19.4.11

सार्वजनिक जीवन में अनुकरणीय कार्यप्रणाली.

  
         ट्रेन के छूटने में लगभग 20-25 मिनिट की देरी थी और पच्चीसों लोग टी. सी. को घेरकर कन्फर्म सीट की जुगाड में अपने-अपने स्तर पर प्रयास करने में लगे थे । टी. सी. ने लिस्ट चेक करने के बाद कहा कि मेरे पास तीन बर्थ है और ये सिर्फ वास्तविक जरुरतमंद को ही मैं दे सकता हूँ । इतना सुनते ही भीड में कई अपने हाथ में बडे नोट लहराते दिखने लगे । 
 
        कुछ ही देर में टी. सी. ने आश्वस्त मुद्रा में बताया - पहली बर्थ इन सीनियर सीटिजन के लिये है जिन्हें 70+ की उम्र में अकेले यात्रा करना है । दूसरी बर्थ इन मेडम के लिये है जो गोद के बच्चे के साथ यात्रा कर रही हैं और तीसरी बर्थ इस नवयुवक के लिये है जो अपनी काम्पीटिशन एक्जाम देने जा रहा है ।

        इतना सुनते ही जहाँ आधी भीड छंट गई वहीं कुछ लोग उस टी. सी. से कहने लगे - हम तो आपको इतने पैसे देने को तैयार थे और आपने बिना कुछ लिये तीनों बर्थ इस प्रकार अलाट कर दी ?
 
         तब वह टी. सी. बोला - डिपार्टमेंट से जो वेतन मुझे मिल रहा है वह मेरे और मेरे परिवार की व्यवस्थित आवश्यकता पूर्ति के लिये पर्याप्त है और इस प्रकार उपर के पैसे लोगों से वसूलकर डाक्टरों के बिल भरते रहने की मुझे कोई आवश्यकता  नहीं है ।

 

52 टिप्‍पणियां:

  1. काश ऐसा टी सी सब जगह मिले ।
    वांछनीय , प्रेरणात्मक सन्देश ।

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  2. kash sabhi karamchari apmi duty aise hi nibhyen to annahajare ko aandolan ki jaroorat nahi paregi

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  3. बहुत सुंदर ओर सत्य बात इस टी सी ने कही, काश यह बात सब की समझ मे आ जाये तो कितना सुख हो जाये पुरे भारत मे, धन्यवाद

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  4. आज आपकी पोस्ट पढ़ कर लगा कि अभी कुछ लोगों में ईमानदारी बाकी है ...यदि ऐसा सब सोचने लगें तो भारत का नक्शा ही बदल जायेगा ..

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  5. दुर्लभ दृष्य दिखा दिया आपने तो...

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  6. aisi banagi dekhane ko milati rahti hai...kanpur mein ek auto wale ne sone ke aabhushan wala purse (jisake saath owner ka mobile chhoot gaya tha), na sirf lautaya balki innam lene ya apana naam batane tak se inkaar kar diya...aise jazbe ko salaam...jinka pet na bhara ho unke liye chori bhi jayaz hai...per jo moti-moti tankhahein utha rahe hain unke dwara rishwatkhori desh ka naasoor ban gayi hai...doctaron per hi kharch kareinge...

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  7. ये किस माटी के बने टीसी की बात कर रहे हैं...हक़ीक़त से परे लगता है...

    अगर ऐसे टीसी की आत्मा हर किसी में प्रवेश कर जाए तो ये देश तर न जाए...

    जय हिंद...

