ब्लाग लेखन की ये दुनिया यहीं
थम जावे यदि इस पर से टिप्पणियों का चलन बन्द हो जावे । मुझे नहीं लगता कि मेरी इस
सोच से कोई भी ब्लागर शत-प्रतिशत असहमति रख पावेगा । आखिर हम लिखते ही इसलिये हैं
कि पाठक न सिर्फ हमारे लिखे को पढें बल्कि वो अपने विचारों से हमें अवगत भी करवाते
चलें ।
टिप्पणी इस ब्लाग जगत की वैसी ही अनिवार्यता है जैसे किसी कथा-वार्ता या कहानी सुनते वक्त सुनने वाले के मुखारबिन्द से चलता हुंकारा । जो वक्ता को लगातार इस बाबत प्रेरित करता रहता है कि मैं यदि बोल रहा हूँ तो सामने वाला मुझे सुन भी रहा है, और इसीलिये वो अपने सुनाने के तरीके में नाना प्रकार की रोचकता का समावेश भी अलग-अलग तरीकों से करता चलता है । किन्तु यदि सुनने वाला सुनने के दरम्यान हुंकारा भरना बन्द करदे तो, तब वार्ता सुनाने वाले को लगता है कि सुनने वाला सो चुका है और अब मुझे भी अपनी वार्ता बन्द कर देनी चाहिये ।
जो टिप्पणी ब्लाग-लेखक के लिये प्राण-वायु का काम करती हो, जिसकी गैर-मौजूदगी लेखक का हाजमा बिगाड देने की अहमियत रखती हो, जिस टिप्पणी की महत्ता पर ब्लाग-लेखकों के पचासों लेख पढे जा सकते हों । वही टिप्पणी हमें चाहिये तो अधिक से अधिक किन्तु रखेंगे हम उसे माडरेशन के नकाब में, आखिर क्यों ? क्यों हमें इस बात का डर सताता रहता है कि टिप्पणी के माध्यम से कोई खुल्लम-खुल्ला हमारा अपमान कर जावेगा या यदि और भी चलताऊ भाषा में बात को कहा जावे तो यह कि इस टिप्पणी के माध्यम से कोई हमारा शीलहरण कर जावेगा । क्या हम हमेशा ही ऐसा कुछ विवादास्पद लिख रहे हैं जिससे हर बार पढने वाले क्रुद्ध होकर हमारा अपमान करने पर उतारु हो जावें ।
मुझे एक ब्लाग याद आ रहा है शायद भंडाफोड ही रहा होगा जो विवादास्पद धार्मिक लेख अपने ब्लाग पर छापा करता था और जहाँ तक मुझे याद है उसकी टिप्पणियां भी बिना किसी माडरेशन के झंझट के तत्काल दिखने लगती थी । जबकि ऐसे लेखों पर किसी न किसी रुप में विवाद होना तो तय रहता ही है । यहाँ यदि लेखक टिप्पणी पर माडरेशन रखे या कोई पहेली के उत्तरों पर पुरस्कार दिये जाने जैसी आवश्यकता के अनुरुप इस माडरेशनरुपी हथियार का इस्तेमाल किया जावे वहाँ तो इसका औचित्य समझ में भी आता है किन्तु जब हम कोई कविता लिख रहे हों या जनसामान्य के लिये उपयोगी समझे जाने जैसे किसी विषय पर अपना लेख लिख रहे हों और वहाँ भी इन टिप्पणियों पर हम माडरेशन व्यवस्था लागू करके बैठे रहें यह बात मेरी समझ में तो नहीं आती ।
यह लिखने का विचार मेरे मन में इस कारण से उपजा कि आप किसी का लेख या कविता पढो और जैसी की आवश्यकता लगे या परम्परा के निर्वाहन जैसी औपचारिकता ही क्यों न लगे आप वहाँ टिप्पणी करो और स्क्रीन पर यह लिखा हुआ देखो कि "आपकी टिप्पणी सहेज दी गई है और ब्लाग स्वामी की स्वीकृति के बाद दिखने लगेगी" सही मायनों में इससे टिप्पणी देने वाले को एक अनावश्यक बोरियत का अहसास ही होता है। जिस प्रकार शब्द पुष्टिकरण की व्यवस्था जिस ब्लाग पर दिखती है वहाँ लोग टिप्पणी करने से कतराने लगते हैं उसी प्रकार माडरेशन की यह व्यवस्था भी जाने-अन्जाने हमारे टिप्पणीकारों को हमारे लेख पर टिप्पणी करने से विमुख भी करती ही है । भले ही इसका प्रतिशत कम होता हो किन्तु होता तो है ।
टिप्पणी इस ब्लाग जगत की वैसी ही अनिवार्यता है जैसे किसी कथा-वार्ता या कहानी सुनते वक्त सुनने वाले के मुखारबिन्द से चलता हुंकारा । जो वक्ता को लगातार इस बाबत प्रेरित करता रहता है कि मैं यदि बोल रहा हूँ तो सामने वाला मुझे सुन भी रहा है, और इसीलिये वो अपने सुनाने के तरीके में नाना प्रकार की रोचकता का समावेश भी अलग-अलग तरीकों से करता चलता है । किन्तु यदि सुनने वाला सुनने के दरम्यान हुंकारा भरना बन्द करदे तो, तब वार्ता सुनाने वाले को लगता है कि सुनने वाला सो चुका है और अब मुझे भी अपनी वार्ता बन्द कर देनी चाहिये ।
