29.1.11

आज का दिन हो गया विशेष...

      हमारे इस ब्लाग नजरिया के लिये आज विशेष महत्वपू्र्ण    शायद किसी सीमा तक गौरवपूर्ण दिन माना जा सकता है । गणतंत्र दिवस पर 26-1-2011 को प्रकाशित इस ब्लाग के आलेख सारे जहाँ से अच्छा...? ? ? के विचारों का विशेष उल्लेख इस आलेख के साथ ही राष्ट्रीय दैनिक जागरण में फिर से... शीर्षक के अन्तर्गत 27-1-2011 के संस्करण में  पृष्ठ 7 पर प्रकाशित हुआ है ।

         नीचे इस समाचार की कतरन के साथ ही मूल समाचार पत्र की लिंक यहाँ प्रस्तुत की गई है । आप माऊस क्लिक की मदद से चटका लगाकर दोनों रुपों में इसे यहाँ पढ सकते हैं- 
  
         निःसंदेह मेरे लिये ये विशेष महत्वपूर्ण बात इसलिये भी लगती है कि न तो मैं कोई लेखक रहा हूँ, ना ही पत्रकार, और ना ही कोई विधिक या साहित्यिक विचारक की किसी पृष्ठभूमि से संबद्ध ही रहा हूँ । लेकिन एक सामान्य नागरिक की आवाज का प्रतिनिधित्व मेरे द्वारा अपनी सामान्य भाषा, विचार व लेखन शैली  के रुप में यहाँ प्रस्तुत होता रहा है, और इस माध्यम से किसी अ-उल्लेखनीय नागरिक की ये सार्वजनिक सोच जो उसके अंतर्मन से इस लेखन के द्वारा निकले और राष्ट्रीय स्तर पर उसके चर्चे होने के साथ ही वो विचार शेष दुनिया में भी फैल जावेये चमत्कार ब्लाग्स के इस सशक्त माध्यम से ही सम्भव हो सकता था. अतः ब्लाग माध्यम की इस सशक्तता को मैं बारम्बार नमन करता हूँ । 

       आप सभी के अमूल्य सहयोग हेतु पुनः अनेकों धन्यवाद ...  

        आपके समर्थन की विशेष कामनाओं सहित... 

28.1.11

एक दिन का बादशाह !


      कल भाई श्री जाकिर अली 'रजनीश' के ब्लाग 'मेरी दुनिया मेरे सपने' की एक पोस्ट "हिन्दी के सर्वाधिक चर्चित/पढे जाने वाले ब्लाग" पढी । निःसंदेह इस पोस्ट ने कई ब्लागर्स मित्रों को खुश होने का पूरा अवसर उपलब्ध करवाया । किन्तु सभी पाठकों से विनम्रतापूर्वक क्षमा चाहते हुए मैं ये बताने की कोशिश करना चाह रहा हूँ कि जिस 'बिज इन्फार्मेशन' साईट का उल्लेख और सर्वेक्षण का निष्कर्ष भाई श्री जाकिर अली जी ने दिया है वह आंकडों की भाषा में सही होते हुए भी वास्तविकता के धरातल पर गले उतर सकने जैसा इसलिये नहीं लगा कि व्यवहारिक अनुभवों में शायद सभी ब्लागर्स मित्रों ने किसी सीमा तक यह बात देखी होगी कि हिन्दी के ब्लाग्स की सारी रेलमपेल मोटे तौर पर पोस्ट प्रकाशित होने के इकलौते एक दिन ही चलते दिखती है और दूसरे दिन उस ब्लाग पर विजिटर्स की संख्या 25% तक भी बमुश्किल ही पहुँच पाती है और मेरी समझ में ऐसा इसलिये होता है कि उस एक दिन वो पोस्ट ब्लाग एग्रीगेटर्स पर दिखती रहती है इसलिये वे सभी पाठक जिनकी उस पोस्ट को पढने में रुचि होती है वे उसी दिन उसे पढ लेते हैं । उस ब्लाग के फालोअर्स भी लगभग उसी दिन उस पोस्ट को पढ चुके होते हैं और दूसरे दिन सीधे उस ब्लाग की पाठक संख्या 20% या 25% के दायरे में पहुंच जाती है जो पोस्ट के न बदल पाने की स्थिति में और भी घटते-घटते कई बार तो 0 तक भी आ जाती है, जबकि यहाँ बात प्रतिदिन के आधार पर चल रही है न कि उच्चतम संख्या की, जबकि कई ब्लाग्स पर तो सप्ताह भर में भी पोस्ट बदल नहीं पाती है ।

        अब यदि हम उच्चतम संख्या के आधार पर भी बात करें तो- यह समझने के लिये मैंने इस साईट पर अपने तीनों ब्लाग्स को चैक किया और सामान्य जानकारी के लिये सिर्फ इसी ब्लाग नजरिया के लिये प्राप्त निष्कर्ष के आंकडों का वह विवरण जो मुझे उस साईट से प्राप्त हुआ उस पर आप भी नजर डालिये...

       ब्लाग का नाम        वैश्विक रैंक        भारतीय रैंक        प्रतिदिन पृष्ठ        प्रतिदिन विजिट
         नजरिया             497,590.           34,566              750                  750

        मैं नहीं समझ पाया कि जब श्री जाकिर अली 'रजनीशजी' ने 500 विजिट्स प्रतिदिन के आधार पर सर्च किया तो इस ब्लाग के निष्कर्ष सामने क्यों नहीं आ पाये ?

