करीब 5 वर्ष पूर्व मेरे दुबले-पतले भाई जो लगभग 65 वर्ष की उम्र के थे और इस धूम्रदण्डिका के अच्छे शौकीन भी उन्हें अचानक अपने शरीर में कमजोरी की शिकायत हुई । डाक्टरी परीक्षण से टी.बी. वाले संकेतों के साथ यह चेतावनी भी उन्हें मिल गई की अब यदि जिंदा रहना है तो एक और सिगरेट भी आपके लिये मरणांतक रुप से घातक साबित होगी । मरता क्या न करता की तर्ज पर मजबूरी में उन्होंने सिगरेट पीना बंद भी कर दी किंतु तब तक भी शायद बहुत देर हो चुकी थी । एक दिन अचानक मेरे भतीजे जो उनके व्यवसायिक भागीदार भी थे के पास भाभी का फोन आया कि वे सीने में असहनीय दर्द महसूस करने के साथ सांस नहीं ले पा रहे हैं । तत्काल उन्हें अस्पताल ले जाया गया जहाँ उनकी स्थिति देखकर डाक्टरों ने उन्हें कृत्रिम श्वांस प्रणाली की मदद दिलाने हेतु वेंटीलेटर पर रखकर उपचार प्रारम्भ कर दिया । किंतु निजी अस्पतालों में मरीज के परिजनों से अधिक से अधिक पैसा वसूलने की नीति के चलते डाक्टर सिर्फ उनकी दवाईयां बदल-बदलकर विभिन्न जांचें ही करवाते रहे और इसी त्रासद स्थिति में करीब नौ-दस दिन गुजरवा देने और लगभग दो लाख रुपये उनके परिजनों से वसूलने के बाद भी उनकी मृत देह ही घर वापस आ पाई । इस अवधि में उस वेंटीलेटर मशीन की त्रासद स्थितियों में बांधकर रखे गये उनके शरीर के साथ होश में रहने पर उनकी छटपटाहटपूर्ण स्थिति का कोई भी चित्रण शब्दों में कर पाना शायद सम्भव ही नहीं है ।
वर्षों पूर्व किसी थिएटर में पिक्चर देखने के दौरान उसमें चलने वाली न्यूज रील में राष्ट्रपति आर. वेकटरमन सिने उद्योग का सर्वाधिक प्रतिष्ठित दादा फालके अवार्ड राजकपूर को देते दिखे थे और दर्शक दीर्घा में बैठे राजकपूर अपने जीवन की अनमोल विरासत वाले उस अवार्ड को लेने के लिये उठकर खडे भी नहीं हो पा रहे थे, तब राष्ट्रपति को स्वयं ही मंच से उतरकर वो अवार्ड उन्हें देने उनके पास आना पडा था । कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि राजकपूर स्वयं भी शराब के साथ सिगरेट का इस्तेमाल करते कई चित्रों में देखे जाते थे और उसके बाद वे भी अपनी जीवन-यात्रा को आगे जारी नहीं रख पाए थे । इसका नामुराद शौक हमारी शारीरिक उर्जा को किस तरह प्रभावित करता है इसका एक उदाहरण वर्षों पूर्व प्रदर्शित शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना अभिनीत फिल्म मेरे अपने की शूटिंग के दौरान इन दोनों कलाकारों की एक स्वीकारोक्ति में देखने में आया था जिसमें दोनों के बीच दो मिनीट की मारा-पिटी की शूटिंग के पश्चात् दोनों को ही संयत होने में दस मिनिट भी कम पड रहे थे क्योंकि तब दोनों ही कलाकार सिगरेट भी पीते थे । एक बार इसकी आदत पड जाने के बाद इसे छोड पाना कितना कठिन हो जाता है इसका अहसास इसके भुक्तभोगी ही बता सकते हैं । मशहूर अभिनेता आमिर खान संभवतः ऐसे व्यक्तियों में शामिल हैं जो संक्षिप्त समय में ही इसकी आदत लगाकर इसे छोड भी चुके हैं उन्हीं का एक वक्तव्य कभी पढने में आया था कि "एक बार तो मुझे लगा था कि अब जीवन में इससे पूरी तरह से मुक्ति पाना शायद संभव ही नहीं है किंतु दृढ ईच्छाशक्ति के चलते आखिर मैं इसमें सफल हो पाया ।" अपनी सजा के ताजा-ताजा प्रकरण में संजय दत्त ने कोर्ट से विशेष अनुमति सिर्फ इसी नामुराद शौक की खातिर चाही थी कि और कुछ नहीं तो मुझे जेल में ई-सिगरेट पीने की अनुमति दी जावे, जिसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया । कुछ दिनों पूर्व फेसबुक पर श्री मलिक राजकुमारजी की भी यही पीडा देखने को मिली थी जिसमें एलोपेथिक दवा Bupro की मदद के साथ उन्होंने बगैर सिगरेट पिएं 14 दिन निकाल देने के बाद भयंकर उदासी व डिप्रेशन जैसी समस्या का उल्लेख किया था ।
