22.12.10

ब्लागिंग तेरे लाभ अनेक...!


सुन सुन सुन अरे बाबा सुन, इस ब्लागिंग में बडे-बडे गुण,
लाख दुःखों की एक दवा ये, आके आजमा ले आजा आजमा.

      जी हाँ ! जब हम इस ब्लाग-लेखन की लौ अपने मस्तिष्क में प्रज्जवलित कर लेते हैं तो घर में क्या चल रहा है इस स्थिति से लगभग बेखबर, हमारी नजरें अपने कम्प्यूटर स्क्रीन पर, हथेलियां अपने की बोर्ड पर और निरन्तर घूमते चिन्तनशील विचार दिमाग में ऐसे व्यस्त रहते हैं जैसे "आग लगे बस्ती में, हम तो अपनी मस्ती में" जब किसी वृहद विषय पर पोस्ट लिखी जा रही हो तबकि तो बात ही क्या, सामान्य तौर पर भी कभी टिप्पणी लिखने में, कभी अपने ब्लाग के टिप्पणीकारों से सम्पर्क में और कभी नये ब्लागलेखकों को अपने ब्लाग तक लाकर कैसे अपना पाठकवर्ग बढाया जा सके इस प्रयास में ही हम पूरी तरह से मस्त रहते हैं । याने दूसरे किसी बाहरी नशे की तब सारी गुंजाईशें अपने आप समाप्त हो जाती हैं और हम व्यसनमुक्त हो जाते हैं ।

      मेरे सन्दर्भ में बात करुं तो कुछ समय पहले तक मैं कभी-कभी भोलेबूटी के रुप में भांग की गोली ले लिया करता था जो इसके शारीरिक दुर्गुणों को देखकर मैंने छोड भी दी थी । लेकिन देवदास में जैसे चलती ट्रेन में शाहरुख को जेकीश्राफ दोस्ती का वास्ता देकर एक-दो पेग तो पिला ही देते है ठीक वैसे ही पिछले सप्ताह मेरे भी एक चुन्नीलाल मित्र ने आग्रहपूर्वक एक गोली मेरे हलक के नीचे उतरवा दी । घंटे दो घंटे तो सब ठीक रहा, लेकिन उसके बाद आंखों ने स्क्रीन पर देखने से, उंगलियों ने की-बोर्ड पर चलने से और दिमाग ने कुछ भी सोचने से हडताल करदी और मुझे अपने सब ताम-झाम एक ओर समेटकर भूखे पेट ही तान खूंटी सो जाना पडा । कहने की आवश्यकता नहीं कि मेरा ये ब्लागिंग का नशा ही दिमाग पर इतना भारी रहने लगा कि चिन्तन व लेखन के उस समय को भांगबूटी द्वारा निगल जाना मुझे कतई नहीं सुहाया । लिहाजा इस ब्लागिंग के लिये ये बिल्कुल कहा जा सकता कि- 
           "ये क्या नशा है दोस्तों, ये कौनसा खुमार है ।"

      यहाँ आप सोच सकते हैं कि ये तो मैं अपने फायदे की बात कर रहा हूँ । इसमें सबका फायदा कहाँ हुआ ? तो साहब सबके फायदे की बात भी करलें- जितने भी नियमित ब्लाग लेखकों के अनुभवों को देखा जावे तो सब अलग-अलग शब्दों में लेकिन एकमत हो यह स्वीकार करते दिखाई देते हैं कि समय मिलते ही हमारी दिमागी सृजनात्मकता अपने कम्प्यूटर के माध्यम से कुछ-न-कुछ नया सृजन करने में जुट जाती है । कोई आधी रात में अपनी पोस्ट प्रकाशित करवाने में लगा दिखता है तो कोई अपने सौवें लेख को सेलिब्रेट कर रहा होता है, कोई हजारवे चिट्ठे को दिमाग में बनाये होता है तो कोई अपने ब्लाग की पहली, तीसरी या छठी सालगिरह आनन्दपूर्वक मना रहा है, याने इधर मन रमने के बाद- 
          खाली दिमाग शैतान का घर वाली उक्ति से पूरी तरह मुक्ति ।

