29.3.11

तरुणाई की ये राह...?


          चार दोस्त ! सभी 20 से 22 वर्ष की मध्य उम्र के, एक के पिता बडे प्रापर्टी ब्रोकर, एक के कारोबारी और शेष दो के माता-पिता का प्रदेश की राजनीति में पक्ष और विपक्ष  से जीवन्त जुडाव । कुल मिलाकर सभी के पेरेन्ट्स नाम व नावां कमाने की धुन में मगन । बच्चे क्या कर रहे हैं जैसे इन्हें कोई लेना देना ही नहीं । एक के पिता ने अपने बेटे को होस्टल व एटीएम की सुविधा दिलवाकर इन्दौर में पढने के लिये भेज दिया । इसी के होस्टल के कमरे में इनमें से ही एक और दोस्त साथ में रहने लगा । शराब के दौर साथ में चलने के साथ दोनों का रोमान्स भी एक ही लडकी से हो गया । लडकी भी शायद दोनों को बराबरी से चारा डालती रही । ऐसी ही एक नशीली सी सीटिंग में जहाँ एक मित्र अपने किसी और मित्र के साथ होस्टल के इसी कमरे में बैठकर नशे की मदहोशी में उस लडकी के बारे में बात कर रहा था तो वह दोस्त जो वास्तव में उस कमरे का मालिक भी था उसने अपने इस दोस्त को उसके दोस्त के साथ कमरे से बाहर निकाल दिया ।

          अपमान की ज्वाला के साथ ही अपने पैरेन्ट्स के पैसे व पावर का रौब । अपमानित मित्र ने अपने उपरोक्त दोस्तों की मदद से उस पहले मित्र को अगले दो एक दिन में रात्रि 10 बजे काफी पिलवाने के बहाने बुलवाया और इन्हीं दोनों दोस्तों के साथ उसे अगवा कर उसके घर वालों से 5 लाख रु. की फिरौति की मांग कर राजस्थान के किसी सीमावर्ती गांव में पहले सिर पर घातक प्रहार व फिर गले में तार कसकर उस चौथे मित्र की हत्या कर देने के बाद उसकी पहचान छुपाने की नियत से किसी निर्जन खेत के गड्ढे में पहले पत्थरों से उसका चेहरा कुचलकर व उसके शव को टायरों पर लिटाकर उपर से पेट्रोल छिडककर उसे जला भी दिया । आरोपियों को देर-सवेर पकड में आना ही था । इस दरम्यान इनके गिरफ्त में आने तक पुलिस ने इनके पेरेन्ट्स को अपनी कस्टडी में रखा । जिससे इन्हें मुक्ति अपने इन नौनिहालों के पुलिस गिरफ्त में आने के बाद ही मिल सकी । अन्दर की खबर ये भी रही कि इस घटनाक्रम के समय सभी दोस्तों ने 13-13 पैग ड्रिंक ले रखी थी ।

       इधर रात्रि में अलग-अलग क्षेत्र में नागरिक जब सोकर उठें तो पावें कि उस पूरे मौहल्ले में सडक पर खडी सारी कारों के कांच उपद्रवी तत्व तोडकर भाग गये ।

          
रास्ते चलते राहगीर से रात के निर्जन प्रहर में रोककर नशे के लिये पैसे मांगे और मना करने पर चाकू के घातक वारों से उस निरपराध नागरिक की बेरहमी से वहीं हत्या कर दी ।

         
जलती होली में दुश्मनी निकालने के लिये नशे की झोंक में किसी की पूरी मोटरसायकल ही उठाकर होली के सुपुर्द कर दी । और

        
दुकान के शटर पर लघुशंका से रोकने के जुर्म में चाकू मार-मारकर दुकान मालिक की इहलीला वहीं समाप्त कर दी ।

         ये और ताजे उदाहरण हैं जो अभी-अभी घटित अपराधों के रुप में सामने आ रहे हैं । यहाँ भी इनमें से अधिकांश के आरोपी पुलिस की गिरफ्त में  हैं। सभी औसतन 25 वर्ष से कम उम्र के हैं और अधिकांश ने वारदात के समय नाईट्रावेट या इस जैसी ही किसी भयंकर मादक गोलियों का सेवन किया हुआ था और उस मादक गोली के तीव्रतम नशे के दौर में ही इन घटनाओं ने जन्म लिया ।
       
