28.4.11

टोपी पहनाने की कला...


        पिछले 3-4 माह से लगभग हर दूसरे रोज एक समाचार स्थान व पीडित स्त्री-पुरुषों के नाम बदल-बदलकर लगातार पढने-देखने में आ रहा है कि किसी भी अकेले जा रहे स्त्री-पुरुष को दो-तीन सादी अथवा नकली पुलिस वेषभूषा में मौजूद लोग रोककर कह रहे हैं- मां साहेबभाई साहेब, आगे मर्डर हो गया है और आप इधर से ये सोने की चैन-अंगूठी, चूडियां या जेवरात पहनकर कहाँ जा रहे हैं ? इन्हें उतारकर रुमाल में या डिब्बी में रख लें । पैसे भी अपने पर्स में न रखें उन्हें भी अपने इसी रुमाल-डिब्बी में सम्हालकर रखलें । सम्बन्धित व्यक्ति उनके सामने ही जब अपने पास की जोखम को रुमाल में रखने का प्रयास करता है तो ये भाई लोग स्वयं हस्तक्षेप करते हुए उनके हाथ से जेवर नगदी लेकर उनके सामने उनके ही रुमाल नहीं तो कागज में बांधकर सम्हालकर रखने की हिदायत देते हुए उसे सुरक्षित जाने का कहकर वहाँ से बिदा कर देते हैं और वह स्त्री-पुरुष कुछ आगे या अपने घर जाकर जब अपना रुमाल या पुडिया खोलता है तो रुपये की जगह तह किये गये कागज और जेवर की जगह कांच की चूडियां या पथरीले टुकडे रुमाल, डिब्बी या उस पुडिया में से निकलते हैं ।

       फिर रोना-धोनापुलिस कम्प्लेन्टपेपर न्यूज और बस । दूसरे दिन नहीं तो तीसरे दिन फिर यही वाकया अखबारों मेंऔर अभी तो हद हो गई है सिर्फ दो दिन में तीन वारदात इसी पेटर्न पर हमारे इन्दौर शहर में फिर हो गई । बार-बार लगातार एक ही प्रकार का रीपिटेशन । समझ में नहीं आता कि लोग अखबार नहीं पढते या उस परिस्थिति में इतने भोले कैसे हो जाते हैं और ये टोपी पहनाने वाले कलाकार...  इन्हें तो फार्मूला बदलने तक की जरुरत भी पडते नहीं दिखती । 

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कैसी भी विपरीत परिस्थिति में हमेशा हमारा मददगार – माय हीरो.     


        तालाब के पास से गुजरते हुए एक लडकी ने एक ऐसे लडके को देखा जो तालाब के स्थिर पानी में एक ही जगह कांच का चिलका स्थिर रखने का बडी तन्मयता से अभ्यास करते दिख रहा था । जिज्ञासावश लडकी ने उस लडके से पूछा- ये तुम क्या कर रहे हो मछलियां फंसा रहा हूँ, लडके ने जवाब दिया । अरे वाह... क्या ये तरीका मुझे भी सिखाओगे लडकी ने उस लडके से पूछा ? हाँ सिखा तो दूँगा लेकिन सौ रुपये लगेंगे लडके ने जवाब दिया । लडकी ने तत्काल पर्स खोलकर सौ रुपये का नोट निकालकर लडके को देते हुए कहा- लो अब सिखाओ । सामने बैठ जाओ और गौर से देखते रहो लडके ने रुपये लेते हुए लडकी से कहा । लडकी सामने बैठकर गौर से देखने लगी । जब बहुत देर तक कुछ न हुआ तो लडकी उकताकर बोली- कोई फंस तो रही नहीं है । क्यों ? तुम्हारे सहित तीन फंसतो लडके का जवाब था । 

             अपने बचपन में जब लखपतियों की हैसियत वर्तमान करोडपतियों से कई गुना मजबूत हुआ करती थी एक किस्सा सुना- "रातों-रात लखपति बनने के अचूक नुस्खे" नामक पुस्तिका मूल्य सिर्फ 2/- रु. बाजार में तीनों तरफ स्टीचिंग की हुई बिकने आई और देश भर में लाखों प्रतियां बिक गई । अन्दर हर पेज पर सिर्फ एक ही बात लिखी हुई थी जो मैंने किया वह आप भी करलें ।

