12.4.11

कैसी चाहत ? कैसा प्यार ?

          सुबह 10 बजे अपने काम पर घर से निकला राजू रोज के समान रात को 10 बजे के करीब जब घर आया तो उसे अपनी पत्नी सीमा घर पर नहीं दिखी । दोनों बच्चे जो 6 और 8 साल के थे उनसे पूछने पर वह भी कुछ नहीं बता पाये । बच्चों से जब उसने ट्यूशन वाले अंकल के बारे में पूछा तो बच्चों ने बताया कि की शाम को 5:30 बजे तक अंकल पढा रहे थे और मम्मी भी तब घर पर ही थी । लेकिन बाद में कुछ कह कर नहीं गई ।

 
          
कुछ नहीं समझ पाने की स्थिति में राजू उपर की मंजिल पर अपनी माँ-पिताजी के पास भी पूछ आया । वहाँ भी उसे यही मालूम हो सका कि सीमा 6 बजे तो उपर आकर गई थी । लेकिन बाद में कुछ मालूम नहीं ।
  
          तीन भाईयों में मंझला राजू कम पढा-लिखा होने के कारण प्राईवेट नौकरी के साथ ही मालिक के प्राडक्ट कमीशन पर बेचकर घर का खर्च जुटाता था जबकि बडे व छोटे भाई दोनों अलग-अलग बैंकों में नौकरी करते थे और अपने-अपने परिवार के साथ अलग रहते थे और पिता के कम किराये वाले पुराने घर में राजू ही अपनी पत्नी व माता-पिता के साथ रहता था । पिता रिटायर होने के साथ ही वृद्धावस्था से जुडी शारीरिक समस्याओं से घिरे रहते थे और माँ भी उम्रजनित रोगों के प्रभाव में रहने के कारण स्वस्थ कहे जाने जैसी स्थिति में नहीं थी । अतः बहुत आवश्यक होने पर ही माँ व पिताजी के तीसरी मंजिल से नीचे उतरने की स्थिति बन पाती थी ।
    
          गरीब घर की सीमा माँ-बाप की एक ही लडकी थी और राजू के साथ उसकी शादी को करीब 10 वर्ष के आसपास का समय हो चुका था । शादी के समय ऐसी समस्याग्रस्त स्थिति नहीं थी किन्तु माता-पिता की बीमारी, भाईयों का अलग बस जाना और परिवार में दो बच्चों के और बढ जाने से समस्याएँ बढती चली जा रही थी जिनका सामना राजू को और अधिक घण्टे काम करते हुए करना पडता था ।

         जब उमेश के घर राजू ने उसके बारे में जानना चाहा तो यह सुनकर उसके होश उड गये कि उमेश भी 6 बजे के बाद से कहीं दिखाई नहीं दिया है ।

         उमेश सीमा से 10 वर्ष से भी अधिक छोटा था और इन दोनों के बारे में किसी के भी मन में कोई कुविचार सपने में भी नहीं आ सकते थे । लेकिन जो सच सामने दिख रहा था उससे नजर फेर सकना भी सम्भव नहीं था । घर आकर राजू ने जब अलमारी चेक की तो मालूम हुआ कि सीमा के सभी जेवर के साथ ही घर में रखे 4-5 हजार रु. भी गायब हैं ।

         पहले राजू ने अपने दोनों भाईयों और माता-पिता को सारी स्थिति बताई और सबने विचार-विमर्श करते हुए पहले सीमा के पीहर में तलाशा और अंततः किसी कानूनी झमेले में न पड जावें यह सोचते हुए पुलिस में रिपोर्ट भी दर्ज करवा दी ।

          तीन दिन ऐसे ही और गुजर गये, चौथे दिन अचानक राजू को सीमा का फोन मिला । सीमा राजू से माफी मांगते हुए अपने बच्चों से बात करना चाह रही थी । राजू ने सीमा से कहा कि जो हुआ उसे भूल जाओ और घर वापस आ जाओ । तब सीमा बोली कि जो गल्ति हम कर चुके हैं उसके बाद हमारे घर वापस आ सकने की तो कोई संभावना ही नहीं बची है । हो सके तो आप हमें माफ कर देना । बच्चों से बात करने में भी सीमा रोती ही रही और बच्चों से बार-बार बोलती रही कि हम तो अब आ नहीं पाएँगे तुम हमें माफ कर देना और अपने पापा का ध्यान रखना ।

          जिस दूसरे शहर से यह फोन राजू को सीमा का मिला था उसी शहर के समाचार पत्रों में दूसरे ही दिन किसी धर्मशाला में बेमेल प्रेमी जोडे के द्वारा जहर खाकर आत्महत्या करने की खबर प्रमुखता से छपी थी ।

          दोनों के ही परिजन उस शहर गये और कानूनी खानापूर्ति करते हुए वहीं उनका दाह-संस्कार कर रोते हुए घर आ गये ।
 
लेकिन क्या समस्या खत्म हो गई ?