           और अब आखिर में नगर के एक धनाढ्य व्यवसायी के 18-19 वर्षीय पुत्र का इसके दो घनिष्ठ मित्रों ने अपहरण कर लेने के बाद एक ओर जहाँ अगले ही घंटे उसकी हत्या कर दी वहीं अगले दो दिनों तक उसके पैरेन्ट्स से लाख रु. और हथिया लेने की जुगत में भी लगे रहे । यहाँ भी अन्दर की खबर ये सुनी गई कि घटनाक्रम की जड में  ऐसा कोई प्रेम-प्रसंग ही रहा है जो मृतक मित्र को पसन्द नहीं था और इसीलिये इस घटना में भी दोस्ती की कीमत भरोसे में जान देकर चुकानी पडी ।
  
          इन सभी उदाहरणों में अलग-अलग क्षेत्रों के अलग-अलग पात्र नजर आ रहे हैं किन्तु इन सबमें एक बात जो कामन दिख रही है वह है इस उम्रवर्ग के ही आरोपियों की इन अपराधों में संलिप्तता । और दूसरी कामन बात जो इन सभी घटनाओं में दिख रही है वह है इन बच्चों के पैरेन्ट्स द्वारा अपने बच्चों को साधन-सुविधाएँ और पैसों की अनवरत पूर्ति करते रहने के बावजूद ये बच्चे क्या कर रहे हैं ? इनके मित्र वर्ग में किस-किस तरह के दोस्त जुड रहे हैं ? और घर पर होने की स्थिति में उस बच्चे के व्यवहार में क्या असमानता लग रही है ? इन महत्वपूर्ण मुद्दों पर इनके माता-पिता अपनी जिम्मेदारी के प्रति उदासीन ही लगे हैं ।
  
          सभी घटनाओं में नशा प्रमुख रुप से शामिल रहा है । शराब का नशा,  मादक प्रतिबन्धित गोलियों का नशा और शीशा पार्लर का नशा । फिर विपरीत सेक्स से जुडाव के साथ ही अत्युत्तम क्वालिटी के वाहन व मोबाईल के शौक की सामान्य चाहत और इन सबमें लगने वाला बेहिसाब खर्च । ये बच्चे अपने ही दोस्तों को, अपने माता-पिता को, अपने दादा-दादी को अपना आसान शिकार बनाकर इस अनाप-शनाप खर्चे को जुटाने की राह पर चल रहे हैं । 
              
           एक और कारण जिसका उल्लेख ये माता-पिता अब मजबूरी में करते दिख रहे हैं वो है इन बच्चों के द्वारा माता-पिता को इस धमकी के दबाव में रखना कि मेरे दोस्तों के बारे में यदि कुछ कहा तो घर छोडकर चला जाऊँगा । बच्चे वैसे ही इकलौते से रह गये हैं, यदि बच्चा भावावेश में घर छोडकर चला जावे, या किसी तरीके से अपनी जान ही दे दे तो ? इससे बेहतर है जो जैसा चल रहा है चलता रहने दो की उनकी भावना । लेकिन चलता रहने दो की ये समझौतावादी प्रवृत्ति भी आखिर इन्हीं बच्चों के लिये कहाँ तक उपयोगी साबित हो पाई ? शायद आगे चलकर ये माता पिता जोड-जुगाड लगवाकर अपने इन बच्चों को कानून के शिकंजे से मुक्त भी करवा लेंगे । लेकिन...
  
           क्या यहाँ ये आवश्यक नहीं लगता कि माता-पिता अपनी तरुणवय संतानों की समस्त गतिविधियों पर अनिवार्य रुप से पैनी नजर रखें । उसके खर्चों को कभी भी अनियंत्रित दायरे में न जाने दे और यदि बच्चा ऐसे समय किसी भी किस्म की धौंस या धमकी अपनी बात मनवाने के लिये माता-पिता को देता दिखे तो उस समय हथियार डाल देने की बजाय बच्चे के उस बदले रवैये का सख्ती से सामना करें ।
  
        
अब भी तो इनमें से अधिकांश बच्चे अनिश्चित समय के लिये घर से दूर होकर कानून की गिरफ्त में फँस गये हैं । क्या अन्तर पड जाता यदि बच्चा धमकी देकर घर छोड जाता । बल्कि उस स्थिति में उसे स्वयं के जिन्दा रहने के साधन जुटाना सीखना भी आ सकता था जो उसके भावी जीवन में उपयोगी होता । अभी तो ये बच्चे अपने माँ-बाप को पुलिस कस्टडी में रखवाने के जिम्मेदार भी बने हुए हैं । 

