यह हमारे ससुराल में हर पूर्णिमा के दिन सुबह 10 बजे के आसपास करीब-करीब एक घंटे के लिये आकर दर्शन देने वाले हमारे दादाजी की छवि है और उनके साथ सशरीर चित्र मेरे उन साले साहब श्री राजेश पाटोदी का है जिनका शरीर उस समय आदरणीय दादाजी के आगमन का माध्यम बनता है । सामान्य बोलचाल में दादाजी के जीवन का कालखंड लगभग 200 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जा सकता है और लगभग सात पीढी पूर्व का इनका इन्सानी अस्तित्व श्री जगन्नाथजी चौधरी के नाम से सामने आता है । जाति से जैन होने के बावजूद चौधरी सरनेम का उच्चारण इसलिये कि उस समय इन्हें इनके सम्बन्धित गांव में यह उपाधि प्राप्त थी ।
इस अवधि में श्री राजेश पाटोदी के घर के आसपास के अधिकांश दुःखीजन इनके पास अपनी समस्या निवारण के लिये आते हैं और दादाजी भी बगैर किसी भेदभाव के उनकी समस्या के निवारण के वे उपाय बताते हैं जो हमारी भाषा में एक से बढकर एक नायाब टोटकों के रुप में ही होते हैं और उनके द्वारा बताये गये समस्या-समाधान के तरीके क्रियान्वय के पश्चात् 90% से भी अधिक सफल होते भी हैं । यदि किसी विशेष मसले पर उपाय के बाद भी समस्या का व्यवस्थित निदान नहीं हो पावे तो पूरी निश्छलता और निर्मलता से वे यह स्वीकार करते हुए कि मैं कोई भगवान नहीं हूँ उन्हें बदलकर उपाय करने की राह भी सुझाते हैं । आधुनिक तार्किक युग में रहने वाला मैं भी पिछले पांच वर्षों से भी अधिक समय से इनके आगमन का साक्षी रहा हूँ और मैंने स्वयं भी अपनी पत्नी व बच्चों के साथ अपनी कई समस्याएँ इनसे साझा कर उनके बताये उपाय जाने और किये हैं । उनके आगमन की इस अवधि में श्री राजेश पाटोदी के मुख से निकलने वाली शब्दों की शैली स्वतः पुराने जमाने में चलन में बने रहने वाले शब्दों में परिवर्तित हो जाती है और मेरे देखते-देखते इनके सम्मुख कई ज्ञानी पंडित, ज्योतिष, संत, साध्वी, शरीर में देवी को धारण करने वाले अनेकों लोग आकर गये किन्तु आज तक ऐसा कोई व्यक्ति मेरे सामने नहीं आ पाया है जो इनके सम्पर्क में आने के पश्चात् इस मानसिकता के साथ वहाँ से निकला हो कि ये सब सिर्फ ढोंग-ढकोसला या किसी प्रचार के तहत चलने वाली कोई दिखावी प्रक्रिया है ।
लोग इनसे अपने स्वयं के व अपने परिजनों के विवाह मार्ग में आने वाली बाधा, लाईलाज बीमारियों से संबंधित शरीर स्वास्थ्य की समस्याओं के समाधान, व्यापारिक उन्नति या किसी भी प्रकार की बाधाओं से मुक्ति के उपाय समझते हैं । ये आपके भले के कितने भी उपाय बता दें किन्तु आपके द्वारा किसी का बुरा चाहने वाला कोई उपाय नहीं बताते । ऐसी किसी भी शंकित जगह इनका स्पष्ट उत्तर होता है कि "नाना/नानी तू यदि सही है तो थारो काम हो जाएगो ।" इस दिन इनके आदेशानुसार श्री राजेश पाटोदी के घर आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भोजन करके ही वहाँ से वापसी का उनका प्रबल आग्रह रहता है, भोजन में सिर्फ दाल-बाटी ही बनती मिलती है और इस दिन इनके घर में आग पर तवा नहीं चढाया जाता इसलिये रोटी नहीं बनती ।