        एक वाकया मुझसे सम्बन्धित- हमारे बडे डा. भाई साहब के साथ पढने वाले उनके एक घनिष्ट मित्र जिनके पिता नामी ज्योतिष रहे थे उनसे डाक्टरी की कठिन पढाई नहीं हो पाई तो अपने स्वर्गीय पिता की गादी सम्हालकर ज्योतिषी का काम करने लगे । घर पर कई बार डाक्टर भाई साहेब से मिलने आने के कारण और नजदीक ही रहने के कारण मैं भी उन्हें भाई साहब ही पुकारता था जो बाद में गुरुजी के सम्बोधन में आ गये । मेरी शादी को लगभग डेढ वर्ष हो चुका था । सन्तान तब तक हुई नहीं थी और कुछ ही समय पूर्व "जितेन्द्र, मौसमी चटर्जी, विनोद मेहरा, शबाना आजमी व चलते फिरते टोपीबाज की विशेष भूमिका में संजीव कुमार अभिनीत फिल्म स्वर्ग-नर्क" चलकर टाकीजों से उतर चुकी थी । सायंकालीन ठंडाई के मेरे फिक्स टाईम पर एक दिन ये दादा भी मुझसे वहीं टकरा गये । आदर सहित मैंने उनके लिये विशेष ठंडाई बनवाते हुए उन्हे पेश की जिसे स्वीकारते हुए उन्होंने मुझसे पूछा- और सुशील कैसी गुजर रही है सुनीता के साथ ? बढिया गुजर रही है गुरुजी मैंने उन्हें जवाब दिया । हाँ बढिया तो गुजरेगी लेकिन...  कहते हुए प्रश्नवाचक मुद्रा में मुझे लाकर वे चुप हो गये । तब मैंने पूछा इस लेकिन का मतलब क्या हुआ ? अपने स्कूटर के करीब आते हुए वो मुझसे बोले- संतान पैदा करके दिखाओ तो जानें और उसमें भी लडका पैदा करके बताओ तो । कहते हुए स्टार्ट स्कूटर पर बैठकर वे उडन-छू हो लिये । जाते-जाते मेरे लिये नींद चौपट करने का पक्का इंतजाम कर गये ।

       
डेढ-पौने दो वर्ष की अवधि में खुशखबरी बन सकने जैसा योग तब तक हमारे दाम्पत्य में बन भी नहीं पाया था और जिन मित्रों की हम सगाई में शामिल हुए थे उनके परिवार को संतान सुख से पूरित देख चुके थे, लिहाजा उनकी उस चुनौतियुक्त बात का सार समझने मैं उनके कार्यालय पहुँचा और उनसे पूछा कि आपने इतनी बडी बात किस आधार पर कही । थोडे-बहुत हीले-हवाले करते हुए वो मुझसे बोले- तुम सुशील हो और पत्नी तुम्हारी सुनीता समराशि होने के कारण तुम दोनों की जोडी में नाडी दोष है जिसके चलते तुम्हारे लिये ये स्थिति बनती है । ठीक है यदि ऐसा भी है तो अब इसका उपाय क्या ? जब मैंने उनसे पूछा तो वे बोले- देखो भई सुशील यदि मैं इसका उपाय बताउंगा तो तुम्हें स्वर्ग-नर्क का संजीव कुमार लगने लगूंगा । जब मैंने कहा आप बताओ तो । तब वे मुझसे बोले तुम्हें मुझको 500/-रु. देना होंगे और यह पूछें बगैर की मैंने क्या उपाय किया वर्ना तुम्हारे पैसे व्यर्थ चले जाएँगे । 

         1980
का समय । सोने का मूल्य तब 600/- प्रति 10 ग्राम चला करता था । उनके कर्मकांड में उलझने की बजाय तब मैं पहली बार अपनी पत्नी के साथ एक लेडी डाक्टर से मिला । उन्होंने आवश्यक जांच करके पत्नी का छोटा सा DNC आपरेशन किया और अगले वर्ष पुत्र का गृहआगमन हो गया जिसका नामकरण मैंने सुशील व सुनीता को जोडकर सुनील रखा और पुत्रजन्म के उपलक्ष में पार्टी आयोजित कर उसके निमन्त्रण कार्ड छपवाकर सबसे पहला कार्ड उन्हीं गुरुजी को देने गया जो चैलेन्ज कर चुके थे कि संतान (विशेष रुप से पुत्र) पैदा करके दिखाओ तो जानें । कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि उस समय मेरे सामने वह कार्ड पढते हुए उनकी प्रतिक्रिया कैसी रही होगी ।

       ठग सम्राट चार्ल्स शोभराज जो एक जमाने में वर्षों पुलिस व जनता को ठेंगा बताते हुए अपनी जालसाजी के कार्यक्रमों को निर्विघ्न अमली जामा पहनाता रहा । संयोगवश उसके कानूनी गिरफ्त में आने के बाद पुलिस के एक उच्च अधिकारी ने उससे दोस्ताना अंदाज में जब पूछा कि इतने बडे-बडे कारनामों को तुमने इतनी आसानी से इतने लम्बे समय तक कैसे चला लिया ? शोभराज उन अधिकारी से बोला बडी लम्बी गाथा है साहेब । गला पहले ही सूख रहा है, पानी ही नहीं सिगरेट भी पीने की इच्छा हो रही है । उन अधिकरी महोदय ने तत्काल अपने मातहत से पानी मंगवाते हुए शोभराज को पिलवाया और अपनी जैब से सिगरेट का पैकेट निकालकर शोभराज के हाथ में रख दिया । बडे ठाठ से सिगरेट सुलगाते हुए शोभराज ने उन अधिकारी महोदय के समक्ष अपने हुनर का राज बताया- जैसे मैंने आपसे सिगरेट मांगी और आपने स्वयं अपने हाथ से निकालकर मुझे दे दी बस ऐसे ही मैं लोगों से रुपये, जेवर व गाडियां मांग लेता हूँ और वे मुझे दे देते हैं । अब इसमें जालसाजी कहाँ से आ गई । 

        तो जनाब, समय कितना ही बदलता जावे टोपियां पहनाने वाले नये-नये फार्मुलों के साथ सामने आते रहे हैं और आते ही रहेंगे । उन टोपीयों के लिये नये सिर तलाशने में इन्हें कभी निराश भी नहीं होना पडता । दस के आगे चारा डालो एक-दो भी फंसे तो गाडी चलती रहे वाले फार्मुले पर ये मजे में जीवन गुजार लेते हैं और इसी लिये इन जैसों की ही इजाद की हुई ये कहावत हम लगातर सुनते रहते हैं कि जब तक बेवकूफ लोग जिन्दा हैं बुद्धिमान भूखे कैसे मर सकते हैं ?