          और अब तो ये सभी बच्चे पैसों की कितनी भी बडी इकाई को बिना कमाये ही इस्तेमाल करने की मानसिकता से भी जुड गये हैं, और छोटी या बडी कैसी भी सजा के दौर में कानून की गिरफ्त में फंसे और भी बडे-बडे उस्तादों से होने वाली इनकी दोस्ती  जो इन्हें जीवन में आसान रास्ते तलाशने के नये-नये ज्ञान अब बिना मांगे ही उपलब्ध करवा देंगी । इन स्थितियों में रहते  वर्षों बाद कानून की गिरफ्त से छूटने वाले ये इकलौते से बच्चे अपनी आगे की जिन्दगी कैसे गुजारेंगे यह सोच सामाजिक रुप से पर्याप्त चिंतन मांगता दिख रहा है ।

(सभी चित्र गूगल सौजन्य से)    

26.3.11

क्या ठीक है ये सोच - मुझसे नहीं होगा...!

          हममें से बहुतों के सोचने के तरीके में किसी भी नये काम के सामने आने पर अक्सर एक नकारात्मक प्रवृत्ति सामने आ जाती है और वो होती है काम सामने आते ही हथियार डाल देने की प्रवृत्ति- मुझसे नहीं होगा । जब भी कोई थोडा भी कठिन दिखाई देने वाला कोई कार्य हमारे सामने आता है तो प्रायः हमारा दिमाग उसकी पूर्ति की राह में कितनी-कितनी रुकावटें कैसे-कैसे सामने आ सकती हैं, उसे पहले ही सोचकर तत्काल इस नतीजे पर पहुँच जाता है कि ये काम तो मुझसे नहीं होगा और जब ये नकारात्मकता शुरु से ही हमारे दिमाग में घर बनाने लगे और फिर भी किसी भी कारण से यदि उसी कार्य को हमें करना भी पडे तो आधी-अधूरी चाह के साथ किये जाने वाले ऐसे किसी भी कार्य़ के परिणामों का भी नकारात्मक ही मिल पाना पहले से ही तय हो जाता है । हमारे मस्तिष्क के अचेतन से मिलने वाले ये नकारात्मक संकेत अपना असर ऐसे ही दिखाते हैं जैसे साइकल चलाना सीखने के दौर में प्रायः घबराहट में हमारा दिमाग ये सोचने लगे कि अरे सामने ये खंभा या ये झाड आ गया और मैं इससे टकरा न जाऊं, मैं इससे टकरा न जाऊं, और फिर देखते ही देखते अंततः हम उससे टकरा कर गिर भी जाते हैं ।


  हममें से कोई भी व्यक्ति किसी भी कार्य़ में पूर्ण पारंगत तो शायद कभी भी नहीं होता है और नवीनता के दौर में तो हर कोई अपनी अज्ञानता या अल्पज्ञानता के कारण वैसे ही असमंजस वाली मनोदशा से भरा होता है किन्तु हमारी ये अल्पज्ञ सी सीमित समझ घोर अन्धकार में जंगल में चलते हुए हमारे हाथ के उस कंडील के समान तो होती ही है जिसकी रोशनी पांच कदम से अधिक दूर नहीं जा पाती । अब यदि हम ये सोचकर रुक जावें कि मेरी क्षमता तो पांच कदम की ही है और रास्ता जो मुझे तय करना है वह पांच कोस तक भी पूरा होने वाला नहीं है इसलिये मेरा इस राह पर जाना संभव नहीं लगता तो सोचिये कि क्या हमारा यह निर्णय सही होगा ? ये सही है कि हमारी जानकारी का दायरा पांच कदम का ही है लेकिन ये पांच कदम आगे तक की जानकारी तो हमें लगातार हमारे कितना भी आगे चले जाने तक भी हमारे हर बढे कदम के साथ कंडील की उस रोशनी की तरह हमसे आगे चलती ही रहती है, तो फिर हमें अपने सीमित ज्ञान या साधनों से डरकर पहले से ही हार मान लेने का विचार या सोच कितना सही या गलत हो सकता है इसका निर्णय हमें अपने मन में नये सिरे से करने की आवश्यकता उस नकारात्मकता की स्थिति में समझना चाहिये ।
              
