इसी ब्लाग पर दि. 4 अप्रेल 2011 को भारत के क्रिकेट वर्ल्डकप में विश्र्वविजेता बनने वाली बधाईयों वाली
पोस्ट में "अपना ब्लाग" एग्रीगेटर के श्री योगेन्द्रजी पाल सा. ने मुझे टिप्पणी के मार्फत सूचित किया कि- "आपके लेख चुराए जा रहे हैं, मुझे लगा कि शायद आपको पता ना हो इसलिए जानकारी देने
आ गया |" आगे आपने मेरे लिये वो लिंक भी प्रस्तुत की जिस पर
इन्होंने मेरी ब्लागपोस्ट को देखा था http://maiaurmerisoch.blogspot.com/2011/04/blog-post_04.html
मैंने श्री योगेन्द्रजी को धन्यवाद देते हुए
इस लिंक पर जाकर देखा तो पाया कि श्री शशांक मेहताजी ने अपने ब्लाग 'मैं और मेरी सोच' पर मेरे 'नजरिया' ब्लाग पर दि. 3-2-2011
को प्रकाशित मेरी पोस्ट "कच्ची उम्र के ये शरीर सम्बन्ध"
हुबहू चित्र व शीर्षक से साथ शब्दषः प्रकाशित
कर रखी थी । मैंने इनके टिप्पणी बाक्स में मेरा विरोध व नाराजी दर्ज की और आकर
श्री योगेन्द्रजी को धन्यवाद देकर व अपने ब्लाग से कापी-पेस्ट की सुविधा बाधित कर
चुपचाप अपने अगले काम में लग गया । दूसरे दिन मेरे इसी ब्लाग पोस्ट पर श्री शशांक
मेहताजी की ये टिप्पणी दर्ज हुई "सुशीलजी सबसे पहले तो मैं अपनी भूल के
लिये क्षमा चाहता हूँ. मैं ब्लाग जगत के नियमों से अनजान था इसलिये मुझसे भूल हो
गई................" इसके
साथ ही श्री शशांक मेहताजी ने मेरी उस पोस्ट को अपने ब्लाग से डिलीट भी कर दिया था
।
इस दरम्यान इस ब्लाग स्नेह के कारण आर्थिक मोर्चे पर होने वाले मेरे नुकसानों की चर्चा तो मैं न ही करुँ तो बेहतर है जबकि सामाजिक स्तर पर मेरे इस ब्लाग स्नेह का खामियाजा अपने अत्यन्त नजदीकी रिश्तों में आवश्यकता के समय अपनी मौजूदगी वहाँ दर्ज नहीं करवा पाने की नाराजगी के रुप में मुझे अलग से भुगतना पडा । इसके अतिरिक्त इसी ब्लाग-स्नेह के पूर्व मेरी प्रातःकालीन घूमने व योग वगैरह कर लेने की जो स्वास्थ्यप्रद गतिविधियां अनियमित क्रम में ही सही किन्तु चलती रहती थी उस पर भी पूरी तरह से विराम लग गया ।
तो इस ब्लाग-स्नेह की ये कीमतें सामूहिक रुप से पिछले महीनों में लगातार मैंने चुकाई हैं और बदले में अपने ब्लाग-जगत के मित्रों के पर्याप्त स्नेह के बावजूद भी कुछ प्रतिशत मित्रों से इस आधार पर बन रही इन अनजान दूरियों को भी मानसिक स्तर पर निरन्तर भुगता है अतः मस्तिष्क इस दिशा में स्वयं को ये सोचकर अधिक सहज महसूस कर रहा है कि -
चलते-चलते अपनी आदत के मुताबिक एक निवेदनात्मक सुझाव और भी-
अब मैं सोचता हूँ कि कितना नासमझ था मैं जो मुश्किल
से उपलब्ध ऐसे दुर्लभ अवसर को कुल्लड में गुड फोडने जैसे इस गुपचुप तरीके से उस परिस्थिति
में अपने स्तर पर ही इतने सस्ते में निपटा दिया । मैं भी उस समय यदि किसी रौब-दाब
