4.7.20

सब ठाठ पडा रह जाएगा...


       जिस कोरोना कालखंड में फिलहाल हम जीवित हैं इसमें पिछले 4-6 महिने में समूचे विश्व में लाखों की संख्या में जो लोग अचानक काल-कवलित हो गये हैं इनमें बडा वर्ग धन-सम्पन्नता से परिपूर्ण श्रेष्ठीवर्ग का रहा है । ये श्रेष्ठीवर जो लाखों करोडों रु. की श्रीसम्पदा अकल्पनीय रुप से अचानक छोडकर चले गये उनमें यदि उन परिवारों को हटा भी दिया जावे जिनके वास्तविक उत्तराधिकारी उनके सामने मौजूद रहे थे किंतु हजारों-हजार ऐसे लोग भी अचानक दुनिया से बिदा हो गये जिन्हें किसी भी कारण से अकेले ही रहना पड रहा था ।

       इनमें से किसी ने कभी यह कल्पना भी नहीं कि होगी कि जिस धन के संग्रह में वे रात-दिन एक किये दे रहे थे उस धन को जहाँ है जैसा है कि स्थिति में यहीं छोडकर इस तरह अचानक दुनिया से रुखसत होना पडेगा ।

             ऐसा ही एक वाकया अपने पुराने घर के एरिये में जाने पर अचानक सामने आया जब अपने परिचित दुकानदार से मैं बात कर रहा था तब मोटर साईकल पर आये एक शख्स ने बहुत ही अदब से नमस्कार किया । मैंने पहचानने की कोशिश की - बहुत पहचाना सा लग रहा था परन्तु नाम याद नहीं आ रहा था । तब उसी ने कहा- भैया पहचाने नहीं ?  हम बाबू हैं, उधर वाली आंटीजी के घर काम करते थे ।

       मैंने पहचान लिया- अरे ये बाबू है, सी ब्लॉक वाली आंटीजी का सेवक, मैंने कहा- अरे बाबू, तुम तो बहुत तंदुरुस्त हो गए हो । आंटी कैसी हैं ?  जवाब में बाबू हंसा बोला- आंटी तो गईं ।

           कहां ?  मैंने पूछा- उनका बेटा विदेश में था, वहीं चली गईं क्या ? तब बाबू ने गंभीर होकर कहा- भैया, आंटीजी भगवान जी के पास चली गईं । मैंने चकित स्वर में पूछा- ओह ! कब ?  बाबू ने धीरे से कहा- दो महीने हो गए ।

       मेरे ये पूछने पर कि क्या हुआ था आंटी को ?  बाबू बोला- कुछ नहीं । बस बुढ़ापा ही बीमारी थी । उनका बेटा भी बहुत दिनों से नहीं आया था । उसे याद करती थीं । पर अपना घर छोड़ कर वहां नहीं गईं । कहती थीं कि यहां से चली जाऊंगी तो कोई मकान पर कब्जा कर लेगा । बहुत मेहनत से ये मकान बना है ।

       हां, वो तो पता ही है । तुमने खूब सेवा की । अब तो वो चली गईं । अब तुम क्या करोगे ?  अब बाबू फिर हंसा, बोला- मैं क्या करुंगा भैया ? पहले अकेला था । अब गांव से फैमिली को ले आया हूं । दोनों बच्चे और पत्नी अब यहीं मेरे सथ रहते हैं ।

       यहीं मतलब उसी मकान में ? मैंने पूछा - जी भैया । आंटी के जाने के बाद उनका इकलौता बेटा आया था । एक हफ्ता रुक कर वापस चला गया । मुझसे कह गया कि घर देखते रहना । इतना बड़ा फ्लैट है, मैं अकेला कैसे देखता ?  भैया ने कहा कि तुम यहीं रह कर घर की देखभाल करते रहो । वो वहां से पैसे भी भेजने लगे हैं । मेरे बच्चों को यहीं स्कूल में एडमिशन मिल गया है । अब आराम से हूं । थोडा कुछ काम बाहर भी कर लेता हूं । भैया सारा सामान भी छोड़ गए हैं, कह रहे थे कि दूर देश ले जाने में कोई फायदा नहीं ।

       मैं हैरान था- बाबू पहले साइकिल से चलता था । आंटी थीं तो उनकी देखभाल करता था । पर अब जब आंटी चली गईं तो वो उस पूरे बडे मकान में आराम से सपरिवार रह रहा है । जबकि आंटी जीवन भर अपने बेटे के पास इसलिये नहीं गईं कि कहीं कोई मकान पर कब्जा न कर ले । अब बेटा ये सोच कर मकान नौकर को सम्हला गया है कि वो रहेगा तो मकान बचा रहेगा ।