        हम कभी भी किसी खाली बोरी को खडा नहीं कर सकतेयदि बोरी को खडा करना है तो पहले उसे सामान से भरना ही होगा । ऐसे ही हमें अपने नकारात्मकताओं के खालीपन से स्वयं को बचाये रखने के लिये आत्मविश्वास के विचारों से स्वयं को भरकर रखना भी आवश्यक होता है । नकारात्मकता निःसंदेह सुखद लगती है क्योंकि वो हमें आरामप्रद स्थिति में रखते दिखती है और हमारा मन भी प्रायः उस आरामप्रदता को ही अधिक पसन्द करता है तभी तो दौडने वाले लोग चलने वालों से हमेशा कम ही दिखते हैं, और चलने वाले लोग भी बैठने वालों से कम ही देखने में आते हैं । किन्तु जो आराम या सुख हमें अपने निष्क्रिय बैठे रहने से हासिल होता है उसे हम काम किये बगैर कब तक हासिल कर सकते हैं, और निष्क्रिय अवस्था में बैठे रहकर भी हम कब तक संतुष्ट रह सकते हैं ? तो जब हर तरह से हमारा काम में लगे रहना आवश्यक है ही तो फिर हम किसी भी काम को मजबूरी में ही करना क्यों स्वीकार करें ? क्यों न किसी भी नये कार्य के सामने आते ही हम तत्काल ये सोचते हुए कि इससे हमें क्या-क्या लाभ हो सकते हैं और इसे कर लेने का सर्वश्रेष्ठ तरीका कौनसा हो सकता है ये मन्थन करते हुए हम उस काम को एक चुनौति के समान स्वीकार करते हुए उसमें भी अपने श्रेष्ठतम परिणाम लाकर अपने आप को क्यों न दिखावें ।
       
       हर महत्वपूर्ण कार्य के दौरान प्रायः हमारा वास्ता दो किस्म के व्यक्तियों से पडता है- पहले वो जो हमारे शुभचिन्तक होने के कारण हमें यह समझाने की कोशिश कर रहे होते हैं कि कहाँ आप अपने को इस बेकार के झमेले में डाल रहे हो, भगवान की दया से सब कुछ तो व्यवस्थित चल रहा है (दूसरे शब्दों में रोटी तो मिल ही रही है)और दूसरे वो जो आपको ये समझाने की कोशिश कर रहे होते हैं कि जो कुछ भी आप करने की सोच रहे हो उसे कर पाना कोई खालाजी का खेल नहीं है, आपके पहले ही इसमें न जाने कितने लोग असफल हो चुके हैं । वास्तव में ये दूसरे किस्म के लोग ही वे होते हैं जो आपके लक्ष्य से हटते ही आपके प्रति ये कहना भी चालू कर देते हैं कि देखलो एक और सीधा-सादा काम इनसे नहीं हो पाया, याने यदि आप काम करने की धुन के साथ चलते रहें तो गिनाने में वो काम कठिन और काम का ध्यान हटा दें तो फिर वही काम सामान्य । अतः प्रत्येक स्थिति में आप अपना निर्णय स्वयं लें और समझदारी का तकाजा तो ये है कि जो काम हमें अधिक कठिन लगे उस काम को हम चैलेन्ज मानकर सबसे पहले करने का न सिर्फ ईमानदार प्रयास करें बल्कि उसमें सफलता प्राप्त करके ही अपने आप को दिखावें । 

        हमें हमेशा यह याद रखने की आवश्यकता है कि आसान काम तो सभी लोग अपने-अपने स्तर पर कर ही रहे हैं, किन्तु जीवन में उपलब्धियां हमेशा उनकी ही मायने रखती दिखती हैं जो आसान या सामान्य से हटकर कठिन दिखाई देने वाले कामों में भी पूरे मनोयोग से जुटे रहकर तब तक चैन नहीं लेते जब तक सफलता आगे बढकर उनका अभिनंदन नहीं कर लेती । ऐसे किसी भी कठिन लगने वाले कार्य में सफलता को हासिल कर सकने का एक ही मूलमंत्र है जिसे हम निरन्तरता के सिद्धान्त का नाम भी दे सकते हैं और अपनी सामर्थ्य के मुताबिक निरन्तरता के चमत्कारिक परिणाम देखने के लिये इस लिंक पर प्रस्तुत लघुकथा के चमत्कारिक परिणामों को अपने मस्तिष्क में बैठाकर बडे से बडे और कठिन से कठिन कार्य भी हम इस मूलमंत्र के द्वारा सम्पादित कर अपने अपनों को दिखा सकते हैं कि-

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों, कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता.

