चार-पांच वर्ष पूर्व कुछ
दम्पत्ति मित्रों की पारिवारिक मीटिंग में दो-तीन मित्र जो विगत छुट्टियों में
बैंकाक-पटाया घूमने गये थे । उनके यात्रा के आपसी संस्मरण चालू हो गये कि कैसा
शानदार वहाँ का पर्यटन है । प्राकृतिक और दैहिक सौन्दर्य का जो मेल पटाया में है
वो अन्यत्र शायद ही कहीं देखने को मिले । एक तरफ चारों ओर फैले सुन्दर समुद्रतटों
की बालूरेत और दूसरी तरफ चिलचिलाती गर्मी के चौतरफा वातावरण के कारण टीशर्ट, बरमुडा व छोटे बेल्ट के सेंडिल
के अलावा अन्य कोई परिधान वहाँ काम आ ही नहीं सकता और पिछला टूर तो पत्नियों की
मौजूदगी में रहने के कारण वहाँ के उन्मुक्त माहौल का वास्तविक आनन्द लेने से वंचित
रह गये थे इसलिये अब अकेले वहाँ घूमने चलना है । हमारा भी वोट पक्ष में पडते ही
श्रीमतिजी बोली क्योंजी अकेले ? हम भी तो हैं । मैंने कहा भई ये तो
छडों का प्रोग्राम बन रहा है वहाँ महिलाओं का क्या काम ? लेकिन त्रिया हठ तो त्रिया हठ, अपने साथ बहुमत जुटाते हुए वो
बोली ये सब मैं नहीं जानती बस....
बात आई गई हो गई और मंडली
बर्खास्त । घर आकर दुनिया के सबसे बडे सुख के आगोश में जाते ही अचानक लगा कि सोची
हुई यात्रा तो चालू हो रही है और हम कुछ मित्रों के साथ बैंकाक पहुँचकर वहाँ के
लम्बे-चौडे एअरपोर्ट के नजारे देखते हुए यात्रा की आनन्दमयी शुरुआत भी कर चुके थे
। कस्टम से बाहर आते ही दुमंजिला शेप में वातानुकूलित बस आगे की यात्रा करवाने के
लिये वहाँ मौजूद । बैठते ही पटाया के होटल तक की 75-80
किलोमीटर
के आसपास की यात्रा में वहाँ के हाईवे और बसाहट से जुडी आबादी पार करते हुए सडक
मार्ग से बैंकाक-पटाया के नजारों का अवलोकन करते हुए ठिकाने तक पहुँचे और होटल के
स्टे की सुविधा के बाद आराम करते हुए शाम को वहाँ के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का
लुत्फ उठाने भी जा पहुँचे ।
दूसरी सुबह पटाया के सर्वाधिक रोमांचकारी मुख्य समुद्रतट पर पहुंचकर आसमान में समुद्री बोट के साथ उडते पेराग्लाईडिंग के मनोरम अनुभवों के साथ ही विकराल समुद्र में स्कूटरबोट चालन का रोमांचकारी अनुभव और समुद्र में 40-50 फीट गहराई तक जाकर हजारों मछलियों और जलीय पेड-पौधों के साथ सागर की अतल गहराई में तैरने के हैरत अंगेज अनुभवों का आनन्द लेते हुए वापस भोजन और आराम का चक्र पूरा करने के बाद मंडली फिर वहाँ की संस्कृति और उनके सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आनन्द लेने में जुट गई ।
अगले प्रोग्रामों की रोचक श्रृंखला
में सफारी वर्ल्ड में चिम्पाजी की मण्डली द्वारा फ्रीस्टाईल कुश्ति के साथ ही गायन
व वादन की सामूहिक मंचीय प्रस्तुति, हाथियों के सामूहिक रोमांचकारी
करतब देखने के साथ ही पेंगुईन समूह द्वारा पानी में खेलते फुटबाल मैच के नजारे
देखते हुए मंडली जब सफारी वर्ल्ड सभागार में अगले करतब देखने एकत्रित हुई तो हाल
के भरने तक वहाँ "ये देश है वीर जवानों का" गीत पर देश-प्रेम के जज्बे
से ओतप्रोत दर्शकों की सामूहिक नृत्य प्रतिक्रिया वाकई देखने लायक थी ।
थके हारे सभी सदस्य इतने
मनोरंजन से निवृत्त होकर वापस अपने ठिकाने आए और आराम व भोजन-पानी की सामान्य
आवश्यकताओं से निवृत्त होकर रात्रिकालीन पटाया भ्रमण हेतु पुनः निकले-
इसके बाद अगली सुबह वर्ल्ड जेम्स फेक्ट्री में नेचरल प्रोसेसिंग से बनते सच्चे रत्नों व मोतियों के निर्माण की प्रक्रिया देखते व खरीदते काफिला वापस बैंकाक पहुँच गया । रास्ते में ट्राफिक कितना भी अधिक और स्पीड कितनी भी फास्ट रही हो किन्तु कहीं पर भी वाहनों में हार्न के बजने की कोई आवाज तक नहीं सुनी ।
बैंकाक आकर फिर से नये ठिकाने
पर टिकने व भोजन-आराम जैसी सामान्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए साथीगण मशहूर
थाई बाडी मसाज का आनन्द लेते हुए रात्रि विश्राम की गोद में आ पडे ।
दूसरी सुबह बैंकाक में
शानदार बाग-बगीचों के साथ ओपन झू के भ्रमण हेतु तय रही और पूर्व प्रोग्राम के
मुताबिक मंडली के सभी साथी निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही इस भ्रमण पर भी निकल
पडे-
ओपन झू में वनराज सिंह सहित सभी
प्राणी खुले माहौल में
यहाँ तक आकर बैंकाक-पटाया भ्रमण
अभियान लगभग पूरा हो चुका था । अगले दिन वहाँ के शुद्ध स्वर्णाआभूषणों की खरीदी और
बौद्ध मंदिरों के दर्शन के साथ ही स्वदेश रवानगी की फ्लाईट पकडने का कार्यक्रम तय
था ।
एअरपोर्ट पहुँचने के पूर्व ही
मालूम हो चुका था कि भारत में एअर इंडिया के पायलेट्स ने हडताल कर दी है । नतीजतन
एक अतिरिक्त दिन बैंकाक में शाही
मेहमाननवाजी में पांचसितारा होटल में और भी गुजारने को मिल गया । यद्यपि यहाँ
मोटे तौर पर तो आराम ही करना था-
दूसरे दिन तय समय पर पुनः
एयरपोर्ट आकर सभी ने बैंकाक को फाइनली टा टा, बाय-बाय किया और स्वदेश वापसी
के लिये बेक-टू-पेवेलियन हो लिये ।
प्लेन में अपनी सीट सम्हालकर
सीट बेल्ट बांधना शुरु भी नहीं किया था कि बहुत जोर से झटका लगा । हडबडाकर देखा तो
श्रीमतिजी चाय का कप लेकर खडी बोल रही थी कब तक सोते रहोगे, उठना नहीं है क्या ?
धत् तेरे
की... सपना ही था, टूट गया...!