       मुझे पता है, मकान बहुत मेहनत से बनते हैं । पर ऐसी मेहनत किस काम की, जिसमें हम सिर्फ पहरेदार बन कर रह जाएं ?  मकान के लिए आंटी बेटे के पास नहीं गईं । बेटा मां को अपने पास नहीं बुला पाया । जिसने मकान बनाया वो अब दुनिया में ही नहीं है और जो हैं, उसके बारे में बाबू भी जानता है कि वो अब यहां कभी नहीं आएंगे ।

       मैंने बाबू से पूछा कि- क्या तुमने भैया को बता दिया कि तुम्हारी फैमिली भी यहां आ गई है ? इसमें बताने वाली क्या बात है भैया ?  वो अब कौन यहां आने वाले हैं  और मैं अकेला यहां क्या करता जब आएंगे तो देखेंगे । पर जब मां थीं तभी नहीं आए तो उनके बाद क्या आना ?  रही मकान की चिंता तो वो मैं कहीं लेकर तो जा नहीं रहा । देखभाल तो मैं कर ही रहा हूं, हंसते हुए बाबू बोला ।

       मैंने बाबू से हाथ मिलाया । मैं समझ गया था कि बाबू अब नौकर नहीं रहा । वो अब बगैर प्रयास के ही मकान मालिक हो गया है ।

       हंसते हुए मैंने बाबू से कहा- भईया, जिसने भी ये बात कही है कि- मूर्ख आदमी मकान बनवाता है, और बुद्धिमान आदमी उसमें रहता है, उसे ज़िंदगी का कितना गहरा तज़ुर्बा रहा होगा । बाबू बोला, साहब, सब किस्मत की बात है ।

       मैं भी वहां से चल पड़ा था ये सोचते हुए कि सचमुच सब किस्मत की ही बात है। लौटते हुए मेरे कानों में बाबू की हंसी गूंज रही थी... मैं मकान लेकर कहीं जाऊंगा थोड़े ही ? मैं तो देखभाल ही कर रहा हूं ।

       और मैं सोच रहा था कि मकान कौन लेकर जाता है ? सब देखभाल ही तो करते हैं । आज यह किस्सा पढ़कर लगा कि हम सभी क्या कर रहे हैं, जिन्दगी के चार दिन हैं मिलजुल कर हँसतें-हँसाते गुजार ले । क्या पता कब बुलावा आ जाए । सब यहीं धरा रह जायेगा ।

       इस कथानक का यह मतलब कदापि नहीं है कि अकर्मण्यता से हमें अपनी जिन्दगी को जीते-जी सुविधाओं से वंचित रखना चाहिये, किंतु हमारा तरीका यह तो होना ही चाहिये कि एक के बाद अनेकों हासिल करते चले जाने की अंधी दौड से स्वयं को बचाते हुए जितनी भी जिंदगी हमें मिली है उसे यथासंभव बेमतलब की तृष्णा की दौड से बचाते हुए जीवन का अधिक से अधिक सुख व आनंद हम अवश्य लें ।

       नीचे एक वीडिओ क्लिप प्रस्तुत की जा रही है जिसमें अनेकों लोग महामारी की चपेट में असमय ही दुनिया से रुखसत होते दिख रहे हैं । सोचने वाली बात यह भी है कि इनके जाने के बाद कितने बाबू नामी ऐसे सेवक अनायास ही मालिक बनकर उस सम्पत्ति को भोगना प्रारम्भ कर चुके होंगे जिनके लिये इनके स्वर्गीय मालिकों ने रात-दिन एक कर लगातार अथक परिश्रम किया होगा-


30.6.20

सुरक्षित जीवन के लिये बधाई...


         हम सभी देशवासी बधाई के पात्र हैं कि  हमने 23 मार्च 2020  से आज तक लगभग  तीन  महीने से भी अधिक समय बिना किसी सहायता के पूरे जी लिये हैं और इसी अवधि में यथासंभव जरुरतमंदों की मदद की इंसानियत भी सीख ली ।

        यह समय लगभग हम सभी ने बिना किसी घरेलू सेवक के, बिना जंकफूड के, बिना शॉपिंग किये, बिना होटल, रेस्टोरेंट में बाहर खाना खाये हुए, बिना किसी सिनेमा हाल गये हुये, बिना किसी शादी, ब्याह, पार्टी मै गये हुये, बिना किसी ब्यूटी पार्लर अथवा सैलून गये हुये, बिना गोलगप्पे, पापड़ी, छोलेभटूरे, टिक्की, पावभाजी, मिठाई बाहर खाये हुये, नौकरी या व्यवसाय की छुट्टी मनाते हुए भी भरपुर घरेलू व्यंजनों के आधार पर व्यतीत कर लिये और वैश्विक महामारी के इस दौर में अपने मनोबल को बनाये रखने में हम अब तक सफल रहे हैं ।

