14.3.11

व्यवहार में- भाव, अभाव व प्रभाव की समानता.

                            
          अक्सर शादी-ब्याह के दौर में देखने में आता है कि जब भी किसी परिचित के यहाँ से शादी का निमन्त्रण आता है तो घरों में महिलाओं में ये विचार मन्थन चालू हो जाता है कि अपने यहाँ के कार्यक्रम में उनके यहाँ से कितने का लिफाफा आया था, आवश्यकता लगने पर अपने यहाँ के शादी समारोह के रेकार्ड भी निकलवाए जाते हैं और हिसाब मिलते ही संतुष्ट अवस्था में ये तय हो जाता है कि इस शादी में इतने का लिफाफा तो देना ही है । सामान्यतौर पर ये चिन्ता मध्यमवर्गीय परिवारों में अधिक देखने में आती है और ब्लागवुड में भी मध्यमवर्गीय समुदाय  में इस बात का अधिकतम ख्याल रखने का प्रयास किया जाता है कि अपनी पोस्ट पर उनकी टिप्पणी आई थी इसलिये अब उनकी नई पोस्ट पर अपनी टिप्पणी भी जाना  चाहिये । मेरी समझ में ये समानता का वो भाव है जो व्यवहारिकता के दायरे में वैवाहिक अवसरों पर जैसे लेन-देन के सामान्य व्यवहार को कायम रखवाता है वैसे ही ब्लागवुड में एक-दूसरे की पोस्ट पर टिप्पणियों की सामान्य संख्या को भी कायम रखवाते हुए परस्पर सहयोग की भावना के साथ मध्यम वर्ग को उन्नति के समान अवसरों में बनवाए रखने की सामान्य आवश्यकता में हमेशा मददगार साबित होता है ।
  
          फिर बात आती है अभाव की- वे सभी लोग जो अभावग्रस्त स्थितियों में रहते हैं और जिनके लिये स्वादिष्ट व विशेष व्यंजनों से परिपूर्ण भोजन अक्सर दुर्लभ होता है वे व्यवस्थित परिधान में जाकर अपने सामने आने वाले किसी भी समारोह में भोजन का आनन्द लेकर पान-पत्ते दबाते हुए घर आ जाते हैं । एक और वर्ग युवा छात्रों का जो पढने के उद्देश्य से दूसरे शहरों से आकर होस्टल में दोस्तों के साथ रह रहा होता है और केन्टीन का एक जैसा खाना खाकर स्वादिष्ट भोजन के लिये प्रायः तरसता रहता है वे दो-चार मित्र मिलकर भी अभाव की इस स्थिति में निःसंकोच दूसरों के पंडाल में खाना खाने चले जाते हैं । इधर इस ब्लागवुड में यही स्थिति मुझे कुछ यूं दिखाई देती है कि वे सभी नये ब्लागर जिनकी अधिक पहचान नहीं बनी होती है और जिनकी पोस्टों पर टिप्पणी के स्थान पर प्रायः 0 या इक्की-दुक्की टिप्पणियां रहती हैं वे सभी अभावग्रस्त ब्लागर आज अपना हो न हो पर कल हमारा है कि शैली में जो भी पोस्ट उनके सामने आती है करीब-करीब सभी पर अपनी टिप्पणी अक्सर दे ही देते हैं ।
 