      बुजुर्गों की सबसे बडी समस्या यदि सुनें तो प्रायः वे ये कहते पाए जाते हैं कि क्या करें- बच्चे सब अपनी दुनिया में ही व्यस्त रहते हैं । घर में आते हैं तो खा-पीकर सब अपने कमरों में चले जाते हैं । हमारे पास बैठकर किसी को भी हमारे सुख-दुःख समझने का या खुद की चिन्ताओं के बारे में बात करने का समय ही नहीं है । यदि आगे बढकर हम बच्चों से इस बारे में बात करने की कोशिश भी करें तो प्रायः वे चिडचिडाहट वाली शैली में ही बात करते दिखाई देते हैं । यदि वे बुजुर्ग भी इस ब्लागिंग से अपनी लौ लगालें तो फिर इस किस्म की किसी चिंता की उनके पास भी कोई गुंजाईश ही नहीं रह जाएगी । फिर उनका समय घर में वैसा ही गुजरेगा जैसे जल में कमल का ।  
        जल में हैं पर जल में नहीं, घर में हैं पर घर में नहीं ।

      ब्लागिंग की दुनिया में जब हम शामिल हो जाते हैं तो अपने जैसे अधिकांश ब्लागर मित्रों से मानसिक धरातल पर हमारा अच्छा-खासा टाईम पास दोस्ती का सिलसिला भी ई-मेल व चेटिंग के द्वारा घर बैठे ही चलने लगता है । यही दोस्ती जब शारीरिक धरातल पर होती है तो कई बार अनिच्छा व रोड एक्सीडेंट के खतरों के बावजूद हमें उनसे अकेले या सपरिवार मिलने जुलने दूर-दराज में जाना भी पडता है । दोस्ती के अनवरत क्रम को जीवित रखने के लिये मंहगाई व हाजमे की समस्याओं के बावजूद उनके द्वारा जुटाई गई खाद्य सामग्री उदरस्थ भी करना पडती है और गाहे-बगाहे उनके खाने-पीने का इंतजाम भी करना पडता है । लेकिन ब्लागिंग वाली मित्रता बमुश्किल ही कभी महिनों या वर्षों में ऐसे किसी धर्मसंकट में हमें डाल पाती हो, याने समय, श्रम व अनावश्यक खर्चों से बचे रहते हुए भी दोस्ती का पूरा आनन्द आपको ये ब्लागिंग का शौक दिलवा देता है । मरहूम हास्य कलाकार मियां मेहमूद की भाषा में शायद इसी को कहते हैं-  
            खर्चा कौडी का नहीं और मण्डप फ्री.

      ब्लाग लिखने में यदि हमारी लेखन शैली पाठकों को रुचिकर लगने लगे तो हमारा नाम हींग लगे न फिटकरी वाली लागत के बावजूद पच्चीस-पचास, सौ दो सो व हजार-पन्द्रह सौ पाठकों के मध्य होते हुए हजारों-हजार पाठकों तक लोकप्रिय होकर हमें हीरो भी बना सकता है । एडसेन्स व इस जैसी अनेक कम्पनियां हमारे ब्लाग पर टी.आर.पी. के आधार पर अपने विज्ञापन लगवाकर नियमित आमदनी मुहैया करवा सकती है और अभी हाल ही में इसका एक सबसे बडा लाभ जो मेरी जानकारी में आया है वह ये कि अन्तर्जाल (इन्टरनेट) के इस माध्यम से ब्लाग्स के द्वारा जो हम अपने विचारों की लडियों को यहाँ पिरोए जा रहे हैं, सही मायनों में इस तरीके से हम इतिहास में भी स्वयं को दर्ज करते जा रहे हैं । क्योंकि देर-सवेर हमारा ये नश्वर शरीर तो इस संसार से विदा ले लेगा किन्तु अपनी वैचारिक लेखन-शैली से जो कुछ भी हम यहाँ छोडकर जा चुके होंगे वो आने वाले दशकों ही नहीं बल्कि शतकों तक भी इस पटल पर हमारे नाम के साथ जिन्दा ही रहेगा ।