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अब ये हमारे उपर है कि अपने सिर को कैसे सुरछित रखें । वर्ना तो अब समानता के इस युग में लडकियां भी इस हुनर को छोटे या बडे पैमाने पर काम में लाने में पीछे नहीं दिख रही हैं । स्कीन सुरक्षित रखने के नाम पर जैसी नकाब ये घारण करके घूमती हैं उस स्थिति में अपने पर्स में एक जोडी कपडे अतिरिक्त रखकर व मित्र के सहयोग से परिधान बदलकर उस नकाब के साथ अपने भाई व पिता से भी स्वयं को सुरक्षित बचाकर रखते हुए अपने पुरुष मित्रों के साथ निर्विघ्न घूमने फिरने की इनकी ये वर्तमान सुविधा भी इसी विधा के दायरे में आते दिख रही है ।


27.4.11

जिन्दगी की राह में 1 + 1 = 11 का सफर...



27 अप्रेल 1978 को अपने बुजुर्गों के आशीर्वाद की छांह में सुशील के साथ सुनीता का
जीवन की इस यात्रा में जो जुडाव हुआ ।



उसने आनन्द और चुनौतियों के इस जीवनसफर में चलते-चलते परिवार को 
दो से पांच तक पहुँचाया ।


सीनियर सुनील, जूनियर अतुल और मिनी श्रुति मम्मी-पापा के साथ.



पांच की संख्या आठ के पडाव से गुजरते हुए 1 + 1 = 11 के आंकडे को 
पूर्णता प्रदान करते हुए...


बिटिया श्रुति जंवाई सा. राहुल सेठी और दोयते सक्षम के साथ मम्मी की साईड
सीनियर पुत्र सुनील बहू रेखा व पोते हनी (हर्षल) के साथ पीछे और जूनियर पुत्र अतुल बहू रिक्की व पोते आर्जव के साथ पापा की साईड में.

लडते-झगडते, हँसते-मुस्कराते कभी पगडंडी तो कभी हाइवे पर चलते 33 बसन्त पार कर चुकी इस झंझावातपूर्ण जीवनयात्रा में अनेकों खट्टे-मीठे अनुभवों के साथ 
गुजरते होने वाले शारीरिक परिवर्तन...



अब आगे किसके हिस्से कितने बसन्त अभी बाकि हैं ये तो राम जाने.

फिलहाल तो...


19.4.11

सार्वजनिक जीवन में अनुकरणीय कार्यप्रणाली.

  
         ट्रेन के छूटने में लगभग 20-25 मिनिट की देरी थी और पच्चीसों लोग टी. सी. को घेरकर कन्फर्म सीट की जुगाड में अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने में लगे थे । टी. सी. ने लिस्ट चेक करने के बाद कहा कि मेरे पास तीन बर्थ है और ये सिर्फ वास्तविक जरुरतमंद को ही मैं दे सकता हूँ । इतना सुनते ही भीड में कई अपने हाथ में बडे नोट लहराते दिखने लगे । 
 
        कुछ ही देर में टी. सी. ने आश्वस्त मुद्रा में बताया - पहली बर्थ इन सीनियर सीटिजन के लिये है जिन्हें 70+ की उम्र में अकेले यात्रा करना है । दूसरी बर्थ इन मेडम के लिये है जो गोद के बच्चे के साथ यात्रा कर रही हैं और तीसरी बर्थ इस नवयुवक के लिये है जो अपनी काम्पीटिशन एक्जाम देने जा रहा है ।

        इतना सुनते ही जहाँ आधी भीड छंट गई वहीं कुछ लोग उस टी. सी. से कहने लगे - हम तो आपको इतने पैसे देने को तैयार थे और आपने बिना कुछ लिये तीनों बर्थ इस प्रकार अलाट कर दी ?
 
         तब वह टी. सी. बोला - डिपार्टमेंट से जो वेतन मुझे मिल रहा है वह मेरे और मेरे परिवार की व्यवस्थित आवश्यकता पूर्ति के लिये पर्याप्त है और इस प्रकार उपर के पैसे लोगों से वसूलकर डाक्टरों के बिल भरते रहने की मुझे कोई आवश्यकता  नहीं है ।

 

18.4.11

तात्कालिक आक्रोश...