           और अन्त में बात प्रभाव की-  जब किसी रईस या नामी-गिरामी व्यक्ति के परिवार में विवाह जैसा कोई फंक्शन सामने आता है तो उनके सम्पर्क में रहने वाले वे सभी लोग जो न्यूनाधिक उनके कल-कारखानों या आफिस में अथवा उनके सामाजिक सम्पर्कों के दायरे में थोडे भी उनकी मुंहलगी शैली में अपना व्यवहार दर्शाने में सिद्धहस्त होते हैं तो ऐसे अवसरों पर वे उस समारोह का निमन्त्रण कार्ड नहीं मिलने पर भी ये मानते हुए कि व्यस्तता के दौर में हमारा कार्ड छूट गया होगा, साधिकार न सिर्फ उस समारोह में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाने पहुँच ही जाते हैं बल्कि अपनी ओर से अधिकतम राशि का पत्रंपुष्पं भी वहाँ भेंट कर आते हैं । इधर ब्लागवुड  में भी प्रभाव की यह स्थिति मिलते-जुलते तरीके से अक्सर यूं देखी जा सकती है कि जैसे ही किसी लोकप्रिय व सीनियर ब्लागर की पोस्ट प्रकाशित होती है वैसे ही उनकी टिप्पणियां तो वहाँ अनिवार्य रुप से दर्ज हो ही जाती हैं जिनकी पोस्टों पर उन लोकप्रिय व सीनियर ब्लागर की टिप्पणी आती रहती हैं लेकिन उन सभी ब्लागर्स की भी टिप्पणी उनके लेख की शोभा अवश्य बढा रही होती है जिनकी पोस्ट तक वे सीनियर ब्लागर प्रायः पहुँच न पाते हों ।
 
          मुझे लगता है कि भाव, अभाव और प्रभाव की जो भावना अपना घर छोडकर दूसरों के यहाँ अवसर विशेष पर भोजन के लिये हमें लेकर जाती है, वही भावना इस ब्लागवुड में हमारी पोस्ट पर अन्य ब्लागर साथियों की व अन्य ब्लागर साथियों की पोस्ट पर हमारी टिप्पणियों का इसी रुप में आदान-प्रदान करवाती रहती है । अब ऐसे में यदि किसी सम्माननीय ब्लागर की पोस्ट पर बहुत अधिक टिप्पणियां दिख रही हों तो ये उनका प्रभाव ही है फिर भले ही दूसरे ब्लागर उनकी उस संख्या को देखकर किसी भी रुप में अपना अनुमान लगाते हुए कैसी भी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हों किन्तु भाव, अभाव और प्रभाव का यह सामान्य सिद्धान्त किसी न किसी रुप में तो यहाँ भी अपनी निर्णायक भूमिका निभा ही रहा होता है ।
          

35 टिप्‍पणियां:

  1. जय हो ……………क्या विश्लेषण किया है भाव , अभाव और प्रभाव का………………सब जगह के कायदे होते हैं कानून होते है लगता है यहां का यही है।

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  2. this is called Bingo Combination :D

    आपने तो उपमेय की भी उपमा कर दी

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  3. Nahut hi sundar vichar ahi app ke sir ji
    asha karta hu ki app mere blog pe bhi ayenge

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  4. अर्थार्त, इसे प्रथा के रूप में स्वीकार कर लिया गया है।

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  5. दुखती रगों पर हाथ क्यों रखते हैं ... मजेदार पोस्ट है ...

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  6. भाव, प्रभाव व आभाव की सुन्दर विवेचना।

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  7. भाव अभाव और प्रभाव ..का विश्लेषण बताता है कि यह सब समाज का व्यवहार है ..और व्यवहार निबाहना ही पड़ता है ...अच्छी पोस्ट :):)

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  8. भाव , अभाव और प्रभाव का अच्छा विश्लेषण ..
    रोचक !

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  9. such ko shabdon main kaise utara jata hai ye to aap jaise gurujano se hi sikha ja sakata hai. shat pratishat such post hai.
    pranam guruji.

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  10. टिपण्णी की कहानी भी एक पोस्ट बन सकती है अच्छा विश्लेषण , आभार

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  11. यह तुलना तो खूब रही ।
    बहुत अच्छा विश्लेषण किया है ।

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  12. खूब छक्के मार रहे हो ...शुभकामनायें !!

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  13. बहुत अच्छा विश्लेषण..बहुत सुन्दर और सार्थक टिप्पणी पुराण ...

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  14. बहुत सुन्दर और सार्थक टिप्पणी पुराण|शुभकामनायें|

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  15. kshma ki jaroorat nahi.....jaaton ne track rok rakha hai aise me post deri se pahunch jae vo bhi ganimat hai..

    pahle parichay raha hota to aapse bhi indore me milna ho jata...

    khair..fir kabhi sahi...
    sadhuwaad..

