25.3.13

सन्नाटे का ये दौर..

    ब्लागवुड में इन दिनों ब्लागिंग गतिविधियों पर आनुपातिक रुप से एक प्रकार की चुप्पी सा माहौल दिखाई दे रहा है । वर्षों पूर्व से जमे हुए सारे स्थापित ब्लागर इस मुद्दे पर अपनी-अपनी शैली में चिन्ता जताते हुए देखे जा रहे हैं, कहीं-कहीं हिंदी ब्लागरों की तुलना लापता हो चुके डायनासोर प्राणी से की जा रही है जिसके अब सिर्फ जीवाश्म ही शेष बचे हैं । मेरी पूर्ण सक्रियता के लगभग दो वर्ष पूर्व के ब्लागवुड में जहाँ वर्चस्व की होड में आरोप-प्रत्यारोप, ये तेरा गुट ये मेरा गुट और भावनाओं से जुडे धार्मिक आधारों जैसे संवेदनशील मुद्दों पर एक दूसरे की टांग खिंचाई करने वाला माहौल दिखा करता था उसके सर्वथा विपरीत अब सारी चिन्ता 'शोले' फिल्म के मौलवीजी ए. के. हंगल के मशहूर संवाद "इतना सन्नाटा क्यों है भाई" जैसी लग रही है । सुस्थापित लेखकों की पोस्टों पर जहाँ टिप्पणियां देने की होड सी दिखाई देती थी वहीं अब भरे-पूरे तालाब के स्थान पर बचा-खुचा कीचड जैसा माहौल बच रहा लगता है ऐसी स्थिति में यहाँ टिप्पणियां भी कितनी कीमती हो गई दिख रही हैं कि करीब तीन दिन पूर्व मेरे ब्लाग जिन्दगी के रंग पर एक सुपरिचित ब्लाग लेखिका की टिप्पणी आई और घंटे भर बाद वो टिप्पणी गायब भी हो गई, अर्थात् वे लेखिका महोदया उस टिप्पणी को लेकर वापस चली गईं । किसी गल्ति के चलते मुझे ये सामान्य सी बात लगी किन्तु कल फिर मेरे दूसरे ब्लाग स्वास्थ्य-सुख पर फिर उन्हीं लेखिका महोदया का वही कारनामा देखने में आया । मेरी पोस्ट हार्ट अटेक से बचाव वाले लेख पर फिर पहले उनकी टिप्पणी अवतरित हुई और लगभग घंटे भर बाद पुनः वे अपनी टिप्पणी वापस ले गईं

               फिर तो ऐसा लगा जैसे टिप्पणी न हुई कोई गल्ती से दे दी गई मोटी सी चन्दे की रकम रही हो जिसे देने के बाद लगा हो कि अरे इतनी मेहनत से कमाई गई इतनी कीमती दौलत ऐसे ही कैसे दे दी जावे । अरे भई यदि हममें देने की सामर्थ्य ना हो तो हम देने के लिये वहाँ रुकें ही क्यों ? सीधे-सादे सभा में शामिल हों और समाप्ति पर वहाँ से निकल लें कोई आयोजक आपसे हाथ पकडकर तो चंदा मांगने से रहा ठीक वैसे ही जैसे कोई ब्लाग-लेखक आपकी पोस्ट को पढने वाले के सामने तलवार लेकर तो बैठा नहीं है कि ऐ भाई - तूने लेख तो पढ लिया अब टिप्पणी दिये बगैर कहाँ जा रहा है ? आपकी अपनी टिप्पणी है किसी सूदखोर महाजन की बेगारी तो है नहीं जो मर्जी न मर्जी देना ही पडे । क्या ऐसा नहीं लगता कि यदि उपर दर्शाई सुस्थापित ब्लागरों की ब्लागिंग गतिविधियों के क्षेत्र में चल रही उदासीनता के प्रति जो चिन्ताएँ परिलक्षित हो रही हैं उसकी जड में ऐसे किंकर्त्यविमूढ ब्लागरों की मानसिकता भी छोटे स्तर पर ही सही लेकिन कुछ महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है ।