21.3.11

पहले शुक्रिया... फिर शिकायत...!



        होली के पूर्व दो महत्वपूर्ण अवसर लगातार ऐसे सामने आ गये जिन्हें आपके समक्ष लाने के प्रयास में दोनों दिन एक-एक जानकारीसूचक पोस्ट तैयार हो गई । शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ उन सभी मित्रों का जिन्होंने इस अवसर पर मुझे अपनी हार्दिक बधाईयों के साथ ही शुभकामनाएँ प्रदान कीं । पहला विशेष अवसर था इस नजरिया ब्लाग का सिर्फ 110 दिनों की यात्रा में 200 फालोअर्स की संख्या पार कर देने का जिसकी सूचनार्थ पोस्ट ब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ? पर निम्न ब्लागर साथियों ने अपनी दिली शुभकामनाएँ व्यक्त कीं- 
       

आप सभी शुभचिंतक साथियों को बहुत-बहुत धन्यवाद. 
और श्री सत्यम शिवम जी को इसे चर्चामंच पर स्थान देने हेतु विशेष धन्यवाद...



साथ ही मेरी ये शिकायत भी-

         सबसे पहले ई-मेल सेक्शन में...

        1.  कुछ ब्लागर बंधु अपनी नई पोस्ट की जानकारी ई-मेल से ऐसे भेजते हैं जिनमें उपर 150-200 ई-मेल ID और नीचे भी 100-150 ई-मेल ID भरे होते हैं दिन भर में 10-12 ऐसे ई-मेल मुझे रोजाना प्राप्त होते हैं, और यह सम्भव नहीं हो सकता कि आप इन पोस्ट को पढें ही, इनमें से 10-15% पाठक भी वास्तव में इनकी पोस्ट तक पहुँच पाते हों ऐसा मैं नहीं समझता । अलबत्ता जिन प्राप्तकर्ताओं को भी ये ई-मेल पहुँचते हैं उन्हें इनको लगातार डीलिट करते रहने का एक काम और बढता जाता है । तो प्लीज आप मेहरबानी करके ऐसे कोई भी थोक ई-मेल ID वाले मेल भेजकर दूसरों का काम न बढावें ।


            2.  ई-मेल से ही सम्बन्धित दूसरी शिकायत उन जानकारों से भी जो अपनी पोस्ट या अन्य कोई जानकारी ई-मेल से भेजते तो हैं, लेकिन उनका ई-मेल इतनी पेचीदगियों से भरा होता है कि आप अपना नाम, ई-मेल ID, अपना जन्म दिनांक व अन्य सम्बन्धित जानकारी बार-बार फीड करते रहो फिर भी उनकी मेल तक पहुँच पाना आसान नहीं होता, और ऐसे में जब इन्हें अपने मेल का प्रत्युत्तर नहीं मिल पाता तो इनकी नाराजी भी स्पष्ट तौर पर देखी जा सकती है । ऐसे सभी ई-मेल भेजने वाले ब्लागर साथियों से भी मेरा यह विनम्र अनुरोध है कि यदि आपका ई-मेल आसानी से खुलने वाला नहीं है तो कृपया ऐसे मेल न भेजें । उसकी बनिस्बत अपने ई-मेल आप तभी भेजें जब आप आश्वस्त हों कि बिना किसी अतिरिक्त लिखा-पढी के आपका मेल संदेश प्राप्तकर्त्ता पढ भी सकते हैं और चाहें तो अपना उत्तर भी दे सकते हैं ।
   