जो टिप्पणी ब्लाग-लेखक के लिये प्राण-वायु का काम करती हो, जिसकी गैर-मौजूदगी लेखक का हाजमा बिगाड देने की अहमियत रखती हो, जिस टिप्पणी की महत्ता पर ब्लाग-लेखकों के पचासों लेख पढे जा सकते हों । वही टिप्पणी हमें चाहिये तो अधिक से अधिक किन्तु रखेंगे हम उसे माडरेशन के नकाब में, आखिर क्यों ? क्यों हमें इस बात का डर सताता रहता है कि टिप्पणी के माध्यम से कोई खुल्लम-खुल्ला हमारा अपमान कर जावेगा या यदि और भी चलताऊ भाषा में बात को कहा जावे तो यह कि इस टिप्पणी के माध्यम से कोई हमारा शीलहरण कर जावेगा । क्या हम हमेशा ही ऐसा कुछ विवादास्पद लिख रहे हैं जिससे हर बार पढने वाले क्रुद्ध होकर हमारा अपमान करने पर उतारु हो जावें ।
मुझे एक ब्लाग याद आ रहा है शायद भंडाफोड ही रहा होगा जो विवादास्पद धार्मिक लेख अपने ब्लाग पर छापा करता था और जहाँ तक मुझे याद है उसकी टिप्पणियां भी बिना किसी माडरेशन के झंझट के तत्काल दिखने लगती थी । जबकि ऐसे लेखों पर किसी न किसी रुप में विवाद होना तो तय रहता ही है । यहाँ यदि लेखक टिप्पणी पर माडरेशन रखे या कोई पहेली के उत्तरों पर पुरस्कार दिये जाने जैसी आवश्यकता के अनुरुप इस माडरेशनरुपी हथियार का इस्तेमाल किया जावे वहाँ तो इसका औचित्य समझ में भी आता है किन्तु जब हम कोई कविता लिख रहे हों या जनसामान्य के लिये उपयोगी समझे जाने जैसे किसी विषय पर अपना लेख लिख रहे हों और वहाँ भी इन टिप्पणियों पर हम माडरेशन व्यवस्था लागू करके बैठे रहें यह बात मेरी समझ में तो नहीं आती ।
यह लिखने का विचार मेरे मन में इस कारण से उपजा कि आप किसी का लेख या कविता पढो और जैसी की आवश्यकता लगे या परम्परा के निर्वाहन जैसी औपचारिकता ही क्यों न लगे आप वहाँ टिप्पणी करो और स्क्रीन पर यह लिखा हुआ देखो कि "आपकी टिप्पणी सहेज दी गई है और ब्लाग स्वामी की स्वीकृति के बाद दिखने लगेगी" सही मायनों में इससे टिप्पणी देने वाले को एक अनावश्यक बोरियत का अहसास ही होता है। जिस प्रकार शब्द पुष्टिकरण की व्यवस्था जिस ब्लाग पर दिखती है वहाँ लोग टिप्पणी करने से कतराने लगते हैं उसी प्रकार माडरेशन की यह व्यवस्था भी जाने-अन्जाने हमारे टिप्पणीकारों को हमारे लेख पर टिप्पणी करने से विमुख भी करती ही है । भले ही इसका प्रतिशत कम होता हो किन्तु होता तो है ।
प्रत्येक टिप्पणीकर्ता इस बात को बखूबी समझता है कि किसी का लेख पढने के बाद यदि उस पर टिप्पणी करनी है तो वह किन शब्दों में हो जिससे लेखक के साथ उसके सामान्य रिश्ते मजबूत बनें न कि खराब हों । जाहिर है इसके लिये टिप्पणीकर्ता को लेख के बारे में कुछ सोचना भी पडता है, फिर उसे टाईप भी करना होता है और जब तक टिप्पणी या उससे सम्बन्धित निर्देश स्क्रीन पर दिखाई न देने लगे तब तक प्रतिक्षा भी करना होती है । यह ठीक है कि ये सारी प्रक्रिया एक साझा उद्देश्य (मैं तुम्हें दे रहा हूँ तो तुम मुझे भी दोगे) के निमित्त भी यदि चल रही होती है तो भी इस किस्म के साझेदार इस ब्लागवुड में हम अकेले ही तो नहीं हैं । यहाँ भी ये सिद्धान्त बखूबी काम करता है कि "तू है हरजाई तो अपना भी यही दौर सही, तू नहीं और सही, और नहीं और सही." । करीब-करीब सभी लिखने-पढने वाले यहाँ अपने जीविकोपार्जन के लिये लगने वाले समय के बाद ही यहाँ आकर शेष समय में इस माध्यम का प्रयोग अपने शौक की पूर्ति के लिये या अपने विचारों के सम्प्रेषण के लिये इस मंच पर करने आते हैं याने सब सीमित समय के लिये ही यहाँ आते हैं ऐसे में कितने व्यक्ति इस मानसिकता के साथ यहाँ आ पाते होंगे कि आज तो फलां लेखक के ब्लाग पर अनर्गल टिप्पणी करने ही जाना है ।
मुझे तो किसी भी ब्लाग लेखक के द्वारा टिप्पणियों पर लगाये जाने वाले इस माडरेशन की प्रक्रिया का कोई औचित्य समझ में नहीं आता । यदि मान भी लिया जावे कि सौ-पचास में कोई एक टिप्पणी हमारे आलेख पर किसी ने ऐसी दे भी दी जो हमें उचित नहीं लग रही हो तो हमारे पास उसे वहाँ से हटा देने का विकल्प भी सेटिंग में मौजूद रहता ही है फिर क्यों हम उन सभी टिप्पणिकर्ताओं से डर या सहमकर बैठे रहें कि प्रत्येक टिप्पणी जो हमारे आलेख पर हमें मिलेगी उसे पहले हम पढेंगे और हमें अच्छी लगी तो अपनी रचना के नीचे उसे स्थान देंगे वर्ना वहीं से उसे चलता कर देंगे । कुल मिलाकर माडरेशन प्रणाली के किसी भी समर्थक की सोच अनचाहे तौर पर ही सही लेकिन क्या उस दायरे में नहीं चली जाती जिसके लिये कहा जा सके कि- मीठा-मीठा गप और कडवा-कडवा थू.