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       ज़िन्दगी वाकई बहुत खूबसूरत है, चल रही है,  दौड़ रही है, बिना किसी बाहरी सहारे से आप और हम सभी अब तक सुरक्षित हैं, और अब  बंदिशों वाले जीवन का चौथा महीना शुरू हो गया है ।

        फिलहाल अपनी इन आदतों को बनाये रखें, सदा स्वस्थ रहें, मुस्कुराते रहें । यह सब परिस्थितियां एक अत्यंत सूक्ष्म जीव के कारण निर्मित हुई हैं जो बिना किसी गुरू या स्कुल कालेज के हमें यह समझाने में सक्षम रही है कि कभी भी किसी को छोटा मानकर कम मत आँको और सदैव अपने से छोटे को भी सम्मान दो ।

        अब आगे की यदि बात की जावे तो भारत में फिलहाल नित्य प्रतिदिन संक्रमित व्यक्तियों के आंकडे बढते ही जा रहे हैं और अतिशयोक्ति भी समझें तो BBC के एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आने वाले समय में 30 करोड़ लोग कोरोना के चपेट में आ सकते हैं और हर 5 में से 1 व्यक्ति क्रिटिकल होगा ।

        मतलब लाखों लोगों को स्पेशल ट्रीटमेंट्स की जरूरत होगी जबकि देश में कुल 1 लाख ICU वार्ड हैं । रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अमेरिका, स्पेन, व इटली जैसे अतिसंक्रमित देशों के बाद भारत अगला बड़ा शिकार बन सकता है । वैसे भी हमारे देश की जनसंख्या उपरोक्त देशों से कई गुना अधिक है, अतः यदि ऐसा होता भी है तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी ।

        अभी भी लगातार अनेकों लोगों द्वारा लापरवाहिया बरती जा रही है । ध्यान रहें जब मामला हाथ से निकल जाएगा तो इसे रोकने की ताकत किसी के अंदर नहीं होगी जब अमेरिका जैसा शक्तिशाली देश इसके आगे आज हार मान चुका है तो फ़िर हम क्या हैं ।

        आने वाला महिना भारत के लिए निर्णायक साबित होगा । अतः जब तक ये मसला ठंडा न पड़ जाए तब तक आप बगैर किसी विशेष आवश्यकता के घर से बाहर न निकलें ! सरकार ने तो मजबूरीवश लॉकडाउन खोल दिया है, लेकिन आप सावधान रहें क्योंकी सरकार की नजर में आप मात्र एक संख्या हैं लेकिन अपने परिवार के लिए आप पूरी दुनिया हैं । आप का जीवन आपके परिवार के लिए अनमोल है । खतरे का मुख्य संकेत इसी से समझ लें कि रेलवे ने 12 अगस्त तक रेल-परिचालन बंद की घोषणा कर दी है ।

        अतः पर्याप्त सावधान रहें, मजबूरी में जब भी घर से बाहर निकलें तो अपनी नाक व मुँह को मास्क द्वारा सुरक्षित रखते हुए निकलें । भीड वाले क्षेत्रों में यथासम्भव ना जावें । लोगों से 6 नहीं तो भी कम से कम 4 फीट की दूरी रखकर ही अपनी बात करें व बाजार से कुछ भी लेन-देन करते वक्त अपने हाथ को सेनेटाईज अवश्य करें । वापस घर आते ही अच्छी तरह से अपने हाथ व चेहरा साबुन से साफ कर व आवश्यक कपडे बदल कर ही घर के सदस्यों के सम्पर्क में आवें ।

       अंत में महाभारत युद्ध की एक छोटी सी कथा में दर्शित सावधानी अपने दिमाग में रखें वह ये कि

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        महाभारत युद्ध में अपने पिता द्रोणाचार्य के धोखे से मारे जाने पर अश्वत्थामा बहुत क्रोधित हो गये उन्होंने पांडव सेना पर एक बहुत ही भयानक अस्त्र "नारायण अस्त्र" छोड़ दिया इसका कोई भी प्रतिकार नहीं कर सकता था यह जिन लोगों के हाथ में हथियार हो और लड़ने के लिए कोशिश करता दिखे उस पर अग्नि बरसाता और उसे तुरंत नष्ट कर देता था । तब भगवान श्रीकृष्ण ने सेना को अपने अपने अस्त्र-शस्त्र छोड़ कर, चुपचाप हाथ जोड़कर खड़े रहने का आदेश दिया और कहा मन में युद्ध करने का विचार भी न लाएं, यह उन्हें भी पहचान कर नष्ट कर देता है ।

        नारायण अस्त्र धीरे-धीरे अपना समय समाप्त होने पर शांत हो गया और इस तरह पांडव सेना की रक्षा हो गई ।

अब इस कथा-प्रसंग का औचित्य समझें-

        हर जगह लड़ाई सफल नहीं होती । प्रकृति के प्रकोप से बचने के लिए हमें भी कुछ समय के लिए अपने सारे काम छोड़ कर,  मन में सुविचार रख कर एक जगह ठहर जाना चाहिए, तभी हम इसके कहर से बचे रह पाएंगे ।

        कोरोना भी अपनी समयावधि पूरी करके शांत हो जाएगा । यह भगवान श्रीकृष्णजी का बताया हुआ उपाय है, जो व्यर्थ नहीं जाएगा । अतः अभी भी अधिक से अधिक अपने घर पर रहें व सुरक्षित रहें ।

7.4.20

ये समय बडा बलवान – उचित-अनुचित का रखें ध्यान...


