22.3.13

अनेकों में एक - क्रोध के दुष्परिणाम

    
           क्रोध जिसकी शुरुआत हमेशा मूर्खता से होती है और अन्त सदैव पश्चाताप पर होता है, यह बात हम सब जानते हैं कि क्रोध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है बल्कि इसके कारण सामान्य रुप से सुलझ सकने वाली समस्याएँ भी सदा-सर्वदा के लिये उलझकर रह जाती हैं किन्तु उसके बाद भी छोटे-बडे सभी उम्र व हैसियत के सामान्य व विशेष व्यक्ति इसके आवेग में आकर दुःख व नुकसान से बच नहीं पाते और अपने स्वयं के व अपने करीबी परिवारजनों के लिये समस्याओं के अंबार खडे कर लेते हैं-


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          ताजा उदाहरण में एक ऐसे दम्पत्ति सामने आ रहे हैं जिनके घर में काम करने वाले सेवक को काम के दरम्यान कुछ चोट लग गई । दम्पत्ति ने उसका उपचार व दवा की व्यवस्था कर दी । दो-एक बार उसके द्वारा दवाई के नाम पर मांगे गये पैसों की फरमाईश भी पूरी कर दी किन्तु जब फिर से उस सेवक ने अपनी मालकिन से उपचार के नाम पर पैसे माँगे तो मालकिन को लगा कि ये तो इसने पैसे वसूलने का बहाना बना लिया है नतीजतन उन्होंने कुछ तल्खी से उस सेवक से कह दिया कि अब जो भी पैसे मिलेंगे वे तुम्हारी तनख्वाह से कटकर ही मिलेंगे । सेवक को लगा मालकिन मेरे साथ ज्यादती कर रही है उसने भी तल्ख शैली में विरोध किया । मालकिन ने इसे उसकी बद्तमीजी मानते हुए क्रोध में उसे एक थप्प़ड जड दिया और अपने सामने से दफा होने का आदेश सुना दिया । मालिक के घर आने पर मालकिन व सेवक दोनों ने अपने-अपने तरीके से उनसे एक-दूसरे की शिकायत की, मालिक के सामने भी स्वयं की बीबी और घर के पैसे का महत्व ज्यादा था नतीजतन पैर का घुटने की दिशा में ही मुडने के नियमानुसार उन्होंने भी न सिर्फ उस सेवक को बुरी तरह से डांटा-फटकारा बल्कि आगे से ऐसी स्थिति बनने पर उसके खिलाफ पुलिस में कार्यवाही करने की धमकी भी दे डाली जिससे सेवक और भी मन ही मन उबलकर रह गया ।
       
      यह दम्पत्ति प्रौढावस्था में थे और भरापूरा परिवार होने के बावजूद कारोबारी आवश्यकताओं के चलते शहर के अन्तिम छोर पर अकेले रहते थे, जबकि सेवक शारीरिक रुप से तरुणाई की उम्र में होने के कारण अधिक बलिष्ठ भी था । क्रोध के इसी दौर के चलते दूसरे दिन मालिक के काम पर जाने के बाद खुन्नस में मौका देखकर उस सेवक ने मालकिन की अनभिज्ञता का लाभ उठाया और पीछे से उनके गले में दुपट्टा डालकर उस दुपट्टे से तब तक उनका गला दबाता चला गया जब तक की मालकिन के प्राण नहीं निकल गये । इस दरम्यान मालकिन के भाई का घर पर फोन आने पर सेवक ने उन्हें बोल दिया कि मालकिन तो बाजार गई है । मोबाईल पर भी जब मालकिन से भाई का सम्पर्क नहीं हो पाया तो उसने अपने जीजाजी को खबर की कि बहन से कोई सम्पर्क नहीं हो रहा है उन्होंने भी फोन लगाया तो सेवक के द्वारा उन्हें भी यही जवाब मिला कि वे तो बाजार गई हैं, किसी अनहोनी की आशंका के साथ मालिक तत्काल घर की ओर दौडकर आये जहाँ उनके घर में घुसते ही खुन्नस में भरे उस सेवक ने उनके भी पीछे से काँच की एक वजनी चौकी उठाकर उनके सिर पर पूरी ताकत से दे मारी । काँच तो टूटना ही था, मालिक भी इस अचानक हुए प्रहार से चोटिल होकर अचेतावस्था में गिर पडे और तब उसी चौकी के बडे से काँच के एक टुकडे को कपडे से पकडकर उस नौकर ने अपना सारा क्रोध उंडेलते हुए मालिक के अचेत शरीर पर उनकी मृत्यु होने तक इतने वार किये कि पूरे घर में खून का सैलाब सा फैल गया ।