         पिछले सप्ताह निहायत सौम्य प्रवृत्ति के मेरे बडे पुत्र ने सुबह के भोजन के स्वाद व वेरायटी के मसले पर असंतोष जाहिर किया । भोजन मैं और मेरी पत्नी भी कर रहे थे और हमें उसमें ऐसी कोई कमी नजर नहीं आ रही थी । दूसरे दिन वही पुत्र सुबह लगभग 10-30 बजे के बाद तक सोकर उठा और जल्दी-जल्दी फ्रेश होकर काम पर जाने के लिये तैयार होकर निकलते दिखा । पत्नी व बहू ने खाना खाने को कहा तो पुत्र ने फिर उसी असंतुष्ट मुद्रा में रोष व्यक्त करते हुए खाना खाने से मना कर दिया । इतनी देर तक उसका बिस्तर छोडना मुझे अच्छा नहीं लगने के कारण मैंने बीच में बोल दिया कि नहीं खाना है तो मत खाने दो । न बाजार से सब्जी-भाजी समय पर सुबह लेने जाना और न ही अपनी रुचि खाना बनने के पहले बताना और बाद में मीनमेख निकालना । "नहीं खाना है तो मत खाने दो" मात्र मेरे कहने का परिणाम यह हुआ कि अगले तीन दिनों तक उसने घर में खाना नहीं खाया । जब भी घर आया घोर असंतुष्ट व नाराज ही दिखा, जबकि मैं पूर्व में ही बता रहा हूँ कि निहायत सौम्य प्रवृत्ति का पुत्र । यकीनन यह उसका स्वभाव कभी नहीं रहा । फिर ?

          इसका जबाब मिला कल के समाचार पत्र में । इसके मुताबिक कुछ आक्रामक घटनाओं की बानगी देखें-
            
        1.   अंडे के ठेले पर आमलेट खाता एक युवक अपने मोबाईल को फुल वाल्यूम पर रखकर गाने भी सुन रहा था । पास खडे दो-तीन युवकों को बात करने में शायद असुविधा हो रही थी । उन्होंने उस युवक से मोबाईल का वाल्यूम कम करने को कहा जिसे अपनी धुन में उस युवक ने अनसुना कर दिया । बस, उन युवकों को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने वहीं ठेले पर से डंडा उठाकर उस युवक के सिर पर इतनी जोर से मारा कि गाने सुनते हुए आमलेट खा रहे उस युवक की इहलीला समाप्त हो गई ।    


       
        2. सब्जी की दुकान पर सब्जी खरीदने पहुँचा एक व्यक्ति आदतन हर सब्जी उठा-उठाकर चखने की मुद्रा में खाता भी जा रहा था । दुकानदार ने जब उसे इसके लिये मना किया तो वह दुकानदार से झगडा करने लगा । देखते ही देखते वह झगडा इतना बढ गया कि सब्जी चखने वाले व्यक्ति ने दुकान से चाकू उठाकर दुकानदार के पेट में भौंक दिया और सब्जी वाले का वहीं काम तमाम हो गया ।

            3. ट्रेफिक पुलिस के सिपाही ने एक रिक्शे के पहिये की इसलिये हवा निकाल दी कि वह मना करने के बावजूद बार-बार वहीं लाकर रिक्शा खडा कर रहा था, बस इतने पर उस रिक्शे वाले को इतना गुस्सा आया कि उसने उस सुए को जिससे सिपाही ने उसके रिक्शे कि हवा निकाली थी उस सिपाही से छिनकर उसके पेट में घुसेड दिया और अस्पताल ले जाने तक उस सिपाही की मृत्यु हो गई ।

          इन सभी उदाहरणों में कहीं कोई दुश्मनी या बदला लेने की कोई भावना नहीं, यह सिर्फ उस तात्कालिक आक्रोश की अभिव्यक्ति है जिसमें आज का व्यक्ति जी रहा है । निरन्तर बढती मंहगाई, सामान्य जरुरतों की पूर्ति के साथ ही अपने स्टेटस को बनाये रखने हेतु अधिक से अधिक कमाने की बाध्यता, हर शहर में यत्र-तत्र ट्राफिक जाम की मजबूरी और अधिक से अधिक घण्टे प्रयास करने के बावजूद भी आवश्यकताओं के पूरे न हो पाने से उपजा तनाव, निराशा और उपर से मौसम के उग्र बदलाव के साथ ही कुछ समय टीवी, इंटरनेट जैसे माध्यमों पर गुजरने के कारण समय पर सोना व नींद का पूरा न हो पाना । ये सब कारण मिलकर लोगों को उस जगह लाकर खडा कर रहे हैं जहाँ आदमी न चाहते हुए भी इस प्रकार अपने आक्रोश को अचानक सामने वाले पर उंडेलते दिख रहा है । 

        चूंकि समस्या किसी व्यक्ति विशेष की न होकर जिस प्रकार बडे पैमाने पर सार्वजनिक रुप में दिख रही है क्या इसका कोई आसान उपचार संभव है ?

16.4.11

भ्रष्टतंत्र में छवि राजावत व नीरा यादव में समानता


एक विकास की आधुनिक अवधारणाओं को जीवंत रुप देने में लगी यूथ आईकान.

और

दूसरी भ्रष्टाचार के दलदल में महाभ्रष्ट का तमगा पाने वाली. 