इस समय एकांत में रहें
इस समय
          वर्तमान समय में Covid-19 रुपी जिस महामारी का यह असुर न सिर्फ हमारे घर, शहर व देश बल्कि पूरी दुनिया का अस्तित्व निगल जाने की ओर तेज गति से दौड रहा है । इससे हमारे स्वयं के व अपने परिवार के जीवन के साथ ही अपने मित्र-परिचित व समूचि मानवता को बचाने की दिशा में जो सजगता देश-दुनिया के सभी नागरिकों के लिये आवश्यक रुप से सामने दिख रही है वह है सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना और वे हजारों लाखों लोग जो किसी भी कारण से इस रोग की गिरफ्त में आ चुके हैं उनके जीवन को बचाने की दिशा में युद्ध स्तर पर प्रयासों को अनवरत बनाये रखना ।

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इस समय की आवश्यकता

      इस समय समूचि मानवता को निगल जाने को तैयार ये कोरोना रुपी दैत्य जितनी तेजी से जन सामान्य में अपनी पैठ बनाता जा रहा है उतना ही इसे परास्त कर पाना कठिन होता जा रहा है । फिर भी इस समय हमें अपने उन रक्षकों का निरन्तर आभार प्रकट करते रहना आवश्यक है जो अस्पतालों में डॉक्टर व नर्स के रुप में स्वयं को इस संक्रमण के जोखिम में रखने के बावजूद इसके मरीजों को मृत्यु के मुख से बचाने के प्रयास में अपना घर-परिवार व नींद-भोजन जैसी अनिवार्य आवश्यकताओं को भूलकर सतत अपने कर्तव्यों में जुटे हुए हैं ।

इस समय के भगवान
इस समय के भगवान
      फिर वे पुलिसकर्मी जो इन्हीं खतरनाक परिस्थितियों में स्वयं को संक्रमण की जोखम के बीच रखकर चौवीसों घंटे हमें हमारे घरों में सुरक्षित रखने की कवायद में भूखे-प्यासे व उनींदी अवस्था में रहकर भी जुटे हुए हैं और वे सफाईकर्मी भी जो इन तमाम संक्रमित क्षेत्रों में अपनी जान-जोखिम में डालकर क्षेत्र की साफ-सफाई में इस योजना के मुताबिक लगे हुए हैं कि किसी भी प्रकार की गंदगी के रहते इस महामारी का संकट और अधिक ना बढ पावे । इन सबके अलावा वे सभी लोग जो प्रशासनिक मशीनरी से जुडे रहकर हमारे लिये उपयोगी व आवश्यक नीतियां बनाने में अनथक रुप से लगे हुए हैं, हमें विर्विवाद रुप से इन सभी के प्रति कृतज्ञ बने रहने की आवश्यकता है ।

समय के दुश्मन

      किंतु कुछ विघ्न संतोषी लोग न जाने किस कारण से वर्तमान समय में मानवता के इन रक्षक वर्ग पर सामूहिक हमले करके इनके इस बचाव अभियान को पीछे धकेलने के घृणित कार्य में लगे हैं जिसकी सूचना हम अपने समाचार पत्रों में वॉट्सएप वीडीओ क्लिपिंग में और दूरदर्शन के माध्यम से अक्सर देख रहे हैं । अपने ऐसे कृत्यों के द्वारा ये लोग इस नाजुक समय में अपना कौनसा औचित्य साधने में लगे हैं यह बात समझ से परे है क्योंकि इन गल्तियों का सबसे बडा खामियाजा सबसे पहले तो इन्हें ही इनके परिजनों व क्षेत्रवासियों के साथ भुगतना पड रहा है ।