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  16. भाव, अभाव और प्रभाव का सिद्धान्त. वाह क्या बात कही है. जब कोई विवादास्पक लेख़ लिखता है और गरमा गर्म टिप्पणिओं कि लाइन लग जाती है तो इसमें से कौन सा सिद्धान्त काम करता है?

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  17. आपकी बात एकदम सही है --पुराने ब्लोक पर मै देखती हु की टिप्पणी ७० -८० को पार कर जाती है और कई बार तो उनका लिखा हुआ विवरण एकदम बेहूदा होता है पर फिर भी टिपण्णी देने वाले अपना अधिकार समझते हुए उसे 'nice ' तो लिख ही देते है --और कई बार अच्छी कविताओ और विवरण पर 0 होता है--यह विरोधाभास यही सम्भव है--वेसे राजीव जी यह काम बखूबी कर रहे है वो नए लोगो से हमारा परिचय करवा रहे है जिससे उनकी नई रचनाऐ पढने का हमे मोका मिलता है--धन्यवाद सुशिल जी आपके द्वारा हमे ऐसे सार्थक लेख पढने को मिलते है --!

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  18. बेहतरीन समीक्षा सुशील जी , आनंद आ गया ।

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  19. आद.सुशील जी,
    टिप्पणियों के भाव ,अभाव और प्रभाव का विश्लेषण बहुत ही व्यावहारिक और सटीक है मगर जब केवल टिप्पणियों की संख्या बढाने के लिए कई बार लोग किसी .. पोस्ट पर भी प्रशंसा के पुल बांधते हुए दिखते हैं तो उनकी विवशता पर गहरा दुःख होता है ! हिंदी ब्लॉग जगत को स्वच्छ मानसिकता और विचार ही मज़बूत बना सकते हैं !

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  20. मुझे हमेशा ही यह विषय अनावश्‍यक लगता रहा है, कम से कम स्‍वयं के लिए तो। हमें पढने को अच्‍छी पोस्‍ट चाहिए और कुछ नहीं। रही बात छोटी और लम्‍बी टिप्‍पणी की तो कई विषय ऐसे होते हैं जिसमें आपको कुछ विचार रखने का अवसर रहता है और किसी में नहीं।

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  21. केवलराम जी ने घोषित किया हुआ है कि वे ब्लागिंग पर रिसर्च कर रहे हैं । पर आप आलरेडी रिसर्च किये
    लगते हो । वैसे आज मैं एक कटु सत्य कहूँगा..टिप्पणी एक ऐसा दलदल भी है । जो किसी भी विधा के लेखक को तुरत लाभ की चाह में तबाह कर देता है । लगभग एक साल की ब्लागिंग ( जो कि अनुपस्थिति का ख्याल रखा जाय । तो सिर्फ़ आठ महीने ) में पाँच सौ लोग मुझसे व्यक्तिगत तौर पर जुङे । फ़ोन ई मेल आदि करते रहते हैं । सर्च के द्वारा मेरे पुराने से पुराने ( stats के आधार पर ) लेख पढे जाते हैं । अतः अत्यन्त समयाभाव के बाद भी मैं सार्थक कार्यों में जुटा रहता हूँ । उसका अंजाम की परवाह किये बिना ।..खैर छोङो ।बात लम्बी हो रही है और फ़िर आप तो अनुभवी और समझदार हैं ।

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  22. ब्लॉगवुड की दिलचस्प विवेचना की है
    बहुत बढ़िया लिखा है आपने

    आभार

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  23. ब्लॉगिंग की असली चुनौती यह है कि वह टिप्पणी के बगैर की जा सकती है या नहीं!

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  24. वाह क्या टनटनाता मनो-आर्थिक-सामजिक विश्लेषण -और अनालाजी!:)

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  25. ज़बदस्त विवेचन ...भाव प्रभाव और अभाव का..... इसे ब्लॉग्गिंग से जोड़ना भी खूब रहा

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  26. बहुत मजा आया इस रचना नो पढ़ कर
    |बधाई
    आशा

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  27. सुरेश जी .
    बहुत अच्छा विश्लेषण किया है आपने | इस पर कुछ और क्या कहें , बस समझ लेना ही श्रेयष्कर है |

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  28. बहुत अच्छा विश्लेषण किया है आपने |

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...