मेरी पूर्व पोस्ट 'ब्लाग-जगत की ये विकास यात्रा' पर भाई सतीशजी सक्सेना ने टिप्पणी में एक बहुत सही बात लिखी कि इस क्षेत्र में लिखने वालों की कमी नहीं है, बल्कि पढने वालों की कमी है, सामान्य तौर पर लोग लिखे हुए को सरसरी तौर पर पढते हैं और उसी आधार पर आपके लेखन का मूल्यांकन करके या तो आगे निकल लेते हैं या फिर कामचलाऊ टिप्पणी छोडकर खानापूर्ति कर जाते हैं । मैं भी उनकी इस बात से शब्दषः सहमत हूँ । वैसे भी लोग यहाँ अपना ब्लाग बनाने आते हैं, और ब्लाग लिखने के लिये ही बनाया जाता है स्वयं के पढने के लिये नहीं, जबकि दूसरों के ब्लाग इसलिये पढे जाते हैं कि-
1. हमें कुछ
नया जानने को मिले ।
2. लोकप्रिय
लेखको की लेखनशैली से हमारे अपने लिखने के तरीकों में सुधार या परिपक्वता दिखे ।
3. हमारी
टिप्पणी के माध्यम से अन्य लेखक हमारे बारे में जाने और हमारे ब्लाग तक आकर हमारा
लिखा पढ सकें ।
4. इस माध्यम
से परिवार, समाज और
देश-दुनिया के बहुसंख्यक लोग बतौर लेखक हमें भी पहचानें ।
निःसंदेह जब हम अपना ब्लाग बनाकर लिखना प्रारम्भ करते हैं तो
उपरोक्त सभी लक्ष्यों की कम या ज्यादा अनुपात में पूर्ति अवश्य होती है । किन्तु
समान परिस्थितियों में होने के बावजूद कुछ लोगों को बहुत जल्दी अपने इन प्रयासों
में समय की व्यर्थ बर्बादी दिखने लगती है और वे निरुत्साहित होते-होते अपने लिखने
के प्रयासों को कम करते हुए लिखना बन्द कर जाते हैं । वहीं कुछ लोग अपने नित नये
विषयों और रोचक लेखन शैली के बल पर अपने लिये एक तयशुदा मुकाम आसानी से बना लेने
में सफल हो जाते हैं । ये अन्तर क्यों होता है इसी चिन्तन का परिणाम है यह आलेख, जिससे आप-हम लेखन के इस प्रयास में
अधिकाधिक पाठकों तक अपनी पहुँच बनाये ऱख सकने में बहुत हद तक कामयाब हो सकते हैं-
सर्वप्रथम हम इस बात का ध्यान
रखने की कोशिश करें कि हमारा लेख किसी भी विषय पर लिखा जा रहा हो किन्तु न तो वह
अपनी संक्षिप्तता के प्रयास में दो-चार लाईन में सिमट जाने जितना छोटा हो और न ही
सुरसा के मुंह के समान लम्बा खींचता चला जाने वाला हो । मेरी समझ में छोटा लेख यदि
अपनी बात को पूरी तरह से कह पाने में सक्षम है तो वह तो चल जावेगा, किन्तु कितने भी महत्वपूर्ण विषय पर
कितना ही तथ्यों व जानकारीपरक लेख हो लेकिन यदि आप उसे लम्बा खींचते ही चले
जावेंगे तो यह तय मानिये कि पाठक उस तक पहुँचेगे तो अवश्य किन्तु गम्भीरता से पढे
बगैर ही वहां से निकल भी लेंगे और उस लेखन के द्वारा आप अपनी बात अन्य लोगों तक
पहुँचा पाने के अपने उद्देश्य से वंचित रह जावेंगे ।
कभी अपनी लेखन-शैली में विद्वता
दिखाने के प्रयास में हम अत्यन्त जटिल शब्दों का (जिसे हम क्लिष्ट भाषा भी कह सकते
हैं) प्रयोग कर जाते हैं । निःसंदेह इससे हमारे पांडित्य की छाप पाठकों के मन में
हमारे प्रति भले ही बैठ जावे किन्तु अधिकांश लोग उसे रुचिपूर्वक नहीं पढते । हमारा
लिखना जितना सरल शब्दों में होगा, बात को आसानी से समझा पाने के लिये उसमें जितने लोकप्रिय