प्रत्येक ब्लाग लेखक यहाँ सिर्फ और सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के समर्थन में ही इस मंच पर आया होता है, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विषय पर लम्बे-चौडे लेख लिखता है लेकिन टिप्पणियों पर माडरेशन का यह नकाब औढाकर सबसे पहले अभिव्यक्ति का गला भी वही घोटते नजर आता है । यदि ऐसी सोच के साथ ऐसे व्यक्ति शासक-दल में किसी नीति-निर्धारक की हैसियत से पहुँचेंगे तो वे इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिर्फ दिखावी तौर पर ही हिमायती दिख पावेंगे । अन्दरुनी तौर पर तो सेंसरशिप कैसे लागू रखी जावे जिससे मैं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का पक्षधर भी लगूँ और मेरी इच्छा के बगैर कहीं कोई पत्ता भी न खडके वाली कार्यप्रणाली के अन्तर्गत ही कार्य करते नजर आ पावेंगे ।
विशेष- ब्लागलेखन में टिप्पणियों की भूमिका प्राणवायु जैसी आवश्यक दिखने के बाद भी अनेक ब्लाग्स पर ये माडरेशन प्रणाली देखे जाने पर मुझे यह आपत्तिसूचक लेख लिखना समझ में आया और मैंने किसी के भी प्रति बगैर किसी दुर्भावना के इसे लिखकर सभी लेखकों व पाठकों की अदालत में प्रस्तुत कर दिया है । यदि आपको इसे पढने के बाद ये लगता है कि मेरा सोचना एकपक्षीय है और माडरेशन प्रणाली के बगैर तो अनेक समस्याएँ सामने आ खडी होंगी तो मैं आपके विचारों को भी न सिर्फ समझने का बल्कि ग्राह्य करने का भी प्रयास करुँगा किन्तु यदि अन्य पाठकों को जो मेरे जैसे तरीके से इस प्रतिबन्ध की अनावश्यकता को महसूस कर रहे होंगे तो उनके विचारों का भी अपनी इस सोच के पक्ष में विशेष स्वागत करुंगा । आगे फिर विचार भी आपके और फैसला भी आपका.
टिप्पणी माडरेशन बडे ब्लागर की पहचान है ;)
जवाब देंहटाएंसुशील बाकलीवाल जी कई बार असभ्य भाषा में की गई टिप्पणियों से बचने के लिए भी मोडरेशन लगाया जाता है, और वहीँ कुछ स्पेम टिपण्णी भी होती हैं जो की आपके ब्लॉग को नुक्सान पहुंचा सकती है, इस हालत में टिपण्णी मोडरेशन उचित ही है... लेकिन मोडरेशन का मतलब आलोचनात्मक टिप्पणियों को रोकना नहीं होना चाहिए... मेरे विचार से तो आलोचना ही लेखक के लिए प्रेरणा होती है... वर्ना चापलूसी भरी टिपण्णी केवल दंभ ही बढाती है...
जवाब देंहटाएंविवादों से बचने के लिए मोडरेशन का विकल्प सही है, मगर इसे अपने लेखन की आलोचना मिटाने के लिए उपयोग नहीं किया जाना चाहिए ...!
जवाब देंहटाएंआपके एक एक शब्द से सहमत...
जवाब देंहटाएंअगर हम कहीं न कहीं अभिव्यक्ति (अश्लील और भद्दे शब्दों को छोड़कर) का गला घोटते हैं तो फिर किस मुंह से देश में लोकतंत्र की वकालत करते हैं...
इसी विषय पर मेरे दो लेख...
http://www.deshnama.com/2010/12/blog-post_25.html
http://www.deshnama.com/2010/10/blog-post_07.html
जय हिंद...
सामान्यतः माडरेशन की जरूरत नहीं समझ में आती, कुछ तकनीकी जानकार स्पैम आदि जैसा कुछ लिखे होते हैं, पता नहीं क्या मामला है. ऐसा भी लगता है कि कुछ लोग टिप्पणियों पर अपनी टिप्पणी के साथ उन्हें प्रकाशित करते हैं, शायद इसलिए माडरेशन रखते हैं. यह एक सुविधा है आवश्यकतानुसार सदुपयोग किया जाए तो हर्ज क्या, लेकिन माडरेशन अनावश्यक लगाने का कोई औचित्य नहीं.
जवाब देंहटाएंमीठा-मीठा गप और कडवा-कडवा थू.
जवाब देंहटाएं... kyaa kahane !
... saarthak charchaa !!
भाई धीरुसिंहजी,
जवाब देंहटाएंबडे ब्लागर की पहचान ? हो सकती है.
श्री शाह नवाजजी,
असभ्य भाषा से डरने की आवश्यकता क्यूँ ? आखिर हम ऐसा क्या लिख रहे हैं जिसे पढकर लोग असभ्यता पर उतारु हो जावें । रही बात वायरसयुक्त स्पेम टिप्पणियों की तो उसकी जांच गुगल की अपनी प्रणाली से आटोमेटिक होकर ही टिप्पणी हमारे सिस्टम तक पहुँच रही होती है ।
सुश्री वाणी गीत जी,
विवादों से बचने के लिये माडरेशन सही मगर आलोचना मिटाने के लिये गलत ? क्षमा चाहते हुए कहूँगा बात समझ में नहीं आई ।
यदि विवाद की बात कही जावे तो हम विवादास्पद क्या और क्यों लिख रहे हैं ? और यदि लिख ही रहे हैं तो उसका सामने रहकर सामना क्यों नहीं कर पाते ? रही बात आलोचना मिटाने के लिये
तो मेरे ये विचार उसी पर आधारित हैं.