वाले स्वयं से वरिष्ठ ब्लागर साथी को अपना निःशुल्क वकील बना लेता तो बाकायदा इस
ब्लाग जगत में अच्छा-खासा बवाल भी मचता और समस्त ब्लागर समुदाय पूरी उत्सुकता से
देखता समझता कि आखिर माजरा क्या है ? और मुझे भी सबकी सहानुभूति से उपजे स्नेह सहित कुछ
और अतिरिक्त पब्लिसिटी यहाँ मुफ्त में ही मिल जाती, किन्तु मैंने तो इसे यहाँ जाने-अन्जाने सब तरफ घट
रही छोटी सी सामान्य घटना मानकर ससुरी
पूरी समस्या को ही जंगल में मोर नाचा किसने देखा कि शैली में सारी बात
वहीं समाप्त कर दी । यह जुदा बात हे कि वही शशांक मेहताजी अब मेरे तीन में से दो
ब्लाग के फालोअर भी हैं ।
इस ब्लाग जगत में आने के बाद स्वयं की रुचि के
अनुकुल मेरी यहाँ कुछ ऐसी धुनी रम गई कि मेरे लिये घर, समाज, उद्यम
व दुनिया की समस्त गतिविधियाँ करीब-करीब थम सी गई और कम से कम 5 महिने नियमित रुप से 12 से 15 घंटे रोजाना सिर्फ और सिर्फ इस ब्लागिंग अभियान को गति देने में ही निरन्तर
गुजरे । पिछले मई माह में एक शारीरिक समस्या मेरे समक्ष यह आई कि मैं जब भी खडा
होकर चलना शुरु करुँ मुझे चक्कर आना प्रारम्भ हो जाएँ, अपने स्तर पर सब प्रयास करके देख लिये लेकिन चक्कर
आना बन्द नहीं हुए । फिर इतनी लम्बी अवधि से प्रतिदिन इतने घण्टे रोज इस ब्लागिंग
अभियान में हथेली माऊस ही घुमाती रही, नतीजा
दाँए हाथ की कलाई में असहजता महसूस होने लगी । दिमाग में ये विचार पुख्ता प्रमाण
के रुप में सामने आने लगा कि लेपटाप की चुंधियाती रोशनी से अपनी आँखें बमुश्किल 15"-18" इंच की दूरी पर निरन्तर चल रही है उसके कारण चक्कर
आने लगे हैं और सीधे हाथ की कलाई जो एक ऊँगली से 90% टंकण कार्य और यही हथेली जो लगातार माऊस का संचालन
कर रही है उसके कारण दाँई हथेली की ये समस्या सामने आने लगी है । तब तक 30 माह सकुशल गुजार सकने वाली HCL Me के नये माडल के मेरे लेपटाप की बैटरी भी बमुश्किल 10 महिने भी गुजारे बगैर काल कवलित हो गई । इस दौरान
जितना समय इस लेपटाप के समक्ष कम से कम गुजरा उससे बगैर किसी अतिरिक्त प्रयास के
चक्कर आना भी बन्द हो गये और कलाई में भी स्वमेव ही राहतपूर्ण स्थिति स्वयं को
महसूस होने लगी ।
इसी अवधि में इस ब्लाग स्नेह से जुडी कुछ और
उपलब्धियां और भी अलग किस्म की सामने आती रही - जैसे-जैसे मेरे नजरिया ब्लाग पर
फालोअर्स की संख्या बढती गई वैसे-वैसे इस ब्लाग-जगत के मेरे कुछ शुभचिंतक मित्र
मुझसे कन्नी काटते चले गये । शायद उनके दिमाग में एक ही भावना रही हो कि हम तो
इतने वर्षों से यहाँ इतने उत्कृष्ट शैली के लेखन में लगे हैं हमारे ब्लाग पर अब तक
जितने फालोअर्स नहीं हुए उससे ज्यादा इतना कामचलाऊ लिखने वाले इस बन्दे के ब्लाग
पर फालोअर्स इतने कम महिनों में कैसे बढ गये, और