          राजू स्वयं को दोषी मानता रहा । अन्दर ही अन्दर घुटते हुए उसे केन्सर की जानलेवा बीमारी ने अपनी गिरफ्त में जकड लिया । गरीबी के दायरे में आधे-अधूरे उपचार के बाद उसकी भी असमय मृत्यु हो गई ।

          दोनों बच्चे इतनी छोटी उम्र में अपने माँ व पिता को खोकर जमाने की ठोकरें खाते हुए बडे हुए ।

          राजू की वह माँ जो वृद्धावस्था से जुडी बीमारियों के कारण खुद लाचार थी उसे उस उम्र में भी इन दोनों अबोध बच्चों के पालन-पोषण का भार उठाना पडा ।

          कहते ही हैं कि समय हर मर्ज का उपचार है इसलिये इस घटना के अनेकों वर्ष बाद आज वे दोनों बच्चे पढ-लिखकर अपने-अपने स्तर पर सम्मानजनक काम-काज में लगे हुए हैं । दादाजी व दादीजी की जिन्दगी भी समय के मुताबिक चल रही है । लेकिन सीमा की उस गल्ति की सजा अपराधबोध से ग्रसित खुद सीमा ने, उसके नासमझ प्रेमी उमेश ने, उसके पति राजू ने, उसके दोनों अबोध बच्चों ने और राजू के माता-पिता भाई-भाभी सभी ने अपने-अपने स्तर पर भुगती ।                
(पात्रों के नाम बदले हुए हैं घटनाक्रम पूरा वास्तविक है)

और अब फिर समाचार सामने है-

तीन बच्चों की माँ 17 वर्षीय स्कूल छात्र के साथ घर छोडकर भागी ।

        ईश्वर ही जाने इस बार कौन-कौन क्या-क्या कीमत चुकाएगा ?

26 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे हिसाब से " प्यार करना कोई गुनाह नही है " पर घर छोड़कर भाग जाना बहुत बड़ा गुनाह है वो भी जब आप शादी शुदा हों | ये पोस्ट हर प्रेमी जोड़ा को अवश्य पढना चाहिए |
    अच्छी पोस्ट के लिए आभार |

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  2. sushil ji is tarah ki ghatanyein roj hi akhbaar mein aa rahin hain. blame it to neuclear family. hum log to mohalle ke dadi-baba, chacha-chachi, mama-mami se pit-pita kar bade hue hain. so abhi tak adosi-padosi ke lihaj se ubar nahin paaye. jab bhaag hi gaye to jamane se lado, aatmhatya se kay mila...

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  3. मार्मिक सत्य। बस एक बार चार जीवन अपने से अधिक महत्वपूर्ण रख कर देख लिया होता।

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  4. रामनवमी की हार्दिक शुभकामनायें.

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  5. क्या कहें...कुछ कहना बनता ही नहीं इस बेवकूफी पर...

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  6. "प्रेम करना गुनाह नहीं है" पर कर्तव्यों को छोड देना तो गुनाह है, कर्तव्य के लिए जिस चीज का भी त्याग करना पड़े करना चाहिए|

    शादी-शुदा हो कर भी लोग ऐसी वेवकूफी करते हैं, कितना दुखद है

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  7. अभाव में रहकर गुनाह सर उठाने लगते हैं ।
    यह मन भी पागल है , कुछ सोचता ही नही ।
    बेहद शर्मिंदा करने वाली दुर्घटना ।

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  8. शारीरिक आकर्षण को ही जब प्रेम का नाम दिया जाने लगेगा और ऐसे प्रेम की आवश्‍यकता पर बल दिया जाएगा तब ऐसे घटनाक्रम तो होंगे ही। महान है ऐसा प्रेम जो अपनों की भी सुध-बुध भुला दे।

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  9. बेहद शर्मिंदा करने वाली दुर्घटना|ये प्रेम नहीं वासना है| धन्यवाद|

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  10. दुखद प्रसंग है, ऐसा नहीं होना चाहिए।

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  11. इसे प्रेम कहना प्रेम शब्द का अपमान ही है न ही ऐसी बेवकूफियां क्षम्य है |

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  12. bilkul thik kaha aaapne
    hume bhi foolow kare aur hamara margdassan kare

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  13. मर्मस्पर्शी स्पर्शी रचना , अब क्या कहें सब समय का चक्कर है |

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  14. मसला बहुत बड़ा नहीं था,मगर हो गया।

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  15. हां इस तरह की घटनाएं देखी पढी सुनी हैं । दुखद और अफ़सोसजनक

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  16. वो प्रेमी नहीं स्वार्थी थे , जिसने मासूमों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया।

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  17. मार्मिक घटना ....
    यह प्रेम नहीं घोर स्वार्थ है ....घृणित वासना है

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  18. जब जब भी जीवन में प्रेय मार्ग अर्थात बिना आगे पीछे सोचे समझे केवल मन की प्रियता के आधार पर अपनाया जाता है,उलझन,भटकन,टूटन आदि का सामना करना ही पड़ता है.काश! हम श्रेय को समझ पायें और अपना
    पायें.भावपूर्ण दर्द को अभिव्यक्त करती सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    मेरे ब्लॉग पर भी आपके आने का बहुत बहुत आभार.

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  19. मेरे विचार से यह आधुनिक जीवन शैली में भौतिकता का दंश है। इसमें ऐसी सामाजिक दुर्घटनाएं तो होनी है। कोई एक अपराधी नहीं है हम सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि कोई खुशकिस्मत है कोई अभागी।

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  20. बहुत कुछ कहती है कहानी।...मार्मिक घटना ....

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  21. इसे प्रेम कहना , प्रेम का अपमान ही है !

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  22. नमस्कार सर ,
    लेख यक़ीनन हिला देने वाला है , पर कहीं न कहीं ये समाज की सच्चाई भी , जो अब दिन पर दिन घिनौना रूप लेती जा रही है | खास तौर पर आज का युवा वर्ग | समाज का ये हिस्सा शारीरिक सौंदर्य के आलावा ना तो कुछ समझना और ना ही कुछ देखना चाहता है | ये भी सच है की समय हर घाव भर देता है पर आप इस बात से इनकार भी नहीं कर सकते कि उस घाव का दाग आजीवन रहता है | युवा वर्ग से ये मेरा अनुरोध है कि ऐसा कोई भी काम ना करें जिससे ना सिर्फ आपके माता पिता शर्मिंदा हो बल्कि समय का पलटवार आपको आपकी औलादों के सामने भी शर्मिंदा कर दे |

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...