इस समय कोरोना दैत्य
कोरोना दैत्य

      यदि मैं बात अपने शहर इन्दौर की करुं तो पिछले चार वर्षों से हर वर्ष पूरे देश में सफाई के क्षेत्र में नंबर 1 पर काबिज इसी शहर में पिछले दिनों एक क्षेत्रिय बस्ती में डॉक्टरों के साथ मारपीट करके उन्हें भगाया गया जिसकी चर्चा उस दिन पूरे देश के राष्ट्रीय चैनलों तक पर दिन भर चलती रही । फिर कल भोपाल शहर में सडकों पर अनावश्यक रुप से घूमते लोगों को रोकने का प्रयास करते पुलिसकर्मियों पर प्राणघातक हमला किया गया ।
      ऐसे ही कहीं सफाई कर्मियों को अपनी ड्यूटी के दौरान काम न करने देने के लिये धौंस-दपट व मारपीट कर भगाया जा रहा है तो कहीं किसी विशेष जमात के लोगों द्वारा संक्रमित अवस्था में होने के वावजूद डॉक्टरों पर, चिकित्सा परिसरों में व सडकों पर जानबूझकर थूक कर संक्रमण बढाने का दुर्भावनापूर्ण कार्य किया जा रहा है, नर्सों पर भद्दे व अश्लील कमेंट कर उनका मनोबल तोडने का प्रयास किया जा रहा है ।

      आखिर इस नाजुक समय में जब अधिक से अधिक एकजुटता के साथ इस महामारी को सबके सहयोग से परास्त करना समूची मानव जाति के लिये आवश्यक दिख रहा है तब किसी भी वर्ग द्वारा ऐसी कोशिशें क्या उन्हें मानवता के दुश्मन के रुप में प्रदर्शित नहीं कर रही है ।

      जब देश के प्रधानमंत्री समाज के सभी वर्ग के धर्मगुरुओं से भी ये अपील कर रहे हैं कि वे सभी अपने-अपने दायरे में अपने अनुयायियों को संयमित रहकर इस महामारी का मुकाबला करने के लिये एकजुटता के साथ प्रेरित करें, तब ये कौनसा वर्ग है जो ऐसे मानवता विरोधी कार्यों में अपना हित तलाश रहा है ?

      बहुत संभव है कि पर्दे के पीछे इन्हें उकसाकर अपना मंतव्य साधने की कोई चाल इनके मार्गदर्शक अगुवाओं की रही हो किंतु मोहरा बने ये लोग तो चढजा बेटा सूली पे, भला करेंगे राम की तर्ज पर सूली पर ही चढ रहे हैं, सबसे पहले इनके साथ ही इनके परिवार के लिये कोरोना संक्रमण मौत के सौदागर के रुप में मुंहबाये खडा है फिर इनकी इस घिनौनी कारगुजारियों के लिये सरकार की तरफ से राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की गिरफ्त में बरसों-बरस जेल में गुजारने के रास्ते बन रहे हैं और अंत में शेष जीवन के लिये संभ्रांत समाज में इन्हें तिरस्कार भी झेलना ही है ।

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     संभव है कि इस संकटकालीन समय में आपके समक्ष परिवार के लालन-पालन में कई ज्ञात-अज्ञात अडचनें आती दिख रही हों किंतु फिर भी ऐसे संकट के इस समय में किसी भी कमी अथवा बेबसी के कारण ऐसे विघ्नसंतोषियों के भ्रामक बहकावे में न आवें और ऐसे किसी भी कार्य में अपना योगदान देने से बचें जो अंततः आपके लिये, आपके प्रिय परिजनों के लिये और आपके मित्रों-परिचितों को मौत के मुंह में धकेलने का माध्यम बने ।

अंत में महाभारत के समय के प्रसंगानुसार-

      महाभारत युद्ध के पहले भगवान श्रीकृष्ण के पास दुर्योधन और अर्जुन जाते हैं क्यूँकि एक दिन पहले उन्हें भगवान श्रीकृष्ण कह चुके होते हैं कि नींद से मेरी आँख खुलने पर जिस पर मेरी नज़र पहले जाएगी,  उसे जो चाहिए वो पहले उसे मिलेगा । सबसे पहले भगवान की नज़र पैरों के पास खडे अर्जुन पर जाती है और अर्जुन भगवान का साथ माँग लेते हैं जबकि दुर्योधन उनकी पूरी सेनाबल के साथ सभी लड़ाकू हथियार मांगता है और दोनों को उनकी वांछित वस्तु मिल जाती है । लेकिन अंत में क्या हुआ, श्रीकृष्ण का साथ जिनके साथ था उन्ही अर्जुन व पांडव की विजय हुई और इतने विशाल सैन्यबल के बावजूद कोरवों सहित दुर्योधन को हार का मुंह ही देखना पडा । 

इस समय बचाव के लिये
इस समय बचाव हेतु आवश्यक
      अर्थात अधिक भीड़ जुटाकर भी आततायी जीत नहीं सकते जबकि कोई अकेला व्यक्ति ही आपकी जीत का मुख्य सारथी बन सकता है और हम देख रहे हैं कि इस समय हमारे मुख्य सारथी प्रधानमंत्री के रुप में इस युद्ध में कदम-कदम पर हम सभी का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं । अतः हम इनके निर्देशन में स्वयं भी सुरक्षित रहें और अपने परिवार, नगर व देश को भी सुरक्षित रहने में अपना अमूल्य योगदान दें ।
धन्यवाद सहित... 