इनमें कैसी समानता ?


छवि राजावत  
       
          एम.बी.ए. शिक्षित, ग्राम पंचायत सोडा (राज.) की सरपंच बाई सा, आधुनिक पहनावा, आधुनिक सोच, ट्रेक्टर चालन, घुडसवारी, टेक्नोलाजी सेवी, पुरातन काल से लेकर आधुनिक परिस्थितियों पर देश-दुनिया को अपना दृष्टिकोण समझा सकने में सक्षम छवि राजावत जो अपनी विकासवादी सोच के साथ इस गांव के सरपंच का पद सम्हालते ही टीवी चेनल्स, मीडिया व इन्टरनेट पर यूथ आईकान के रुप में छा गई । 

          इनके ग्राम विकास की अवधारणा को तेजी से आगे बढाने के पुनीत उद्देश्य में अनेकों एनजीओ और कार्पोरेट भी साथ आ गये और गांव में 63 सालों से रुके पडे कार्यों को 3 साल में पूरा करवाने के महाअभियान में हर संभव मदद करने लगे । सिनेतारिका जैसी शख्सियत वाली छवि को वर्तमान में कोई अपने सार्वजनिक कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि बनाने का आग्रह करते दिख रहा है तो कोई उन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाना चाह रहा है ।


नीरा यादव

          किसी जमाने में दबे और पिछडे वर्ग में विकास के विश्वास का उदाहरण बनी 1971 बैच की नीरा यादव आईएएस की परीक्षा पास कर देश की सबसे ऊंची सेवा में नौकरी करने आई थी तो दबे व पिछडे वर्ग के लोग उनका उदाहरण देते नहीं थकते थे । बुलंदशहर के वेरा फिरोजपुर गांव की रहने वाली नीरा यादव जब जौनपुर में पहली बार डी एम बनी तो जौनपुर में बाढ के इंतजाम देखने वे अपने छोटे बच्चे को पीठ पर बांधकर बचाव के इंतजाम देखने पानी में स्वयं जाती थी । 

           अब इन्हीं नीरा यादव को नोएडा विकास प्राधिकरण में 1994-95 में चेयरमेन पद पर रहते कैलाश अस्पताल और यू-फ्लेक्स ग्रुप को हजारों वर्गमीटर जमीन औने-पौने दाम में आवंटित किये जाने के साथ ही अलग-अलग सेक्टरों में प्लाट्स  और कमर्शियल भूखंडों के आवंटन में फर्जीवाडे के अपराध में महाभ्रष्ट के तमगे से विभूषित करते हुए इनके साथी अशोक चतुर्वेदी सहित 4-4 वर्ष की सजा सीबीआई की विशेष अदालत द्वारा सुनाई गई और इन्हें जिला कारावास भेज दिया गया ।

           इन पर मेरे इस लेखन का मकसद इनके भ्रष्टाचार के कारनामों को सामने लाना या महाभ्रष्टों की गिनती में शामिल होकर सजा पाना नहीं रहा है, क्योंकि ये तो कमोबेश सभी जानते हैं. बल्कि किसी समय पूरे नेक जज्बे से अपने सेवा काल का प्रारंभ करते हुए बुलंदियों की राह पर चलने वाली यही नीरा यादव देश के भ्रष्टतंत्र के साथ आटे में नमक के बराबर समझौते करते हुए कब नमक में आटे के अनुपात में आ गई शायद उन्हें खुद भी उस समय इसका आभास नहीं रहा होगा ।
  
          अब आज हमारे सामने छवि राजावत हैं इनके भी प्रारम्भिक दौर से क्षेत्र व देश की जनता को इनमें विकास को आगे बढाने की इनकी सोच व लगन शिद्दत से दिख रही है । किन्तु आज जो एनजीओ और कार्पोरेट्स इनके इस अभियान में मददगार बने दिख रहे हैं वे कब अपनी मदद के एवज में छोटे-छोटे लाभ उठाने से शुरुआत करते-कराते इन्हें भी भ्रष्टाचार के दलदल में खींच लेंगे, इनकी जागरुकता के अभाव में आगे चलकर ऐसा बिल्कुल हो सकता है ।

          अतः ऐसी किसी भी अप्रिय स्थिति से बचे रहने के लिये अपने  दादा व परिवार की फौजी विरासत को कायम रखते हुए छवि को प्रत्येक कदम पर दृढ संकल्पित रहते हुए  और अपने आसपास के सहयोगियों के पाक व नापाक इरादों पर गिद्ध दृष्टि रखते हुए ही अपने मकसद के साथ आगे बढते रहना आवश्यक होगा । अन्यथा तो-



बुलन्दी देर तक किस शख्स की किस्मत में होती है

अधिक ऊँची इमारत हर घडी खतरे में रहती है ।


महावीर जयन्ति पर हार्दिक शुभकामनाएँ...



सभी आस्थावान पाठकों को महावीर जयन्ति के पावन दिवस पर 

हार्दिक शुभकामनाएँ ।




12.4.11

कैसी चाहत ? कैसा प्यार ?

