग ध्यान से लेख को पढ़कर टिप्पणी करते हैं ...यही वे लोग हैं जिनसे लेख की गरिमा और गुणवत्ता में वृद्धि होती है !

    - मेरे द्वारा टिप्पणी बंद करने के अगले ही दिन ३५ % लोग ब्लॉग पर कम आये, क्योंकि उन्हें यह पता चल गया कि अटेंडेंस मार्किंग बंद है तब क्यों समय नष्ट किया जाए !

    आशा है आगे भी इस विषय पर आपकी विवेचना जारी रहेगी !

    रुचिकर लेख के लिए आभार !

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  6. टिप्पणियाँ हमेशा पोस्ट के हिसाब से दी जाती हैं ..सकारात्मक टिप्पणियों से सार्थक संवाद कायम किया जा सकता है और इसके माध्यम से कुछ पेचीदा विषयों के निष्कर्ष भी निकले जा सकते हैं ..लेकिन पोस्ट से हटकर सिर्फ अपने ब्लॉग के प्रचार के लिए टिप्पणी करना कहाँ तक उचित है ????

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  7. मेरा मानना है कि ब्‍लाग विचारों के आदान-प्रदान का माध्‍यम है। इसलिए हम एक विचार अपनी पोस्‍ट के माध्‍यम से देते हैं और उस पर अन्‍य विचार मांगते हैं। इससे समाज के समक्ष एक विस्‍तृत दृश्‍य सोचने के लिए होता है। हमारी समझ भी बढ़ती है और तर्क-वितर्क करने की शक्ति भी। इन्‍हीं तर्क-वितर्को से नयी पोस्‍ट की प्रेरणा भी मिलती है। इसलिए सार्थक टिप्‍पणी वही हैं जिसमें विचारों का आदान-प्रदान हो। यदि केवल एक पंक्ति लिखकर टिप्‍पणी की गयी है तो समझिए कि वह केवल खानापूर्ति के लिए उपस्थित है। किसी ने किसी पोस्‍ट को कितना पढा, मायने नहीं रखता, बल्कि कितना विचार विमर्श हुआ यह ही मायने रखता है। केवल पोस्‍ट लिख देना और टिप्‍पणी बाक्‍स बन्‍द कर देना ऐसा ही है जैसे सुरक्षित अपने ही तरणताल में तैरना।

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  8. सार्थक विषय चर्चा। संवाद का माध्यम तो खुला ही रखना होगा।

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  9. पाठक का महातम टिपण्णी से कहीं ऊँचा हैं ।
    आज कल तुरंत पता चल जाता हैं की कितने लोगो ने पोस्ट को पढ़ा हैं । तुरंत यानी ईधर आप ने पोस्ट पुब्लिश की ऊधर डेशबोर्ड पर stat का button दबाते ही आकडे हाज़िर । इस के अलावा कौन कहा से आया ये भी पता चल जाता हैं ।
    लोग टिपण्णी मिल या नहीं मिली या क्यूँ नहीं ली पर चर्चा कर रहे हैं लेकिन पाठक किस आलेख पर कितने आये और कितने पढ़ कर चले गये फिर आने के लिये पता नहीं देखते भी हैं या नहीं ।

    पोस्ट पुब्लिश होने के ५ मिनट मे अगर ५ लोग आप को पढते नज़र आ आरहे हैं तो खुश हो जाईये क्युकी पाठक का महातम टिपण्णी से कहीं ऊँचा हैं ।

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  10. मेरा अनुभव है कि अगर चिट्ठे में बात यौन विषयों जैसी बात पर हो तो उसकी लोकप्रियता तो बहुत होती है, लेकिन अधिकाँश लोग उस पर कुछ टिप्पणी करने से घबराते हैं. :)

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  11. दीदीश्री अजीत गुप्ताजी,
    ब्लाग माध्यम पर टिप्पणियों के महत्व को आपके विचार वाकई सार्थक रुप से प्रकट कर रहे हैं । धन्यवाद आपको...

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  12. आपने बहुत ही अच्छे समसामयिक विषय पर अपने विचार बड़े प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत किये हैं. दरअसल, टिप्पणियां ब्लॉग लेखन को अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम बनाता है. लेखक अपने पाठकों से, उनकी प्रतिक्रियाओं से, उनके विचारों से सीधे जुड़ सकते हैं और उन्हें अविलम्ब प्राप्त कर सकते हैं.