आ. भाई श्री खुशदीप सहगलजी,
जवाब देंहटाएंसर्वप्रथम आभार आपका इस विषय पर अपनी टिप्पणी देने के लिये । अश्लील और भद्दे शब्द लिखने वाला पहले तो सभी पाठकों व लेखक के सामने स्वयं अपनी ही इज्जत हल्की करवा रहा होगा और लेखक तब भी सेटिंग विकल्प से उसकी टिप्पणी बाहर कर ही सकेगा ।
आपके ये दोनों लेख मैं शीघ्रातिशीघ्र अवश्य पढूंगा । धन्यवाद आपका ! जय हिंद...
श्री राहुल सिंहजी,
जवाब देंहटाएंआपकी बात का भी अर्थ टिप्पणी के साथ आ सकने वाले वायरस के डर से बचाव की ओर ही इंगित कर रहा है, और जहाँ तक मैं बार-बार गूगल के निर्देश देखता हूँ वह टिप्पणियों को फिल्टर करके ही आपके सिस्टम तक भेज रहा होता है । मान लें कि टिप्पणी के साथ वायरस चल भी रहा है तो हम तो माडरेशन के बावजूद आलोचना या अश्लीलता के मापदंड से निकालकर उसे प्रकाशित तो कर ही रहे हैं ।
उदय जी,
अपने बुजुर्गों की परम्परानुसार बडी बात के अर्थ को कम या छोटे रुप में कहने के लिये ही इन मुहावरों का चलन चला आ रहा है, मैं भी अपनी याददाश्त और आवश्यकतानुसार इनका प्रयोग कर लेता हूँ ।
सुशील जी इस विषय पर मेरी कई बार चर्चा हुई है लेकिन सभी ने अपने अपने तर्क दिए हैं। लेकिन इन सारे तर्को का कोई वजूद नहीं है। बस यहां लोग केवल अपनी प्रसंशा ही सुनना चाहते हैं। मैंने कई बार लोगों को उनकी छोटी-मोटी गलत्यिों के लिए या विधा विशेष की गल्ती के लिए बताया तो या तो उन्होंने मोडरेशन का लाभ लेते हुए मेरी टिप्पणी का सार्वजनिक ही नहीं किया या फिर व्यक्तिगत मेल से उत्तर दे दिया गया। इस मानसिकता से मालूम पडता है आपका उद्देश्य।
जवाब देंहटाएंएक तरफ तो आप टिप्पणी मांगते हैं और कई बार तो किसी विषय पर चर्चा करते हैं तब भी मोडरेशन लगा होता है। किसी ने मुझे कहा कि लोग विज्ञापन देते हैं और कभी हम बाहर होते हैं तब कई दिनों तक वह विज्ञापन हमारी पोस्ट पर लगा रहता है और हम नहीं चाहते कि धर्म विशेष के विज्ञापन हमारे ब्लाग पर हो। ऐसे में जब आप बाहर जाते हैं तब मोडरेशन लगा दे। सामान्य ब्लाग जिनमें कविता या शुद्ध साहित्य ही होता है वे भी मोडरेशन लगाते हैं तो टिप्पणीकार के लिए अपमान के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। मैं तो आजकल ऐसे ब्लाग पर टिप्पणी देने से पूर्व सोचती हूं या फिर काम चलाऊ ही टिप्पणी देती हूं। कई बार तो पता नहीं चलता और जब आप टिप्पणी पोस्ट करते है उसके बाद पता चलता है कि यहां केवल हांजी हांजी ही है। आपकी पोस्ट बहुत सामयिक है मैं तो कई बार चर्चा कर चुकी इसलिए इस विषय पर प्रतिदिन लिखने का मन होते हुए भी नहीं लिखती हूं। मुझे तो अब लगने लगा है कि ऐसे ब्लाग का बहिष्कार कर देना चाहिए। उसकी कोई मजबूरी हो तो वह ऊपर ही लिख दे कि आज मैंने मोडरेशन इसलिए लगाया है, प्रतिदिन अपनी पोस्ट को मोडरेशन की आड में रखने का अर्थ है कि आपको अपने लिखे पर विश्वास ही नहीं है।
मैने तो नही लगा रखी। कैसे लगाई जाती है माडरेशन? क्या मेरे ब्लाग पर है? अगर हो तो मुझे सूचित करें क्यों कि मेरे ब्लाग की सेट्टिन्ग मैने नही की है। किसी से करवाई हुयी है। अजीत जी और खुशदीप जी की बातों मे दम है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंदीदी श्री,
जवाब देंहटाएंयकीनन आप भी मेरे उक्त विचारों से सहमत ही दिख रही हैं । जैसा कि आप बता रही हैं चर्चा के दौरान दिये जाने वाले तर्कों में कोई दम नहीं होता है । मैं भी ये मानता हूँ कि यदि किसी विशेष मकसद से माडरेशन किसी दिन विशेष के लिये यदि लगाया जा रहा है तो उसके कारण का भी उल्लेख कर दिया जावे, और यदि हम बाहर जा रहे हैं तो भी माडरेशन लगाकर जाया जा सकता है. यद्यपि इसकी भी आवश्यकता इसलिये नहीं दिखती कि बाहर हम गये होंगे तो हमारा कोई लेख भी नहीं छप रहा होगा और टिप्पणियों का सिलसिला प्रायः ताजे लेख पर ही चलता है । पुराने लेख पर अव्वल तो कोई टिप्पणी देता नहीं है और यदि देता भी है तो उसकी जानकारी सिर्फ लेखक तक ही पहुँच पाती है । बहुसंख्यक पाठकवर्ग तक नहीं, जिसके कारण किसी सार्वजनिकता की समस्या लगे.