27.3.20

कोरोना वायरस – ज्योतिषिय नजरिया...

कोरोना वायरस
कोरोना वायरस

       कुछ समय पूर्व मैंने अपने ब्लॉग स्वास्थ्य सुख में दि. 29 जनवरी 2020 को कोरोना वायरस से सम्बन्धित पोस्ट Corona Virus कोरोना वायरस का कहर दिन-ब-दिन बढ रहा है...”  तब डाली थी जब इसका प्रसार शुरु हुआ था व सिर्फ चीन के वुहान शहर में उस वक्त इसने तबाही की शुरुआत की ही थी । तब 4500 लोग चीन के वुहान शहर में संक्रमित हुए थे और उसमें मात्र 106 लोगों ने ही अपनी जान गंवाई थी ।

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निरन्तर बढ रहा कोरोना वायरस का प्रकोप

       कहने की आवश्यकता ही नहीं है कि तबसे अब तक इसके बढते प्रकोप ने समूचे विश्व को अपनी चपेट में ले लिया है और मात्र दो माह से भी कम समय में आज दि. 27 मार्च 2020 तक समूचे विश्व में इसके 5,10,646 संक्रमित केस दिख रहे हैं । अब तक 1,22,245 लोग इसकी चपेट में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं और विश्व की एक तिहाई से भी अधिक आबादी लॉकडाऊन की गिरफ्त में फंसकर अपने काम-धंधे छोडकर घरों में बंद रहने को मजबूर हो चुकी है ।

भारत में कोरोना वायरस

       यदि बात हमारे देश भारत के संदर्भ में की जावे तो स्थिति फिलहाल थोडी कम खतरनाक दिख रही है क्योंकि दुनिया की तुलना में यहाँ आज इस समय तक 755 संक्रमित रोगी दिख रहे हैं । इनमें 16 लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदीजी की दूरदर्शिता के कारण स्थिति विस्फोटक होने के पूर्व ही इसके फैलाव से बचाव के लिये आवश्यक सोशल डिस्टेंस को मैनेज करने हेतु समूचा भारत इस समय 21 दिनों के लॉकडाऊन दौर से गुजर रहा है ।

       इसके बावजूद भी कब और कहाँ तक इसका फैलाव जाकर रुकेगा यह कोई नहीं जानता । लोगों में किस सीमा तक इसका खौफ भर गया है यह हम इसीसे समझ सकते हैं कि अपने परिजनों को भी सामने देखकर हर कोई यह सोचकर आशंकित दिख रहा है कि कहीं ये संक्रमित तो नहीं हो चुके हैं क्योंकि संक्रमित व्यक्ति में कोई भी लक्षण उभरे उसके पहले ही वो कईयों को संक्रमित करते फिर रहे हैं ।


ज्योतिष नजरिये से कोरोना वायरस

       ऐसी स्थिति में एक विकल्प ज्योतिष नजरिये का सामने आ रहा है जो यह बता रहा है कि जब-जब शनि 30 वर्ष बाद बली होकर अपने गृह मकर राशि में आते हैं तब-तब इस प्रकार की आपदाएँ पृथ्वी पर दिखने में आती रही हैं । अब इस धारणा को ऐतिहासिक तथ्यों में देखें-

        ईसवी सन 165 में जब शनि मकर में प्रविष्ट हुए थे  तब इतालवी प्रायद्वीप में चेचक के संक्रमण से पांच लाख लोगों की मृत्यु हुई थी ।

       सन 252 में जब शनि मकर में पहुंचे तो बताया जाता है कि प्लेग ऑफ साइप्रियनके प्रकोप से रोम में महीनों तक हर रोज औसतन 5,000 लोगों की मृत्यु होती रही थी ।

       वर्ष 547 में जब शनि अपनी स्वराशि मकर में पहुंचे तब मिस्र से बूबोनिक प्लेग फैला जिसे प्लेग ऑफ जस्टिनियनकहा गया जो वहाँ से फैलते हुए एक ऐतिहासिक शहर कुस्तुनतुनिया पहुंच गया जो रोमन बाइजेंटाइन और उस्मानी साम्राज्य की राजधानी हुआ करती थी । बाइजेंटीनी इतिहास लेखक प्रोसोपियस के अनुसार तब प्रतिदिन 10,000 से अधिक लोगों की मौत हुई थी ।

       1312 में जब शनि ने अपने घर मकर में पांव रखा तब  यूरोप से प्लेग ने वापसी की और इसके कहर से दुनिया भर में 7.5 करोड़ लोगों के मरने का अनुमान लगाया गया, जिसे ब्लैक डेथ कहा गया ।