        अब यदि मैं मेरे इस ब्लाग नजरिया के वास्तविक आंकडों की बात करुं तो इस ब्लाग पर 9-12-2010 से 8-1-2011 तक की अवधि में कुल वास्तविक विजिटर्स जो आए उनकी संख्या 369 से 2345 तक पहुंचकर कुल पाठक योग 1976 पाठकों का 30 दिन में रहा फिर 9-1-2011 से 27-1-2011 तक यह संख्या 2345 से 3715 तक याने कुल पाठक संख्या इस ब्लाग पर इन 18 दिनों में 1370 विजिटर्स की रही, और किसी भी एक दिन में सर्वाधिक पढी जाने वाली पाठक संख्या मेरे पास उपलब्ध प्रमाणिक आंकडों के मुताबिक अब तक 144 पाठकों की रही है ।

         मैंने अपने इस ब्लाग नजरिया पर इस सर्वेक्षण के लिये निर्धारित बिज इन्फार्मेशन का  विजेट लोगो लगा दिया है जिस पर क्लिक करके आप यहाँ उपलब्ध आंकडों की सत्यता परख सकते हैं और आवागमन के रुप में वह विजेट तो लगा ही हुआ है जो यह प्रमाणित करता है कि अभी तक कितने विजिटर्स इस ब्लाग पर आए हैं ।  हमारे डेशबोर्ड पर भी आंकडे कालम यह बखूबी प्रमाणित कर रहे होते हैं कि एक दिन में, एक सप्ताह में, एक महिने में कितने विजिटर्स इस ब्लाग पर आए और वे किस-किस देश से आए हैं ऐसे में यदि इस तुलनात्मक विवरण को समझने में मैं कहीं गल्ति कर रहा हूँ तो किसी भी पाठक से प्राप्त जानकारी के मुताबिक मैं स्वयं भी उस गल्ति को अवश्य ही समझना चाहूँगा ।

26.1.11

सारे जहाँ से अच्छा...? ? ?

        
        आज हमारे देश का 61वां गौरवपूर्ण गणतंत्र दिवस है । सोने की चिडिया कहलाए जाने वाले हमारे देश के गुजरे कल के गौरव के चर्चे हम सभी ने अपने-अपने स्तर पर अलग-अलग कालखंड के मुताबिक इतिहासज्ञों से, अपने पूर्वजों से व अन्य अनेकानेक माध्यमों से बहुतायद में सुने व उम्रदराज नागरिकों ने देखे भी हैं । लेकिन  मुझे इस सन्दर्भ में अपने दिल के सबसे करीब मनोज कुमार की फिल्म पूरब और पश्चिम की महेन्द्र कपूर की आवाज में प्रस्तुत ये पंक्तियां लगती हैं जिन्हें जब भी सुना जावे ये मन को अभिभूत सी करती महसूस होती हैं-

जब जीरो दिया  मेरे भारत ने, भारत ने  मेरे भारत ने
दुनिया को तब गिनती आई, तारों की भाषा भारत ने
दुनिया को पहले सिखलाई.

देता न दशमलव भारत तो यूं चांद पे जाना मुश्किल था
धरती और चांद की दूरी का अंदाजा लगाना मुश्किल था

सभ्यता जहाँ पहले आईपहले जन्मी है जहाँ पे कला
अपना भारत  वो भारत हैजिसके पीछे  संसार चला

संसार चला और आगे बढा यूं आगे बढा बढता ही गया
भगवान करे ये और बढेबढता ही रहे और फूले-फले
बढता ही रहे और फूले-फले...

           लेकिन संसार को बढता रहने व फूलने-फलने की शुभकामनाएँ देने वाले हमारे अपने भारत देश की स्थिति दुनिया के नक्शे पर इस समय कहाँ है दिन-ब-दिन बदलते राजनैतिक कर्णधारों ने आजादी का जो अर्थ इस देश के लिये लगाया है उसीका परिणाम यह दिखाई दे रहा है कि भारत में भ्रष्टाचार दुनिया के शीर्ष 4थे देश के स्तर पर आ पहुंचा है । हमारे यहाँ की भौतिक उन्नति की बातें चाहे जितनी की जावे किन्तु स्वतन्त्रता प्राप्ति के 64 वर्ष गुजर चुकने पर भी वास्तविकता अभी तक यही दिखती है कि अमरीका, चीन, जापान जैसे उन्नत देशों के समकक्ष तो हमारी उन्नति बहुत दूर की बात है, थाईलेंड जैसे छोटे से देश से भी हम उन्नति के नाम पर सालों पीछे चल रहे हैं । सन् 1947 से शुरु आजाद भारत की विकासशील देश के रुप में प्रारम्भ हुई यह यात्रा आजादी के 64 वर्ष व्यतीत हो चुकने पर भी हमें विकसित देशों की श्रेणी तक नहीं ला पाई है जबकि हमारे देश की बौद्धिक मानव सम्पदा का उपयोग कर दुनिया के अनेक देश अपना विकास अधिक तेजी से किये जा रहे हैं । हम तब भी विकासशील थे, आज भी विकासशील हैं और शायद आगे भी विकासशील ही बने रहेंगे । 
 