               मैं अपनी सक्रिय ब्लागिंग के लगभग दो वर्ष बाद हफ्ते भर में अपने तीनों ब्लागों पर लगातार यदि 7-8 पोस्ट पुनः डाल चुका हूँ तो यकीनन ये सक्रियता ना तो किन्हीं टिप्पणियों के लालच में उपजी है और न ही कोई स्थापित ब्लागर मुझे तवज्जो दें इस चाहत में, बल्कि मेरी ये सक्रियता इसी ब्लाग पर मेरे दि. 22-12-2010 की पूर्व पोस्ट "ब्लागिंग तेरे लाभ अनेक" में दर्शित उस सोच पर आधारित है जिसमें मैंने मजाकिया लहजे में "इसका एक सबसे बडा लाभ जो मेरी जानकारी में आया है वह ये कि अन्तर्जाल (इन्टरनेट) के इस माध्यम से ब्लाग्स के द्वारा जो हम अपने विचारों की लडियों को यहाँ पिरोए जा रहे हैं, सही मायनों में इस तरीके से हम इतिहास में भी स्वयं को दर्ज करते जा रहे हैं । क्योंकि देर-सवेर हमारा ये नश्वर शरीर तो इस संसार से विदा ले लेगा किन्तु अपनी वैचारिक लेखन-शैली से जो कुछ भी हम यहाँ छोडकर जा चुके होंगे वो आने वाले दशकों ही नहीं बल्कि शतकों तक भी इस पटल पर हमारे नाम के साथ जिन्दा ही रहेगा ।"  वाली सोच के परिणामस्वरुप है क्योंकि जिन एकाधिक कारणों से मैं यहाँ से विमुख हुआ तब से लगाकर अब तक के दरम्यान शायद ही कोई दिन ऐसा रहा होगा जब मैंने अपने डेशबोर्ड के आंकडों को चेक न किया हो और मैंने लगातार ये देखा कि मेरे नजरिया और जिन्दगी के रंग ब्लाग पर औसतन 20 से 50 पाठक प्रत्येक दिन और स्वास्थ्य-सुख ब्लाग पर 150 से 250 पाठक प्रतिदिन नियमित रुप से आते रहे हैं और जितना समय देकर जिस सक्रियता से मैंने इन पर अपनी पोस्ट लिख-लिखकर डाली थी मेरी लम्बी निष्क्रियता के दौरान भी इतने पाठकों की नियमित आवाजाही अपने अस्तित्व के दिखते रहने हेतु कम नहीं थी । अतः जन-सामान्य के दैनिक जीवन में किसी भी रुप में उपयोगी लगने वाली सामग्री चाहे वह मनोरंजन के रुप में ही क्यों न हो मुझे इसमें बढानी चाहिये वाली सोच के साथ ही मैं अपनी वर्तमान सक्रियता यहाँ स्वयं की नजरों में देख रहा हूँ । वैसे भी अपनी प्रवृत्ति 'के तो गेली सासरे जावे नी, और जावे तो पछी वापस आवे नी' वाली ही रही है ।



               अपनी सक्रियता के पूर्व समय में "ला मेरी चने की दाल" वाली ये प्रवृत्ति ब्लाग के अनुसरणकर्ताओं के रुप में बहुतायद से देखने में आती थी जब जहाँ किसी ने समर्थन के एवज में समर्थन नहीं दिया या जिससे अपने विचार मिलते नहीं दिखे तत्काल उसके ब्लाग के समर्थनकर्ताओं की सूचि से अपना नाम वापस निकाल लिया वाली मानसिकता बहुतायद में देखने में आती थी और उसी शैली में मैंने भी किसी क्षुब्ध मनोदशा में किसी ब्लाग से अपना अनुसरण वापस ले लिया था जिसकी खटास उन ब्लागर महोदय के साथ के मेरे संबंधों में आज तक कायम दिख जाती है ऐसे में मात्र लिखकर छोडी गई टिप्पणी को वापस ले जाना ? वाकई मुझे लगता है कि ये हिन्दी ब्लागजगत के इस संक्रमणकालीन दौर की इंतहा ही है ।


            पुनश्च - उपर वर्णित ये दोनों टिप्पणियां स्पेम बाक्स में आराम फरमाती हुई मिल गई थी, उसके बाद कायदे से तो यह पोस्ट ही मुझे हटा देनी चाहिये थी किन्तु एक तो उससे ब्लागजगत से जुडे दूसरे अन्य मुद्दे भी शहीद हो जाते और दूसरे इस प्रकार की समस्या किसी अन्य कम प्रशिक्षित ब्लागर की पोस्ट पर भविष्य में कभी भी यदि आती तो वो भी इतना ही असमंजस की स्थिति में आ जाता । अतः इस निवेदन के साथ की प्रिंट हो चुकने के घंटे-दो घंटे  बाद तक भी कोई टिप्पणी स्वमेव स्पेम बाक्स में जा सकती है कि जानकारी दिमाग में रखते हुए ऐसी स्थिति से सम्बन्धित कोई भी ब्लागर मित्र अपना स्पेमबाक्स अवश्य चेक करलें । शेष धन्यवाद सहित...