मुहावरों का या चिर-परिचित दोहे अथवा सम्बन्धित फिल्मी गीतों की पंक्तियों का आसान
समावेश होगा आपका लेखन आम पाठक के उतना ही करीब हो सकेगा । जहाँ तक सरल भाषा शैली
की बात की जावे तो हम किसी भी समाचार-पत्र अथवा उपन्यासों में प्रयोग की जाने वाली
शैली को अपने ख्याल में रखकर अपनी लेखन-यात्रा को लोकप्रियता के दायरे में बनाये
रखने का प्रयास कर सकते हैं ।
अब मेरे लिखने के तरीके पर बात
करने के पूर्व थोडी सी बात संदर्भ के तौर पर मैं अपने बारे में करना चाहता हूँ-
मेरी जीवन-यात्रा में अपने
भरण-पोषण की मेरी शुरुआत एक कम्पोजिटर के रुप में रही है । कम्पोजिटर याने
प्रिन्टिंग प्रेस में कार्यरत वो प्राणी जिसके हाथ से गुजरे बगैर बडे से बडे लेखक
की भी न तो कोई किताब छप सकती हो और न ही कोई समाचार पत्र पाठकों के हाथ तक पहुंच
सकता हो । बडे व नामी लेखकों की कुछ तो भी अस्पष्ट लिखावट (राईटिंग) हमें पढकर व
समझकर कम्पोज करना होती थी । काना, मात्रा, स्पेस, पेरेग्राफ की जो समझ अपने काम के
दरम्यान एक कम्पोजिटर में रात-दिन काम करते रहने के कारण बन जाती है वो कभी-कभी
लिखकर प्रेस में भेज देने वाले लेखकों की लिखावट में सम्भव ही नहीं होती थी । जबकि
छपी हुई सुन्दरता एक अलग ही स्थान रखती दिखती है ।
अब बात लिखने के बारे में-
जब भी जिस भी विषय पर कुछ लिखने
का विचार मेरे मन में बनता है मैं उसे अपने मस्तिष्क के तमाम आवश्यक व अनावश्यक
तथ्यों के साथ बिना किसी तारतम्यता के लिखकर प्रायः 6-8 घंटों के लिये छोड देता हूँ । अगली बार
जब उसे फिर आगे बढाने बैठता हूँ तब तक एक ओर जहाँ उस विषय पर लिख सकने योग्य कुछ
नया दिमाग में शामिल हो जाता है वहीं पुराने लिखे हुए में जो कुछ अनावश्यक है व
जिसे हटा देने से मेरे उस लेख पर कोई फर्क नहीं पडेगा वह भी सामने दिखने लगता है ।
तब पुराना अनावश्यक हटा देने का व नया आवश्यक उसमें जोड देने का सम्पादन सा हो
जाता है । फिर उस लिखे गये को पेरेग्राफ के रुप में कहाँ रहना है यह क्रम
व्यवस्थित हो जाता है, जो आज के
इस कम्प्यूटर युग में तो बहुत आसान हो गया है ।
अन्त में अपने उस बने हुए लेख को
ध्यान से पढकर मैं रिपीट होने वाले शब्दों को या तो हटा देता हूँ या फिर बदल देता
हूँ ।
फाईनल मैटर को दो-तीन बार पढने
से अनावश्यक शब्द हटाना, प्रूफरीडिंगनुमा
गल्तियां सुधारना, मैटर को
उसके संतुलित आकार में रखना और पर्याप्त सहज व रुचिकर शैली में मैं अपनी बात उस
लेख के माध्यम से कह सका इन सब मुद्दों पर संतुष्ट हो चुकने के बाद ही मैं उसे
प्रसारित करने योग्य समझता हूँ और शायद यही कारण है कि मेरे लिखे का विषय कुछ भी
चल रहा हो किन्तु वो अपने अधिकांश पाठकों तक न सिर्फ पढने के दायरे में पहुँच जाता
है बल्कि निरन्तर बढते फालोअर्स के द्वारा ये संतुष्टि भी मुझे दिला पाता है कि
आपका अगला लिखा हुआ भी हम पढने के लिये तैयार हैं, और शायद इसीलिये हमारे सुपरिचित डा.