अजित जी से सहमत हूँ कि आवश्यक नहीं कि टिप्पणी आपके मन मुआफिक ही हो.
जवाब देंहटाएंतू मेरी पीठ खुजा मैं तेरी खुजाऊँ वाली मानसिकता से उबरने की आवश्यकता है.
निर्मला दी,
जवाब देंहटाएंजब आपको खुशदीपजी और अजीतजी की बातों में दम दिखता है तो फिर क्यों आप भी इस माडरेशन को लगा सकने के बारे में सोच रही हैं ? रहा सवाल व्यवस्था के आपके ब्लाग पर होने का तो वो अवश्य ही होगी ।
श्री हर्षवर्द्धनजी,
टिप्पणियां प्रायः तो औपचारिक अधिक होती हैं इसलिये मनमाफिक नहीं होने का सवाल ही नहीं रहता, और यदि किसी पाठक को कोई नुक्ताचीनी निकाले जाने जैसा यदि कुछ दिख भी रहा है तो वो भी कहीं न कहीं तो हमारा ज्ञानवर्द्धन ही कर रहा होता है ।
सही कहा आपने... लेकिन कुछ लोग हिट ब्लॉग को बदनाम करने लिए कुछ गलत कदम उठाते हैं. इसलिए मोडरेशन जरूरी भी हो जाता है.
जवाब देंहटाएंश्री मलखानसिंहजीय
जवाब देंहटाएंकिसी हिट ब्लाग को बदनाम होने से बचाने के लिये माडरेशन प्रणाली किस प्रकार से उपयोगी हो सकती है यदि सम्भव हो सके तो थोडा विस्तार से समझाने का प्रयास अवश्य करें ।
मैंने कई ऐसी टिप्पणी रोकी हैं जो किसी ने किसी और के लिये लिखीं। मॉडरेशन को रहने दिया जाये, माहौल सौम्य रहेगा।
जवाब देंहटाएंmujhe bhi lagta hai kuchh vaisa hi jaisa ki aapne likha hai.
जवाब देंहटाएंkafi had tak sahmat hoon aapse!
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (6/1/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
सुशील जी , आपने वह लिखा है जो हम भी काफी समय से सोच रहे थे ।
जवाब देंहटाएंआपसे अक्षरश : सहमत ।
टिप्पणी : का होना उतना ही ज़रूरी है जितना दाल में नमक मिर्च । बिना टिप्पणी के पोस्ट ऐसे ही सूनी लगती है जैसे विधवा की मांग । कोई कितना भी कहे कि हमें टिप्पणी नहीं चाहिए , लेकिन यह सही है कि बिना टिप्पणियों के पोस्ट सार्थक नहीं लगती ।
अभिव्यक्ति का उद्देश्य तभी पूरा होता है जब दूसरे भी उसपर अपना विचार प्रकट करें ।
मेरे विचार से तो टिप्पणी पर भी लेखक को टिप्पणी करनी चाहिए , विशेषकर जब कोई टिप्पणी अत्यंत रोचक या जानकारीपूर्ण हो ।
कभी कभी कुछ स्पष्ट करने के लिए भी खुद की टिप्पणी की ज़रूर पड़ती है ।
मोडरेशन :
यदि आप कुछ विवादस्पद नहीं लिख रहे है तो डरना कैसा ।
मोडरेशन टिप्पणीकार के लिए एक हतोत्साहित करने वाला कृत्य है ।
आपने सही कहा कि टिप्पणी करने वाला अपना समय , ऊर्जा और दिमाग लगाकर टिप्पणी करता है । ऐसे में मोडरेशन लगाकर आप एक ज़ज का काम करते हैं कि पास किया जाए या नहीं ।
कभी कभी तो लगभग अपमानज़नक सा लगता है ।
विकल्प : यदि कोई टिप्पणी अभद्र या अश्लील हो तो डिलीट करने का ऑप्शन है । इससे दूसरों को भी पता चलेगा कि किसी ने ओब्जेक्ष्नेबल टिप्पणी की है ।
वैसे ज्यादातर अभद्र टिप्पणी अनाम या छद्म ब्लोगर्स द्वारा ही की जाती हैं ।
इसके लिए भी सेटिंग्स में ऑप्शन है --अनाम या एनोनिमस टिप्पणी को डिबार करने का ।
बेशक तुरंत छपी टिप्पणी देखकर टिप्पणीकार को संतुष्टि होती है ।
इस सार्थक लेख के लिए आपको बधाई ।
पाठक लेखक के लिए उसी तरह जैसे व्यापर में ग्राहक , पहले भी पुस्तक समीक्षाए लोग लिखा करते थे कितु आज की जैसी त्वरित तकनीक नहीं थी किआप का लिखा हुआ किस स्तर कि आलोचना है यह जान सके . किन्तु आज यह काम त्वरित गति से हो रहा है लिखने दीजिये ना किसी को असभ्य भी . यदि उसकी समझ उतनी ही हो तो क्या मलाल . सभी पढेंगे और संभवतः उसका धीरे धीरे बहिष्कार भी होता रहेगा क्योंकि सभी सुधि एवं बुधिजन ऐसे व्यक्ति से संपर्क नहीं करना चाहेंगे . और संभवतः ब्लॉग पर होने वाली चर्चा में भी शायद कोई ऐसे व्यक्ति को टोकाटाकी भी करेगा . ऐसे विषय जो संवेदन शील हो तो थोडा सा शालीनता से सब कुछ लिख डाले ताकि पढने वाले उतेजित ना हो
जवाब देंहटाएंआपसे अक्षरश: सहमत| अजीत जी से भी सहमत हूँ कि आवश्यक नहीं कि टिप्पणी आपके मन मुआफिक ही हो.