 और अब समस्या फेसबुक से-
          
         कुछ ब्लागर साथी अपनी पोस्ट या रचना या चित्रावली जिसे वे  अपने स्वयं की वाल पर पोस्ट करके भी अपने पाठकों को दिखा सकते हैं वे उसके लिये मेरी  वाल प्रोफाईल का प्रयोग न जाने क्यूं करते हैं ? हालांकि इससे मुझे विशेष कुछ परेशानी न है और न ही होना चाहिये, किन्तु समस्या यहाँ भी वही बनती है कि उन मित्रों की उस पोस्ट या चित्र या जो कुछ भी वे मेरे वाल से प्रसारित करते हैं उस पर समूचे फेसबुक जगत से जितनी भी प्रतिक्रियाएँ आती हैं वो सब मेरे ई-मेल खाते पर जमा होती जाती हैं और उन सभी ई-मेल को डीलिट करते रहने का एक अनावश्यक कार्य मेरे लिये निरन्तर पैदा होता रहता है । यहाँ मैं किसी का भी नाम नहीं लूंगा, लेकिन ये चाहूँगा कि वे दो-चार मित्र जो अपनी पोस्ट, रचना, चित्र आदि मेरे वाल से फेसबुक के साथियों को दिखा रहे हैं वे जब तक मेरा उससे कोई सीधा सम्बन्ध ना हो तब तक वे अपनी उस प्रस्तुति को अपने ही वाल से पोस्ट करें । निश्चय ही तब भी वो मुझ सहित सभी पाठकों तक पहुँच सकेगी और मेरे लिये अनावश्यक ई-मेल डीलिट करने का व्यर्थ कार्य नहीं उपजेगा ।    

           मैं उम्मीद करता हूँ कि जिन तीन श्रेणियों की शिकायतें मैं यहाँ आप सभीको दिखा रहा हूँ उनसे यदि आपका भी कोई जुडाव रहा हो तो आप मेरी समस्या को समझते हुए इस पर ध्यान देंगे और भविष्य में मुझे ही नहीं किसी भी अन्य ब्लागर साथियों को इस प्रकार अनावश्यक धर्मसंकट में डालकर शिकायतों का मौका न देंगे ।

                                                   पुनः आप सभी को अनेकानेक धन्यवाद सहित...


19.3.11

होली की खुशियों में इसका भी ध्यान रखें.



जल बचाएं - जीवन बचाएं.
 



वनों का विनाश - जीवन का नाश.


प्राकृतिक संसाधनों के दुरुपयोग को यथासम्भव रोकें ।

यदि ये सम्भव न हो तो कम से कम उसमें सहभागी न बनें ।

 
जल बचाएं, जंगल बचाएं.

प्रतिकात्मक रुप से प्राकृतिक रंगों से सिर्फ तिलक होली मनावें ।



           
          होली के इस रंगारंग पर्व पर केमिकल रंगों के हानिकारक प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिये इस लिंक पर माउस क्लिक द्वारा चटका लगाके "बेरंग न करदें होली के ये रंग" आलेख देखें.

होली के इस रंगारंग पर्व पर हार्दिक शुभकामनाओं सहित...


18.3.11

बाकि है शुभकामना अभी...!


आज शुक्रवार 18 मार्च 2011 को हमारे पोते मास्टर हर्षल (हनी) का 3रा जन्मदिन है.

आप भी बालक के जन्मदिन की पार्टी में शाम 5 बजे से

आपके आगमन तक सादर साग्रह सपरिवार आमंत्रित हैं ।


मा. हर्षल (हनी)



मम्मी-पापा सुनील-रेखा बाकलीवाल के साथ
उनकी शादी की सालगिरह पर हर्षल

 


अपने दोनों छोटे भाईयों आर्जवसक्षम के साथ हर्षल




और दादा-दादी सुशील-सुनीता बाकलीवाल की गोद में हर्षल


आपका शुभाशीर्वाद इसके जन्मदिन की प्रसन्नताओं में सोने में सुहागा होगा ।





16.3.11

प्रसन्नता के पल...

        अपनी पिछली पोस्ट "टिप्पणीपुराण और विवाह व्यवहार में- भाव, अभाव व प्रभाव की समानता" पर ब्लागर समुदाय के महामित्र भाई श्री सतीशजी सक्सेना ने अपनी टिप्पणी में शुभकामनाओं के साथ कहा- खूब छक्के मार रहे हो. जाहिर सी बात है कि कमेंट पोस्ट के सन्दर्भ में चल रही थी लेकिन सिक्सर की एक हेट्रिक तो इस नजरिया ब्लाग की सीमित सी यात्रा में भी लग चुकी है- 

27  नवम्बर  2010   -    सत्रारम्भ.

11 जनवरी  2011 -  पहला सिक्सर.