14 टिप्‍पणियां:

  1. पढ़ने वालों की न कमी रही है और न ही रहेगी, बशर्ते अच्छा लिखा जाये।

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  2. कैसे हैं आप....आप की वापसी का स्वागत है...मैं तो वैसे भी आपका
    एहसानमंद हूँ..सब कुछ आपसे ही सीखा है ....

    परिवार सहित होली मुबारक हो !
    स्वस्थ रहें.

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  3. श्री प्रवीणजी,
    आपकी निष्पक्ष सक्रियता हेतु आभार. होली की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...

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  4. श्री सलूजाजी,
    धन्यवाद आपको, आशा है आप स्वस्थ व प्रसन्न होंगे । आपको भी सपरिवार होली की अनेकानेक शुभकामनाएँ...

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  5. सुशील जी,अपनी टिप्पणी को वापस लेने की घटना को दुर्लभतम की श्रेणी रखा जाना चाहिए,यह ठीक नहीं है।मै प्रवीन जी की बात से सहमत हूँ,पढने वालों की कमी कभी नहीं होती,अगर अच्छा लिखा जाये,होली की शुभ कामनाओं सहित सादर आभार।

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  6. एक संभावना और भी है, ब्लॉगर डैशबोर्ड में जाकर स्पैम कमेंट्स चेक कर देखिये। पिछले कुछ दिन से ऐसा एकाधिक जगह हुआ है कि कमेंट दिखता है फ़िर कुछ देर बाद स्वत: स्पैम में चला जाता है। मेरे खुद के ब्लॉग पर ऐसा हो चुका है।

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  7. सुशील जी,

    नेकी कर, कुएं में डाल...

    पोस्ट लिख, ब्लॉग पर डाल...

    इस सूत्र को अपनाइए, सदा सुखी रहिए...

    शुभ होली...

    जय हिंद...

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  8. श्री मनोजजी, नमस्कार...
    मेरे द्वारा किसी टिप्पणी को दुर्लभतम श्रेणी में रखे जाने की बात कतई नहीं है इसी ब्लाग पर आपको 2000 के आसपास टिप्पणियां दिख सकती हैं जिनका न तो मैंने कोई अचार डालना है और न ही लेखक के किसी सीमा तक उत्साहवर्धन से अधिक उनकी कोई उपयोगिता ही रही है । किन्तु यहाँ बात उस अस्थिर मानसिकता की की जा रही है जो एक बार नहीं दो-दो बार टिप्पणी देने के बाद वापस डिलीट करने की सोच के साथ किसी को क्यों आना पडा और यदि उन्हे आकर पुनः डिलीट ही करना था तो पहले लिखने की जहमत ही क्यों की गई ? आपको होली की हार्दिक शुबकामनाओं सहित...

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  9. टिप्पणियाँ जहां उत्साह वर्धन करती हैं वहीं इस तरह टिप्पणिया हटा दी जाएँ तो सोचने पर भी मजबूर करती हैं .... कभी कभी टिप्पणियाँ स्पैम में भी चली जाती हैं ...आप स्पैम भी चेक कर लीजिएगा ....

    बाकी सन्नाटा तो है ही :)

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  10. टिप्पणियाँ आना कम ज़रूर हुई हैं, मगर कम से कम मैं तो इसे सकारात्मक ही लेता हूँ, मेरा मानना है कि इससे फायदा ही हुआ है। अभी केवल वही टिप्पणियां आती हैं जिन्हें आपसे पोस्ट के माध्यम से संवाद करना है। टिप्पणियों का व्यापार ख़त्म सा हो गया है।

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  11. मेरा इन सब पर अलग ही मत है और वह यह की ब्लॉग लिखने वाले सभी विचारशील और समाज के प्रति जवाबदेह होते है, और वे सदा अपनी जिमेदारियो को पूर्ण करने में व्यस्त होते है, इसलिए वे कम समय ब्लॉग पर दे पाते है और जितना भी समय मिलता है उसमें वे केवल अपने विचार या अनुभव प्रस्तुत करते है और हिंदी में जानकारिया खोजने के साधन भी कम है ।

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  12. हाय बिचारी ब्लॉगर । गलती गूगल की कि टिप्पणी स्पेम में डल गई और आपने उन पर चने की दाल वापिस ले जाने की तोहमत लगा दी । आपके तो वैसे ही बडे पाठक हैं क्या फरक पडता है । पर आपने ये विषय अचछा उठाया ।

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  13. जब आप वापस आ गए हैं तो धीरे-धीरे सभी लौअ आएंगे। वापस से पुराना वाला माहौल आ जाएगा। होली पर बाहर जाने के कारण पोस्‍ट पढ़ने में विलम्‍ब हुआ।

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...