जवाब देंहटाएंनमस्ते बाकलीवाल जी, मेरे टिप्पणियों पर मॉडरेशन रखने का कारण यह नहीं है के मैं किसी विरोधी विचार को जगह नहीं देना चाहता. मेरी पोस्टों पर विपरीत विचारधारा या आपत्ति के कमेन्ट भी आते हैं.
जवाब देंहटाएंआप जानते हैं कि मेरे ब्लौग में केवल प्रेरक विचार और कथाएं ही आतीं है पर कभी-कभार कोई सिरफिरा वहां भी माँ-बहन की गालियाँ बक जाता है. यह बड़ी अजीब बात है... इसीलिए मैंने मॉडरेशन लगाया हुआ है.
आजकल मेरे ब्लौग में बहुत सारी विज्ञापन स्पैम टिप्पणियां आ रहीं हैं, मेरा स्पैम फ़िल्टर उन्हें ठिकाने लगा देता है. जो फ़िज़ूल की टिप्पणियां वह नहीं पहचान पाता उसे मुझे हटाना पड़ता है.
टिपण्णी मॉडरेशन ब्लौगर के हित में है. हर ब्लौगर को कभी-न-कभी अप्रिय स्थिति का सामना करना ही पड़ता है.
डा. दराल सर,
जवाब देंहटाएंआपका आभार. मेरा अनुरोध स्वीकार करने के लिये और बहुत-बहुत धन्यवाद नजरिया परिवार से जुडने के लिये । मेरा नेट कनेक्शन अचानक बन्द हो गया है और मुश्किल से यह सम्पर्क भी हो पाया है इसलिये फिलहाल तो मैं आपको सिर्फ धन्यवाद ही दे लूँ । इसलिये भी कि माडरेशन प्रणाली के प्रति आपकी भी शिकायत वही है जो मेरी है । पुनः धन्यवाद...
वन्दनाजी,
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत आभार, निष्पक्ष रुप से मेरे इस आलेख को चर्चामंच में स्थान देने के लिये । क्योंकि यदि मेरी जानकारी सही है तो आपके ब्लाग जिन्दगी...एक खामोश सफर में भी टिप्पणी माडरेशन एक्टिवेट है और उस मुताबिक मुझे यह लग रहा था कि ऐसे प्रत्येक ब्लागर की जिनके ब्लाग पर यह व्यवस्था लागू है उनकी नाराजगी आज मुझे स्वीकार करना ही होगी । किन्तु आपकी निष्पक्षता को मेरा साधुवाद. धन्यवाद सहित...
इस सार्थक लेख के लिए आपको बधाई ।
जवाब देंहटाएंपूर्णत सेहमत हूं........
जवाब देंहटाएंसुशील जी, मेरा इस विषय पर कुछ लिखना सही नहीं होगा क्यूंकि मेरा अपना कोई 'निजी' ब्लॉग नहीं है, किन्तु में २००५ से विभिन्न अंग्रेजी और हिंदी ब्लोगों में केवल टिप्पणियाँ ही लिखता आ रहा हूँ,,, और मॉडरेशन वाला ब्लॉग हो या अंग्रेजी के शब्द सिखाने वाला, में अपनी टिप्पणी डाल देता हूँ भले ही 'ब्लॉग मालिक' उसे उपयुक्त समझे या नहीं..."नेकी कर कुवें में डाल"!
जवाब देंहटाएंमुझे सरकारी कार्य से रिटायर होने, और तदोपरांत पत्नी के निधन के पश्चात ही समाचार पत्र भी आराम से पढने का अवसर प्राप्त हुआ था,,, उसमें एक दिन ब्लॉग के विषय में पढ़ने का भी अवसर मिला (२००५ में) कि कैसे ब्लॉग लोकप्रिय होते जा रहे हैं...बच्चों के कारण घर में कंप्यूटर होने से मैंने भी टिप्पणी एक ब्लॉग में लिखनी आरम्भ कर दीं, जो मैं लगभग ६ वर्ष से निरंतर डालता आ रहा हूँ (एक मंदिरों के विषय पर आधारित ब्लॉग पर), और यदा कदा अन्य ब्लोगों पर भी, क्यूंकि 'सत्य' को जानना ही एक समय मानव जीवन का लक्ष्य रह जाता है, और जिसके लिए समय भी अब काफी मिलता है!
पत्नी मुझे कहती थी कि क्यूं में सबसे भगवान् के विषय पर चर्चा करता हूँ, जब आज कोई उसमें विश्वास तक नहीं करता?! मेरा तब उत्तर था कि हर व्यक्ति के मन में जो सबसे ऊपर होता है वो उसकी ही चर्चा करता है,,, दूसरे भले ही उसको सुनें या नहीं,,, किन्तु बोलने वाले को तो स्वयं अपना कहा सुनना पड़ता ही है! और यदि, जैसा प्राचीन ज्ञानी कह गए, कोई अदृश्य सबके भीतर विराजमान है तो वो तो कभी न कभी सुनेगा ही!
माडरेशन अनिवार्य है और यह क्यों है टिप्पणियां बढ़ने के साथ साथ आपको समझ आ जाएगा माडरेशन का विरोध तभी तक किया जाता है जब तक टिप्पणियों की संख्या बहुत कम है अथवा आपके बारे में भाई लोग अधिक नहीं जान पाए हैं !