            जब कोई व्यक्ति जवान होने परशादीशुदा होने पर  और  फिर प्रौढावस्था में आ चुकने तक भी स्वयं को बच्चा ही मानता चला जावे और उस बचपने की ढाल से अपने सामान्य आर्थिक, मानसिक व सामाजिक विकास से दूर रहने के कारण गिनाता जावे तो वह व्यक्ति प्रशंसा का हकदार तो कतई नहीं हो सकता और जब यही बात किसी राष्ट्र के संदर्भ में करें तो ? जैसे राजा वैसी प्रजा के सिद्धांतानुसार वास्तव में आज हमारे देशवासियों की सोच यह देखने में आ रही है कि आदर्श के सारे सिद्धांत मुझे छोडकर देश के दूसरे सभी नागरिकों में दिखाई देने चाहिये । यदि इस देश की समस्त जनता जिसमें राजनेता भी शामिल हों, दूसरों के कन्धों पर पैर रखकर आगे निकलने, मौका मिलते ही देश की सारी सम्पदा उल्टे-सीधे हथकंडे अपनाकर अपने कब्जे में कर लेने, वास्तविक योग्यता को दरकिनार कर भाई-भतीजावाद को प्रश्रय देने जैसी मानसिकता से परे रहकर ईमानदार पारिश्रमिक में अपने हिस्से का काम पूरी मेहनत के साथ 110% तक परिणाम देने की सोच के दायरे में रखकर कर सकेंगे तब ही हम अपने देश के उस गौरव तक पहुँचने की कल्पना कर सकेंगे जहाँ सभी देशवासी सामूहिक रुप से सगर्व यह कह सकें कि- 


सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा...

गणतन्त्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित...     जय हिन्द.

24.1.11

ये क्या हो रहा है...?

          गणतंत्र दिवस पर होटल, लाज व धर्मशालाओं की आकस्मिक सुरक्षा चेकिंग के दौरान नगर के व्यस्ततम दवा बाजार क्षेत्र की एक लाज में दोपहर 3.30 बजे के व्यस्ततम समय में  पुलिस के हत्थे चढे एक सेक्स रैकेट में  7 युवक और 7 युवतियां आपत्तिजनक अवस्था में पकडे गए । पकडी गई  युवतियों में एक 12वीं की छात्रा और दो  देवी अहिल्या विश्व विद्यालय की छात्राएं हैं । 
                                                                                एक समाचार...

 एक विचार... 
क्या इन युवतियों के अभिभावक ये जानते होंगे कि हमारे घर की ये लडकियां जो पढने के लिये घर से निकली हैं ये वास्तविक जीवन में क्या गुल खिला रही हैं ? जीवन की सारी सुख-सुविधाएं न सिर्फ आसानी से मिल पावें बल्कि अभी और इसी समय मिल जावे भले ही इसकी कीमत स्वयं की लाईलाज बीमारियों के माध्यम से अगली पीढी तक को अथवा स्वयं के साथ ही परिवार को सार्वजनिक रुप से कैसी भी जिल्लत सहकर चुकाना पडे, किन्तु अभी की चाहतों से हमें कोई समझौता न करना पडे । 

        ये सुविधाभोगी प्रवृत्ति जनमानस को कहाँ ले जा रही है ?  

22.1.11

अब इसको क्या कहेंगे ?

        
       कुछ दिनों पूर्व समाचार-पत्रों में फिल्मी कलाकार को सिर्फ उसकी आंखों से पहचानने पर 14,000/- ऱु. मूल्य का मंहगा मोबाईल उपहार में जीतने के आफर की एक पहेली का प्रकाशन हुआ । इन्दौर के खजराना क्षेत्र निवासी एक शख्स ने अपना जबाब विज्ञापन में दर्शित पते पर भेजा । कुछ दिनों में उन्हें उत्तर मिला कि बधाई हो आपका जवाब सही है और आप अपना 14,000/- ऱु. मूल्य का मोबाईल प्राप्त करने के लिये डिलीवरी शुल्क के 4,000/- ऱु. और कमीशन शुल्क के 200/- रु. मिलाकर 4200/- रु. निम्न पते पर भेजें ।
 
          सम्बन्धित शख्स ने दिये पते वैद्ध उपेन्द्रप्रसाद, कतरीसराय के नाम पर 4200/- रु. म. आ. भेज दिया । कम्पनी ने बडी ईमानदारी से उन्हें पार्सल भी भेजा लेकिन जब उन्होंने उस पार्सल को पोस्ट आफिस में ही खोलकर देखा तो वे महाशय यह देखकर दंग रह गये कि उस पार्सल में 14000 /- रु. के मंहगे मोबाईल के बजाय पैकिट में करीने से पैक पिसी हुई मेंहदी निकल रही है । जब वे शिकायत करने पुलिस के पास पहुँचे तो पुलिस ने उन्हे उपभोक्ता फोरम में अपनी शिकायत करने का सुझाव देकर चलता कर दिया । 
 
           पाठकों को याद होगा कि इसी ब्लाग पर इस किस्म की ठगी जो मोबाईल कंपनियों के टावर लगाने के नाम पर करने के उद्देश्य से चल रही थी, उससे सचेत करती हुई एक पोस्ट 28-12-2010 को "बचके रहना रे बाबा बचके रहना रे..." के नाम से इनकी धोखेबाजी से सचेत करती हुई  भी छपी थी किन्तु ये खबर प्रतीक है कि लूटने वाले ऩये-ऩये हथकंडे अपनाते हुए अपने उद्देश्य में सफल होते जा रहे हैं और आसानी से सब मिल जावे की सुविधाभोगी सोच रखने वाले इनके जाल में फंसते भी चले आ रहे हैं ।


           सामान्य लोगों को इन खुले आम घूम रहे जालसाजों से बचाया जा सके ऐसे कानून का भय कहाँ है ?

