किसी
ट्रेन में 22-24 वर्षीय एक युवक अपने पिता के साथ कहीं जा रहा था और उस कूपे के
अन्य सहयात्री यह देखकर आश्चर्यचकित हो रहे थे कि रास्ते में निरन्तर आ रहे
पर्वतों, नदियों और भांति-भांति के फूल-पत्तियों व वृक्षों जैसे सामान्य
दृष्यों को देखकर भी वह युवक आनंदातिरेक में निरन्तर भावविहोर होता छोटी-छोटी
बातें अपने पिता से पूछता व बताता दिखाई दे रहा था ।
सहयात्रियों को उस युवक की हरकतें किसी मंदबुद्धि प्राणी के समान लग
रही थी । इतने में मौसम परिवर्तित हो गया और बिजली चमकने के साथ ही घनघोर बारिश
होने लगी । उस बारिश को देखकर तो वह युवक मस्त अवस्था में मग्न हो लगभग नाचने लगा
।
अब तो
पास बैठे यात्री की सहनशीलता जवाब दे गई और उसने युवक के पिता से कहा कि आप अपने
पुत्र को किसी अच्छे डाक्टर को क्यों नहीं दिखा देते । तब उस युवक के पिता ने जबाव
दिया कि मैं इसे अस्पताल से लेकर ही आ रहा हूँ । मेरा पुत्र नेत्रहीन था और
डाक्टरों के प्रयास से आज ही उसे इन आँखों से पहली बार इस दुनिया को देखने का
सुअवसर मिल पाया है ।
नजरों के इन नजारे की यह लघुकथा मैंने कभी श्री खुशदीप सहगल के ‘देशनामा’ ब्लाग
पर पढी थी जो अंततः आँखों के महत्व का बखूबी चित्रण कर रही थी । वैसे
भी रोजमर्रा के अपने जीवन में हम सभी नेत्रहीन व्यक्तियों की व्यथा या समस्याओं से
समय-असमय रुबरु होते ही रहते हैं ।
‘आँखें हैं तो जहान है वर्ना सब वीरान है’ इस
कहावत की सत्यता हम 5 मिनिट तक अपनी आँखें बंद रखकर स्वयं बखूबी महसूस कर सकते हैं
कि अंधत्व झेल रहे नेत्रहीन कैसा महसूस करते होंगे । इस संसार में आने के बाद
जितना भी ज्ञान जिस भी माध्यम से हम अर्जित कर पाते हैं उसका 85% से भी
अधिक श्रेय हमारी आँखों को ही जाता है । आँखें परमात्मा के द्वारा इंसान को दिया
गया सर्वाधिक अनुपम उपहार ही तो है ।
अंधत्व की इस विश्र्वव्यापी समस्या में हमारे भारत देश में ही लाखों
व्यक्ति इसके शिकार दिखाई देते हैं और प्रतिवर्ष 30 से 40 हजार लोग कार्निया से
अंधेपन का शिकार हो जाते हैं । मरणोपरांत नेत्रदान करने वाले दानी व्यक्तियों की
संख्या वर्ष भर में बमुश्किस 15-20 हजार लोगों तक पहुँचती है जबकि 80-90 लाख लोग
वार्षिक रुप से मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं याने जागरुकता के अभाव में मात्र 2% लोग ही
नेत्र दान कर पाते हैं ।
नेत्रम् प्रधानम् सर्वेन्द्रियाणम् –
जैसे वृक्षों में पीपल और नदियों में गंगा श्रेष्ठ होती हैं वैसे ही
शरीर के सभी अंगों में नेत्रों को प्रधान माना गया है । हमारे ये अमूल्य नेत्र
मृत्यु के बाद भी निरन्तर कार्यक्षम बने रह सकते हैं बशर्ते इन्हें अग्नि को
समर्पित करने की बजाय समय रहते किसी जरुरतमंद नेत्रहीन तक पहुँचाया जा सके ।
परमात्मा की बनाई इस खूबसूरत सृष्टि का आनंद हम अपने नेत्रों के माध्यम से ही भोग
पाते हैं । अतः इन अमूल्य आँखों को अपनी मृत्यू के बाद अग्नि को समर्पित हो जाने
देने की बनिस्बत अपनी मृत्यु के पूर्व ही नेत्रदान संकल्प फार्म भरकर अपने मरणोपरांत
किसी नेत्रहीन के जीवन में अद्भुत रोशनी बिखेरने में ये मददगार बन सकें, ऐसा
नजरिया क्यों नहीं बना सकते ?