       फिर प्लेग से 1344 से 1348 के बीच भूमध्य सागर और पश्चिमी यूरोप तक दो-तीन करोड़ यूरोपियों के मरने का अनुमान था, जो उनकी कुल जनसंख्या का एक तिहाई हिस्सा था तब भी शनिदेव स्वराशि मकर में ही थे ।

       1666 का ग्रेट प्लेग ऑफ लंदन तब एक लाख लोगों की मौत का कारण बना था जो तब लंदन की 20 प्रतिशत आबादी थी, शनि तब भी अपनी राशि मकर में ही थे ।

       19वीं सदी के मध्य में चीन से तीसरी वैश्विक महामारी ने सिर उठाया, जिससे केवल भारत में एक करोड़ लोगों की मौत हो गयी थी ।

       1902 में अमेरिका के सैनफ्रांसिस्को से शुरू होकर वहां पहली बार प्लेग का कहर बरपा । तब भी शनि अपनी ही गृहराशि मकर में थे ।

       यहां तक कि गुजरात के सूरत में जब 1994 में प्लेग की आफत आयी, तब भी शनि अपनी ही राशि में थे ।

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       इस समय भी शनि स्वयं की राशि मकर में चक्रमण कर रहे हैं । जो अब इस मारक महामारी का मुख्य कारक बन गया है, जिसे कोरोना वाइरस Covid-19 कहा जा रहा है । लेकिन 22 मार्च 2020 को जब मंगल शनि की राशि मकर में चरण रखेगा तब मानव सभ्यता को और अधिक बेचैन करेगा और तब वो शनि के संग युति करके इस महामारी के साथ कोई और अप्रिय खबर लाएगा । यह योग किसी दुर्घटना के साथ प्राकृतिक आपदा से जान-माल की हानि का संकेत दे रहा है । लेकिन 29 मार्च 2020 की शाम 7 बजकर 8 मिनट पर वृहस्पति (गुरु) का मकर राशि में प्रवेश शनि-मंगल के इस उबाल पर पानी डाल इसे ठंडा कर देगा ।

       शनि-गुरु की यह युति आज के डरावने परिदृश्य में ठंडी हवा की झोंके की तरह आएगी और इस महामारी की मारक तासीर में मरहम का रुप लेकर कमी कर पाएगी । फिर 4 मई 2020 की शाम 7 बजकर 59 मिनट पर जब मंगल शनि से मुक्त होकर कुंभ राशि में जाएगा तब विश्व की इस नकारात्मकता में सहसा कमी आएगी और शुभ फलों में इज़ाफ़ा होगा । मई के मध्य तक परिस्थितियाँ बदल जायेंगी । सितारों का संकेत है कि तब इस महामारी का अंत भी हो जाएगा । लेकिन तब तक तो सावधानी ही लोगों के कष्टों में कमी का माध्यम बन पाएगी ।

जैन संत आचार्य ऋषभ विजय जी का ज्योतिष नजरिया 
जो उपरोक्त जानकारी को लगभग पुष्ट करता दिख रहा है-


       यह ज्योतिषिय नजरिया है जो इस ज्ञान के अभाव में यकीनन मेरा नहीं है लेकिन वर्तमान डरावने परिदृष्यों में फिलहाल तो राहत का संकेत देता दिखाई दे रहा है । अब यह कितनी सत्यता साबित कर पाएगा यह तो हमें आने वाला वक्त ही बता पाएगा । 
कोरोना वायरस से बचाव
कोरोना वायरस से बचाव हेतु
       लेकिन तब तक तो हमें हमारी सरकारें व चिकित्सा जगत से जुडे लोग जिन सावधानियों को अपने दैनंदिनी जीवन में रखने का संदेश दे रहे है उनके बताये तरीकों से ही अपने व अपने परिवार के जीवन को सुरक्षित रखने का प्रयास करते रहना आवश्यक है ।


12.2.20

विवाह संस्कार में बदलते समय के अनुसार आज की आवश्यकता...

आज के दौर  में विवाह संस्कार.
विवाह संस्कार

       हाल के दिनों में एक निमंत्रण ऐसा प्राप्त हुआ जिसमें विवाह संस्कार की निमंत्रण पत्रिका की सिर्फ फोटो इमेज ही वॉट्सएप पर प्राप्त हुई और न सिर्फ उस वॉट्सएप मैसेज में बल्कि दूसरे दिन टेलीफोन पर भी सम्बन्धित प्रेषक की ओर से व्यक्तिगत रुप से शादी में पधारने का आग्रह भी मिल गया । उस विवाह में शामिल होने पर यह भी समझ में आ गया कि उन सज्जन ने लगभग सभी निमंत्रण पत्र किसी भी मेहमान के घर जाकर नहीं दिये और इसके बावजूद भी उनके इस विवाह समारोह में 80से भी अधिक मेहमान उपस्थित हो चुके थे ।