19.1.11

हाँ ! मैंने भी प्यार किया...

                 वैसे तो जबसे होश सम्हाला है तबसे यही करते आ रहे हैं । पहले माता-पिता, भाई-बहन के प्यार से शुरु हुई प्यार लेने-बांटने की यह यात्रा कब यार-दोस्त, काम-धंधे, घूमने-फिरने, मौज-शौक से गुजरते हुए पत्नि-बच्चे, घर-परिवार, नाती-पोतों के पडाव पार करते हुए आप सबके बीच ले आई, जीवन के इन दुर्गम-सुगम मार्गों पर चलते हुए पता ही नहीं चला । अब इसी प्यार का अगला सिलसिला इस ब्लाग लेखन के साथ ही आप सभीसे मित्रता का, विचारों के आदान-प्रदान का और एक दूसरे के अनुभवों को इस लेखन-पठन के माध्यम से जानने-समझने के रुप में जुड गया है और यकीन मानिये इस प्यार का खुमार भी ऐसा ही चढा है कि पत्नि-बच्चों ने भी दिगर समस्याओं के बारे में जब तक बहुत आवश्यक ना लगे, कुछ बोलना भी बन्द कर दिया है ।

              शायद अपने प्यार के साथ इस गहराई से जुडाव ही जीवन में लक्ष्य कहलाता हो, ऐसा मैं इसलिये कह पा रहा हूँ कि अभी अपने 11 जनवरी के लेख  'ब्लाग-जगत की ये विकास यात्रामें मैंने मात्र 45 दिनों में अपने इस ब्लाग से 50 समर्थकों के जुडने की सहर्ष चर्चा की थी और आज 18 जनवरी को याने उसके अगले 7 दिनों में हमारे-आपके इस 'नजरियाब्लाग पर 10 और नये समर्थक जुडने के साथ ही ये संख्या 60 समर्थकों तक आ पहुंची है । यही नहीं बल्कि इसी अवधि में 5 नये समर्थक नेटवर्क्ड ब्लाग्स  के द्वारा भी इस ब्लाग से जुडकर 11 समर्थक इधर से भी बन चुके हैं और इसके साथ ही मेरे दूसरे ब्लाग 'जिन्दगी के रंग'  पर समर्थकों की संख्या 21 से बढकर 24 तक और इस अवधि में करीब-करीब सुप्तावस्था में रहे 'स्वास्थ्य-सुखब्लाग पर भी समर्थक संख्या 12 से बढकर 13 तक आ पहुंची है ।  अकेले नजरिया ब्लाग पर पाठकों की आवाजाही के मान से भी आंकडे कम तसल्लीदायक नहीं लग रहे हैं यहाँ भी 0 से शुरु ये पाठक यात्रा 50 दिनों की इस प्रारम्भिक अवधि में 3200 की संख्या पार कर चुकी है जबकि 15-18 महिनों पुराने लोकप्रिय ब्लाग भी 4000 के इर्द-गिर्द की पाठक संख्याओं के दायरे में घूमते यहाँ देखने में आते रहे हैं ।

              सामान्य मानव जीवन के दुःख-सुख व समस्याओं के प्रति अपनी सोच, मनोविनोद हेतु पढे व सुने गए ज्ञानवर्द्धक किस्से-कहानियां व शरीर स्वास्थ्य से जुडी सामान्य जानकारियों को आप सभीके बीच एक आम व्यक्ति की भाषा में बांटने के उद्देश्य से शुरु हुई इस ब्लाग-यात्रा को मिलने वाला आप सभी का ये समर्थन निःसंदेह मेरी उम्मीदों से बेहतर ही साबित हुआ है । जबकि शुरुआत में मेरे द्वारा यहाँ देखे अनुसार या तो भावमयी कविताओं वाले ब्लाग्स पर समर्थकों की अच्छी-खासी मात्रा मेरे देखने में आई या फिर हिन्दी साहित्य के बडे व नामी लेखकों का अनुसरण करते विद्वान लेखकों के ब्लाग्स पर समर्थकों का लगा तांता ही प्रमुखता से देखने में आता रहा था और मैं इस असमंजस में था कि मुझ जैसे सामान्य अनुभवहीन व्यक्ति के लिखे को यहाँ कौन पढेगा ? किन्तु आप सबके उपरोक्त समर्थन ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि सामान्य आवश्यकताओं का सरल भाषा में लिखा-पढा जाना शायद अधिक सहज तरीके से पाठक अंगीकार कर पाते हैं ।

