30.9.19

डर का मनोविज्ञान...


            डर एक ऐसी अनुभूति- जिसे हर उस जगह जहाँ भी जीवन है, वहाँ आसानी से देखा जा सकता है । जिंदगी में जब भी अस्तित्व को बचाने, बढाने अथवा बरकरार रखने के संदर्भ में बात की जावे तो जो एक अनुभूति सर्वोपरि होती है वो है डर ।  इसी डर के कारण दुकानदार सोचता है कि समय पर दुकान ना खुली तो ग्राहक दूसरी जगह चला जावेगा, उत्पादक सोचता है कि मेरे प्रॉडक्ट की क्वालिटी अच्छी ना हुई तो दूसरा उत्पादक बाजी मार जावेगा । यहाँ तक की परिवार में ब्याह कर आने वाली नई बहू भी सुबह से रात तक चकरघिन्नी के समान काम में लगी दिखती है कि कहीं किसी को मुझसे कोई शिकायत न रह जावे, अन्यथा नये घर में न सिर्फ मेरी स्वीकार्यता प्रभावित होगी बल्कि मेरे माता-पिता व पीहर वालों को ताने भी सुनना पड सकते हैं । 

          इसीलिये हम देखते हैं कि जो प्राणी जहाँ भी जरा भी डरा हुआ है, वहाँ वह अपनी पूरी कार्यक्षमता से जमा हुआ दिखाई देता है । डर की सार्वजनिक स्वीकार्यता को हम इस जाने-पहचाने कथासार से भी समझ सकते हैं- 

         
जापान में हमेशा से ही मछलियां खाने का एक ज़रुरी हिस्सा रही हैं और ये जितनी ताज़ी होती हैं लोग उसे उतना ही पसंद करते हैं । लेकिन जापान के तटों के आस-पास इतनी मछलियां नहीं होतीं की उनसे लोगोँ की डिमांड पूरी की जा सके । नतीजतन  मछुआरों को दूर समुद्र में जाकर मछलियां पकड़नी पड़ती । जब इस तरह से मछलियां पकड़ने की शुरुआत हुई तो मछुआरों के सामने एक गंभीर समस्या आई । वे जितनी दूर मछली पक़डने जाते उन्हें लौटने मे उतना ही अधिक समय लगता और मछलियां बाजार तक पहुँचते-पहुँचते बासी हो जाती, फिर कोई उन्हें खरीदना नहीं चाहता । इस समस्या के समाधान के लिए मछुआरों ने अपनी बोट्स पर फ्रीज़र लगवा लिये । वे मछलियाँ पकड़ते और उन्हें फ्रीजर  में डाल देते । 

          इस तरह से वे और भी देर तक मछलियां पकड़ सकते थे और उसे बाजार तक पहुंचा सकते थे । पर इसमें भी एक नई समस्या आई, जापानी फ्रोजेन फ़िश ओर फ्रेश फिश में आसानी से अंतर कर लेते और फ्रोजेन मछलियों को खरीदने से कतराते, उन्हें किसी भी कीमत पर ताज़ी मछलियां ही चाहिए होतीं ।  मछुआरों ने इस समस्या के समाधान के लिये अपने जहाजों पर फ़िश टैंक बनवा लिए ओर अब वे मछलियां पकड़ते और उन्हें पानी से भरे टैंकों मे डाल देते ।

          टैंक में डालने के बाद कुछ देर तो मछलियां इधर-उधर भागती पर जगह  कम होने के कारण वे जल्द ही एक जगह स्थिर हो जातीं, और जब ये मछलियां बाजार पहुँचती तो भले ही उनमें ताजगी दिख रही होती, लकिन उनमें वो बात नहीं होती जो आज़ाद घूम रही ताज़ी मछलियों मे होती ओर जापानी परखकर इन मछलियों में भी अंतर कर लेते । उधर मछुआरों के लिये इतना कुछ करने के बाद भी समस्या जस की तस बनी हुई थी । 

          अब मछुआरे क्या करते ? वे कौन सा उपाय लगाते कि ताज़ी मछलियां लोगोँ तक पहुँच पाती ? तब उन्होंने नया कुछ नहीं किया, वे अभी भी  मछलियां उन टैंक्स में ही रखते, पर इस बार वो हर एक टैंक मे एक छोटी सी शार्क मछली भी ङाल देते । शार्क कुछ मछलियों को खा जरूर जाती पर ज्यादातर मछलियां बिलकुल ताज़ी पहुंचती । ऐसा क्यों होता ? क्योंकि वो छोटी शार्क  बाकी मछलियों की लिए चैलेंज की तरह होती और  उसकी मौज़ूदगी बाकि मछलियों को हमेशा चौकन्ना रखती, और वे अपनी जान बचाने के लिए हमेशा भागती रहती । इसीलिए कई दिनों तक टैंक में रहने के बाद भी उनमे स्फूर्ति ओर ताजापन बना रहता । 

          आज हममें से बहुत से लोगों की ज़िन्दगी टैंक मे पड़ी उन मछलियों की तरह हो गयी है जिन्हें जगाने की लिए कोई शार्क मौज़ूद नहीं है, और अगर दुर्भाग्यवश आपके साथ भी ऐसा ही है तो आपको भी आपने जीवन में नये चैलेन्ज स्वीकार करने होंगे ।  आप जिस रूटीन के आदि हों चुकें हैं, ऊससे कुछ अलग़ करना होगा, आपको  अपना दायरा बढ़ाना होगा और एक  बार फिर ज़िन्दगी में रोमांच और नयापन लाना होगा । नहीं तो उन बासी मछलियों की तरह आपका  भी मोल कम हो जायेगा और लोग आपसे मिलने-जुलने की बजाय कन्नी काटते नजर आएंगे ।

          वहीं दूसरी तरफ अगर आपके जीवन में चुनौतियां हैं, बाधाएं हैं तो उन्हें कोसते मत रहिये, कहीं ना कहीं ये आपको ऊर्जावान भी बनाये रखती हैंअतः इन चुनौतियों को स्वीकार कीजिये, इनका स्वागत कीजिये और अपना  तेज बनाये रखिये ।
  
समय ना लगाओ तय करने में कि आपको करना क्या है
वर्ना समय तय करेगा, कि आपका क्या करना है.

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