डाकू मानसिंह कभी चम्बल के बीहड़ों के सरताज हुआ करते थे । उन्होंने 1939 से 1955 तक अपने क्षेत्र में एकछत्र राज्य किया । एक बार आगरा में डकैती करने गए, सेठ को पहले ही सूचना भेज दी गयी थी (उस समय डकैतों के द्वारा डकैती करने से पहले ही चिठ्ठी के द्वारा सूचना भेज दी जाती थी) । अंग्रेजों का कप्तान छुट्टी लेकर आगरा से भाग गया । तय समय पर डकैती शुरू हुई ।
मानसिंह
सेठ के साथ उसकी बैठक में बैठ गए, सेठ ने तिजोरी की सभी
चाभियां मानसिंह को दे दी और बोला - मेरी चार जवान बेटियां घर में हैं, बस उनकी इज्जत मत लूटना !
मानसिंह ने कहा - हम धन लूटते हैं, इज्जत नहीं । इसी बीच एक डकैत सेठ की एक बेटी से छेड़खानी कर बैठा, लडकी चिल्लाने लगी.. लडकी की आवाज सुनकर सेठ घर के अंदर की ओर भागा, बेटी ने कहा एक डकैत ने मेरे साथ छेड़खानी की है, मानसिंह ने पुरे गिरोह को एक लाइन में खड़ा किया, लड़की को अपने पास बुलाया और बोले - बेटी पहचान इनमें से तेरे साथ छेडखानी करने वाला कौन था ?
जैसे
ही लड़की ने डाकू को पहचाना, मानसिंह ने तत्क्षण
ही उस डाकू को गोली मार दी और सेठ से माफ़ी मांगकर व सारा सामान उसके घर में ही
छोड़ अपने साथी की लाश लेकर लौट गए !
ये था पूर्व भारत के डकैतों का चरित्र ।
जबकि आज के सफ़ेद पोश
राजनैतिक व प्रशासनिक डकैतों ने अपनी सारी हदें पार कर दी हैं । देश के विभिन्न
हिस्सों से बेटियों की चीखे लगातार सुनने में निरन्तर आ रही हैं । उन्नाव व कठुआ
जैसी वीभत्स घटनाएँ आज भी वीराने में गूंज
रही है और कोई उस चीख को सुनना नहीं चाहता,
कोई
उन हैवानों के खिलाफ बोलना नहीं चाहता । सब देख रहे हैं कि वास्तविक दोषी कौन हैं, किंतु फिर भी पूरी व्यवस्था उन्हीं
अपराधियों को बचाने में अपनी पूरी ताकत लगा रही है । अराजकता सर चढ़ कर बोल रही है
!
एक ओर तो हम
स्त्रियों की निरंतर घटती संख्या के आधार पर लेंगिक असमानता का रोना रो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जो लडकियां हैं उन्हें भी
चैन से बढने, फलने-फूलने से रोक
रहे हैं । क्या ये विनाश के लक्षण नहीं हैं ?
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, शाबाश टीम इंडिया !! “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंवोट बैंक की चिंता पहले जो रहती है, उनके घर परिवार में ऐसी घटनाएं हो तो फिर देखो
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