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       बाद के चिर-परिचित घटनाक्रम में शोक-संतप्त परिवारजनों का ह्रदयविदारक विलाप व भागे हुए सेवक की गिरफ्तारी ये सब तो होना ही था किन्तु समूचे घटनाक्रम में एकमात्र जिम्मेदार कारण सिर्फ क्रोध ही रहा जिसके कारण पति-पत्नी के रुप में दो जीवन अकाल मृत्यू की स्थिति में और एक सेवक जीवन भर के लिये सींखचों की गिरफ्त में चला गया और इन सभीके परिजनों को तो इनके न रहने का खामियाजा अब भुगतते रहना ही है ।


      यह भी सही है कि मानव जीवन में प्रत्येक के साथ ऐसे अवसर आते ही हैं जब उसका क्रोधित होना लगभग आवश्यक हो जाता है या वह क्रोध से बच नहीं पाता ऐसे में इस समस्या का समाधान क्या ? समस्त विचारकों की राय में जब भी क्रोध आवे तो हम तत्काल उस पर अपनी प्रतिक्रिया न करते हुए उस समय मौन रहकर उसका सामना करें और यदि यह सम्भव हो तो उस वक्त वहाँ से स्वयं को हटा लें । कुछ ही घंटे बाद हम उस समस्या का ठंडे मस्तिष्क से निश्चय ही अधिक बेहतर समाधान निकाल सकेंगें

माचिस की तीली का सिर्फ सिर होता है 
दिमाग नहीं, जबकि हमारे पास सिर भी 
होता है और दिमाग भी किन्तु फिर भी हम 
छोटी-छोटी बातों पर क्यों भभक उठते हैं ?

    

10 टिप्‍पणियां:

  1. जब कि क्रोध का काल केवल एक मिनट का ही होता है, आप एक बार अपने पर नियंत्रण रख कर किसी भी अनुचित घटना से बाख सकतें हैं,जो क्रोध के आवेश में कर बैठते हैं.

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  2. क्रोध का दुष्परिणाम!! सुन्दर प्रस्तुति!!

    लम्बे समय के बाद आपकी यह पोस्ट आई, क्या बात है महोदय?

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  3. सम्माननीय सुज्ञजी,
    कुछ तो व्यस्तता के क्षेत्र बदल गये और कुछ अपने मन की मौज बस...

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  4. बेहतरीन बात , क्रोध हमेसा नुकसानदेह ही होता है , अब कल की ही बात है ओवरटेक करने के लिए हार्न बजने पर पीछेवाले ने आगे निकलकर कार चालक दंपत्ति को गोली मार दी और जेल में है , भीड़ ने उसे पीटा भी बहुत . ववाह देखा क्रोध ने क्या किया ..

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  5. विज्ञ-जनो ने कहा है -क्रोध एक पागलपन है जिसमें व्यक्ति का विवेक खो जाता है .

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  6. क्रोध से जितना बचा जाये उतना भला...

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  7. सारे ही अपराध क्रोध और लोभ के कारण होते हैं। परिवार के कारण क्रोध कम होता रहता है लेकिन आज जब परिवार टूट गए हैं तब व्‍यक्ति को क्रोध निकालने का कहीं मार्ग नहीं मिलता है। दुखद घटना।

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  8. कर्म करने तक हम स्वतन्त्र हैं...कर्मफल उसके अनुरूप ही मिलता है...

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  9. क्रोध की अधिकता बेहद विनाशकारी है,इससे बचने की जरुरत है।

    -ऐसे पायें अपनी डिलीट हो चुकी फाइलें-

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  10. Krodh ke visletation geeta ke 62 we aur 63 we shlok ke define me kare.

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...