    लेकिन हर शक्ति कि तरह, इसका भी दुरुपयोग संभव है और होता है. मेरे अनुसार, हर लेखक को टिप्पणियों की छंटनी करनी चाहिए. सिर्फ उन टिप्पणियों को दिखाएँ, जो विषय के अनुरूप हो, और लेख के मूल्य में वृद्धि करती हों - केवल प्रशंसा भी हो तो कृत्रिम न हो.

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  13. सबसे अच्‍छा तब लगता है जब आपकी किसी टिप्‍पणी के बदले में मेल से शुक्रिया मिलता है।

    ---------
    बाबूजी, न लो इतने मज़े...
    चलते-चलते बात कहे वह खरी-खरी।

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  14. मैं अजीत गुप्ताजी के विचारों से बहुत प्रभावित हूँ और उनका समर्थन करता हूँ

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  15. blogs and commenting on posts is the best way to communicate among different variety of people. Some will agree with you and obviously few won't, but that's the beauty of it... an open and powerful mode of communication.

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  16. किसी भी ब्लाग पर जाकर पोस्ट को पढने के बाद अपने मन-मष्तिष्क की प्रतिक्रिया अंकित करना ही टिप्पड़ी होती है , मेरे विचार से | यह एक सकारात्मक बात है |

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  17. अजीत गुप्ताजी के विचारों से बहुत प्रभावित हूँ

    जवाब देंहटाएं
  18. जीवन में प्रोत्साहन भी जरूरी है...विशेष रूप से बुद्धिजीवियों में परस्पर...

    जवाब देंहटाएं
  19. ब्‍लॉग जैसे माध्‍यम के लिए तो टिप्‍पणियां जरूरी लगती हैं

    हंसी के फव्‍वारे

    जवाब देंहटाएं
  20. टिप्पणी किसी कहते हैं? लेख पढ़ क्र ओने विचार प्रकट करना यदि दिल कुछ कहने का करता है तो. केवल "आभार" "बहुत अच्छा" "गुड पोस्ट " लिख देना टिप्पणी नहीं कहलाता. इमानदारी से विचार यदि किसी ने प्रकट किये तो ब्लॉगर को खुश होना चाहिए. इमानदार टिप्पणी किसी लेख पे देखें कितनी होती हैं?

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  21. प्रोत्साहन बहुत जरूरी है। अक्सर लोग पढते भी हैं ये भी सही है कि जो उन्हें रुचिकर लगे उसे ध्यान से ही पडःाते हैं। लम्बी टिप्पणी देना हर ब्लाग पर सम्भव भी नही होता\ जो भी हो ये संवाद और प्रोत्साहन का माध्यम चलता रहना चाहिये।मै इसी लिये अब रोज़ पोस्ट नही लिखती जिस से कुछ पढने के लिये समय मिल जाये।हाँ रोज़ पोस्ट लिखने वालों के लिये ये मुश्किल है। पहले जब मेरे पास पिछला लिखा हुया मसौदा था तब तक रोज़ लिखती थी लेकिन एक दिन मे बहुत लोग पढ भी नही पाते। लोग पढें जम कर लिखिये मगर रोज़ की पोस्ट पर् तो सिर्फ टिप्पण ही दी जा सकती है। एक ही ब्लागर को रोज़ पढने से बाकी लोग रह जाते हैं। ट्प्पणी दीजीये भी और पाईये भी और मुफ्त मे इतना कुछ पढने को मिल जाता है वो क्या कम है? उससे आदमी सीखता है. धन्यवाद।

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  22. पर यदि ब्लॉग मालिक ही टिप्पणिया गीन कर ले और दे तो क्या कर सकते है काफी लोग ऐसा ही करते है वो जानते है की उनको मिलाने वाली टिपण्णी बस टिपण्णी पाने की लालसा में दी गई है क्योकि वो खुद भी ऐसा ही करते है तो वो क्यों बुरा मानेगे |

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  23. पोस्ट पर टिप्पणियां विचारों का आदान प्रदान करने के लिए होती हैं । टिप्पणी बंद करने से आप अपने पाठकों को अपने विचार प्रस्तुत करने से वंचित रखते हैं । मेरे विचार से यह सर्वथा अनुचित है ।
    क्या आप चाहेंगे कि लोग आपको पढ़ें लेकिन उसपर अपनी कोई राय न दें । यह तो एरोगेंस हो गई ।
    किसी भी पोस्ट पर टिप्पणियों की संख्या पोस्ट और लेखक --दोनों की लोकप्रियता पर निर्भर करती है । कभी कभी अच्छे लेखक की भी कोई पोस्ट खाली रह जाती है यदि पाठकों को पसंद न आए तो ।
    लेकिन मात्र हाजिरी लगाने के लिए दी गई टिप्पणी सही नहीं । हालाँकि यह भी होता है । और चलता भी है । अब यह तो अपने ऊपर निर्भर करता है कि आप क्या सोचते हैं ।

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  24. निर्मला कपिला जी की टिप्पणी से मैं पूरी तरह सहमत हूँ..