      मेरी इस ब्लागिंग का सिलसिला तो मात्र अक्टूबर 2010 के माह से चालू हुआ है । यदि तीन महिने की अल्प समयावधि में मुझे इस विधा के इतने लाभ दिखने लगे हैं तो जितने सुस्थापित सीनियर ब्लागर्स इस क्षेत्र में वर्षों पूर्व से रमे हैं वे इसके कितने लाभों का सुख ले पा रहे होंगे य़े तो उनके द्वारा अपने अनुभव सार्वजनिक करने पर ही समझ में आवेगा । अलबत्ता यहाँ ये ध्यान रखना भी आवश्यक है कि शुरुआत में हमारी पहुँच अपर्याप्त दायरे में होने पर या पाठकों के बहुमत में हमारे लेखन को बचकाना मानकर सराहना करना तो दूर कोई झांकने तक भी नहीं आवे ऐसी अप्रिय स्थिति दिखाई देने पर भी यदि हम स्वान्त-सुखाय के निमित्त हारिये न हिम्मत बिसारिये न राम वाली सोच के साथ अपनी लेखनी की इस प्रक्रिया को चालू रख पाते हैं तो निश्चित ही हमारे लिये भी ये क्षेत्र देर-सवेर बांहें पसारें अभिनन्दन करते नजर आ सकता है । तो फिर आप भी जुटे रहिये ब्लाग-लेखन की भगीरथी प्रक्रिया में और घर-समाज-मित्र-परिचित सभी को किसी भी परिस्थिति में स्वयं के प्रति यह कहते रहने दीजिये कि देखलो इनको-
        रोम जल रहा है और ये नीरो बांसुरी बजा रहे हैं । 


      अन्त में एक निवेदन भी- यदि आप इस लेख को पढ चुके हैं तो इसके कुछ फायदे जो आपकी जानकारी में भी आते हों उनका सार्वजनिकरण सभी पाठकवर्ग के मानसिक लाभार्थ हेतु अपनी टिप्पणी के रुप में अवश्य बताते जावें । इसके लिये आपको मेरी ओर से अग्रिम- Thankyou very much 



19 टिप्‍पणियां:

  1. बस अब तो आप हीरो बन ही गये समझिये।

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  2. ब्लाग लेखन के लाभ तो आपने अनेक बता दिये लेकिन ब्लाग-जगत के इस महासागर में विचारों की नाव पर बैठकर की-बोर्ड के इस पतवार से कोई कितनी दूर जा सकता है इस क्षमता का कायम रह पाना भी तो बडी बात है ।

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  3. खर्चा कौडी का नहीं और मण्डप फ्री. लेकिन ये सच नही जी। हम्ने पूरे 750 रुपये वाला प्लान ले रखा है इन्टर्नेट का और पूरा दिन बिजली का खर्च। बस घर फूँक कर तमाशा देख रहे हैं। लेकिन बुढापा काटने के लिये ये अधिक नही है। ाच्छी पोस्ट के लिये बधाई।

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  4. आ. अनूप शुक्लजी,
    आपका आशीर्वाद और ईशकृपा बने रहना चाहिये । बाकि तो मेरे लिये भी आपकी शुभकामना "दिल को बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है" के समान तो है ही ।

    सुश्मिताजी,
    एक बार नाव पर बैठकर पतवार थाम लेना भी मायने तो रखता ही है । बाकि तो लहरों के थपेडे भी यात्रा कौशल और जीजीविषा बढाएंगे ही ।

    आ. निर्मला कपिलाजी,
    बिजली का खर्चा तो लेपटाप में मोबाईल चार्जिंग से थोडा ही ज्यादा दिखता है, रही बात इन्टरनेट के कनेक्शन प्लान की तो मेरा काम तो आज तक एअरटेल के 98/- रु. महीने के मोबाईल कनेक्शन से ही चल रहा है ।

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  5. अब वो शिव-बूटी तो बन्‍द ही कर दो, बस ब्‍लाग का नशा ही पर्याप्‍त है। बस ऐसा ही लिखते रहिए।