              यदि अब तक की इस यात्रा को हम किसी सफलता के रुप में देखने का प्रयास करें तो इसका श्रेय मैं अपने दूसरे ब्लाग 'जिन्दगी के रंग' में 3-12-2010 को प्रकाशित लेख "निरन्तरता का महत्व" के तरीके को ही देना चाहूँगा । निष्चय ही इस चर्चा की इतनी जल्दी पुनरावृत्ति करने का शायद कोई औचित्य न रहा हो किन्तु इस दरम्यान जिस तरह के आरोप-प्रत्यारोप, अश्लील टिप्पणियां और एक-दूसरे की टांग खिंचाई के जो प्रकरण मेरे द्वारा यहाँ देखने में आए हैं उससे मेरी भी ये आशंका बलवती हुई है कि देर-सवेर इस ब्लाग पर भी दूसरों के माध्यम से तीसरे पर तीर चलाये जाने के प्रयास शुरु हो सकते हैं और इसीलिये मैं भी आपके इस ब्लाग पर फिलहाल टिप्पणी पर माडरेशन का प्रावधान लागू कर रहा हूँ । आप यकीन कर सकते हैं कि टिप्पणी बाक्स पर जिन कारणों का मैंने उल्लेख किया है उससे हटकर किसी भी टिप्पणी को यहाँ दिखने में शायद 30 मिनिट का समय भी नहीं लग पावेगा ।

              आपको याद होगा कि 21-12-2010 के अपने एक जानकारीपरक लेख "ब्लागर्स बंधुओं के उपयोग हेतु एक और जानकारी" में मैंने नोकिया x2 माडल  के जिस मोबाईल फोन का विस्तृत परिचय इसी ब्लाग पर प्रस्तुत करने का प्रयास किया था उसी फोन के द्वारा मैं अपने लेपटाप से दूरी के दरम्यान भी अपने डेशबोर्ड पर नजर बनाए रखता हूँ और आज माडरेशन के प्रायोगिक परीक्षण में भाई एस. एम. मासूम की 12.30 की टिप्पणी पर इसी मोबाईल के माध्यम से 12.40 पर मेरी नजर पडी और मोबाईल से ही दी गई कमांड से वह टिप्पणी तत्काल उसके स्थान पर प्रकाशित भी हो गई । किन्तु यदि मोडरेशन के बगैर कोई पाठक अपनी आपत्तिजनक टिप्पणी यहाँ प्रकाशित करवा जावे जिसे मैं बाद में डिलीट भी करदूं तो एक किस्म का वैचारिक मतभेद तो सम्बन्धित व्यक्ति के साथ शुरु हो ही जावेगा उससे बचने के प्रयासस्वरुप अभी इस ब्लाग पर न चाहते हुए भी मैंने टिप्पणियों पर माडरेशन लागू कर दिया है और मैं उम्मीद करता हूँ कि मेरे सभी नियमित पाठक मेरे इस प्रयास का विरोध नहीं करेंगे । कुल मिलाकर मेरे इस लेख का लब्बेलुआब यही समझें कि-

                हाँ   मैंने   भी   प्यार   किया,   माडरेशन   से   कब   इन्कार   किया,
               ऊंची-नीची फेंक-फांकगंदे-संदे वार्तालापइनसे बस परहेज किया.

                                              धन्यवाद के साथ आपके सहयोग की कामना सहित....

15.1.11

मंहगाई... मंहगाई... और मंहगाई... !

           अभी इसी नये वर्ष के अपने पहले आलेख उम्मीद पे कायम दुनिया. में मैंने मंहगाई के वर्तमान कारणों में सबसे प्रमुख कारण के रुप में जिस कमोडिटी व्यवसाय (वायदा कारोबार) का उल्लेख प्रमुखता से किया था आज देश के शीर्षस्थ समाचार-पत्र नईदुनिया के मुखपृष्ठ पर भी वायदा कारोबार पर 'उनका मोह इनकी आफत'  शीर्षक से इसी माध्यम को वर्तमान त्राहिमाम्-पाहिमाम् मंहगाई के प्रमुख कारण के रुप में देखा जाता बताया गया है । जहां एक ओर इस वायदा कारोबार की खिलाफत में देश के अधिकांश अर्थशास्त्रियों के साथ कांग्रेस, भाजपा, कम्युनिष्ट पार्टी, भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री सभी एकजुट दिखाई दे रहे हैं, गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र जोशी की अध्यक्षता में गठित कमेटी भी है, वही दूसरी ओर सिर्फ और सिर्फ देश के कृषि मंत्री शरद पंवार के सम्मुख  सभी बौने साबित हो रहे हैं ।

            वर्ष 2003 मे जिस वायदा कारोबार को किसानो के हित में मानते हुए सरकार ने जिन 54 जिंसों का वायदा कारोबार करने पर सहमति दी थी और जिसमें अभी 40 जिंसों पर वायदा कारोबार चल रहा है, उसमें यदि किंचित मात्र भी किसानों का भला हो रहा होता तो तबसे अब तक 12 हजार से अधिक किसान आत्महत्या करने पर मजबूर न हुए होते । एक ओर जहाँ किसानों को अपनी फसल का लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है, वहीं दूसरी ओर 30-35/- रु. किलो बिकने वाली हल्दी 250/- रु. प्रति किलो पर, कालीमिर्च 300/- रु., जीरा 200/- रु., सोया  तेल 70/- रु., शक्कर 40 से 50/- रु., गेहूँ 15 से 17/- रु. प्रतिकिलो तक बिक ही नहीं सकते थे, यदि इन पर वायदा कारोबार की बेतहाशा सट्टेबाजी न चल रही होती । सीजन में 2 /-रु. प्रतिकिलो थोक में बिक जाने वाला प्याज 100/- रु. किलो तक के भाव दिखाते हुए जहाँ बहुसंख्यक देशवासियों को मुंह चिढाता दिख रहा है वहीं कार्टूनिष्टों व व्यंगकारों को अलग-अलग तरीकों से अपनी लेखनी चलाने के रास्ते भी दिखाता चल रहा है ।
  