विवाह संस्कार में अनुपयोगी


        विपरीत इसके पिछले ही सप्ताह दूसरी खबर जो समाचार पत्र में पढी वो ये थी कि नजदीकी गांव से एक भाई अपनी बहिन के विवाह संस्कार की निमंत्रण पत्रिकाएं अपने रिश्तेदारों के घर जाकर बांटने के लिये शहर आया और शहर में ही रहने वाली अपनी भाभी को स्कूटर पर बैठाकर शहर में मौजूद अन्य रिश्तेदारों के घर जाते समय रास्ते में सडक दुर्घटना का शिकार होकर दोनों देवर-भाभी गंभीर रुप से घायल अवस्था में अस्पताल जा पहुँचे ।


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        निश्चित रुप से पुरानी सोच के मुताबिक लोगों का यह दबाव अपने परिजनों पर रहता ही है कि रिश्तेदारों के घर जाकर यदि हमने उन्हें अनुनय-विनय के साथ आमंत्रित नहीं किया तो वे बुरा मान जाएंगे और हो सकता है कि हमारे घर के इस विवाह जैसे महत्वपूर्ण आयोजन में वे आवें ही नहीं ।

विवाह संस्कार में आज-


        किंतु अब यहाँ यह सोचना भी हम सभी के लिये आवश्यक है कि प्रचलित परम्पराएं हमारे पुरखों के समय से तब से चली आ रही हैं जब जनसंख्या कम थी और उसी अनुपात में सडकों पर दौडते-भागते ट्राफिक के साथ ही रिश्तेदारों के घरों की दूरियां भी आज जितनी अधिक नहीं होती थी । तब उन स्थितियों में प्रत्येक रिश्तेदार के घर जाकर स-मनुहार निमंत्रण देना न सिर्फ उचित था बल्कि अच्छा भी लगता था ।

        जबकि आज स्थितियां बिल्कुल बदल गई हैं । हर व्यक्ति व्यस्तता में दौडते-भागते अपनी जिंदगी जी रहा है । दिन दूनी - रात चौगुनी बढती जनसंख्या के दबाव से लोगों के घरों की दूरियां और सडकों पर बढ रहा वाहनों व यातायात का दबाव सडकों को दिनोंदिन और अधिक असुरक्षित बना रहा है । दूसरी ओर आधुनिकता के इस दौर में लगभग हर मध्यमवर्गीय व्यक्ति अपने हाथ में स्मार्टफोन लेकर ज्यादा नहीं तो भी फेसबुक और वॉट्सएप जैसे मीडिया माध्यमों से तो जुडा ही हुआ है ।

विवाह संस्कार में उपयोगी तरीका
विवाह संस्कार में उपयोगी
        व्यक्तिगत और सामूहिक रुप से एक-दूसरे से जुडे मीडिया माध्यम वॉट्सएप पर वैसे भी हम सभी दिन भर गैरजरुरी गुड मॉर्निंग से लगाकर अन्य मैसेज, चित्र व वीडिओ एक दूसरे के साथ शेअर करके आसानी से यह भी समझ लेते हैं कि हमारा संदेश हमारे परिचित के पास न सिर्फ पहुंच गया है बल्कि उसने वह देख भी लिया है, तब यह बिल्कुल उचित है कि काम के बढते दबाव के चलते हम अपने घरों में होने वाले विवाह संस्कार की निमंत्रण पत्रिकाएं भी वॉट्सएप के द्वारा भेज दें और फिर उन्हीं परिचितों व रिश्तेदारों को मोबाईल फोन पर अलग से आने के लिये साग्रह निमंत्रित भी करदें । इससे न सिर्फ हम सभी का महत्वपूर्ण समय बचेगा बल्कि आने-जाने व रुकने-बैठने की मेहनत के साथ ही आर्थिक बचत भी इससे हो सकेगी ।


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        आर्थिक बचत की बात न भी कि जावे तो भी महत्वपूर्ण समय के साथ ही दूर-दराज के क्षेत्रों में आने-जाने का विवाह से सम्बन्धित सबसे बडा काम इस प्रकार आसानी से संपादित हो सकेगा और हमारे मेहमानों तक भी यह संदेश पहुंचेगा कि वे भी न सिर्फ इस निमंत्रण को सहर्ष स्वीकारें बल्कि उनके परिवारों में होने वाले विवाह संस्कार जैसे व्यस्तता से भरपूर कार्यों में वे भी इसी माध्यम से अपना कीमती समय, खर्च और अनावश्यक भागदौड से स्वयं को मुक्त रखते हुए दूसरे आवश्यक कार्यों में अपने उस बचे हुए समय का सदुपयोग कर सकें ।