          सुबह 10 बजे अपने काम पर घर से निकला राजू रोज के समान रात को 10 बजे के करीब जब घर आया तो उसे अपनी पत्नी सीमा घर पर नहीं दिखी । दोनों बच्चे जो 6 और 8 साल के थे उनसे पूछने पर वह भी कुछ नहीं बता पाये । बच्चों से जब उसने ट्यूशन वाले अंकल के बारे में पूछा तो बच्चों ने बताया कि की शाम को 5:30 बजे तक अंकल पढा रहे थे और मम्मी भी तब घर पर ही थी । लेकिन बाद में कुछ कह कर नहीं गई ।

 
          
कुछ नहीं समझ पाने की स्थिति में राजू उपर की मंजिल पर अपनी माँ-पिताजी के पास भी पूछ आया । वहाँ भी उसे यही मालूम हो सका कि सीमा 6 बजे तो उपर आकर गई थी । लेकिन बाद में कुछ मालूम नहीं ।
  
          तीन भाईयों में मंझला राजू कम पढा-लिखा होने के कारण प्राईवेट नौकरी के साथ ही मालिक के प्राडक्ट कमीशन पर बेचकर घर का खर्च जुटाता था जबकि बडे व छोटे भाई दोनों अलग-अलग बैंकों में नौकरी करते थे और अपने-अपने परिवार के साथ अलग रहते थे और पिता के कम किराये वाले पुराने घर में राजू ही अपनी पत्नी व माता-पिता के साथ रहता था । पिता रिटायर होने के साथ ही वृद्धावस्था से जुडी शारीरिक समस्याओं से घिरे रहते थे और माँ भी उम्रजनित रोगों के प्रभाव में रहने के कारण स्वस्थ कहे जाने जैसी स्थिति में नहीं थी । अतः बहुत आवश्यक होने पर ही माँ व पिताजी के तीसरी मंजिल से नीचे उतरने की स्थिति बन पाती थी ।
    
          गरीब घर की सीमा माँ-बाप की एक ही लडकी थी और राजू के साथ उसकी शादी को करीब 10 वर्ष के आसपास का समय हो चुका था । शादी के समय ऐसी समस्याग्रस्त स्थिति नहीं थी किन्तु माता-पिता की बीमारी, भाईयों का अलग बस जाना और परिवार में दो बच्चों के और बढ जाने से समस्याएँ बढती चली जा रही थी जिनका सामना राजू को और अधिक घण्टे काम करते हुए करना पडता था ।

         जब उमेश के घर राजू ने उसके बारे में जानना चाहा तो यह सुनकर उसके होश उड गये कि उमेश भी 6 बजे के बाद से कहीं दिखाई नहीं दिया है ।

         उमेश सीमा से 10 वर्ष से भी अधिक छोटा था और इन दोनों के बारे में किसी के भी मन में कोई कुविचार सपने में भी नहीं आ सकते थे । लेकिन जो सच सामने दिख रहा था उससे नजर फेर सकना भी सम्भव नहीं था । घर आकर राजू ने जब अलमारी चेक की तो मालूम हुआ कि सीमा के सभी जेवर के साथ ही घर में रखे 4-5 हजार रु. भी गायब हैं ।

         पहले राजू ने अपने दोनों भाईयों और माता-पिता को सारी स्थिति बताई और सबने विचार-विमर्श करते हुए पहले सीमा के पीहर में तलाशा और अंततः किसी कानूनी झमेले में न पड जावें यह सोचते हुए पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवा दी ।

          तीन दिन ऐसे ही और गुजर गये, चौथे दिन अचानक राजू को सीमा का फोन मिला । सीमा राजू से माफी मांगते हुए अपने बच्चों से बात करना चाह रही थी । राजू ने सीमा से कहा कि जो हुआ उसे भूल जाओ और घर वापस आ जाओ । तब सीमा बोली कि जो गल्ति हम कर चुके हैं उसके बाद हमारे घर वापस आ सकने की तो कोई संभावना ही नहीं बची है । हो सके तो आप हमें माफ कर देना । बच्चों से बात करने में भी सीमा रोती ही रही और बच्चों से बार-बार बोलती रही कि हम तो अब आ नहीं पाएँगे तुम हमें माफ कर देना और अपने पापा का ध्यान रखना ।

          जिस दूसरे शहर से यह फोन राजू को सीमा का मिला था उसी शहर के समाचार पत्रों में दूसरे ही दिन किसी धर्मशाला में बेमेल प्रेमी जोडे के द्वारा जहर खाकर आत्महत्या करने की खबर प्रमुखता से छपी थी ।

          दोनों के ही परिजन उस शहर गये और कानूनी खानापूर्ति करते हुए वहीं उनका दाह-संस्कार कर रोते हुए घर आ गये ।
 
लेकिन क्या समस्या खत्म हो गई ?