और मेरे निजी अनुभवों में - बचपन के दोस्तों की शेखी से भरपूर मस्तियों के दौर में 16 वर्ष की उम्र में मेरे साथ भी एक बार जो यह शौक जुडा तो हर दिन 15 से 20 सिगरेट नियमित पीते-पीते कुछ तो अनियमित योगासनों के अभ्यास के साथ और कुछ त्रिफला जैसे आयुर्वेदिक बचाव साधनों का संयुक्त प्रयोग करते-करते अपनी उम्र के 62वें वर्ष तक तो सकुशल आ पहुंचा किंतु इस बीच यह महसूस होते रहने पर कि मैं दूर तक चलना, सीढियां चढना जैसे मेहनत के कामों में न सिर्फ अपने से बडों की तुलना में बहुत जल्दी थकने लगा हूँ बल्कि भीड भरे किसी भी बंद वातावरण में उत्पन्न सफोकेशन भी मुझे सामान्य से अधिक विचलित किये दे रहा है । तब अपने उसी भतीजे की सलाह मानकर अपने फेफडों की क्षमता की जांच करवाने हेतु मैंने जब अपना एक ब्रीदिंग टेस्ट करवाया तो डाक्टर की भाषा में परिणाम यह निकला कि आपके फेफडे सामान्य की तुलना में 65% क्षमता ही दर्शा रहे हैं और अब भी यदि आपने अपने इस शौक को तिलांजली नहीं दी तो अगले दो वर्षों के बाद आप स्वयं उठकर बाथरुम तक भी नहीं जा पाएंगे । जबकि अभी जितना सक्रिय मेरा शरीर है उसके चलते डाक्टर की ये चेतावनी कतई विश्वास योग्य नहीं लगती किंतु पांच वर्ष पूर्व अपने बडे भाई की जिन स्थितियों में मृत्यु मैं देख चुका हूँ उसके बाद कोई भी व्यक्ति उस चेतावनी को नजर अंदाज करने की मूर्खता तो नहीं कर सकता । फिर क्या किया जावे ? जिस सिगरेट के साथ पिछले 46 वर्षों की अटूट दोस्ती और इसके हल्के-फुल्के नशे का एक नियमित रिश्ता चला आ रहा है उसे किसी भी सिगरेट नहीं पीने वाले व्यक्ति द्वारा मात्र इतना कह देने भर से कि अब इसे बंद करदो, ये इतना आसान तो कतई नहीं रहा है । ऐलोपेथिक दवाओं के सहयोग से इसे छोडने का प्रयास अनिवार्य रुप से डिप्रेशन वाली मनोस्थिति में पहुंचाने का कारण भी बनेगा और तब जबकि पिछले 46 वर्षों के नियमित प्रयोग से शरीर को इसके निकोटीन की जो आदत पड चुकी है उसकी आपूर्ति पूर्ण रुप से तत्काल रुक जाने के परिणाम भी शरीर के लिये हितकारी तो शायद नहीं हो सकेंगे । इन्हीं सब बाध्यताओं के चलते पिछले 7 दिनों से फिलहाल तो बीच का मार्ग निकालकर मजबूरी में ही सही 14-15 की बनिस्बत मात्र 3 सिगरेट रोज पीकर अपने को सिगरेट छोडने के लिये तैयार करने का प्रयास कर रहा हूँ अब देखना यह है कि आगे आने वाले समय में मैं भी अपने इस नामुराद शौक से मुक्ति पा सकूंगा या नहीं ।
इतना विवरण यहाँ इसीलिये देने का प्रयास किया है कि वे सभी बंधु जिन्होंने इस कुटैव को कम या अधिक समय से गले लगा रखा है वे यदि इसे पढें तो इससे मुक्त होने का प्रयास भी समय रहते शीघ्रातिशीघ्र ही कर लें, अन्यथा अंत तो हर हाल में कष्टकारी साबित होना ही है । आशाराम बापू का एक आयुर्वेदिक फार्मूला भी इस दरम्यान देखने में आया है उसके मुताबिक 100 ग्राम सौंफ, 100 ग्राम अजवायन, 30 ग्राम काला नमक और इसमें दो बडे नींबुओं का रस मिलाकर इस मिश्रण को गर्म तवे पर सेंक लें और जब भी सिगरेट-बीडी या तंबाकू की तलब लगे तब