टी. एस. दराल सर जैसे पाठकों से मुझे यह प्रतिक्रिया भी मिल जाती है कि आपके लिखे
में परिपक्वता झलकती है ।
मुझे नहीं मालूम आपकी मेरे लेखनशैली से
जुडे इस जानकारीपरक लेख पर क्या प्रतिक्रिया हो सकती है ? आपमें से कुछ पाठकों को ये व्यर्थ की
बकवास भी लग सकती है और कुछ व्यवस्थित रुप से लिखना चाहने वाले पाठकों को ये
भविष्य के स्वयं के लेखन के लिये उपर्युक्त जानकारी देने वाला लेख भी लग सकता है ।
लेकिन चूंकि हम यहाँ करीब-करीब सभी लिखने वाले ही मौजूद हैं तो कुछ तो उपयोगी मेरा
यह लेख आपके लिये भी हो ही सकता है, इसी सोच के साथ ये आपके सामने है । आगे
आप यदि अच्छा या बुरा सम्बन्धित अपने विचारों से अपनी टिप्पणी के द्वारा मुझे अवगत
करवा सकेंगे तो भविष्य में जनरुचि को जानने समझने की सुविधा मेरे समक्ष भी रह
सकेगी । यद्यपि सभी पाठक तो टिप्पणी देते नहीं हैं किन्तु जो देते हैं वे लेखक के
लिये विशेष भी रहते ही हैं । तो मैं उम्मीद कर रहा हूँ कि आप भी मेरे लिये सामान्य
नहीं विशेष ही रहेंगे । शेष
आपको धन्यवाद सहित...
सुशील जी,
जवाब देंहटाएंसार्थक लेखन के विभिन्न आयामों को बड़ी ही सूक्ष्मता से आपने प्रस्तुत किया है !
आपका लेख जानकारी परक और उपयोगी है !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
आप का लेख जानकारी परक और उपयोगी लगा| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंजानकारी भरा आलेख्।
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंएक अनुरोध करूंगा , जब भी किसी का नाम दिया करें, उसका लिंक अवश्य दिया करें ! कृपया सतीश सक्सेना लिखें ना कि सतीष सक्सेना ....
एक अच्छा लेख मगर कुछ लम्बा !
:-)
अच्छा और उपयोगी लेख....
जवाब देंहटाएंलेखन और ब्लाग लेखन में काफी अन्तर मुझे दिखायी देता है। मेरे लिए भी यह एक नवीन अनुभव है। अपनी बात को यथासम्भव संक्षिप्त और रूचिकर तरीके से प्रस्तुत करना ब्लाग की आवश्यकता है। बस छोट-छोटे विषय और एक ही बिन्दु पर केन्द्रित। वैसे मैं तो यहाँ नित-नूतन लेखन पढ़ने के लिए ही आती हूँ। क्योंकि यहाँ पर लिखा तो अन्य जगह चलता नहीं, अन्य पत्रिकाओं के लिए तो अलग से ही लिखना पड़ता है, इसलिए छोटे-छोटे विषय देती रहती हूँ जिससे ब्लाग जगत में परिचय बना रहे।
जवाब देंहटाएंसतीशजी,
जवाब देंहटाएंजानकारी की कमी के कारण लिंक देने में चूक हुई । सर्वप्रथम उस भूल को यहाँ सुधार लेता हूँ । भाई सतीशजी सक्सेना की लिंक ये है-
http://satish-saxena.blogspot.com/
लेख की लम्बाई थोडी अधिक तो मुझे भी लगी किन्तु इसमें से डिलीट करने योग्य 3-4 बार पढने पर भी मुझे कुछ दिखा नहीं इसलिये इसी रुप में इसे फिर मैंने प्रकाशित किया है । बाकि तो उपर लेख की अनावश्यक लम्बाई से बचने की सलाह मैं स्वयं भी पहले ही दे रहा हूँ ।
आपका नाम आप ही अधिक बेहतर समझ सकते हैं लेकिन मैंने प्रायः सतीष (सतीश) शब्द को ऐसे ही लिखा जाते अक्सर देखा है इसीलिये ऐसे ही लिखने में आता रहा है । क्षमा सहित धन्यवाद...
बड़ी उपयोगी जानकारी दी आपने, कई बार पढ़ने से परिष्कृत हो जाते हैं लेख, अनावश्यक शब्द हट जाते हैं।
जवाब देंहटाएंदीदीश्री नमस्कार,
जवाब देंहटाएंपिछले 3 लेखों से आपकी टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी करने के लिये मेरा लिखा गया मैटर भी नेट कनेक्शन की गडबडियों के कारण व्यर्थ ही गया । Sorry.
वास्तव में ब्लाग लेखन में संक्षिप्त तरीके से लिखे को थोडी रोचक शैली में प्रस्तुत किये जाने की आवश्यकता ही अधिक दिखती है । शैली की रोचकता के लिहाज से आपका अन्तिम व्यंगात्मक लेख जिसमें आपने मेरे मेहबूब फिल्म के बुर्के युग के प्रेम से चलते हुए आज के राखी सावंत के युग तक के प्रेम की व्याख्या की थी, मुझे बहुत ही श्रेष्ठ लगा था । सही मायनों में मैं उस लेख से आपकी लेखनशैली का कायल हो गया था और उसी दिन मैंने आपके ब्लाग को फालो भी किया था ।
बाकि तो सबकी अपनी-अपनी शैली चलती ही है ।
@ सुशील बाकलीवाल !