नेत्रदान
–
पुण्य महान.
चिता में जाएगी तो राख बन जाएगी,
कब्र
में जाएगी तो मिट्टी बन जाएगी,
लेकिन
यदि कर देंगें इन नेत्रों का दान
तो
किसी नेत्रहीन को रोशनी मिल जाएगी ।
इन्दौर
नगर में श्रीमति सरलाजी सामरिया (सम्पर्क– 07312435550
व 09302101409) अनेकों महिला-पुरुषों के द्वारा मरणोपरांत नेत्रदान करवाने के
पुनीत अभियान में जुटी हैं। अनेकों संस्थान उन्हें उनके इस निस्वार्थ सेवाभावना के
लिये सम्मानित कर चुके हैं । उनके कथनानुसार “आपकी छोटी सी सजगता या
थोडा सा प्रयास मजबूर नेत्रहीन व्यक्तियों व उनके परिजनों के जीवन में नया उजाला, नई
खुशियां लेकर आएगा और हमें भी यह आत्मसंतोष होगा कि जब हम इस संसार से जाएंगे तो
अपना मानव जीवन सार्थक करके जाएंगे । कृपया अपनी आँखों को मरणोपरांत भी जीवित
रखिये – नेत्रदान कीजिये ।“
हमारे द्वारा इस प्रकार से दान दी गई ये आँखें शीघ्रातिशीघ्र किसी भी
जरुरतमंद तक पहुँच सकें इसके लिये भारत सरकार ने भी इंडियन एअरलाईंस में फ्री
कार्गो सुविधा कार्निया को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजने हेतु प्रदान की हुई
है । आपके द्वारा अपने क्षेत्र में भरा हुआ नेत्रदान का फार्म आपके रिश्तेदारों को
याद दिलाने व समाज में जागरुकता लाने में सहायक होता है ।
नेत्रदान
करने के लिये-
अपने क्षेत्र के निकटतम आई-बैंक की जानकारी लेकर वहाँ नेत्रदान का
फार्म भरकर जमा करवा दें और वहाँ के टेलीफोन नं. की जानकारी सहित अपने परिजनों को
अपनी ईच्छा से पूर्व में ही अवगत करवा दें ।
यदि किसी व्यक्ति ने नेत्रदान का फार्म नहीं भर रखा हो किंतु मृत्यु
के समय उसकी ऐसी ईच्छा रही हो तो उसके परिजन भी उनके नेत्रदान करवा सकते हैं ।
नेत्रदान की कोई उम्र नहीं होती । किसी भी उम्र के व्यक्ति द्वारा
नेत्रदान किया जा सकता है ।
सिर्फ सर्पदंश, कैंसर, एड्स व
हेपेटाईस से हुई मृत्यु के बाद नेत्रदान नहीं किया जा सकता ।
नेत्रदान
की प्रक्रिया...
मृत्यु होने पर मृतक की आँखें बंद कर दें व दोनों आँखों पर गीली रुई
रख दें । सिर के नीचे तकिया लगा दें व निकटतम आई-बैंक के कार्यकर्ताओं को सूचित
करदें ।
मृत्यु के 6-7 घंटे बाद तक भी नेत्रदान किया जा सकता है और नेत्रदान
के पश्चात् चेहरे पर कोई विकृति भी नहीं आती है ।
आप भी इस दिशा में अपना मानस बनावे और मरणोपरांत नेत्रदान का निर्णय
लेकर यह नेक कार्य शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण करें ।