समय के पैर नहीं होते बल्कि समय के पंख होते हैं और इसीलिये
समय चलता नहीं है बल्कि उडता है । बेशक संकटकाल में एक-एक पल गुजरना भी भारी लगता
हो किन्तु गुजर जाने के बाद तो कब दिन सप्ताह में बदलते हुए कैसे महिनों व वर्षों
को पार कर जाते हैं यह हम सभी अपने जीवन के विगत में झांक कर देख सकते हैं ।
59 वर्ष पूर्व आज ही के दिन एक
निम्न-मध्यमवर्गीय परिवार की 8 सन्तानों में 4 पुत्र और 2 पुत्रियों के बाद 7वें क्रम पर जन्म लेने वाले इस
बाबू की संघर्षशील जीवनयात्रा जीवन के विभिन्न पडावों से गुजरते हुए आज उम्र के 60वें वर्ष में प्रवेश कर रही है
। मानव जीवन की उम्र से जुडा यह ऐसा अंक भी है जिसके लिये एक तरफ लोग कहते हैं कि
अब यह सठियाने की उम्र है, तो दूसरे वर्ग का कहना होता है
कि 'साठा सो पाठा' । एक ओर जहाँ अच्छी-खासी उम्र
के स्त्री-पुरुष इस बाबू को अंकल ही नहीं बल्कि परिस्थिति विशेष में पापाजी के
संबोधन से भी नवाज जाते हैं वहीं परिवार में सबसे छोटा रहने के कारण और एक भाई को
छोडकर शेष सभी बडे भाई-बहनों के स्वस्थ व सक्रिय जीवन में अपने सरपरस्त के रुप
में समक्ष मौजूद रहने के कारण इसका बालपन अपने समस्त खिलंदडे स्वभाव के
साथ इसमें मौजूद रहा है और ईश्वर से यही प्रार्थना भी है कि ये बालपन इस काया के
रहने तक तो इसमें ऐसे ही कायम भी रहे ।
अब जब इस
यात्रा में पीछे मुडकर देखने की सोच बनती है तो लगता है कि चाहे पूर्व में
दूसरों के लिखे को प्रकाशित करने का या बताने-समझाने का लक्ष्य रहा हो या अब
ब्लागर के रुप में स्वयं अपने लिखे को पाठकों के समक्ष लाने का, किन्तु तब से अब तक शब्दों का ये सफर तो निरन्तर जारी ही रहा है ।
अपने इस शब्द-सफर के सहभागी रहे श्वेत-श्याम युग के ये चित्र अब कैसे दिखते हैं-
शब्दों के इस सफर के हमराही...
तब 1969.
कहाँ पे आए.
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राहें... 1983
बहार बनके यूं मुस्कुराए
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और अब 2011.
न कैसे आसान होती मंजिल, खुदा भी खुद हमपे मेहरबां था.
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न कैसे आसान होती मंजिल, खुदा भी खुद हमपे मेहरबां था.
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सामान्य
रुप से सभी इन्सान अपना जन्मदिन अपने परिजनों के बीच मनाते हुए अपना जीवन गुजारते
चलते है किन्तु ब्लाग्स माध्यम से जुडे सभी व्यक्तियों को ये अतिरिक्त सुख भी
हासिल हो जाता है कि वे इस विशेष दिन अपने जीवन के गुजरे पलों को लिखित रुप में
संस्मरणात्मक रुप में सहेजते हुए इस वैचारिक माध्यम से न सिर्फ विगत में झांक लेने
की दस्तावेजी कोशिश भी कर लेते हैं बल्कि उस समय विशेष में इस स्थिति में किसी न
किसी रुप में अपने विचारों को इस माध्यम से ऐसे रुप में दर्ज भी कर लेते हैं जहाँ
किसी डायरी के रुप में ही सही आगे भी उस पर अपनी नजर डाल सकें ।
वैसे तो हम सभी ब्लागर्स पूरी तरह से अनार्थिक उद्देश्य से ही यहाँ ब्लागिंग कर रहे हैं याने सिर्फ स्वान्त-सुखाय के लिये ही इस माध्यम से जुडे हुए हैं लेकिन फिर भी सभीने अपनी-अपनी सुविधानुसार इसे कहीं जन-जागृति फैलाने के नाम पर, तो कहीं समाज सेवा के लिये, कहीं ज्ञान के आदान-प्रदान के लिये और कहीं लोकप्रियता की दौड में आगे बने रहने के लिये जैसे उद्देश्यों को भी कहीं न कहीं दिमाग में बैठा भी रखा है, किन्तु आज की मेरी ये पोस्ट तो स्वान्त सुखाय ही है ।
वैसे तो हम सभी ब्लागर्स पूरी तरह से अनार्थिक उद्देश्य से ही यहाँ ब्लागिंग कर रहे हैं याने सिर्फ स्वान्त-सुखाय के लिये ही इस माध्यम से जुडे हुए हैं लेकिन फिर भी सभीने अपनी-अपनी सुविधानुसार इसे कहीं जन-जागृति फैलाने के नाम पर, तो कहीं समाज सेवा के लिये, कहीं ज्ञान के आदान-प्रदान के लिये और कहीं लोकप्रियता की दौड में आगे बने रहने के लिये जैसे उद्देश्यों को भी कहीं न कहीं दिमाग में बैठा भी रखा है, किन्तु आज की मेरी ये पोस्ट तो स्वान्त सुखाय ही है ।