ऐसे सभी साथियों के दिमाग में इसका उत्तर भी मौजूद की ब्लागर बनने से सम्बन्धित वो
सभी छोटी-छोटी आवश्यकताएँ जिन्हें यहाँ आने वाला हर ब्लागर करीब-करीब जानता ही है
को कुछ लच्छेदार शैली में प्रकाशित कर नये ब्लागर मित्रों को बरगलाकर व उन्हें
बेवकूफ बनाकर ही मैं अपने ब्लाग पर ये फालोअर्स बढा रहा हूँ, और जबरन सबके सामने मूंछों पर ताव देता दिख रहा हूँ, फिर अब तो हद हो गई एलेक्सा रेंकिंग जैसे श्रेष्ठतम मापदंड पर दसवें क्रम पर इसका ये ब्लाग भी दिखने लगा,
तो कहीं तो ये रोष मन में उमडते-घुमडते और
कहीं खुलकर अभिव्यक्त होते मेरे सामने आता चल रहा है । कहते हुए सभी पाठक बन्धुओं से क्षमा चाहता हूँ लेकिन
सीमित अनुपात में ही सही इस ब्लाग-जगत में अपने कुछ साथियों को मैंने पूर्वागृह के इस दायरे में ही निरन्तर महसूस
किया है ।
एक और समस्या अपने से अधिक बुजुर्ग और नये ब्लागर
साथियों में स्वयं के प्रति ये महसूस की कि हम तो असहाय अवस्था में अपनी पोस्ट
प्रकाशित कर रहे हैं और टिप्पणियां करना हमारे तो बस में नहीं है, किन्तु मैं उनके ब्लाग पर टिप्पणी क्यों नहीं कर रहा
हूँ । जबकि 1500
टिप्पणियां इस नजरिया ब्लाग पर देने की संख्या
तक के मेरे सैकडों ब्लागर्स साथियों के ब्लाग-लिंक को मैंने तीन हिस्सों में
विभाजित कर अपने तीनों ब्लाग नजरिया, जिन्दगी के रंग और स्वास्थ्य-सुख पर 'मेरे ब्लाग लिंक' माध्यम
से सेट करके एक भगीरथी अभियान इस रुप में भी पूर्ण किया है कि मेरे किसी भी
टिप्पणीकार साथी की कोई भी पोस्ट प्रकाशित होते ही तत्काल से लगाकर मेरे न पढ पाने
की अन्तिम सीमा तक मेरी जानकारी में रहे और मैं अपने ब्लाग पर टिप्पणी देने वाले
किसी भी ब्लागर साथी की पोस्ट पर टिप्पणी देकर उनका उत्साहवर्द्धन करना भूल न सकूँ
।
इस दरम्यान इस ब्लाग स्नेह के कारण आर्थिक मोर्चे पर होने वाले मेरे नुकसानों की चर्चा तो मैं न ही करुँ तो बेहतर है जबकि सामाजिक स्तर पर मेरे इस ब्लाग स्नेह का खामियाजा अपने अत्यन्त नजदीकी रिश्तों में आवश्यकता के समय अपनी मौजूदगी वहाँ दर्ज नहीं करवा पाने की नाराजगी के रुप में मुझे अलग से भुगतना पडा । इसके अतिरिक्त इसी ब्लाग-स्नेह के पूर्व मेरी प्रातःकालीन घूमने व योग वगैरह कर लेने की जो स्वास्थ्यप्रद गतिविधियां अनियमित क्रम में ही सही किन्तु चलती रहती थी उस पर भी पूरी तरह से विराम लग गया ।
तो इस ब्लाग-स्नेह की ये कीमतें सामूहिक रुप से पिछले महीनों में लगातार मैंने चुकाई हैं और बदले में अपने ब्लाग-जगत के मित्रों के पर्याप्त स्नेह के बावजूद भी कुछ प्रतिशत मित्रों से इस आधार पर बन रही इन अनजान दूरियों को भी मानसिक स्तर पर निरन्तर भुगता है अतः मस्तिष्क इस दिशा में स्वयं को ये सोचकर अधिक सहज महसूस कर रहा है कि -
और नहीं बस और नहीं....
