चर्चगेट, मुंबई से मेरे घर से काम पर
जाने के लिये लोकल ट्रेन की यह रोज़मर्रा की यात्रा थी । मैंने सुबह ६.५० की लोकल
पकड़ी थी । ट्रेन मरीन लाईन्स से छूटने ही वाली थी कि एक समोसे वाला अपनी ख़ाली
टोकरी के साथ ट्रेन में चढ़ा और मेरी बग़ल वाली सीट पर आ कर बैठ गया ।
चूँकि उस दिन भीड़ कम थी और मेरा स्टेशन अभी दूर था, तो मैंने उस समोसे वाले से
बातचीत करनी शुरु की...
मैं- लग रहा है, सारे
समोसे बेच आये हो !
समोसे वाला (मुस्कुरा कर)- हाँ, भगवान की कृपा है कि आज पूरे समोसे बिक गये हैं !
मैं- मुझे आप लोगों पर दया आती है । दिन भर यही काम करते हुये कितना
थक जाते होगे, आप लोग !
समोसे वाला- अब हम लोग भी क्या करें सर ? रोज़ इन्हीं समोसे को बेचकर
ही तो १ रुपया प्रति समोसा कमीशन मिल पाता है ।
मैं- ओह ! वैसे कितने समोसे बेच लेते हो, दिन-भर
में...लगभग ?
समोसे वाला- शनिवार-इतवार को तो ४००० से ५००० समोसे बिक जाते
हैं । वैसे औसतन ३००० समोसे प्रतिदिन ही समझो ।
मेरे पास तो बोलने के लिये शब्द ही नहीं बचे थे ! ये आदमी १
रुपया प्रति समोसा की दर से ३,००० हजार
समोसे बेचकर रोज़ ३,००० रु
यानी महीने में ९०,०००
रुपये कमा रहा था ! ओह माई गॉड!
मैं और भी बारीकी से बात करने लगा, अब ‘टाईम-पास’ करने
वाली बात नहीं रह गई थी ।
मैं- तो ये समोसे तुम खुद नहीं बनाते ?
समोसे वाला- नहीं सर, वो हम लोग एक दूसरे समोसा बनाने वाले से लेकर आते हैं, वो हम लोगों को समोसा देता
है, हम लोग
उसे बेचकर पूरा पैसा वापस दे देते हैं, फिर वो १ रुपया प्रति समोसा की दर से हम लोगों का हिसाब कर देता है !
मेरे पास तो बोलने को एक शब्द भी नहीं बचा था, पर समोसे वाला बोले जा रहा
था...“पर एक
बात है साब, हम लोगों
की कमाई का एक बड़ा
हिस्सा हम लोगों के मुंबई में रहने पर ही ख़र्च हो जाता है ! उसके बाद जो बचता है सिर्फ
उसी से ही दूसरा धंधा कर पाते हैं ।”
मैं- ‘दूसरा
धंधा ?’ अब ये
कौन सा धंधा है ?
समोसे वाला- ये ज़मीन का धंधा है, सा’ब! मैंने
सन् २००७ में डेढ़ एकड़ ज़मीन ख़रीदी थी - १० लाख रुपयों में । इसे मैंने कुछ
महीने पहले ही ८० लाख रुपयों में बेची है । उसके बाद मैंने अभी-अभी उमराली में ४०
लाख की नई ज़मीन ख़रीदी है ।
मैं- और बाकी बचे हुये पैसों का क्या किया ?
समोसे वाला- बाकी बचे पैसों में से २० लाख रुपये तो मैंने अपनी
बिटिया की शादी के लिये अलग रख दिये हैं । बचे रुपये २० लाख को मैंने बैंक, पोस्ट ऑफ़िस, म्युचुअल फ़ण्ड, सोना और कैश-बैक बीमा
पॉलिसी में लगा दिया है ।
मैं- कितना पढ़े हो तुम ?
समोसे वाला- मैं तो सिर्फ तीसरी तक ही पढ़ा हूँ ! चौथी में अपनी
पढ़ाई छोड़ दी थी । पर मैं पढ़ और लिख लेता हूँ ।
खार स्टेशन आते ही वो समोसे वाला खड़ा हो गया ।
समोसे वाला- सर, मेरा
स्टेशन आ गया है । चलता हूँ, नमस्कार
!
मैं- नमस्कार, अपना
ख़्याल रखना !
मेरी खोपड़ी में बहुत सारे सवाल घूम रहे थे !
1. क्या
समोसे बनाने वाला GST देता है ? ट्रेन में उसके जैसे 10 समोसा
बेचने वाले थे ।
2. क्या मैं बेवक़ूफ़ हूँ, जो आधार कार्ड और पैन कार्ड को बैंक के खातों से जुड़वाता फिर
रहा हूँ और अपनी तनख़्वाह से टीडीएस भी कटवा कर इन्कम टैक्स भर रहा हूँ ? फिर अपनी कार, मकान, बाइक के लिये लोन ले रहा
हूँ ? टीवी और
एप्पल फ़ोन को किश्तों में ख़रीद रहा हूँ ? मेरी सारी पढ़ाई-लिखाई इन समोसे बनाने-बेचने वालों के सामने तो
कुछ भी नहीं है ! तो इस असली भारत में आपका स्वागत है !