इसकी थोडी-थोडी मात्रा मुंह में डालकर चबाते रहें जिससे जब भी बीडी-सिगरेट पीने जैसी स्थिति बनेगी तो शरीर इसके प्रति अरुचि जाग्रत कर सकेगा । दूसरा फार्मूला सिप्ला कंपनी का निकोटेक्स Nicotex 4 नामक च्युइंगम (चिकलेट) के रुप में सामने आ रहा है जिसकी एक गोली करीब पांच घंटे तक आपको इस नशे की तलब नहीं लगने देगी और लगभग हफ्ते-दस दिन लगातार दिन में दो चिकलेट खाकर आप शरीर को इस निकोटीन की आवश्यकता से मुक्त करवा सकेंगे । किंतु ये सब सुने और पढे गये माध्यम भर ही हैं जो आपकी ईच्छाशक्ति के अभाव में व्यर्थ भी साबित हो सकते हैं । अतः मुख्य तो इस नशे को छोडने की प्रबल ईच्छाशक्ति जागृत करना ही इससे मुक्त हो पाने की दिशा में मददगार हो सकता है वर्ना तो सुबह नींद से उठने से लगाकर चाय-दूध पीने, नाश्ता करने, शौच क्रिया के वक्त, भोजन के बाद, क्रोध, चिंता, प्रसन्नता जैसी मानसिकता के साथ, रात में सोते समय और यदि कभी आधी रात को नींद खुल जावे तब भी जान जाय पर चाह न जाय वाली स्थिति में इसके सभी शौकीनों के साथ आपको भी यही सोचते रहना है कि "छूटती कहाँ है ये जालिम मुंह से लगी हुई ।"
वर्षों पूर्व किसी थिएटर में पिक्चर देखने के दौरान उसमें चलने वाली न्यूज रील में राष्ट्रपति आर. वेकटरमन सिने उद्योग का सर्वाधिक प्रतिष्ठित दादा फालके अवार्ड राजकपूर को देते दिखे थे और दर्शक दीर्घा में बैठे राजकपूर अपने जीवन की अनमोल विरासत वाले उस अवार्ड को लेने के लिये उठकर खडे भी नहीं हो पा रहे थे, तब राष्ट्रपति को स्वयं ही मंच से उतरकर वो अवार्ड उन्हें देने उनके पास आना पडा था । कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि राजकपूर स्वयं भी शराब के साथ सिगरेट का इस्तेमाल करते कई चित्रों में देखे जाते थे और उसके बाद वे भी अपनी जीवन-यात्रा को आगे जारी नहीं रख पाए थे । इसका नामुराद शौक हमारी शारीरिक उर्जा को किस तरह प्रभावित करता है इसका एक उदाहरण वर्षों पूर्व प्रदर्शित शत्रुघ्न सिन्हा और विनोद खन्ना अभिनीत फिल्म मेरे अपने की शूटिंग के दौरान इन दोनों कलाकारों की एक स्वीकारोक्ति में देखने में आया था जिसमें दोनों के बीच दो मिनीट की मारा-पिटी की शूटिंग के पश्चात् दोनों को ही संयत होने में दस मिनिट भी कम पड रहे थे क्योंकि तब दोनों ही कलाकार सिगरेट भी पीते थे । एक बार इसकी आदत पड जाने के बाद इसे छोड पाना कितना कठिन हो जाता है इसका अहसास इसके भुक्तभोगी ही बता सकते हैं । मशहूर अभिनेता आमिर खान संभवतः ऐसे व्यक्तियों में शामिल हैं जो संक्षिप्त समय में ही इसकी आदत लगाकर इसे छोड भी चुके हैं उन्हीं का एक वक्तव्य कभी पढने में आया था कि "एक बार तो मुझे लगा था कि अब जीवन में इससे पूरी तरह से मुक्ति पाना शायद संभव ही नहीं है किंतु दृढ ईच्छाशक्ति के चलते आखिर मैं इसमें सफल हो पाया ।" अपनी सजा के ताजा-ताजा प्रकरण में संजय दत्त ने कोर्ट से विशेष अनुमति सिर्फ इसी नामुराद शौक की खातिर चाही थी कि और कुछ नहीं तो मुझे जेल में ई-सिगरेट पीने की अनुमति दी जावे, जिसे कोर्ट ने स्वीकार नहीं किया । कुछ दिनों पूर्व फेसबुक पर श्री मलिक राजकुमारजी की भी यही पीडा देखने को मिली थी जिसमें एलोपेथिक दवा Bupro की मदद के साथ उन्होंने बगैर सिगरेट पिएं 14 दिन निकाल देने के बाद भयंकर उदासी व डिप्रेशन जैसी समस्या का उल्लेख किया था ।