जवाब देंहटाएंभाई जी,
लिंक देने का तरीका :
-पोस्ट को डेशबोर्ड में जाकर "एडिट पोस्ट" में इस पोस्ट को एडिट करने का बटन दवाएं
-सतीश सक्सेना को कर्सर से मार्क करें
-मार्क करने के बाद ऊपर लिंक बटन दवाएं
- और उसमें वेब साईट एड्रेस भरें अथवा कापी पेस्ट करें
- ओके करें
- पोस्ट दुबारा पब्लिश करें
लिंक देना बहुत आवश्यक हैं इसे सीख अवश्य लें !
अच्छा और उपयोगी लेख
जवाब देंहटाएंबहुत ज्ञानवर्धक प्रस्तुति..आभार
जवाब देंहटाएंसतीशजी,
जवाब देंहटाएंफिलहाल तो आपका बताया तरीका थोडा जटिल लग रहा है । वैसे एक बार सफलतापूर्वक कर लेने पर तकलीफ नहीं आएगी । धन्यवाद...
आप का लेख जानकारी परक और उपयोगी है।
जवाब देंहटाएंमुझे सलाह दें………
उपयुक्त शब्द की स्मृति लुप्त हो जाती है, प्रयाय तो सूझते है, पर कई बात उपयुक्त शब्द याद ही नहीं आता। क्या करूँ?
वाक्य विन्यास के लिये बहुत श्रम करने के बाद भी, सार्थक वाक्य नहीं बन पाता। क्या करूँ?
श्री सुज्ञजी,
जवाब देंहटाएंयह तो- 'करत करत अभ्यास के, जडमति होत सुजान' वाली बात ही है ।
प्रयोग के तौर पर आप अति सामान्य शब्द भी काम में लेने का इसलिये प्रयास कर सकते हैं कि अधिकांश लोग दैनिक जीवन में उनका ही इस्तेमाल कर रहे होते हैं ।
"आपमें से कुछ पाठकों को ये व्यर्थ की बकवास भी लग सकती है"
जवाब देंहटाएं.
ऐसा नहीं है , आपकी इस पोस्ट ने जितना ज्ञान दिया है शायद कहीं और नहीं मिलता.कम से कम हम जैसों के लिए बहुत ही ज्ञानवर्धक है.
सुशील जी , आपसे सहमत हूँ ।
जवाब देंहटाएंनिसंदेह ,
लेख की लम्बाई यथोचित सीमित होनी चाहिए ।
जहाँ तक संभव हो , सरल शब्दों में लिखना चाहिए ।
साथ ही :
ब्लोगिंग में उतना ही समय लगाना चाहिए , जितना आप बिना अपने कामों का नुकसान किये निकाल सकते हैं ।
ब्लोगिंग को कभी सर पर चढ़कर न बोलने दें ।
सार्थक लेखन और पारस्परिक सम्मान से ब्लॉग जगत में बहुत मित्र बन जायेंगे ।
शुभकामनायें ।
मेरा मानना तो यह है कि इंटरनेट का उपटोग पढ़ने के लिए अधिक और लिखने के लिए सीमित होना चाहिए!
जवाब देंहटाएंबहुत ही जानकारी परक और उपयोगी..............
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी....
जवाब देंहटाएंसक्रांति ...लोहड़ी और पोंगल....हमारे प्यारे-प्यारे त्योंहारों की शुभकामनायें......सादर
''इस बात से शब्दषः सहमत हूँ।'' हमने आपकी पोस्ट शब्दशः पढ़ी.
जवाब देंहटाएंबहुत सही ढंग से आपने समझाया है।
जवाब देंहटाएंउपयोगी जानकारी...
जवाब देंहटाएंमेरी भी आदत है कि किसी लेख को लिख कर थोड़े समय के लिए छोड़ देता हूँ... बाद में जब पुनः पढ़ा जाता है तो वो पाठक की नज़र होती है और सारी कमियाँ अपने आप दिख जाती हैं.. उनका सुधार किया जा सकता है.
लेखों को मध्यम आकार का होना ठीक रहता है... और यह भी आवश्यक है कि पोस्ट को आवश्यक पैराग्राफ में भी बांटा जाय न कि एक ही रनिंग मैटर में पूरी पोस्ट खींच दी जाय.