यहाँ आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से इनका दो पैसे का भी कोई लालच नहीं होता, बल्कि सभी के लिये यह आदेश सा रहता है कि कोई भी उपहार, रुपये-पैसे, फल-फूल जैसी सामग्री लाना ले जाना वर्जित है । किन्तु फिर भी इनके कुछ चाहने वाले इस दिन इनके यहाँ श्रीफल व अगरबत्ती तो ले ही आते हैं । बावजूद इसके कि इनके घर में दादाजी के हर पूर्णिमा के दिन आगमन का इतिहास पिछले करीब आठ वर्षों से तो अनवरत जारी है जिसमें पांच वर्षों से इनके इस आगमन के प्रत्यक्षदर्शियों में मैं भी शामिल रहा हूँ आज न जाने क्यों इनका परिचय अपने इस ब्लाग पर आप सभीके साथ शेअर करने की इसलिये ईच्छा हो गई कि यहाँ तो एक से बढकर एक तार्किक और नास्तिक मौजूद हैं जो ऐसी किसी भी स्थिति के अस्तित्व को सिरे से ही खारिज कर देने की सोच के साथ ही जिन्दगी जी रहे होते हैं, किन्तु है ये अकाट्य सत्य जिसका अनुभव कोई भी शख्स किसी भी पूर्णिमा के दिन इनके सामने उपस्थित होकर स्वयं कर सकता है । इस अवधि में इनके आदेश के बगैर कोई इन्हें छू भी नहीं सकता किन्तु यदि कोई अपरिचित इनके सम्मुख अपनी कोई शंका-समस्या निवारण के लिये आता है तो ये उससे उसके हाथ धुलवाकर दोनों हाथ अपने घुटनों से नीचे रखवाकर अपनी दिव्य-दृष्टि से उसका सम्पूर्ण परिचय स्वयं कर लेते हैं और फिर यदि वो विदेश में भी कहीं रह रहा हो तब भी उसके घर में कहाँ क्या अनियमितता चल रही है जो समस्या का कारण बन रही है उसके बारे में सप्रमाण विश्वासपूर्वक बता देते हैं और इनके द्वारा बताये जाने वाले उस कारण को कोई भी नकार नहीं पाता है ।
आदरणीय दादाजी की जय हो...
जिसका मन साफ़ सुथरा हो उसकी बात जरुर काम कर जाती है ....बहुत बढ़िया कुछ अच्छा घटता है या होता है तो उसे मानने में कोई बुराई नहीं .......सबके अपने अपने विचार होते हैं ...बहुत बढ़िया लगी पोस्ट
जवाब देंहटाएंअंहं !
जवाब देंहटाएंकाजल कुमारजी...
जवाब देंहटाएंआपके इस "अंहं" का यहाँ क्या मतलब समझा जावे ? क्योंकि जिस परिवार की हम बात कर रहे हैं, बहुत वक्त नहीं हुआ है जब इसके सभी सदस्यों को मात्र उबले आलू खाकर जीवन भी गुजारना पडा है.
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति और एक नए तीर्थस्थल के बारे में ज्ञात हुआ | कृपया मिलने या दर्शन का समय और कोई फ़ोन नंबर इत्यादि भी दें जिससे वहां जाकर उनसे मुलाक़ात हो सके | आभार |
जवाब देंहटाएंअद्भुत घटना ...
जवाब देंहटाएं@ श्री तुषारराज रस्तोगीजी,
जवाब देंहटाएंमिलने या दर्शन के समय की बात तो उपर सविस्तार किसी भी पूनम के दिन सुबह 10 बजे के आसपास के रुप में चल ही रही है । इन्दौर शहर के स्मृति नगर में इस परिवार का निवास है और यदि इसके आगे आपकी कोई सद्ईच्छा हो तो मेरे ई-मेल आई डी sushil28bakliwal@gmail.com पर आप कभी भी सम्पर्क कर सकते हैं ।
ऐसी घटनायें कभी कभार सुनने में आती रहती हैं। सुशील जी, मैं खुद को नास्तिक नहीं मानता लेकिन ऐसी घटनाओं पर विश्वास करना भी सहजता से नहीं हो पाता।
जवाब देंहटाएंबहुत ही रोचक।
जवाब देंहटाएंरोचक है मगर असंभव नहीं ………इस दुनिया मे सब्कुछ संभव है।
जवाब देंहटाएंरोचक और विचित्र भी ।
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