21.5.16

कुछ रह तो नहीं गया ?

 
          
           जिंदगी के सफ़र में चलते चलते हर मुकाम पर यही सवाल परेशान करता रहता है.... कुछ रह तो नहीं गया  ?

          शादी में दुल्हन को बिदा करते ही शादी का हॉल खाली करते हुए दुल्हन की बुआ ने पूछा- "भैया, कुछ रह तो नहीं गया ना ? चेक करो ठीक से । बाप चेक करने गया तो दुल्हन के रूम में कुछ फूल सूखे पड़े थे ।  सब कुछ तो पीछे रह गया, 25 साल जो नाम लेकर जिसको आवाज देता था लाड से, वो नाम पीछे रह गया और उस नाम के आगे गर्व से जो नाम लगाता था वो नाम भी पीछे रह गया अब ? "भैया, देखा ? कुछ पीछे तो नहीं रह गया ?" बुआ के इस सवाल पर आँखों में आये आंसू छुपाते बाप जुबाँ से तो नहीं बोला, पर दिल में एक ही आवाज थी,  सब कुछ तो यही  रह गया ।

          3 महीने के बच्चे को दाई के पास रखकर जॉब पर जानेवाली माँ से दाई ने पूछा... कुछ रह तो नहीं  गया ? पर्स, चाबी सब ले लिया ना  ? अब वो कैसे हाँ कहे ? पैसे की अनिवार्यता के पीछे भागते भागते... सब कुछ पाने की ख्वाईश में वो जिसके लिये सब कुछ कर रही है,  वह  तो यहीं रह गया है ।

          बडी तमन्नाओ के साथ बेटे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजा था और वह पढ़कर वही सैटल हो गया, पौत्र जन्म पर मुश्किल से 3 माह का वीजा मिला था, और चलते वक्त बेटे ने पूछ लिया, सब कुछ चैक कर लिया पापा कुछ रह तो नही गया ?  क्या जबाब देते कि अब छूटने को बचा ही क्या है  ?

          60 वर्ष पूर्ण कर सेवानिवृत्ति की शाम पी. ए. ने याद दिलाया- चेक करलें सर, कहीं कुछ रह तो नही गया,  थोडा रूका और सोचा पूरी जिन्दगी तो यही आने-जाने मे बीता दी,  अब और क्या रह गया होगा ।

         "कुछ रह तो नहीं गया ?" श्मशान से लौटते वक्त किसी ने पूछा । नहीं कहते हुए वो आगे बढ़ा... पर नजर फेर ली, एक बार पीछे देखने के लिए.... पिता  की चिता की सुलगती आग देखकर मन भर आया ।  भागते हुए गया, पिता के चेहरे की झलक तलाशने की असफल कोशिश की और वापिस लौट आया । दोस्त ने पूछा... कुछ रह गया था क्या ?  भरी आँखों से फिर देखा बोला-  नहीं कुछ भी नहीं रहा अब... और जो कुछ  रह भी गया है  वह तो सदा मेरे साथ ही रहेगा ।

          एक बार फिर समय निकालकर सोचें कि कहाँ-कहाँ क्या-क्या पीछे रह गया ।  शायद पुराना समय याद आ जाए,  आंखें भर आएं और आज को फिर से जी भरकर जी लेने का मकसद मिल जाए...!

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आशाओं के रथ पर दो वर्ष की यात्रा - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. बाकलीवाल जी, मानवीय अनुभूतियो/ संवेदनाओ को व्यक्त इतनी साधारण भाषा में पर सटीकता से दिल को छू लेने वाली रचना के लिये धन्यवाद।

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...