जिस कोरोना कालखंड में फिलहाल हम जीवित
हैं इसमें पिछले 4-6 महिने में समूचे विश्व में लाखों की संख्या में जो लोग अचानक
काल-कवलित हो गये हैं इनमें बडा वर्ग धन-सम्पन्नता से परिपूर्ण श्रेष्ठीवर्ग का
रहा है । ये श्रेष्ठीवर जो लाखों करोडों रु. की श्रीसम्पदा अकल्पनीय रुप से अचानक
छोडकर चले गये उनमें यदि उन परिवारों को हटा भी दिया जावे जिनके वास्तविक
उत्तराधिकारी उनके सामने मौजूद रहे थे किंतु हजारों-हजार ऐसे लोग भी अचानक दुनिया
से बिदा हो गये जिन्हें किसी भी कारण से अकेले ही रहना पड रहा था ।
इनमें से किसी ने कभी यह कल्पना भी नहीं
कि होगी कि जिस धन के संग्रह में वे रात-दिन एक किये दे रहे थे उस धन को जहाँ है
जैसा है कि स्थिति में यहीं छोडकर इस तरह अचानक दुनिया से रुखसत होना पडेगा ।
ऐसा ही एक वाकया अपने पुराने घर के एरिये में जाने पर अचानक सामने आया जब
अपने परिचित दुकानदार से मैं बात कर रहा था तब मोटर साईकल पर आये एक शख्स
ने बहुत ही अदब से नमस्कार किया । मैंने पहचानने की
कोशिश की - बहुत पहचाना सा लग रहा था परन्तु नाम याद नहीं आ रहा था । तब उसी ने
कहा- भैया पहचाने नहीं ? हम
बाबू हैं, उधर वाली आंटीजी के घर काम करते थे ।
मैंने पहचान लिया- अरे ये बाबू है, सी ब्लॉक वाली आंटीजी
का सेवक, मैंने कहा-
अरे बाबू, तुम
तो बहुत तंदुरुस्त हो गए हो । आंटी कैसी हैं ? जवाब में बाबू हंसा बोला- आंटी तो गईं ।
कहां ? मैंने पूछा- उनका बेटा विदेश में
था, वहीं
चली गईं क्या ? तब बाबू ने गंभीर होकर कहा- भैया, आंटीजी भगवान जी के पास चली गईं । मैंने चकित स्वर में पूछा- ओह ! कब ? बाबू ने धीरे से कहा- दो महीने हो गए ।
मेरे ये पूछने पर कि क्या हुआ था आंटी को ? बाबू बोला- कुछ नहीं । बस बुढ़ापा ही बीमारी थी । उनका बेटा भी
बहुत दिनों से नहीं आया था । उसे याद करती थीं । पर अपना घर छोड़ कर वहां नहीं गईं
। कहती थीं कि यहां से चली जाऊंगी तो कोई मकान पर कब्जा कर लेगा । बहुत मेहनत से
ये मकान बना है ।
हां, वो
तो पता ही है । तुमने खूब सेवा की । अब तो वो चली गईं । अब तुम क्या करोगे ? अब बाबू फिर हंसा, बोला- मैं क्या
करुंगा भैया ? पहले
अकेला था । अब गांव से फैमिली को ले आया हूं । दोनों बच्चे और पत्नी अब यहीं मेरे सथ रहते
हैं ।
यहीं मतलब उसी मकान में ? मैंने पूछा - जी भैया । आंटी के जाने के
बाद उनका इकलौता बेटा आया था । एक हफ्ता रुक कर वापस चला गया ।
मुझसे कह गया कि घर देखते रहना । इतना बड़ा फ्लैट है, मैं अकेला कैसे
देखता ? भैया
ने कहा कि तुम यहीं रह कर घर की देखभाल करते रहो । वो वहां से पैसे भी भेजने लगे
हैं । मेरे बच्चों को यहीं स्कूल में एडमिशन मिल गया है
। अब आराम से हूं । थोडा कुछ काम बाहर भी कर लेता हूं । भैया सारा सामान भी छोड़ गए
हैं, कह रहे थे कि दूर देश ले जाने में कोई फायदा नहीं ।
मैं हैरान था- बाबू पहले साइकिल से चलता था । आंटी थीं तो