21 फरवरी  2011 -  दूसरा सिक्सर.

16 मार्च  2011  -  और ये  हेट्रिक.
 

मात्र 110 दिनों की इस एकल ब्लागयात्रा में आप सभी के स्नेहपू्र्ण सहयोग से

ऐतिहासिक 200 फालोअर्स 

के दोहरे शतक की संख्या पूर्ण होने की इस रेकार्ड उपलब्धि पर 

विशेष स्वागत- डा. नूतन डिमरी गेरोला नीति का 200वीं फालोअर्स बनने पर.

धन्यवाद...           शुक्रिया...          Thank You.


अपने उन सभी सम्माननीय सीनियर्स साथियों का जिन्होंने
आवश्यकतानुसार यहाँ चलते रहने का मार्ग सुझाया.

और इसके साथ ही उन सभी नये व जूनियर्स मित्रों को भी जिन्होंने 
अपनी इस ब्लाग-यात्रा की शुरुआत हेतु मेरे सुझावों का सम्मान किया.
 
इस विशेष अवसर पर इन सभी 200 समर्थकों के साथ ही

नेटर्वक्ड ब्लाग के 30 अन्य समर्थकों का भी.

 और

इनके साथ ही मेरे उन सभी टिप्पणीकार मित्रों का भी जिन्होंने इस ब्लाग पर 
छोटी सी इस सीमित अवधि में मेरी 41 पोस्ट पर अपनी 
प्रेरणात्मक, सुझावात्मक या आलोचनात्मक 1062 टिप्पणीयों के द्वारा 
मेरी इस लेखन-यात्रा को आगे बढवाने में प्रत्यक्ष या परोक्ष रुप से अपना अमूल्य योगदान दिया.

और अन्त में इस ब्लाग के उन सभी पाठक बन्धुओं का भी जिन्होंने इस ब्लाग की वास्तविक पाठक संख्या को 
इस सीमित सी अवधि में 7,000 हिट्स के मुहाने पर ला बैठाया ।

इस विशेष अवसर पर समयानुकूल होने के कारण प्रस्तुत है उधार की ये रचना-
 
कैसे कैसे रंगों और कैसे कैसे रुपों के,
अपनी कृति मे मैं आपको स्वाद देता हूँ
आप इस स्वाद को चखना चाहें या नहीं
पर टैग करके मैं उसे लाद देता हूँ

मेरी रचना पे भले खुजली ही मुझे मिले
मैं भी रचना पे आपकी दाद देता हूँ
मेरी  मित्र सूचि में इजाफा करने के लिये
सभी बंधुगणों को में धन्यवाद देता हूँ ।

 


14.3.11

व्यवहार में- भाव, अभाव व प्रभाव की समानता.

                            
          अक्सर शादी-ब्याह के दौर में देखने में आता है कि जब भी किसी परिचित के यहाँ से शादी का निमन्त्रण आता है तो घरों में महिलाओं में ये विचार मन्थन चालू हो जाता है कि अपने यहाँ के कार्यक्रम में उनके यहाँ से कितने का लिफाफा आया था, आवश्यकता लगने पर अपने यहाँ के शादी समारोह के रेकार्ड भी निकलवाए जाते हैं और हिसाब मिलते ही संतुष्ट अवस्था में ये तय हो जाता है कि इस शादी में इतने का लिफाफा तो देना ही है । सामान्यतौर पर ये चिन्ता मध्यमवर्गीय परिवारों में अधिक देखने में आती है और ब्लागवुड में भी मध्यमवर्गीय समुदाय  में इस बात का अधिकतम ख्याल रखने का प्रयास किया जाता है कि अपनी पोस्ट पर उनकी टिप्पणी आई थी इसलिये अब उनकी नई पोस्ट पर अपनी टिप्पणी भी जाना  चाहिये । मेरी समझ में ये समानता का वो भाव है जो व्यवहारिकता के दायरे में वैवाहिक अवसरों पर जैसे लेन-देन के सामान्य व्यवहार को कायम रखवाता है वैसे ही ब्लागवुड में एक-दूसरे की पोस्ट पर टिप्पणियों की सामान्य संख्या को भी कायम रखवाते हुए परस्पर सहयोग की भावना के साथ मध्यम वर्ग को उन्नति के समान अवसरों में बनवाए रखने की सामान्य आवश्यकता में हमेशा मददगार साबित होता है ।
  