            अभी लगभग 4-5 माह पूर्व जब 22/- रु. किलो से बढते हुए शक्कर के भाव 30-32/- रु. किलो के पार हुए थे और देश भर में चिन्ता व विरोध के स्वर उठना प्रारम्भ हुए थे तब इन्हीं कृषिमंत्रीजी के इस वक्तव्य ने कि अभी दो महिने शक्कर की कीमतों में सुधार की कोई गुंजाईश नहीं है इन जमाखोरों व सटोरियों को और भी खुलकर खेलने का स्वर्ण अवसर प्रदान किया और शक्कर भाव फिर बढते हुए 38/- रु. किलो के पार हो गए थे । उनका ऐसा ही वक्तव्य वर्तमान में प्याज के दामों में बेतहाशा बढोतरी के दौरान भी सामने आया । अब यदि सरकार असहाय है तो हमें भी ये मान लेना चाहिये कि देश की वास्तविक सत्ता इस समय श्री शरद पंवारजी ही संचालित कर रहे हैं । फिर देश की जनता के समक्ष मेडम सोनिया अथवा सुप्रसिद्ध अर्थशास्त्री और वर्तमान में देश के प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह कितनी भी पावरफूल शख्सियतों के रुप में क्यों न दिखते रहे हों ।

            इस कमोडिटी कारोबार (जिसे लोग डब्बा ट्रेडिंग भी कहते हैं) से जुडा एक और पहलू यह भी है कि इसने अपने-अपने क्षेत्रों में पीढियों से जमे व्यवसायियों को अन्दर ही अन्दर खोखला करके दीवालिया करवा दिया है । अकेले इन्दौर शहर में अनाज का कारोबार करने वाले कई व्यापारियों के साथ ही सोने के बढते भावों की आकर्षक ट्रेडिंग के मोह में बरबाद हो चुके व्यवसाईयों में एम. जी. ज्वेलर्स सहित अनेक नामचीन हस्ती रहे व्यवसायिक संस्थानों का उल्लेख किया जा सकता है, जिसमें एम. जी. ज्वेलर्स को तो अपना पीढियों से जमा-जमाया कारोबार सदा-सर्वदा के लिये बन्द ही कर देना पडा । जबकि निरन्तर बढते जा रहे मूल्यों के कारण तो इनकी हैसियत व रुतबा बढते हुए ही दिखना चाहिये था । आपमें से भी अनेकों पाठकों ने इस वायदा कारोबार उर्फ कमोडिटी व्यवसाय उर्फ डब्बा ट्रेडिंग की गिरफ्त में आकर अपने इर्द-गिर्द ऐसे अनेक व्यवसायियों को अपने पुश्तैनी व्यवसाय में ही तबाह होकर दीवालिया या गरीब होते हुए अवश्य ही देखा होगा 

            इस वायदा कारोबार (कमोडिटी व्यवसाय) की अनियमितताओं के सन्दर्भ में अखबार लिखता है कि- शेअर बाजार में निवेशक को पेन नं. अनिवार्य है किन्तु वायदा कारोबार में नहीं । मार्जिन पक्षपातपूर्ण और समय गुजरने के बाद लगाया जाता है । ट्रेडिंग लाट छोटे नहीं किये जाते और डिलीवरी लेना-देना अनिवार्य नहीं है । याने सारे नियम बडे-बडे थैलीशाहों की सुविधा अनुसार चलते हैं और इन्हीं वजहों से बडे व्यापक पैमाने पर सट्टेबाजी चलती है । पिछले अनेक दिनों से इसी मंहगाई के कारण हो सकने वाली सख्ती के डर से शेअर बाजार जो सामान्य तौर पर देशों की आर्थिक तरक्की के मापदंड माने जाते हैं वह भी निरन्तर गिरावट के नित नये रेकार्ड बनाते हुए दिखाई दे रहे हैं ।

            उपरोक्त तथ्यों की रोशनी में यह तय है कि इस जानलेवा मंहगाई का एक सर्वाधिक प्रमुख कारण इस समय यह वायदा कारोबार (कमोडिटी) बन गया है और इस ब्लाग-जगत में जितने भी पावरफूल शख्स मौजूद हैं, मैं उन सभीसे यह निवेदन करना चाहूँगा कि अपनी लेखनी के साथ ही समाचार-पत्रों व राजनैतिक हल्कों तक की अपनी पहुंच के बल पर खाद्य वस्तुओं के इस वायदा व्यवसाय को रुकवाने के लिये सीमित स्तर पर ही सही लेकिन जो कुछ भी प्रयास जिसके लिये भी सम्भव हो सकें वह अवश्य करें । सम्भव है उनके द्वारा लगातार उठाए जा रहे विरोधों के इन स्वरों के परिणामस्वरुप देश की बहुसंख्यक जनता का कुछ भला हो सके ।

            भले ही इस वायदा करोबार से सरकार को करोडों रुपये की टेक्स आमदनी हो रही हो किन्तु यदि एक ओर किसानों को आत्महत्याओं के दौर से बचाने के लिये करोडों रु. के अतिरिक्त फंड बनाना पड रहे हों और दूसरी ओर देश की 95% से भी अधिक जनता त्राहि-त्राहि कर रही हो तो सरकार के लिये भी टेक्स में प्राप्त ऐसी मोटी आमदनी का आखिर क्या लाभ है ?