          राजू स्वयं को दोषी मानता रहा । अन्दर ही अन्दर घुटते हुए उसे केन्सर की जानलेवा बीमारी ने अपनी गिरफ्त में जकड लिया । गरीबी के दायरे में आधे-अधूरे उपचार के बाद उसकी भी असमय मृत्यु हो गई ।

          दोनों बच्चे इतनी छोटी उम्र में अपने माँ व पिता को खोकर जमाने की ठोकरें खाते हुए बडे हुए ।

          राजू की वह माँ जो वृद्धावस्था से जुडी बीमारियों के कारण खुद लाचार थी उसे उस उम्र में भी इन दोनों अबोध बच्चों के पालन-पोषण का भार उठाना पडा ।

          कहते ही हैं कि समय हर मर्ज का उपचार है इसलिये इस घटना के अनेकों वर्ष बाद आज वे दोनों बच्चे पढ-लिखकर अपने-अपने स्तर पर सम्मानजनक काम-काज में लगे हुए हैं । दादाजी व दादीजी की जिन्दगी भी समय के मुताबिक चल रही है । लेकिन सीमा की उस गल्ति की सजा अपराधबोध से ग्रसित खुद सीमा ने, उसके नासमझ प्रेमी उमेश ने, उसके पति राजू ने, उसके दोनों अबोध बच्चों ने और राजू के माता-पिता भाई-भाभी सभी ने अपने-अपने स्तर पर भुगती ।                
(पात्रों के नाम बदले हुए हैं घटनाक्रम पूरा वास्तविक है)

और अब फिर समाचार सामने है-

तीन बच्चों की माँ 17 वर्षीय स्कूल छात्र के साथ घर छोडकर भागी ।

        ईश्वर ही जाने इस बार कौन-कौन क्या-क्या कीमत चुकाएगा ?

9.4.11

कामा है, पूर्णविराम नहीं ।



          श्री अण्णा हजारे और उनके सक्रिय सहयोगियों की निरन्तर बढती जा रही एकजुटता आखिर रंग लाई । कपिल सिब्बल के नेतृत्व में सरकार ने प्रबुद्ध विधिविदों के जनता से विचार विमर्श के बाद बनाये जन लोकपाल बिल के सभी प्रावधानों को स्वीकार कर लेने की मांग सैद्धान्तिक रुप से मान ली है । वर्तमान सहमति के आधार पर जन लोकपाल बिल के इस क्रियान्वय में आधे सदस्य सरकार की ओर के और आधे सदस्य जनता की ओर के मिलकर काम करेंगे । इस कमेटी में दो अध्यक्ष रहेंगे जिनमें एक जनता का प्रतिनिधि होगा ।
 
          श्री अण्णा ने जनता की ओर से श्री शांतिभूषण के नाम को अध्यक्ष पद हेतु सहमति प्रदान कर दी है जबकि सरकार की ओर से श्री प्रणब मुखर्जी इसके अध्यक्ष बनाये जा सकते हैं ।  इस आंदोलन की अभी तक की जीत का सेहरा देशवासियों की एकजुटता को समर्पित करते हुए व सभी देशवासियों को बधाई देते हुए श्री अण्णा ने 9 अप्रेल 2011 को प्रातः 10:30 तक विधिवत आदेश प्रसारित होने के बाद अनशन समाप्ति की घोषणा कर दी है । 

 
           निश्चय ही श्री अण्णा हजारे के नेतृत्व में प्रारम्भ और महज 4 दिनों में देश ही नहीं दुनिया भर की जनता से मिले अपार जनसमर्थन से उत्पन्न अब तक की इस उपलब्धि को देश से भ्रष्टाचार की भयावहता पर अंकुश लगा सकने के सामूहिक प्रयास के इन परिणामों को अभी पूर्णविराम तो नहीं किन्तु कामा सृदश उपलब्धिपूर्ण अवश्य ही माना जा सकता है ।

       दुनिया में महाभ्रष्ट देशों की सूचि में निरन्तर शिखर की ओर अग्रसर हमारे देश में इस महाआन्दोलन के परिणामस्वरुप शिखर पर व्याप्त भ्रष्टाचार के उन्मूलन की दिशा में अब तक की यह उपलब्धि भी मील का पत्थर साबित हो सकेगी । ऐसा विश्वास फिलहाल तो सभी देशवासियों को करना चाहिये । 


7.4.11

भ्रष्टाचार के खिलाफ जनयुद्ध

जागो देशवासियों...
अभी नहीं तो कभी नहीं.
        
         देश से भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिये एक ऐसे कठोर कानून की आवश्यकता है जो कम से कम समय में भ्रष्टाचारियों को जेल की सलाखों के पीछे धकेल सके । अतः देश में जनलोकपाल लागू होना चाहिये । यह जनता के लिये जनता के द्वारा बनाया गया कानून है । इस कानून के लागू होने से देश में निश्चित रुप से भ्रष्टाचार कम होगा, समय पर न्याय मिल सकेगा, लूटा गया धन वापस मिल सकेगा, देश में अमन चैन कायम होगा, मिलावटखोरी बंद होगी, नक्सलवाद, माओवाद, आतंकवाद खत्म होगा, देश में बडे-बूढे, बच्चे जवान, स्त्री-पुरुष निर्भय होकर जी सकेंगे ।

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          जन लोकपाल को सरकार द्वारा लागू करवाने के लिये श्री अन्ना हजारे ने एक जनआन्दोलन की शुरुआत की है । श्री अन्ना ने प्रधानमंत्री डा. मनमोहनसिंह को अल्टीमेटम दिया है कि वे भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कानून "जन लोकपाल बिल" लागू करें । इसके कानून के अनुसार भ्रष्टाचार करने पर किसी भी व्यक्ति को जल्द और सख्त सजा हो सकेगी ।