किन्तु रुकिये, पूर्व इसके कि आप मेरी इस पोस्ट को इस हिन्दी ब्लाग
जगत से मेरे
स्थायी सन्यास के घोषणा-पत्र के रुप में समझें
मैं ये स्पष्ट कर दूँ कि अपने स्वान्त सुखाय के चलते जहाँ मैंने अपने हजारों घंटे
लगातार गुजारे हों वहाँ स्थायी सन्यास भी ऐसी ही चाहत उपजने पर भले ही ले लूँ, फिलहाल तो ये सन्यास इतना ही रहेगा कि अब तक जहाँ ये
ब्लागिंग मेरे लिये सबसे पहली पायदान पर और शेष दुनिया की समस्त आवश्यकताएँ बाद के
क्रमों में चल रही थीं वहीं अब समस्त दुनियावी आवश्यकताओं को प्राथमिक क्रम पर
रखने के बाद ही
बचा हुआ समय मैं इस ब्लाग स्नेह को देना
चाहूँगा जिससे न सिर्फ उपरोक्त सभी समस्याओं का क्रमशः निदान होता चला जावेगा, बल्कि ऩए फालोअर्स के बढते रहने का क्रम थम जाने के
साथ ही एलेक्सा रेंकिंग से भी मेरे उस समर्पण की कमी के कारण जिसके चलते मेरा ये
ब्लाग वहाँ भी दिखने लगा है, वहाँ
से भी स्वमेव ही ये खिसकते-खिसकते बाहर हो जाएगा । इस प्रकार अपने ऐसे साथियों के
मन में मेरे प्रति उपजते इस अबोलेपन की महसूसियत से भी मुझे मुक्ति मिलती चली
जावेगी । यद्यपि तब भी मुझे अप्रत्यक्ष रुप से यह तो सुनना ही है कि देखा- जोड-तोड
करके ऊपर पहुँच जाना अलग बात थी और बगैर किसी योग्यता के वहाँ
लगातार टिके रहना बिल्कुल अलग । किन्तु ऐसे आरोप का भी मैं सामना कर लूंगा ।
चलते-चलते अपनी आदत के मुताबिक एक निवेदनात्मक सुझाव और भी-
वे सभी ब्लागर साथी जो ये मानते हों कि इस
ब्लाग-जगत में ऐसी उपलब्धियों पर पहला हक हमारा बनता है, मेरा छोटा सा सुझाव मात्र यही है कि वे भी अपने इस
ब्लाग-स्नेह अभियान में पूरी तरह डूबकर, समस्त दीन-दुनिया को भुलाकर उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते
अपने ब्लाग की नई पोस्ट के लिये निरन्तर जनरुचि के मुताबिक विषय तलाशते हुए, उन्हें रुचिकर शैली में सहजगम्य रुप से प्रकाशित
करने रहने के साथ ही,
टिप्पणियों के रुप में स्वयं को अधिक से अधिक
ब्लागर साथियों से रुबरु करवाते हुए, हर
सम्भव तरीके से अपने ब्लाग पर ट्रेफिक बढवाते रहने का ईमानदार प्रयास यदि कर पाएँ
तो मेरा विश्वास है कि वे भी अपने ब्लाग पर फालोअर्स की बडी संख्या के साथ ही किसी
भी रेंकिंग मापदण्डों पर
अपने ब्लाग सहित शायद मुझसे भी कम समय में ऐसे
दुरुह दिख सकने वाले लक्ष्यों को सहज ही प्राप्त कर लेंगे । अतः ऐसे सभी इच्छुक
साथी हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम की शैली में इस अनवरत अभियान में तत्काल जुट
जावें । निश्चित रुप से हिम्मते मर्दा मददे खुदा के ब्रह्म सूत्र पर वे भी
शीघ्रातिशीघ्र लक्ष्यविजेता के रुप में स्वयं को सहज ही देख सकेंगे ।
शेष मेरे सभी पाठकों के मेरे प्रति अब तक के
स्नेहिल व्यवहार के लिये अनेकों धन्यवाद सहित...
बढ़िया लेख है सुशील भाई, एक समय ऐसा आता है की लगातार लिखने की इच्छा अपने आप कम हो जाती है इसमें स्वास्थय सम्बन्धी समस्याएं शामिल हैं !
जवाब देंहटाएंऔर भी गम हैं जमाने में ब्लोगरी के सिवा !
शुभकामनायें आपको !
आप बने रहें।
जवाब देंहटाएंआपका अनुभव उन ब्लोगर्स के लिए निश्चय ही मार्गदर्शन करेगा जो इसे ही सब कुछ समझ बैठते हैं !
जवाब देंहटाएंआपको पढ़ते रहने का अवसर मिलता रहेगा इसकी उम्मीद बनी रहेगी !
सुशील जी, बाकी सब बातें भूल जाइए, बस ये याद रखिए...
जवाब देंहटाएंपोस्ट लिख, ब्लॉग पर डाल...
कुछ कुछ वैसे ही...
नेकी कर, कुएं में डाल...