13.1.11

तरीका - ब्लाग लिखने का.

         

            मेरी पूर्व पोस्ट 'ब्लाग-जगत की ये विकास यात्रा' पर भाई सतीशजी सक्सेना ने टिप्पणी में एक बहुत सही बात लिखी कि इस क्षेत्र में लिखने वालों की कमी नहीं है, बल्कि पढने वालों की कमी है, सामान्य तौर पर लोग लिखे हुए को सरसरी तौर पर पढते हैं और उसी आधार पर आपके लेखन का मूल्यांकन करके या तो आगे निकल लेते हैं या फिर कामचलाऊ टिप्पणी छोडकर खानापूर्ति कर जाते हैं । मैं भी उनकी इस बात से शब्दषः सहमत हूँ । वैसे भी लोग यहाँ अपना ब्लाग बनाने आते हैं, और ब्लाग लिखने के लिये ही बनाया जाता है स्वयं के पढने के लिये नहीं, जबकि दूसरों के ब्लाग इसलिये पढे जाते हैं कि-

            1.  हमें कुछ नया जानने को मिले ।
            2.  लोकप्रिय लेखको की लेखनशैली से हमारे अपने लिखने के तरीकों में सुधार या परिपक्वता दिखे ।
            3.  हमारी टिप्पणी के माध्यम से अन्य लेखक हमारे बारे में जाने और हमारे ब्लाग तक आकर हमारा लिखा पढ सकें ।
            4.  इस माध्यम से परिवार, समाज और देश-दुनिया के बहुसंख्यक लोग बतौर लेखक हमें भी पहचानें ।

            निःसंदेह जब हम अपना ब्लाग बनाकर लिखना प्रारम्भ करते हैं तो उपरोक्त सभी लक्ष्यों की कम या ज्यादा अनुपात में पूर्ति अवश्य होती है । किन्तु समान परिस्थितियों में होने के बावजूद कुछ लोगों को बहुत जल्दी अपने इन प्रयासों में समय की व्यर्थ बर्बादी दिखने लगती है और वे निरुत्साहित होते-होते अपने लिखने के प्रयासों को कम करते हुए लिखना बन्द कर जाते हैं । वहीं कुछ लोग अपने नित नये विषयों और रोचक लेखन शैली के बल पर अपने लिये एक तयशुदा मुकाम आसानी से बना लेने में सफल हो जाते हैं । ये अन्तर क्यों होता है इसी चिन्तन का परिणाम है यह आलेख, जिससे आप-हम लेखन के इस प्रयास में अधिकाधिक पाठकों तक अपनी पहुँच बनाये ऱख सकने में बहुत हद तक कामयाब हो सकते हैं-

            सर्वप्रथम हम इस बात का ध्यान रखने की कोशिश करें कि हमारा लेख किसी भी विषय पर लिखा जा रहा हो किन्तु न तो वह अपनी संक्षिप्तता के प्रयास में दो-चार लाईन में सिमट जाने जितना छोटा हो और न ही सुरसा के मुंह के समान लम्बा खींचता चला जाने वाला हो । मेरी समझ में छोटा लेख यदि अपनी बात को पूरी तरह से कह पाने में सक्षम है तो वह तो चल जावेगा, किन्तु कितने भी महत्वपूर्ण विषय पर कितना ही तथ्यों व जानकारीपरक लेख हो लेकिन यदि आप उसे लम्बा खींचते ही चले जावेंगे तो यह तय मानिये कि पाठक उस तक पहुँचेगे तो अवश्य किन्तु गम्भीरता से पढे बगैर ही वहां से निकल भी लेंगे और उस लेखन के द्वारा आप अपनी बात अन्य लोगों तक पहुँचा पाने के अपने उद्देश्य से वंचित रह जावेंगे ।

            कभी अपनी लेखन-शैली में विद्वता दिखाने के प्रयास में हम अत्यन्त जटिल शब्दों का (जिसे हम क्लिष्ट भाषा भी कह सकते हैं) प्रयोग कर जाते हैं । निःसंदेह इससे हमारे पांडित्य की छाप पाठकों के मन में हमारे प्रति भले ही बैठ जावे किन्तु अधिकांश लोग उसे रुचिपूर्वक नहीं पढते । हमारा लिखना जितना सरल शब्दों में होगा, बात को आसानी से समझा पाने के लिये उसमें जितने लोकप्रिय मुहावरों का या चिर-परिचित दोहे अथवा सम्बन्धित फिल्मी गीतों की पंक्तियों का आसान समावेश होगा आपका लेखन आम पाठक के उतना ही करीब हो सकेगा । जहाँ तक सरल भाषा शैली की बात की जावे तो हम किसी भी समाचार-पत्र अथवा उपन्यासों में प्रयोग की जाने वाली शैली को अपने ख्याल में रखकर अपनी लेखन-यात्रा को लोकप्रियता के दायरे में बनाये रखने का प्रयास कर सकते हैं ।

