अभी इसी नये वर्ष के अपने पहले आलेख उम्मीद पे कायम दुनिया. में मैंने मंहगाई के वर्तमान कारणों
में सबसे प्रमुख कारण के रुप में जिस कमोडिटी व्यवसाय (वायदा कारोबार) का उल्लेख
प्रमुखता से किया था आज देश के शीर्षस्थ समाचार-पत्र नईदुनिया के मुखपृष्ठ पर भी
वायदा कारोबार पर 'उनका मोह इनकी आफत' शीर्षक से इसी माध्यम को वर्तमान
त्राहिमाम्-पाहिमाम् मंहगाई के प्रमुख कारण के रुप में देखा जाता बताया गया है ।
जहां एक ओर इस वायदा कारोबार की खिलाफत में देश के अधिकांश अर्थशास्त्रियों के साथ
कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिष्ट पार्टी, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री
सभी एकजुट दिखाई दे रहे हैं, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र जोशी की अध्यक्षता में गठित
कमेटी भी है, वही
दूसरी ओर सिर्फ और सिर्फ देश के कृषि मंत्री शरद पंवार के सम्मुख सभी बौने साबित हो रहे हैं ।
वर्ष 2003 मे जिस वायदा कारोबार को किसानो के हित
में मानते हुए सरकार ने जिन 54 जिंसों का वायदा कारोबार करने पर सहमति दी थी और जिसमें अभी 40 जिंसों पर वायदा कारोबार चल रहा है, उसमें यदि किंचित मात्र भी किसानों का
भला हो रहा होता तो तबसे अब तक 12 हजार से अधिक किसान आत्महत्या करने पर मजबूर न हुए होते । एक
ओर जहाँ किसानों को अपनी फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है, वहीं दूसरी ओर 30-35/- रु. किलो बिकने वाली हल्दी 250/- रु. प्रति किलो पर, कालीमिर्च 300/- रु., जीरा 200/- रु., सोया तेल 70/- रु., शक्कर 40 से 50/- रु., गेहूँ 15 से 17/- रु. प्रतिकिलो तक बिक ही नहीं सकते थे, यदि इन पर वायदा कारोबार की बेतहाशा
सट्टेबाजी न चल रही होती । सीजन में 2 /-रु. प्रतिकिलो थोक में बिक जाने वाला
प्याज 100/- रु. किलो तक के भाव दिखाते हुए जहाँ बहुसंख्यक देशवासियों को मुंह
चिढाता दिख रहा है वहीं कार्टूनिष्टों व व्यंगकारों को अलग-अलग तरीकों से अपनी
लेखनी चलाने के रास्ते भी दिखाता चल रहा है ।
अभी लगभग 4-5 माह पूर्व जब 22/- रु. किलो से बढते हुए शक्कर के भाव 30-32/- रु. किलो के पार हुए थे और देश भर में चिन्ता व विरोध के स्वर उठना प्रारम्भ हुए थे तब इन्हीं कृषिमंत्रीजी के इस वक्तव्य ने कि अभी दो महिने शक्कर की कीमतों में सुधार की कोई गुंजाईश नहीं है इन जमाखोरों व सटोरियों को और भी खुलकर खेलने का स्वर्ण अवसर प्रदान किया और शक्कर भाव फिर बढते हुए 38/- रु. किलो के पार हो गए थे । उनका ऐसा ही वक्तव्य वर्तमान में प्याज के दामों में बेतहाशा बढोतरी के दौरान भी सामने आया । अब यदि सरकार असहाय है तो हमें भी ये मान लेना चाहिये कि देश की वास्तविक सत्ता इस समय श्री शरद पंवारजी ही संचालित कर रहे हैं । फिर देश की जनता के समक्ष मेडम सोनिया अथवा सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह कितनी भी पावरफूल शख्सियतों के रुप में क्यों न दिखते रहे हों ।
इस कमोडिटी कारोबार (जिसे लोग डब्बा ट्रेडिंग भी कहते हैं) से जुडा एक और पहलू यह भी है कि इसने अपने-अपने क्षेत्रों में पीढियों से जमे व्यवसायियों को अन्दर ही अन्दर खोखला करके दीवालिया करवा दिया है । अकेले इन्दौर शहर में अनाज का कारोबार करने वाले कई व्यापारियों के साथ ही सोने के बढते भावों की आकर्षक ट्रेडिंग के मोह में बरबाद हो चुके व्यवसाईयों में एम. जी. ज्वेलर्स सहित अनेक नामचीन हस्ती रहे व्यवसायिक संस्थानों का उल्लेख किया जा सकता है, जिसमें एम. जी. ज्वेलर्स को तो अपना पीढियों से जमा-जमाया कारोबार सदा-सर्वदा के लिये बन्द ही कर देना पडा । जबकि निरन्तर बढते जा रहे मूल्यों के कारण तो इनकी हैसियत व रुतबा बढते हुए ही दिखना चाहिये था । आपमें से भी अनेकों पाठकों ने इस वायदा कारोबार उर्फ कमोडिटी व्यवसाय उर्फ डब्बा ट्रेडिंग की गिरफ्त में आकर अपने इर्द-गिर्द ऐसे अनेक व्यवसायियों को अपने पुश्तैनी व्यवसाय में ही तबाह होकर दीवालिया या गरीब होते हुए अवश्य ही देखा होगा ।
इस वायदा कारोबार (कमोडिटी व्यवसाय)
की अनियमितताओं के सन्दर्भ में अखबार लिखता है कि- शेअर बाजार में निवेशक को पेन
नं. अनिवार्य है किन्तु वायदा कारोबार में नहीं । मार्जिन पक्षपातपूर्ण और समय