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  6. सुशील जी,
    हल्के से आपने कई लाभ बता दिए, सभी सार्थक है।
    1- व्यस्तता दुर्गुणों से दूर रखती है।
    2- सृजनात्मकता का विकास।
    3- छोटी छोटी खुशीयों से जीवन में उत्साह।
    4- एकांत का सेवन करते हुए, विश्व-सम्मेलन का सुख।
    5- निवृति में प्रवृति का श्रेष्ठ आधार।
    6- सुसुप्त लेखन रूचि को अवसर और मंच।
    7- अपनी पहचान बनाने का अमूल्य मंच।
    8- बिना अपव्यय के सहज उपलब्ध।
    9- प्रसिद्धि आकांक्षा पूर्ण करने का अतिरिक्त विकल्प।

    आपका यह आलेख प्रेरकबल है।

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  7. दीदी श्री अजीत गुप्ताजी,
    शिवबूटी के नशे से दूर ब्लागलेखन के नशे में ही यह पोस्ट लिखी है ।

    श्री सुज्ञजी,
    मेरे द्वारा बताये लाभों के समर्थन सहित आपने अतिरिक्त लाभ भी बताये हैं । धन्यवाद आपको...

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  8. ब्लोगिंग का नशा ज्यादा बेहतर है .....और सच ही बूढ़े होते लोगों के लिए राम बाण ..बढ़िया लेख

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  9. सुज्ञ ने कहा
    ham sahmat hai aap ki baat se
    हल्के से आपने कई लाभ बता दिए, सभी सार्थक है।
    1- व्यस्तता दुर्गुणों से दूर रखती है।
    2- सृजनात्मकता का विकास।
    3- छोटी छोटी खुशीयों से जीवन में उत्साह।
    4- एकांत का सेवन करते हुए, विश्व-सम्मेलन का सुख।
    5- निवृति में प्रवृति का श्रेष्ठ आधार।
    6- सुसुप्त लेखन रूचि को अवसर और मंच।
    7- अपनी पहचान बनाने का अमूल्य मंच।
    8- बिना अपव्यय के सहज उपलब्ध।
    9- प्रसिद्धि आकांक्षा पूर्ण करने का अतिरिक्त विकल्प।

    आपका यह आलेख प्रेरकबल है।

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  10. ये क्या नशा है दोस्तों, ये कौनसा खुमार है ।

    सही बात कही आपने ।
    ब्लागिंग के अपने अलग ही मजे हैं, अलग ही नशा है।

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  11. बस जारी रहिये । ज्यादा मत सोचिये , किसने पढ़ा , किसने नहीं। इतिहास के पन्नों पर दर्ज होने के लिए बधाई।

    आपको भी - " thank you very much "

    .

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  12. आदरणीय सुशील जी,ी,

    "मेर्री क्रिसमस" की बहुत बहुत शुभकामनाये !

    मेरी नई पोस्ट "जानिए पासपोर्ट बनवाने के लिए हर जरूरी बात" पर आपका स्वागत है

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  13. सही बात कही आपने । आपका यह आलेख प्रेरक है।

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  14. क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
    आशीषमय उजास से
    आलोकित हो जीवन की हर दिशा
    क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
    जीवन का हर पथ.

    आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

    सादर
    डोरोथी

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  15. आदरणीय सुशील बाकलीवाल जी आप की टिप्स ब्लागिंग की दुनिया के हर फायदे को गिनाते हुए हम सबको कुछ कर के विदा लेने के लिए प्रेरित करती रही है नए ब्लागेर के पास आप का आना व् उन्हें सुझाव समर्थन देना निश्चित ही काबिले तारीफ है ढेर सारी शुभ कामनाएं आप बुलंदियों को छुएं और हमें भी अपना अनवरत मार्ग दर्शन देते रहें हम आप को अपने अन्य ब्लॉग पर भी देखने को इच्छुक हैं -धन्यवाद
    सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
    http://surendrashuklabhramr.blogspot.com
    http://surendrashukla-bhramar.blogspot.com

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  16. सुशील जी सुन्दर ब्लॉग के लिये बधाई. .... आप ज्योतिष की किस राह में रुच रख्ते हैं कृपया बताईये .....

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आपकी अमूल्य प्रतिक्रियाओं के लिये धन्यवाद...