             अब मेरे लिखने के तरीके पर बात करने के पूर्व थोडी सी बात संदर्भ के तौर पर मैं अपने बारे में करना चाहता हूँ-

            मेरी जीवन-यात्रा में अपने भरण-पोषण की मेरी शुरुआत एक कम्पोजिटर के रुप में रही है । कम्पोजिटर याने प्रिन्टिंग प्रेस में कार्यरत वो प्राणी जिसके हाथ से गुजरे बगैर बडे से बडे लेखक की भी न तो कोई किताब छप सकती हो और न ही कोई समाचार पत्र पाठकों के हाथ तक पहुंच सकता हो । बडे व नामी लेखकों की कुछ तो भी अस्पष्ट लिखावट (राईटिंग) हमें पढकर व समझकर कम्पोज करना होती थी । काना, मात्रा, स्पेस, पेरेग्राफ की जो समझ अपने काम के दरम्यान एक कम्पोजिटर में रात-दिन काम करते रहने के कारण बन जाती है वो कभी-कभी लिखकर प्रेस में भेज देने वाले लेखकों की लिखावट में सम्भव ही नहीं होती थी । जबकि छपी हुई सुन्दरता एक अलग ही स्थान रखती दिखती है ।

अब बात लिखने के बारे में-
            जब भी जिस भी विषय पर कुछ लिखने का विचार मेरे मन में बनता है मैं उसे अपने मस्तिष्क के तमाम आवश्यक व अनावश्यक तथ्यों के साथ बिना किसी तारतम्यता के लिखकर प्रायः 6-8 घंटों के लिये छोड देता हूँ । अगली बार जब उसे फिर आगे बढाने बैठता हूँ तब तक एक ओर जहाँ उस विषय पर लिख सकने योग्य कुछ नया दिमाग में शामिल हो जाता है वहीं पुराने लिखे हुए में जो कुछ अनावश्यक है व जिसे हटा देने से मेरे उस लेख पर कोई फर्क नहीं पडेगा वह भी सामने दिखने लगता है । तब पुराना अनावश्यक हटा देने का व नया आवश्यक उसमें जोड देने का सम्पादन सा हो जाता है । फिर उस लिखे गये को पेरेग्राफ के रुप में कहाँ रहना है यह क्रम व्यवस्थित हो जाता है, जो आज के इस कम्प्यूटर युग में तो बहुत आसान हो गया है ।

             अन्त में अपने उस बने हुए लेख को ध्यान से पढकर मैं रिपीट होने वाले शब्दों को या तो हटा देता हूँ या फिर बदल देता हूँ ।

            फाईनल मैटर को दो-तीन बार पढने से अनावश्यक शब्द हटानाप्रूफरीडिंगनुमा गल्तियां सुधारना, मैटर को उसके संतुलित आकार में रखना और पर्याप्त सहज व रुचिकर शैली में मैं अपनी बात उस लेख के माध्यम से कह सका इन सब मुद्दों पर संतुष्ट हो चुकने के बाद ही मैं उसे प्रसारित करने योग्य समझता हूँ और शायद यही कारण है कि मेरे लिखे का विषय कुछ भी चल रहा हो किन्तु वो अपने अधिकांश पाठकों तक न सिर्फ पढने के दायरे में पहुँच जाता है बल्कि निरन्तर बढते फालोअर्स के द्वारा ये संतुष्टि भी मुझे दिला पाता है कि आपका अगला लिखा हुआ भी हम पढने के लिये तैयार हैं, और शायद इसीलिये हमारे सुपरिचित डा. टी. एस. दराल सर जैसे पाठकों से मुझे यह प्रतिक्रिया भी मिल जाती है कि आपके लिखे में परिपक्वता झलकती है ।

            मुझे नहीं मालूम आपकी मेरे लेखनशैली से जुडे इस जानकारीपरक लेख पर क्या प्रतिक्रिया हो सकती है ? आपमें से कुछ पाठकों को ये व्यर्थ की बकवास भी लग सकती है और कुछ व्यवस्थित रुप से लिखना चाहने वाले पाठकों को ये भविष्य के स्वयं के लेखन के लिये उपर्युक्त जानकारी देने वाला लेख भी लग सकता है । लेकिन चूंकि हम यहाँ करीब-करीब सभी लिखने वाले ही मौजूद हैं तो कुछ तो उपयोगी मेरा यह लेख आपके लिये भी हो ही सकता है, इसी सोच के साथ ये आपके सामने है । आगे आप यदि अच्छा या बुरा सम्बन्धित अपने विचारों से अपनी टिप्पणी के द्वारा मुझे अवगत करवा सकेंगे तो भविष्य में जनरुचि को जानने समझने की सुविधा मेरे समक्ष भी रह सकेगी । यद्यपि सभी पाठक तो टिप्पणी देते नहीं हैं किन्तु जो देते हैं वे लेखक के लिये विशेष भी रहते ही हैं । तो मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि आप भी मेरे लिये सामान्य नहीं विशेष ही रहेंगे ।  शेष आपको धन्यवाद सहित...

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