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3.2.11

कच्ची उम्र के ये शरीर सम्बन्ध...!

            कल एक समाचार पढने के बाद कि केन्द्र सरकार 12 से 14 वर्ष की उम्र सेक्स सम्बन्धों के लिये स्वीकार्य किये जाने का विधेयक पास करवाने की तैयारी कर रही है । मेरी स्मृतियों की दो घटनाओं को एक साथ ताजा कर गया- मेरे बडे भाई के एक मित्र जो बम्बई में रहते थे उनसे मेरा रिश्ता भी बडे भाई के मित्र याने मेरे भी बडे भाई जैसा बन चुका था । आवश्यकता व सामाजिक समारोह के अवसरों पर एक-दूसरे के यहाँ आना जाना भी अनवरत होता ही रहता था और जैसी बम्बई की वर्षों पूर्व से स्थिति रही है कि सामान्य लोगों के पास यदि एक कमरा भी मौजूद है तो वो किसी उपलब्धि से कम नहीं था । इसलिये किसी भी किस्म की पर्दादारी बहुत मुश्किल ही रह पाती थी । उन्हीं भाई साहब की लडकी लगभग इतनी ही छोटी उम्र की हमारे देखने में आती रहती थी और साल छ महिने में बम्बई का चक्कर लगते रहने के कारण उनके परिवार से सम्पर्क भी बना ही रहता था ।

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       अचानक अगले एक प्रवास में उनके यहाँ वह लडकी नहीं दिखाई दी । पूछने पर पता चला कि उसने तो शादी करली । बडा आश्चर्य हुआ कि कुल जमा 15 वर्ष की भी उसकी उम्र नहीं थी और शादी करली ? कोई खबर भी नहीं हुई । तो मालूम पडा कि शादी उसने स्वयं घर से भागकर की इसलिये पूर्व खबर जैसी कोई संभावना थी ही नहीं । बात आई-गई हो गई, हम अपने काम-धंधे में लग गये । संयोगवश अगले वर्ष फिर बम्बई जाना हुआ । अब वो लडकी भी घर पर दिख रही थी और दो-पांच माह का एक नवजात शिशु भी जो उसी लडकी का था उस घर में दिखाई दे रहा था । उस समय का वो बम्बई प्रवास लगभग एक सप्ताह का था और रोजाना उनके घर का चक्कर अनिवार्य रुप से लग रहा था । करीब-करीब सभी दिन वो लडकी और उसका नवजात शिशु घर पर ही दिखते, किन्तु कभी भी उस शिशु के पिता याने उस लडकी के पति को देख पाने का मौका नहीं मिला । मैंने जब इस बारे में अपने बडे भाई से पूछा तो पता चला कि वो तो कभी का उस लडकी को छोड भागा और ये लडकी तो अब स्थाई रुप से अपने मां-बाप के पास अपने उस बच्चे के साथ ही रहती है । भले ही वहाँ के माहौल में सामाजिक प्रतिष्ठा जैसा कोई सरोकार न रहा हो किन्तु उस गरीब परिवार में गरीबी में आटा गीला होने वाली स्थिति तो पूरी तरह से और स्थाई रुप से बढी हुई समस्या के रुप में सामने दिखने लगी । मैं बस अवाक् ही रह गया ।
      
          दूसरी घटना मेरे ही परिचितों में अपने ही शहर में देखी । मेरे एक परिचित शादी कर चुकने के बाद परिवार पालने जैसी आवश्कता पूर्ति की आर्थिक व्यवस्था अपनी आरामतलबी और नशे की जरुरत के चलते नहीं जुटा पाते थे । एक लडकी सहित दो बच्चे परिवार में बढ भी चुके थे और परिवार के पालन-पोषण हेतु आवश्यक अर्थोपार्जन भी उनकी पत्नि ही छोटे-छोटे कार्यों के द्वारा करते रहने की जद्दोजहद में दिखती रहती थी । उन परिचित की उस अकर्मण्यता का खामियाजा उनके बच्चों को आवश्यक शिक्षा से वंचित रहकर भी भुगतना ही पडा था । लडकी 15-16 वर्ष के आसपास की उम्र की थी और देखने में आकर्षक भी । एक समारोह में मालूम हुआ कि उस लडकी ने अपने माता-पिता को ये समझाते हुए कि अभी सम्पन्न परिवार का ये लडका मेरे लिये उपलब्ध दिख रहा है जो यदि छूट गया तो आगे आप मेरे लिये कर भी क्या पाओगे स्वयं ही उसने शादी करली । 
            कुछ समय बाद वहाँ भी वही स्थिति सामने आई कि जिस भी लडके से उसने शादी की वो कहाँ गया मालूम नहीं । लडकी लेकिन फिर से अपने मां-बाप के साथ उनके घर में स्थाई रुप से रहती दिख रही है । यहाँ एक बात जो गनीमत के रुप में दिखी वो ये कि इस लडकी के साथ कोई नवजात शिशु नहीं जुडा ।
  
अभी दिनांक 24-01-2011 को अपने इसी ब्लाग की पोस्ट एक समाचार - एक विचार में मैंने इस खबर का भी उल्लेख किया था कि होटल के सेक्स रैकेट में पुलिस द्वारा पकडी गई 7 युवतियों में एक लडकी हायर सेकन्ड्री की छात्रा थी । याने-

 बात इस उम्र के नौनिहालों द्वारा स्वयं शादी का आवरण ओढाकर इस आवश्यकता की पूर्ति करते हुए या प्रेम सम्बन्धों की आड में एकान्त में इस सुख का चोरी-छुपे लाभ उठाते हुए या फिर और कोई माध्यम न जुडने पर देह-व्यापार के घिसे हुए खुर्राटों के चंगुल में फंसकर ही इस सुख को पाने का प्रयास करते हुए इन्हें देखा जावे किन्तु टी.वी., इन्टरनेट जैसे दृश्य मीडिया के खुलेपन के इस वातावरण में यह तो दिखने लगा है कि या तो बच्चों को संस्कारित रुप से इतना मजबूत रखने के शुरु से प्रयास उनके पालकों द्वारा किये जावें कि वे गुण-दोषों के आधार पर स्वयं को ऐसे कमजोर कर सकने वाले क्षणों में मजबूती से बचा पावें जो कि असम्भव नहीं तो भी वर्तमान माहौल में अत्यधिक कठिन दिखता है 

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 तो क्या उनकी वयस्कता की उम्र का नये सिरे से आकलन किया जाए व  यदि आवश्यक लगे तो सामाजिक रुप से उनका समय पूर्व ही विवाह करवा दिया जाए जिससे कि इस किस्म के स्व-निर्णय से किये गये विवाह के बाद ये लडकियां वापस अपने मां-पिता के घर स्थाई रुप से बोझ बनकर न आ पावें ।

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