गुजरने के बाद लगाया जाता है । ट्रेडिंग लाट छोटे नहीं किये जाते और डिलीवरी
लेना-देना अनिवार्य नहीं है । याने सारे नियम बडे-बडे थैलीशाहों की सुविधा अनुसार
चलते हैं और इन्हीं वजहों से बडे व्यापक पैमाने पर सट्टेबाजी चलती है । पिछले अनेक
दिनों से इसी मंहगाई के कारण हो सकने वाली सख्ती के डर से शेअर बाजार जो सामान्य
तौर पर देशों की आर्थिक तरक्की के मापदंड माने जाते हैं वह भी निरन्तर गिरावट के
नित नये रेकार्ड बनाते हुए दिखाई दे रहे हैं ।
उपरोक्त तथ्यों की रोशनी में यह तय है
कि इस जानलेवा मंहगाई का एक सर्वाधिक प्रमुख कारण इस समय यह वायदा कारोबार (कमोडिटी) बन गया है
और इस ब्लाग-जगत में जितने भी पावरफूल शख्स मौजूद हैं, मैं उन सभीसे यह निवेदन करना चाहूँगा
कि अपनी लेखनी के साथ ही समाचार-पत्रों व राजनैतिक हल्कों तक की अपनी पहुंच के बल
पर खाद्य वस्तुओं के इस वायदा व्यवसाय को रुकवाने के लिये सीमित स्तर पर ही सही
लेकिन जो कुछ भी प्रयास जिसके लिये भी सम्भव हो सकें वह अवश्य करें । सम्भव है उनके
द्वारा लगातार उठाए जा रहे विरोधों के इन स्वरों के परिणामस्वरुप देश की बहुसंख्यक
जनता का कुछ भला हो सके ।
भले ही इस वायदा करोबार से सरकार को
करोडों रुपये की टेक्स आमदनी हो रही हो किन्तु यदि एक ओर किसानों को आत्महत्याओं
के दौर से बचाने के लिये करोडों रु. के अतिरिक्त फंड बनाना पड रहे हों और दूसरी ओर
देश की 95% से
भी अधिक जनता त्राहि-त्राहि कर रही हो तो सरकार के लिये भी टेक्स में प्राप्त ऐसी
मोटी आमदनी का आखिर क्या लाभ है ?
सच कहा आपने सुशील जी !!
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है..
जवाब देंहटाएंbilkul sahi kaha
जवाब देंहटाएंPlease visit my blog.
Lyrics Mantra
Banned Area News
ऐबी किस्म का इन्सान है, तभी तो थोबड़ा भी टेड़ा हुआ !
जवाब देंहटाएंगोदियाल साहेब,
जवाब देंहटाएंआपकी बेबाकी का वाकई कोई जवाब नहीं ।
वायदा कारोबाद मंहगाई की सबसे बडी जड है।
जवाब देंहटाएं---------
डा0 अरविंद मिश्र: एक व्यक्ति, एक आंदोलन।
एक फोन और सारी समस्याओं से मुक्ति।
रंक्तरंजित विकास लेकर क्या करेंगे हम।
जवाब देंहटाएंआपका नजरिया बढ़िया है!
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने इस जानलेवा मंहगाई का एक सर्वाधिक प्रमुख कारण इस समय यह वायदा कारोबार (कमोडिटी) बन गया है
जवाब देंहटाएंआज शेयर बाज़ार दरअसल सरकारी मान्यताप्राप्त जुआघरों से ज़्यादा कुछ भी नहीं हैं. रही सही क़सर तब से निकल गई है जबसे खाने-पीने की चीज़ों को भी इसी अड्डे चढ़ा मारा है सरकार ने...
जवाब देंहटाएंसुशील जी इसके उलट आप सस्ताई पर लेख लिख कर देखिए, आपको बड़ी सहूलियत होगी।
जवाब देंहटाएं... uff ... vaaydaa baazaar !!
जवाब देंहटाएंदैनिक जीवन में उपयागी वस्तुओं के मूल्यों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है लेकिन किसानों द्वारा उत्पादित फसलों के मूल्यों में कोई वृद्धि नहीं हो रही है। इसीलिए किसान कर्ज ले लदते जा रहे हैं और आत्महत्या कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंकिसानों को उनके उत्पादन का भरपूर मूल्य मिलना चाहिए, तभी उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आ सकता है।
सामयिक लेख के लिए धन्यवाद।
बहुत सही कहा है|
जवाब देंहटाएंआपने सही नब्ज़ पकडी है जब तक वायदा कारोबार होता रहेगा मंहगाई बढती ही रहेगी अब देखिये ना सोने और चाँदी को कभी किसी ने इस तेज़ी से बढते नही देखा था मगर अब सब हो रहा है ।
जवाब देंहटाएंआद.सुरेश जी,
जवाब देंहटाएंआपके लेख हमेशा ज्वलंत समस्याओं पर तथ्य पूर्ण और सारगर्भित होते हैं !
महंगाई पर गहरी विवेचना है आपके आज के लेख में !
धन्यवाद,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
लगता है उद्योगपतियों से चंदे वसूले जा रहे हैं!महंगाई उनके हाथ की कठपुतली बन गयी है !
जवाब देंहटाएंतिक्ष्ण नज़र है आपकी कारोबार और महंगाई पर, सार्थक लेखन, बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया पोस्ट है ... महंगाई पर आपने बहुत सुन्दर ढंग से विश्लेषण किया है
जवाब देंहटाएंसामाजिक सरोकारों से जुडी एक अच्छे पेशकश
जवाब देंहटाएंबहुत सही कहा है|
जवाब देंहटाएंएक सामयिक आलेख !
जवाब देंहटाएं