जय हिंद...
अति प्रत्येक चीज की खराब होती है। हमें रोजाना उतना ही पढना चाहिए जितने का हम मनन कर सकें। लिखना भी उतना ही चाहिए जितना लेखन हमारे दिल से निकले। होड़ा-होड़ी से कुछ नहीं होता। दुनिया के प्रत्येक कार्य उतने ही जरूरी है जितना कार्य हमारे मन के लिए लिखना और पढना है। यदि हम पढे गए विचारों पर मनन करने का समय नहीं निकाल सकें तो पढना व्यर्थ चले जाता है। इसलिए मन में सम्यक भाव बनाए रखते हुए ब्लाग जगत में बने रहना चाहिए। यह किसी रेंकिक का प्लेटफार्म नहीं है अपितु अनेक विचारों का प्लेटफार्म है। इसे ऐसे ही ग्रहण करना चाहिए जिससे जीवन में कभी निराशा नहीं होती।
जवाब देंहटाएंaap hamesha likhte rahiye.aapne wo geet to suna hoga"kuch to log kahenge logon ka kaam hai kahanaa " isliye sabko chode sirf dil ki suniye aur likhte rahiye.
जवाब देंहटाएंपहले स्वास्थ्य है फिर बाकी कुछ और ...ज्यादा देर कंप्यूटर पर काम करने से जो नुक्सान होता है उसके प्रति जागरूक करती अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंअरे यह क्या बात हुई भला? यह सब तो चलता रहता है... हाँ यह ज़रूर है कि आप अपना समय घर और व्यापार पर ज़रूर दें जैसे आप ब्लॉग जगत को देते हैं...
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण चिंतन हुआ यहां,
जवाब देंहटाएंउपलब्धि और अवदान का।
क्यों करते है चिंता मित्र,
आए हुए व्यवधान का!!
एक शेर याद आ रहा है, पता नहीं कौन रचनाकार है?
क्योंकर लिपट के न सोउं ए कब्र,
तुझे भी जान देकर पाया है हमनें।
हरेक नई चीज़ को एक दौर होता है जो हमेशा ही बने नहीं रहता... ब्लागिंग/ रचनाकर्म भी इन्हीं में से एक है...
जवाब देंहटाएंअपने स्वास्थ्य पर पूर्ण ध्यान दें, और आप जल्द ही पूर्ण स्वस्थ्य हों|
जवाब देंहटाएंब्लोगिंग को सबसे बाद में रखने के आपके विचार का समर्थन करता हूँ|
टिप्पणी, फोलोवर की संख्या की चिंता से आप भी मुक्त रहें और अन्य लोग भी तो ही बेहतर है, क्यूंकि यह "निन्यानवे के फेर" बाला चक्कर है जो इसमें उलझ गया समझो गया :)
एक विनती है आप मुझसे बड़े हैं मेरे नाम के आगे श्री ना लगाया करें, योगेन्द्र ही काफी है, उसमे अपनापन झलकता है|
मेरी तो सीखने की शुरूआत ही आप के लेख से हुई ...और सीख रहा हूँ |अपनी सेहत का ध्यान रखें |
जवाब देंहटाएं'खुशदीप सहगल' जी की सलाह माने |
आपके लैपटॉप की बैटरी को कम से कम 2 वर्ष तो चलना था. क्या आपने उसे डेस्कटॉप की तरह उसकी पावर सप्लाई हमेशा ऑन कर प्रयोग किया था? शायद इसी वजह से वो ओवरचार्ज होकर खराब हो गई. वैसे कंपनी की साल भर की वारंटी तो रहती ही है. क्या इसे रीप्लेस किया गया ?
जवाब देंहटाएंश्री रवि रतलामी साहब,
जवाब देंहटाएंआपका प्रथम बार इस ब्लाग पर आगमन का हर्षित मन से स्वागत है । लेपटाप की बैटरी संभवतः 50% अवसरों पर पलंग की गादी पर इस्तेमाल होने से उत्पन्न रूई की अतिरिक्त गर्मी के कारण जल्दी खराब हो गई थी । कम्पनी की ओर से इसे नियमतः फ्री एक्सचेंज भी करवा लिया गया था । धन्यवाद सहित...