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  8. खुशदीप भाई जी,
    हम सभी खरीददारी के समय भाव करने की विधा में इतने माहिर होते हैं कि यदि कोई वस्तु मुफ्त में मिल रही हो तो दो चाहिये की बारगेनिंग में जुटे दिखते हैं (भ्रष्टाचार भी) । लेकिन जब किसी दुकान पर रिजनेबल मूल्य पर एक भाव हाँ या ना की स्थिति देखते हैं तो खरीदी में न सिर्फ पहली प्राथमिकता उसे देते हैं बल्कि यह भी देखते हैं कि वह दुकान अन्य दुकानों से अधिक तेजी से सफल हो रही है । सारी भीड बारगेनिंग का मोह छोडकर खरीदी करने में उसी को प्राथमिकता देते दिखने लगती है । आपकी आजकी पोस्ट आखिर अन्ना के आंदोलन में इतनी भीड जुटी तो जुटी कैसे ? वाले प्रश्न पर भी मेरी समझ में यही मनोविज्ञान चलता है और मेरी पोस्ट पर किस मिट्टी के टी. सी. वाली आपकी जिज्ञासा पर भी मुझे इससे अलग कोई उदाहरण समझ में नहीं आता । जब अन्ना लोगों की नजरों में ईमानदारी का रोल माडल बन जाते हैं क्योंकि वहाँ मीडिया माध्यम उनके साथ जुड जाता है किन्तु ऐसे टी. सी. या वो रिक्शे वाले जो लाखों रु. के कीमती माल असबाब के बेग व अटेचियां ढूँढते हुए उनके वास्तविक मालिकों तक पहुँचाने अपना धंधा खोटी कर व जेब का पेट्रोल खर्च कर पहुँचाने पहुँच जाते हैं और बिना इनाम लिये लौट आते हैं ऐसे ही पागलों की तलाश (जो संख्या में चाहे जितने कम हों किन्तु हैं तो) में तो इस समय 100 में 99 बेईमान वाला हमारा पूरा देश लगा दिख रहा है या नहीं ?

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  9. नमन है ऐसे व्यक्तित्व को

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  10. टी सी जैसे लोग अभी भी हैं किन्तु घटते क्रम में.
    काश ऐसा सभी करें...

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  11. अब ऐसी बातें स्वप्न की तरह लगती हैं ... पर अगर सत्य में भी ऐसा हो जाए तो वो व्यक्ति भगवान के समकक्ष लगता है ...

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  12. ऐसे व्‍यक्तित्‍व के लिये मन स्‍वत: श्रद्धान्‍वत हो जाता है ... इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  13. इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये आभार ।

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  14. काश! हर जगह ऐसी ईमानदारी और चिन्ता देखने को मिले. वैसे ऐसे टीसी भी उंगलियों पर ही मिलेंगे.

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  15. काश हर सरकारी सेवक इसी मानसिकता का हो जाता !

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  16. अनुकरणीय चरित्र ईमानदार लोग भी हैं, लेकिन कम हैं और लाईमलाईट में नहीं आते।
    ऐसी ही मानसिकता की जरूरत है।

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  17. ऐसे कितने ही लोग है जो ईमानदारी से अपने कार्य करते है किन्तु हमे तो बेईमानो की चर्चाये करने में ही ज्यादा रस मिलता है मिडिया की तरह |
    इस प्रकरण में कितने ही लोग पैसे देकर सुविधा जुटाना चाह रहे थे kya उन लोगो के दिल में ने इन जरुरतमंद लोगो को देखकर अपनी सुविधा को त्यागने का विचार नहीं आया ?
    इस सकारात्मक नजरिये के लिए बहुत बहुत आभार

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  18. ऐसे संस्मरण जरूर लिखे जाने चाहिए। हमारे देश में बहुत से लोग ईमानदार हैं पर उन्हें फोकस न करके हम बेइमानी की चर्चा में ही उलझ कर रह जाते हैं।
    ..आभार आपका।

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  19. वाह !सुशिल जी लगता है की उस टी.सी में मेरे मिस्टर की आत्मा बस गई--तभी तो ओरो की तरह न हमारा बेंक बेलेंस है न गाडी है , न बंगला है सिर्फ एक 2-बेडरूम का एक साधारण फ्लेट है जिसमे हम खुश है --
    बहुत बढिया पोस्ट है --वेसे इंदौर के ज्यादा तर टी सी ऐसे ही ईमानदार है यह मेरा खुद का अनुभव है !

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  20. वाह.... अति सुन्दर !

    प्रेरक.....!!

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  21. आजकल कम्‍प्‍यूटराइज्‍ड लिस्‍ट होने के कारण टीसी अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते। यदि कुछ बर्थ उनके पास हैं भी तो वे बिना पैसा लिए अक्‍सर देते हैं। ये तो कुछ लोग हैं जो देश को बदनाम करते हैं।

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  22. ऐसे कितने ही लोग है जो ईमानदारी से अपने कार्य करते है किन्तु हमे तो बेईमानो की चर्चाये करने में ही ज्यादा रस मिलता है मिडिया की तरह |
    काश! हर जगह ऐसी ईमानदारी और चिन्ता देखने को मिले. वैसे ऐसे टीसी भी उंगलियों पर ही मिलेंगे...