अच्छा विषय चुना आपने ...शुक्रिया
सुशिल जी , बहुत ही उपयोगी पोस्ट लगी --हम नए - नए ब्लोगर के लिए तो यह सोने पे सुहागा के समान है --धन्यवाद्----:)
जवाब देंहटाएंaalkh se sahmat hona hi padega
जवाब देंहटाएंgyanardhak.....
dhanyawad
@ जनाब सुशील बाकलीवाल जी ! अपने विद्यार्थियों के लिए हमने यह पोस्ट आप से साभार ले ली है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद .
http://tobeabigblogger.blogspot.com/2011/02/style-of-big-blogger.html
आपके लेख से सहमत हूँ कि- आपकी भाषा बहुत ही सरल होने के साथ ही रोचक होनी चाहिए. एक लेख में अपने आपको विद्वान लेखक दिखाने के लिए कठिन शब्दावली डाली जा सकती है, मगर वो लेख सभी को समझ ना आने के कारण अपनी सार्थकता खो बैठता है.
जवाब देंहटाएंइन्टरनेट या अन्य सोफ्टवेयर में हिंदी की टाइपिंग कैसे करें और हिंदी में ईमेल कैसे भेजें जाने. नियमित रूप से मेरा ब्लॉग http://rksirfiraa.blogspot.com , http://sirfiraa.blogspot.com, http://mubarakbad.blogspot.com, http://aapkomubarakho.blogspot.com, http://aap-ki-shayari.blogspot.com & http://sachchadost.blogspot.com देखें और अपने बहूमूल्य सुझाव व शिकायतें अवश्य भेजकर मेरा मार्गदर्शन करें. अच्छी या बुरी टिप्पणियाँ आप भी करें और अपने दोस्तों को भी करने के लिए कहे.# निष्पक्ष, निडर, अपराध विरोधी व आजाद विचारधारा वाला प्रकाशक, मुद्रक, संपादक, स्वतंत्र पत्रकार, कवि व लेखक रमेश कुमार जैन उर्फ़ "सिरफिरा" फ़ोन:9868262751, 9910350461 email: sirfiraa@gmail.com महत्वपूर्ण संदेश-समय की मांग, हिंदी में काम. हिंदी के प्रयोग में संकोच कैसा,यह हमारी अपनी भाषा है. हिंदी में काम करके,राष्ट्र का सम्मान करें.हिन्दी का खूब प्रयोग करे. इससे हमारे देश की शान होती है. नेत्रदान महादान आज ही करें. आपके द्वारा किया रक्तदान किसी की जान बचा सकता है.
priye susheel ji,
जवाब देंहटाएंjanm din bahut sari badhai ho umeed kart hun ki aap jarur shatk pura karege.
dwara-bhajan singh gharoo
सुंदर लेख एवं उपयोगी सुझाव। बहुत बहुत आभार।
जवाब देंहटाएंमैं इन पर अमल करने का प्रयास करूँगा।
उपयोगी जानकारी दी आपने .... धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सही जानकारी दी है बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंआशा
श्रीमानसुशील बाकलीवाल जी, अभी मैं ब्लॉग जगत में बिलकुल नया हूँ तथा इसके सम्बन्ध में मेरी जानकारी लगभग शून्य ही है.
जवाब देंहटाएंअभी मुझे लेखन से ले कर ब्लॉग पोस्टिंग तक बहुत कुछ सीखना बाकी है. अभी मैं अपने कार्यों में इतना व्यस्त हूँ की इन सब चीजों के लिए समय नहीं निकल पाता.
आप जैसे सज्जन लोगों से सीखने की कोशीश भी कर रहा हूँ. आप ने ऐसी जानकारी देने के लिए अपना बहुमूल्य समय दिया इसके लिए आपका बहुत धन्यवाद .
आशा है आगे भी आप यूँ ही बहुमूल्य जानकारी देते रहेंगे
मुझे आपकी पोस्ट शब्दशः बहुत ही उपयोगी लगी. हम नए ब्लोगर के लिए तो यह सोने पे सुहागा के समान है ....
धन्यवाद्......
काफी ज्ञानवर्धक और उपयोगी जानकारी . बहुत-बहुत धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंसुशील सर ,
जवाब देंहटाएंहम जैसे नए पत्रकार और ब्लागर को इस आलेख से काफी कुछ सीखने को मिला उम्मीद है आगे भी ब्लाग जगत के नए पहलुओं से आप हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे ।
धन्यवाद
काफी कुछ सीखने को मिला आपके इस लेख से
जवाब देंहटाएंधन्यवाद्
बहुत उपयोगी पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंइतनी महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद .....
जवाब देंहटाएं