उनकी देखभाल करता था । पर अब जब आंटी चली गईं तो वो उस पूरे बडे मकान में आराम से सपरिवार रह रहा है । जबकि आंटी जीवन भर अपने बेटे के पास इसलिये नहीं गईं कि कहीं कोई
मकान पर कब्जा न कर ले । अब बेटा ये सोच कर मकान नौकर को सम्हला गया है कि वो रहेगा तो मकान बचा
रहेगा ।
मुझे पता है, मकान
बहुत मेहनत से बनते हैं । पर ऐसी मेहनत किस काम की, जिसमें हम सिर्फ पहरेदार बन कर रह जाएं ? मकान के लिए आंटी बेटे के पास नहीं गईं । बेटा मां
को अपने पास नहीं बुला पाया । जिसने मकान बनाया वो अब दुनिया में ही नहीं है और जो हैं, उसके बारे में बाबू भी जानता है कि वो अब यहां कभी नहीं आएंगे ।
मैंने बाबू से पूछा कि- क्या तुमने भैया को बता दिया कि
तुम्हारी फैमिली भी यहां आ गई है ? इसमें बताने वाली
क्या बात है भैया ? वो
अब कौन यहां आने वाले हैं और मैं अकेला यहां
क्या करता ? जब
आएंगे तो देखेंगे । पर जब मां थीं तभी नहीं आए तो उनके बाद क्या आना ? रही मकान
की चिंता तो
वो मैं कहीं लेकर तो जा नहीं रहा । देखभाल तो मैं कर ही रहा हूं, हंसते हुए बाबू
बोला ।
मैंने बाबू से हाथ मिलाया । मैं समझ गया था कि बाबू अब
नौकर नहीं रहा । वो अब बगैर प्रयास के ही मकान मालिक हो गया है ।
हंसते हुए मैंने बाबू से कहा- भईया, जिसने भी ये बात कही
है कि- मूर्ख
आदमी मकान बनवाता है, और
बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है, उसे ज़िंदगी का
कितना गहरा तज़ुर्बा रहा होगा । बाबू बोला, साहब, सब किस्मत की बात है
।
मैं भी वहां से चल पड़ा था ये सोचते हुए कि सचमुच सब किस्मत की ही
बात है। लौटते हुए मेरे कानों में बाबू की हंसी गूंज रही थी... “मैं
मकान लेकर कहीं जाऊंगा थोड़े ही ? मैं तो देखभाल ही कर
रहा हूं ।“
और मैं
सोच रहा था कि मकान कौन लेकर जाता
है ? सब
देखभाल ही तो करते हैं । आज यह किस्सा पढ़कर लगा कि हम सभी क्या कर रहे हैं, जिन्दगी के
चार दिन हैं मिलजुल कर हँसतें-हँसाते गुजार ले । क्या पता कब बुलावा आ जाए । सब
यहीं धरा रह जायेगा ।
इस कथानक का
यह मतलब कदापि नहीं है कि अकर्मण्यता से हमें अपनी जिन्दगी को जीते-जी सुविधाओं से
वंचित रखना चाहिये, किंतु हमारा तरीका यह तो होना ही चाहिये कि एक के बाद अनेकों
हासिल करते चले जाने की अंधी दौड से स्वयं को बचाते हुए जितनी भी जिंदगी हमें मिली
है उसे यथासंभव बेमतलब की तृष्णा की दौड से बचाते हुए जीवन का अधिक से अधिक सुख व
आनंद हम अवश्य लें ।
नीचे एक
वीडिओ क्लिप प्रस्तुत की जा रही है जिसमें अनेकों लोग महामारी की चपेट में असमय ही
दुनिया से रुखसत होते दिख रहे हैं । सोचने वाली बात यह भी है कि इनके जाने के बाद
कितने बाबू नामी ऐसे सेवक अनायास ही मालिक बनकर उस सम्पत्ति को भोगना प्रारम्भ कर
चुके होंगे जिनके लिये इनके स्वर्गीय मालिकों ने रात-दिन एक कर लगातार अथक परिश्रम किया
होगा-
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