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  23. mujhe bahut yatraen karni padti hain....aise TC kam hi milte hain.....khair.....post pad kar sheetal bayaar ka sa anubhav hua... sadhuwaad..

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  24. drushya durlabh hai par aise vakaye hote hai bas unhe dekhane ki nazar aur sarahne ke liye shabd chahiye...

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  25. बहुत संक्षिप्त और बेहद सटीक ढंग से आपने ईमानदारी का खाका खींचा..बहुत सुन्दर ..

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  26. यकीन नहीं हो रहा कि यह किस्सा भारतीय रेल के टीसी का है!

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  27. ईमानदारी अभी भी कायम है ....

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  28. ाभी भी इमानदारी ज़िन्दा है । अनुकरणीय प्रसंग। धन्यवाद।

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  29. अनुकरणीय और प्रेरक .
    वाह,सलाम ऐसे व्यक्ति को.

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  30. आप कोंन से देश की गाताना बता रहें हे यह भी बताये क्युकी मेरे अनुभव से भारत में ऐसे tc सायद ही मिले

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  31. प्रेरक प्रसंग।
    सभी को इसका अनुकरण करने का भरसक प्रयास करना चाहिए।

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  32. सुशील जी,

    क्या आप कुछ इस तरह का टेम्पलेट ढूंढ रहे हैं?

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  33. व्यस्तता के कारण देर से आने के लिए माफ़ी चाहता हूँ.

    आप मेरे ब्लॉग पे पधारे इस के लिए बहुत बहुत धन्यवाद् और आशा करता हु आप मुझे इसी तरह प्रोत्सन करते रहेगे
    दिनेश पारीक

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  34. अच्छा लगता है जानकर कि हमारे बीच ऐसे लोग किस्से-कहानियों से इतर भी बचे हैं।

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  35. yah prerak prasang hamre samaj ko wah aaina dikhata hai jahan se sab saaf saaf dikhta hai ki Imandari aaj bhi hai..Jarurat hai ki ham apni shikshan sansthano mein aise prerak prasango ko vishay sooch ka hissa bana sakte hain...dikkat ye hai ki ham moral stories padhate nahi aur padhate bhi hain to hazar saal pahle ki jise bacche asambhav mante hain ...agar unhe aaj ke prerak prasang padhaye jaayen to shayad unhe hamari naitikta par vishwas hoga aur we use sapna nahi sach samjhenge...
    Agar har aadmi yah soch le ki uske bheetar us TC ki aatma bas rahi to shayad kalyan ho jaaye...
    Aabhar aapka aisi sacchhi katha sunane ko...

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  36. असी तो बात नहीं है सुनील जी | मैं तो अपने ब्लॉग पे १-२ दिन से कुछ नया पोस्ट करता रहता हु सायद आप मेरे ब्लॉग आये नही है मैं अपने लिंक देता हु निचे वो आप चेक कर लिए
    धन्यवाद्
    दिनेश पारीक
    http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/

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  37. बहुत प्रेरक प्रसंग...काश सभी इसका अनुसरण करें..

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  38. क्या इस दुनिया में ऐसा होता है ? विश्वास नहीं होता ...

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  39. अच्छा लगा आपके ब्लॉग पर आकर. ये सच है आज भी ऐसे लोग मिल जाते हैं. कम जरूर हैं पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा जाते हैं.
    अनुकरणीय पोस्ट
    आभार

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  40. काश ऐसा उदाहारण कुछ और मिलें सार्थक पोस्ट आभार

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  41. बहुत ही बेहतरीन पेशकश और एक सुन्दर सन्देश..काश के सभी सरकारी महकमो में काम करने वालों की सोच ऐसी हो पाती लेकिन आजकल लोगों ने अपने पेट का आकार बहुत ज्यादा बड़ा लिया है और उसकी पूर्ती के लिए उन्हें हाथ फ़ैलाने पद रहे हैं..

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...