जन लोकपाल बिल क्या है ?
           जस्टिस संतोष हेगडे, प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल, किरण बेदी व अन्य प्रबुद्ध व्यक्तियों द्वारा बनाया गया यह विधेयक जनता के द्वारा वेबसाईट पर दी गई प्रतिक्रिया  और  जनता के साथ विचार विमर्श के बाद विधि-विशेषज्ञों द्वारा तैयार किया गया है ।  इस बिल को शांति भूषणजे. एम. लिंगदाह, अन्ना हजारे, श्री श्री रविशंकर, बाबा रामदेव, महमूद मदानी, आर्क बिशप विन्सेन्ट एम. कान्सेसाओ, सैयद रिजवी, जस्टिस डी. एस. तेवटिया, प्रदीप गुप्ता, कमलकान्त जायसवाल, सुनिता गोदारा, सैय्यद शाह, फजलुर्रहमान वाईजी आदि का समर्थन प्राप्त है । इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भैजी गयी थी, जिसका उन्होंने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है । 

इस कानून में क्या है ?
           1.  इस कानून के अन्तर्गत केन्द्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा ।
          2. ये संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी । कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पाएगा ।
          3. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लंबित नहीं रहेंगे । किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी । ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या जज को दो साल के भीतर जेल भेजा जावेगा ।
          4. अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों के द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जावेगा ।
          5. ये आम आदमी की कैसे मदद करेगा ?
                   यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर  पर जुर्माना लगाएगा और वह मुआवजा शिकायतकर्ता को मुआवजे के रुप में मिलेगा ।
         6. अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के अन्दर नहीं बनते हैं, या  पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महिने के भीतर करवाना होगा । आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे- सरकारी राशन की कालाबाजारी, सडक बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग, लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर करनी होगी ।

          7.
क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी ?
                   ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन जजों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जावेगा न कि नेताओं द्वारा । इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी ।
          8. अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाये गये तो ?
                    लोकपाल / लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह से पारदर्शी होगा । लोकपाल के किसी भी क्रमचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महिने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जावेगा ।
          9. मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा ?

                  सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सी बी आई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग को लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा. लोकपाल को किसी जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिये पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी.


क्या भ्रष्टाचार का खात्मा संभव है ?
        सत्तर के दशक में हांगकांग में भ्रष्ट माफिया, नेता और पुलिस में गठजोड हो जाने से भ्रष्टाचार अपने चरम पर पहुँच गया था, जिसके विरुद्ध लाखों आमजन सडकों पर आ गये थे । आखिरकार सरकार को जनशक्ति के आगे झुकते हुए स्वतंत्र भ्रष्टाचार विरोधी आयोग ( I.C.A.C.)  का गठन करना पडा जिसने सीधी कार्य़वाही करते हुए 160 में से 120 भ्रष्ट पुलिस अधिकारियों को बर्खास्त कर दिया । यह सीधा सन्देश एक मिसाल बन गया और आज हांगकांग का विकास और भ्रष्टाचार की न्यूनता हमारे लिये अनुकरणीय है । 

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आपके जन-समर्थन से भ्रष्टाचार का खात्मा भारत में भी संभव है ।

जन लोकपाल कानून आने से भ्रष्टाचारियों के मन में डर पैदा होगा.
 
          विनीत :  भारत स्वाभिमान ट्रस्टआर्ट आफ लिविंगभारतीय राष्ट्रवादी समानता पार्टीअभ्यास मंडलअन्य अनेक सामाजिक संगठन  और  प्रबुद्ध नागरिक ।

अपनी बात-
               उपरोक्त बिल में कहीं ऐसा कुछ दिखाई नहीं देता जो किसी भी प्रकार से सरकार के कामकाज में बाधक बने ।  

 फिलहाल तो 
          सरकार जनता की दौलत लूट रही है । देश में जेबकटों के लिये कानून है किन्तु उन भ्रष्ट लोगों के लिये नहीं जो जनता के धन से अपनी जेबें भर रहे हैं ।                               -किरण बेदी.

          शरद पंवार जो खुद कई घोटालों में शामिल हैं वे मंत्रियों के उस समूह का नेत्रत्व कर रहे हैं जो लोकपाल बिल के मसौदे में फेरबदल पर विचार कर रहा है । इस समूह में कपिल सिब्बल भी हैं जिन्हें 2जी स्पेक्ट्रम आवंटन में कोई घोटाला नजर नहीं आता ।                                  -अरविन्द केजरीवाल.

स्वाभाविक है कि ये नेता इस कानून को अपनी ओर से कभी भी लागू नहीं होने देंगे ।

               देश की जनता को सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह से ही जवाबदेही तय करनी चाहिये । वे ही देश को ये जवाब दें कि ये कानून कब तक लागू किया जा रहा है । और यदि इसे हम लागू नहीं कर पा रहे हैं तो उसकी राह में वास्तविक रुकावटें क्या आ रही हैं ?