जवाब देंहटाएंफिलहाल एक उदाहरण ...हाल की एक बेहतरीन पोस्ट पर सुपाडा सिंह माय अपनी फोटो के वाह वाह कर गए थे और माडरेशन न होने के कारण कम से कम दो घंटे वह चित्र मेरे ब्लॉग पर प्रदर्शित था ...
क्या कहते हैं आप ...माडरेशन न हो ???
सतीश भाई. फिलहाल तो मेरे इस लेख का उद्देश्य सामान्य टिप्पणीकर्ता को माडरेशन व्यवस्था के चलते होने वाली असुविधा मात्र से जुडा ही था, आप जैसा बता रहे हैँ वैसे अनुभव होने पर सोच बदल भी सकती है । नेट बन्द है. मोबाईल पोस्ट.
जवाब देंहटाएंटिप्पणीकार और ब्लौगर का सम्बन्ध एक संगीतकार और श्रोता समान भी जाना जा सकता है,,,ऐसा प्रसिद्द सितारवादक पंडित रवि शंकर के मुख से भी सुना था कि यदि श्रोता शास्त्रीय संगीत का ज्ञान रखते हों तो वे बीच बीच में वाहवाही देते हैं,,,जिसे सुन कलाकार का उत्साह बढ़ता है,,, वो और अच्छा बजाने का प्रयास करता है,,,किन्तु जब वे पश्चिम देशों में कार्यक्रम पेश करते थे तो पता नहीं चलता था कि उन्हें अच्छा लग रहा है कि नहीं, यद्यपि पेश किये गए राग के अंत में सारा हॉल ही तालियों कि गडगडाहट से गूँज ही क्यों न उठता हो! इस कारण वो तबलेवाले से ही वाहवाही मांगते थे, जो वो सर हिला के देता था,,, ऐसे ही किसी कार्यक्रम के अगले दिन एक समाचार पत्र में टिप्पणी छपी कि रवि शंकर तबला वादक के मना करने पर भी बजाते चले गए!
जवाब देंहटाएंसुशील जी,
जवाब देंहटाएंयह अच्छी बात है कि हम जो भी लिखते हैं उस पर लोगों के विचार हम तक पहुँचने ही चाहिए और टिप्पणी द्वारा केवल लेखक ही नहीं बल्कि दूसरे पाठक भी और पाठकों के विचारों से अवगत होते हैं ! कई कई बार सारगर्भित टिप्पणियों से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है ,यह अलग बात है कि
कुछ लोग बिना पोस्ट पढ़े भी टिप्पणी देते हैं (जो उनकी टिप्पणी पढ़ कर आप आसानी से जान सकते हैं!) ब्लॉग जगत में टिप्पणी की संख्या की भी बहुत अहमियत है फिर वह चाहे बस "वाह",अच्छा,सुन्दर ही क्यों न हो ! जो भी हो,कुल मिलकर बिना टिप्पणी के ब्लॉग-जगत के अस्तित्व की बात नहीं की जा सकती !
जहाँ तक माडरेशन व्यवस्था का सवाल है तो निश्चय ही यह सेंसर है ! इससे टिप्पणीकर्ता को मानसिक असुविधा होती है ! मैं डा.दराल जी के विचार से पूरी तरह सहमत हूँ की अगर कोई नापसंद टिप्पणी आ जाय तो उसे डिलीट किया जा सकता है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आप की एक एक बात से सहमत हे जी, मैने चार दिन पुरानी पोस्ट पर ही सिर्फ़ माड्रेशन लगा रखा हे, कारण आप की किसी पोस्ट पर कोई किसी को गलत बोल दे तो आप भी इस बाते के जिम्मेदार होंगे, ओर पुरानी रचनाओ प्र कोई बाद मे ऎसी टिपण्णी दे दे, तो हमे कहां पता चलेगा, ओर किसी के मान हानि के चक्कर मे फ़ंस सकते हे, इस लिये एक निशचित समय के बाद माड्रेशन लगना गलत नही ताकि आप की नजर सब टिपण्णियो पर रहे, धन्यवाद
जवाब देंहटाएंमैं पहले मॉडरेशन नहीं लगाता था। लेकिन जब मेरे ब्लॉग से दूसरे ब्लॉगर को गालियाँ दी जाने लगीं तो लगा कि यह जरूरी है। हमेशा तो नेट से जुड़ा नहीं रहा जा सकता। पता चला दो दिन बाद आये तो घमासान हो चुका है। आखिर अपने ब्लॉग से किसी को कष्ट न पहुँचे यह भी तो हमारी जिम्मेदारी है।
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएंसुशील जी,
अभी कम्प्यूटर खोला.. और मेरे मन माफ़िक विषय पर आपका आलेख दिख गया ।
बहुत स्पष्ट तरीके से बातों को रखने में आप सिद्धहस्त हैं ।
टिप्पणी और मॉडरेशन को लेकर मेरे विचार भी लगभग आप जैसे ही हैं, डॉ टी.एस. दराल साहब और चि. खुशदीप से शत-प्रतिशत सहमत, मेरा तो अब टिप्पणी करने से मन हटता ही जा रहा है । स्पैम टिप्पणियों की मार उन्हीम को पड़ती है, जो नाना प्रकार के मुफ़्त के विज़ेट बटोर कर बैठ जाते हैं । रही बात गाली गलौज की... तो यह एक असाहित्यिक कापुरुष कि रूग्ण मानसिकता है । ब्लॉगिंग की विकासयात्रा में इनको दर्ज़ रहने देने में मुझे कोई बुराई नहीं दिखती । कुल मिला कर मॉडरेशन असहमतियों को कुचलने की अभिजात्य मानसिकता है, तनी हुई गरदनों का आत्ममुग्ध दर्प है ।
बहुत से लोग बुरा मान सकते हैं, किन्तु यह मानसिकता कि, " जो मुझे रास नहीं आ रहा है, उसे मेरी नज़रों से दूर रखो.." एक सुप्त फ़ासीवादी विकृति-शेष है ।
चलते चलते यह बताना चाहूँगा दो दिनों में मैंने ग्यारह टिप्पणियाँ ड्राफ़्ट कीं, किन्तु सँभवतः केवल एक ही पोस्ट किया ।
डा. अमर कुमारजी,
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार...