और मेरे निजी अनुभवों में - बचपन के दोस्तों की शेखी से भरपूर मस्तियों के दौर में 16 वर्ष की उम्र में मेरे साथ भी एक बार जो यह शौक जुडा तो हर दिन 15 से 20 सिगरेट नियमित पीते-पीते कुछ तो अनियमित योगासनों के अभ्यास के साथ और कुछ त्रिफला जैसे आयुर्वेदिक बचाव साधनों का संयुक्त प्रयोग करते-करते अपनी उम्र के 62वें वर्ष तक तो सकुशल आ पहुंचा किंतु इस बीच यह महसूस होते रहने पर कि मैं दूर तक चलना, सीढियां चढना जैसे मेहनत के कामों में न सिर्फ अपने से बडों की तुलना में बहुत जल्दी थकने लगा हूँ बल्कि भीड भरे किसी भी बंद वातावरण में उत्पन्न सफोकेशन भी मुझे सामान्य से अधिक विचलित किये दे रहा है । तब अपने उसी भतीजे की सलाह मानकर अपने फेफडों की क्षमता की जांच करवाने हेतु मैंने जब अपना एक ब्रीदिंग टेस्ट करवाया तो डाक्टर की भाषा में परिणाम यह निकला कि आपके फेफडे सामान्य की तुलना में 65% क्षमता ही दर्शा रहे हैं और अब भी यदि आपने अपने इस शौक को तिलांजली नहीं दी तो अगले दो वर्षों के बाद आप स्वयं उठकर बाथरुम तक भी नहीं जा पाएंगे । जबकि अभी जितना सक्रिय मेरा शरीर है उसके चलते डाक्टर की ये चेतावनी कतई विश्वास योग्य नहीं लगती किंतु पांच वर्ष पूर्व अपने बडे भाई की जिन स्थितियों में मृत्यु मैं देख चुका हूँ उसके बाद कोई भी व्यक्ति उस चेतावनी को नजर अंदाज करने की मूर्खता तो नहीं कर सकता । फिर क्या किया जावे ? जिस सिगरेट के साथ पिछले 46 वर्षों की अटूट दोस्ती और इसके हल्के-फुल्के नशे का एक नियमित रिश्ता चला आ रहा है उसे किसी भी सिगरेट नहीं पीने वाले व्यक्ति द्वारा मात्र इतना कह देने भर से कि अब इसे बंद करदो, ये इतना आसान तो कतई नहीं रहा है । ऐलोपेथिक दवाओं के सहयोग से इसे छोडने का प्रयास अनिवार्य रुप से डिप्रेशन वाली मनोस्थिति में पहुंचाने का कारण भी बनेगा और तब जबकि पिछले 46 वर्षों के नियमित प्रयोग से शरीर को इसके निकोटीन की जो आदत पड चुकी है उसकी आपूर्ति पूर्ण रुप से तत्काल रुक जाने के परिणाम भी शरीर के लिये हितकारी तो शायद नहीं हो सकेंगे । इन्हीं सब बाध्यताओं के चलते पिछले 7 दिनों से फिलहाल तो बीच का मार्ग निकालकर मजबूरी में ही सही 14-15 की बनिस्बत मात्र 3 सिगरेट रोज पीकर अपने को सिगरेट छोडने के लिये तैयार करने का प्रयास कर रहा हूँ अब देखना यह है कि आगे आने वाले समय में मैं भी अपने इस नामुराद शौक से मुक्ति पा सकूंगा या नहीं ।
है तो सत्यानाशी ही.
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही व्यर्थ की आदत, स्वास्थ्य, समय और धन की।
जवाब देंहटाएं.सार्थक व् उपयोगी जानकारी.बिल्कुल सही बात कही है आपने . आभार . ये है मर्द की हकीकत आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
जवाब देंहटाएंआपने ने केवल इसके हानिकारक प्रभाव व दृष्टांत बताए बल्कि सिगरेट छोड़ने का तरीका भी बताया..वाकई मे ये आदत सत्यानाशी है..
जवाब देंहटाएंआपनें सिगरेट पीने वालों के मन को झकझोरने का एक अच्छा प्रयास किया है इसके लिए आपका आभार !!
जवाब देंहटाएंyou have posted a very relevant post .thanks
जवाब देंहटाएंअच्छी पोस्ट! आपका मनोबल आपको सफ़ल बनाये।
जवाब देंहटाएंसिगरेट पीने वाले को अंत में सिगरेट ही पी जाती है. सुंदर आलेख.
जवाब देंहटाएंसिगरेट पीने वालों से सिगरेट के बारे में कोई नहीं पूछता
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