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  25. टिप्पणी यदि सकारात्मक हो तो उत्साह वर्धन होता है यदि नकारात्मक हो तो उसे एक सुझाव के रूप में लेना चाहिए. कुल मिलकर टिप्पणी का महत्व तो है ही .

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  26. बिलकुल सही ! मेरे बालाजी ब्लॉग पर टिपण्णी ज्यादा आती है ,पर पाठक कम है वही ॐ साई ब्लॉग पर पाठक ज्यादा है और टिपण्णी न के बराबर ! किन्तु टिपण्णी शंका के निवारण या सुझाव के हेतु होनी चाहिए ! वैसे अपनी इच्छा !

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  27. ये तो वाक़ई टिप्पणी पर लोगों का नजरिया है जो ब्लॉग के नाम को सार्थक कर रहा है.

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  28. सुशील जी ,

    आपने बहुतही सलीके से टिप्पणियों की महत्ता को रखा है ..यदि विषय विचार विमर्श का हो तब ही टिप्पणी में कोई अपने विचार रख सकता है .. वहाँ वाद- विवाद भी होता है .. लेकिन ज्यादार कविताओं पर वाद विवाद नहीं हो सकता .. वहाँ या तो आप कविता से या उसके भावों से आप जुड सकते हैं या कवि/ कवयित्री के भावों को समझ कर पसंद कर सकते हैं ..वहाँ पढने के बाद यही लिखा जा सकता है अच्छी प्रस्तुति / सुन्दर रचना . खूबसूरत गज़ल ..आदि- आदि ...रही उपस्थिति दर्ज कराने की बात तो सबका नजरिया अलग होता है ... मैं तो जो भी पोस्ट पढ़ती हूँ ... तो सोचती हूँ कि जब पढ़ ही लिया है तो कुछ तो लिखती चलूँ ..क्यों कि टिप्पणी के रूप में मिले ये शब्द भी कि " खूबसूरत प्रस्तुति " उर्जा तो देते हैं .. भले ही टिप्पणी कर्ता ने रचना बिना पढ़े ही लिख दिया हो ...(यह ईमानदारी तो पाठक के ऊपर है ..)
    यदि टिप्पणियों का मूल्य नहीं होता तो लोंग इस विषय पर इतना लिखते क्यों और सोचते क्यों ?

    किसी भी लेख पर विचारों का आदान प्रदान ही लेख की सार्थकता को बताता है ... कहानी या कविता पढ़ कर भी मन में आता है कि कविता अच्छी लगी ..यह लिखा जाये ..या कहानी बहुत पसंद आई ...हाँ जब कहीं कुछ प्रश्न करना हो तो किया भी जाता है ..जवाब भी मिलते हैं ..लेकिन यदि टिप्पणी बक्सा ही बंद होगा तो पढ़ कर चले आते हैं ...और तब लगता है कि इस पर हमको तो कुछ अधिकार ही नहीं कुछ कहने का ..खैर ... आपने अपने लेख में बहुत सी जानकारी दी और टिप्पणियों की सार्थकता की बात कही अच्छा लगा ..

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  29. सुशील जी, मेरे विचार में किसी पोस्‍ट का लोकप्रिय पोस्‍ट की सूची में आना उसके शीर्षक से सीधा ताल्‍लुक रखता है। आम तौर पर देखा गया है कि पोस्‍ट का शीर्षक जितना आकर्षक या भड़काऊ होता है, उस पर उतने अधिक लोग क्लिक करते हैं, भले ही वह थोड़ी लाइनें पढ़कर ही उस पोस्‍ट से रुखसत हो जायें। ऐसे में कौन सी पोस्‍ट सबसे ज्‍यादा पढ़ी गयी और कौन सी पोस्‍ट सबसे ज्‍यादा देखी गयी (पढ़ी नहीं गयी), यह बताना मुश्किल है।

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  30. इन टिप्पणी से ही हम सब को आपस में नये-नये लिंक मिलते है, आप दस जगह जाओ, ये पक्का रहेगा कि एक दो लिन्क नये मिल ही जायेंगे।

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...

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