          फिर बात आती है अभाव की- वे सभी लोग जो अभावग्रस्त स्थितियों में रहते हैं और जिनके लिये स्वादिष्ट व विशेष व्यंजनों से परिपूर्ण भोजन अक्सर दुर्लभ होता है वे व्यवस्थित परिधान में जाकर अपने सामने आने वाले किसी भी समारोह में भोजन का आनन्द लेकर पान-पत्ते दबाते हुए घर आ जाते हैं । एक और वर्ग युवा छात्रों का जो पढने के उद्देश्य से दूसरे शहरों से आकर होस्टल में दोस्तों के साथ रह रहा होता है और केन्टीन का एक जैसा खाना खाकर स्वादिष्ट भोजन के लिये प्रायः तरसता रहता है वे दो-चार मित्र मिलकर भी अभाव की इस स्थिति में निःसंकोच दूसरों के पंडाल में खाना खाने चले जाते हैं । इधर इस ब्लागवुड में यही स्थिति मुझे कुछ यूं दिखाई देती है कि वे सभी नये ब्लागर जिनकी अधिक पहचान नहीं बनी होती है और जिनकी पोस्टों पर टिप्पणी के स्थान पर प्रायः 0 या इक्की-दुक्की टिप्पणियां रहती हैं वे सभी अभावग्रस्त ब्लागर आज अपना हो न हो पर कल हमारा है कि शैली में जो भी पोस्ट उनके सामने आती है करीब-करीब सभी पर अपनी टिप्पणी अक्सर दे ही देते हैं ।
 
           और अन्त में बात प्रभाव की-  जब किसी रईस या नामी-गिरामी व्यक्ति के परिवार में विवाह जैसा कोई फंक्शन सामने आता है तो उनके सम्पर्क में रहने वाले वे सभी लोग जो न्यूनाधिक उनके कल-कारखानों या आफिस में अथवा उनके सामाजिक सम्पर्कों के दायरे में थोडे भी उनकी मुंहलगी शैली में अपना व्यवहार दर्शाने में सिद्धहस्त होते हैं तो ऐसे अवसरों पर वे उस समारोह का निमन्त्रण कार्ड नहीं मिलने पर भी ये मानते हुए कि व्यस्तता के दौर में हमारा कार्ड छूट गया होगा, साधिकार न सिर्फ उस समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने पहुँच ही जाते हैं बल्कि अपनी ओर से अधिकतम राशि का पत्रंपुष्पं भी वहाँ भेंट कर आते हैं । इधर ब्लागवुड  में भी प्रभाव की यह स्थिति मिलते-जुलते तरीके से अक्सर यूं देखी जा सकती है कि जैसे ही किसी लोकप्रिय व सीनियर ब्लागर की पोस्ट प्रकाशित होती है वैसे ही उनकी टिप्पणियां तो वहाँ अनिवार्य रुप से दर्ज हो ही जाती हैं जिनकी पोस्टों पर उन लोकप्रिय व सीनियर ब्लागर की टिप्पणी आती रहती हैं लेकिन उन सभी ब्लागर्स की भी टिप्पणी उनके लेख की शोभा अवश्य बढा रही होती है जिनकी पोस्ट तक वे सीनियर ब्लागर प्रायः पहुँच न पाते हों ।
 
          मुझे लगता है कि भाव, अभाव और प्रभाव की जो भावना अपना घर छोडकर दूसरों के यहाँ अवसर विशेष पर भोजन के लिये हमें लेकर जाती है, वही भावना इस ब्लागवुड में हमारी पोस्ट पर अन्य ब्लागर साथियों की व अन्य ब्लागर साथियों की पोस्ट पर हमारी टिप्पणियों का इसी रुप में आदान-प्रदान करवाती रहती है । अब ऐसे में यदि किसी सम्माननीय ब्लागर की पोस्ट पर बहुत अधिक टिप्पणियां दिख रही हों तो ये उनका प्रभाव ही है फिर भले ही दूसरे ब्लागर उनकी उस संख्या को देखकर किसी भी रुप में अपना अनुमान लगाते हुए कैसी भी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हों किन्तु भाव, अभाव और प्रभाव का यह सामान्य सिद्धान्त किसी न किसी रुप में तो यहाँ भी अपनी निर्णायक भूमिका निभा ही रहा होता है ।
          
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