ब्लॉग में तो डिजिटल ट्रैक रहते हैं तो चोरी किसलिये।
जवाब देंहटाएंसुशील जी, आज पहली बार ये 'अनाड़ी' भी नजरिया पर उस अनाड़ी ब्लोग्गर भाई की वजह से पहुंचा....
जवाब देंहटाएंबदिया लगा जी लिखने का ढंग .... भाषाप्रवाह.. बस दिल से.
अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें .
जवाब देंहटाएंज्यादा देर कंप्यूटर पर काम करने से जो नुक्सान होता है उसके प्रति जागरूक करती अच्छी पोस्ट| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंसुशील जी आपके पोस्ट हमेशा से प्रभावित करते है, ये भी एक मतलब की पोस्ट है, ब्लॉग्गिंग नशा न बनाये वरना इसका कोई इलाज़ नहीं दर्द के सिवा
जवाब देंहटाएंसुशिल जी , आभासी दुनिया की उपलब्धियां भी आभासी ही होती हैं ।
जवाब देंहटाएं१५ ghante कंप्यूटर पर बैठे रहना कोई अक्लमंदी नहीं । मैं तो अक्सर इस बात पर जोर देता रहता हूँ कि उतना ही समय लगाओ जीना आपके पास फालतू है ।
बाकि नोक झोंक तो चलती रहती है । किसने क्या कहा -क्या फर्क पड़ता है । बस मस्त रहने का !
बाकलीवाल जी मेरा अनुरोध है कि आप लिखते रहें समय खराब आता है मैने भी कुछ टिप्पणी आपके खिलाफ़ की थीं पर उद्देश्य आपको पीड़ित करने का नही था होता यह है कि व्यस्तता के बीच कोई संदेश मिलता है तो आदमी तुरंत रियेक्ट कर देता है पर आपसे भी भूल हुयी ही थी उसको दुरूस्त करें जो समझ मे आये वह क्रेडिट दे दें और वैसे मै आपके एक ब्लाग स्वास्थ सुख को देखता रह्ता हूं और आपका प्रयास मुझे अत्यंत प्रिय है आशा है मेरे अनुरोध पर आप मान ही जायेंगे वरना खर्च करके आपको मनाने आना पड़ेगा आपका ही
जवाब देंहटाएंbhadhiya information...
जवाब देंहटाएंआपने तो आश्चर्य की बात बता दी
जवाब देंहटाएंअजित गुप्ता जी से पूरी तरह सहमत
ब्लागिंग तो फुर्सत के समय पर ही होना चाहिए
सुशील जी, हम तो बस यही चाहेंगे की आप के सन्यास की कयास बाबा रामदेव के बम की तरह ज्यादा दिनों तक ना रहे, भगवान आप को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करे |
जवाब देंहटाएंवैसे मुझे आप से एक सहायता चाहिए, दरअसर मै भी आप की तरह ही अपने ब्लॉग की पूरी चौड़ाई का उपयोग करना चाहता हूँ और हाँ वो विडगेट वाला एरिया भी उपयोग करना चाहता हूँ | उम्मीद है आप मदद जरूर करेंगे |
आप वो टेम्पलेट मुझे मेरे पते पर मेल कर सकते हैं | उम्मीद है आप कुछ न कुछ तो जरूर सहायता करेंगे |
ayushman.star@gmail.com
निश्चित ही हर कार्य के लिए उचित अनुपात में समय देना चाहिये. प्राथमिकतायें तो आपको ही तय करनी है. मेरी शुभकामनाएँ.
जवाब देंहटाएंअपना ख्याल रखते हुए इस यात्रा को जारी रखें । हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं सुशील जी
जवाब देंहटाएंthoughtful post !!
जवाब देंहटाएंब्लॉगिंग में आप बने रहिए। आपकी मौजूदगी से हम बहुत कुछ सीखते हैं।
जवाब देंहटाएंसुशील बकलीवाल जी,
जवाब देंहटाएंसंजय जी (मो सम कौन) नें आपकी दोहापूर्ती कर दी है……
गोधन, गजधन, बाजि धन, सब रतनन की खान,
जो पावे संतोष धन, सब धन धूरि समान।
इस लेख में लिखी बाते बहुत ही अच्छी व काम की है।
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी लेख है सर जी ..........धन्यवाद
जवाब देंहटाएंjitna achha aap likhten hai ussey umda aap hain.
जवाब देंहटाएं