बहुत प्रसन्नता हुई अपने आलेख पर आपकी टिप्पणी देखकर. पिछले दो-तीन दिनों से मुझे टिप्पणियों पर माडरेशन के पक्ष और विपक्ष में अलग-अलग लेखकों व पाठकों के अलग-अलग विचार मिल रहे हैं जो आप भी उपर लगभग पढ ही चुके होंगे । जो इस व्यवस्था के पक्ष में हैं उनके अपने तर्क हैं और यकीनन अधिकांश लोकप्रिय लेखकों ने अपने ब्लाग्स पर इस सिस्टम को लागू किया हुआ है । जो उनके अपने नजरिये से अनेकानेक कारणों से उन्हें आवश्यक लगता है । ठीक है सभीका अपना-अपना समस्याओं को देखने व उनका सामना करने का तरीका है । वैसे इतना पक्ष-विपक्ष लिखा पढने के बाद भी मुझे अभी तक तो इसकी आवश्यकता लगती नहीं है । लेकिन जो इस व्यवस्था के पक्ष में हैं उनसे मेरा कोई व्यक्तगत विरोध भी नहीं है, आखिर वे सभी इस क्षेत्र में मुझसे बहुत सीनियर हैं । उम्मीद करता हूँ कि आपके स्वास्थ्य में तेजी से सुधार हो रहा होगा । मेरे अन्तर्मन की समस्त शुभकामनाएँ आपके साथ हैं । पुनः आपको धन्यवाद...
श्री देवेन्द्र पांडेयजी, नमस्कार...
जवाब देंहटाएंदेर से ही सही आप इस लेख से जुडे और अपने विचार आपने यहाँ दिये इसके लिये आपको धन्यवाद.
आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ...
जवाब देंहटाएंमहोदय मुझे भी पढ़े ,और प्रतिकिया देके के कृतार्थ करे...
जवाब देंहटाएंhttp://wwwharshitajoshi.blogspot.com/
नमस्कार। आपका यह लेख नए लेखकों के लिए ज्ञानवर्धक है।
जवाब देंहटाएंसर ....
जवाब देंहटाएंआपकी हौसला अफजाई वाकई बहुत कारगर रही ....
मैंने पूरी बात पढ़ी और समझी ......
आपकी सदाशयता अनुकरणीय है
धन्वाद ...
आपने बहुत ही सही और बहुत ही बेहतरीन लेख लिखा है अंकल। मैं तो १०१% आपसे सहमत हूँ। और मेरे ही ब्लॉग ने मॉडरेशन न लगाने का सबसे बड़ा खामियाज़ा भुगता है। अंकल मैंने कभी किसी के ब्लॉग पर कोई अश्लील या गंदी टिप्पणी नहीं की और कभी कोई गलत पोस्ट नहीं लिखी मगर शुरू से ही मेरी पोस्टों पर अश्लील और गंदी टिप्पणियाँ की जाने लगीं। शुरू शुरू में मैंने कुछ को डीलिट भी किया लेकिन उनका आना जारी रहा। यहाँ तक कि उनकी वजह से मेरी पोस्ट कई बार ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत में हिट भी हो गई। इस सब से चिढ़कर लोगों ने मुझे हमारीवाणी एग्रीगेटर से भी हटवा दिया। मेरे साथ इस किस्म का यह सबसे बड़ा अन्याय है। मैं तो पहलवान हूँ और इस लिये इसके खिलाफ़ लड़ूँगा क्योंकि मुझे भी अब ज़िद हो गई है कि न मैं मॉडरेशन लगाऊँगा और न ही टिप्पणी मिटाऊँगा। आप देखना अंकल मेरे ब्लॉग की सारी पोस्टें शुरू से पढ़कर, कि मेरे साथ कैसा व्यवहार किया इन बड़े बड़े ब्लॉगर्स ने।
जवाब देंहटाएंआपका यह लेख इस संदर्भ में मील का पत्थर साबित होगा।
KYA BLOG LEKHAN SE AAP DHAN BHI KAMATE HAIN. KYA MEI BHI BLOG LEKHAN SE MONEY EARN KAR SAKTA HUN
जवाब देंहटाएंशुशील जी नमस्कार्। आपने सत्य कहा है इस माडरेशन का भला क्या काम जब अभिव्यक्ति पढने व टीप्पणी की चाहत मे की गयी है । आपका मेरे ब्लाग पर स्वागत है। देखें और सुझाव दें मै अभी नयी हूं आप जैसे वरिष्ठ लोगों की सलाह रचनाओं और मुझ जैसे नये ब्लागर के लिये आवश्यक है।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंआपके ब्लाग पर भी ताला लगा हुआ है। माडरेशन के बाद दिखती है टिप्पणी। :)
माडरेशन लगाने वालों और न लगाने वालों के अपने-अपने तर्क हैं। वैसे मेरे ब्लाग पर बहुत दिन से माडरेशन हटा हुआ है। आइये, टिपियाइये। :)