30.10.19

भाई-भतीजावाद के इस युग में...

      देश भर में पिछले 3 वर्षों से स्वच्छ शहरों में नं. 1 का खिताब जितने वाले इन्दौर में पिछले सप्ताह खबर सामने आई कि यहाँ के नगर-निगम में बायोमेट्रिक प्रणाली से उपस्थिति दर्शाने की अनिवार्यता के बावजूद 10 कर्मी ऐसे मिले जो पिछले कई वर्षों से कभी निगम में गये ही नहींकिंतु प्रतिमाह हजारों रुपये उनके वेतन के सरकारी खजाने से निकलकर उनके बैंक खातों में जमा हो रहे हैं । चूंकि उपस्थिति बायोमेट्रिक प्रणाली से दर्ज होती थी इसलिये ये कर्मी निगम की किसी भी दूसरी ब्रांच में जाकर मशीनी सिस्टम पर अपनी उपस्थिति दर्शा देते और घर आकर दूसरे कामों में लग जाते । कर्मचारियों के काम की निगरानी उनके उपर जो भी अधिकारी अपने रजिस्टर के आधार पर चैक करताउनमें कहीँ इनके नाम ही नहीं होते थेलिहाजा इन्हें पकड पाने की कोई आसान राह बचती ही नहीं थी ।

      निगमायुक्त के समक्ष जब वास्तविक कर्मियों की संख्या और वेतन लेने वालों की संख्या में ये अन्तर आया और बारिकी से जांच हुई तो न सिर्फ यह गडबडी पकड में आई बल्कि यह भी मालूम पडा कि ये सभी कर्मी निगम के ही एक दरोगा के रिश्तेदार थे और उसके ही क्षेत्र में उसने ये फर्जी नियुक्तियाँ सालों पहले से करवा रखी थीऐसा नहीं था कि उससे सम्बन्धित अन्य निगमकर्मियों को इसकी जानकारी नहीं थीलेकिन कुछ लोग उसके पावर से डरते हुए और कुछ लोग रहना तो इन्हीं के साथ है कौन लफडे में पडे वाली सोच के चलते चुप रहे ।

      कमोबेश देश के शासक वर्ग में रहे नागरिकों की बात हो या सामान्य नागरिकों की सभी भ्रष्ट आचरण द्वारा अपने अपनों को अवांछित लाभ दिलवाने में पीछे नहीं रहते । देश के पूर्व वित्तमंत्री तक अपने शासनकाल में भ्रष्ट आचरण द्वारा अपने परिजनों को अनुचित लाभ दिलवाने के आरोप में बीसियों दिन सींखचों के पीछे गुजार चुके हैं । यद्यपि हमारे वर्तमान प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार मुक्त भारत के अभिनव प्रयोग की अपने कार्यकाल के प्रारम्भ से ही उत्तम शुरुआत की है लेकिन वे भी ये दावा नहीं कर सकते कि उनकी पार्टी के सभी सदस्य पाक-साफ तरीके से उनका साथ दे रहे हैं ।

      कुल मिलाकर सारे कुएं में भांग पडी है, अंधा बांटे रेवडी, अपने-अपने को दे वाली तर्ज पर जो लोग गलत कर रहे हैं वे तो चुप रहेंगे ही किंतु जो उन्हें गलत करते देख रहे हैं वे भी चुप रहकर नजारा देखते रहना ही अधिक सुरक्षित समझते हैं । इस संदर्भ में एक पुराना कथानक दिमाग में आता है यकीनन आपने कभी सुना होगा-


      एक बार एक हंस और हंसिनी अपने स्थान से भटकते हुए वीरान रेगिस्तानी इलाके में आ गये ! हंसिनी ने हंस से कहा कि ये हम कहाँ आ गये हैं ? यहाँ न तो जल है,  न जंगल और न ही ठंडी हवाएं हैं यहाँ तो हमारा जीना मुश्किल हो जायेगा  !  भटकते हुए शाम हो चुकी थी तो हंस ने हंसिनी से कहा- किसी तरह आज की रात बीता लो सुबह हम लोग अपने ठिकाने लौट चलेंगे !
      रात हुई तो जिस पेड़ के नीचे हंस-हंसिनी रुके थे,  उस पर बैठा उल्लू जोरों से चिल्लाने लगा । हंसिनी ने हंस से कहा- यहाँ तो रात में सो भी नहीं सकतेये उल्लू चिल्ला रहा है ।  हंस ने फिर हंसिनी को समझाया कि किसी तरह रात काट लो,  मैं समझ गया हूँ कि ये इलाका वीरान क्यूँ है ?  ऐसे उल्लू जिस इलाके में रहेंगे वो तो वीरान और उजाड़ रहेगा ही ।  पेड़ पर बैठा उल्लू ये बातें सुन रहा थासुबह हुई तो उल्लू नीचे आया और बोला- भाई,  मेरी वजह से आपको रात में तकलीफ हुई,  मुझे माफ़ कर दो । हंस ने कहा- कोई बात नही भैया,  आपका धन्यवाद !  यह कहकर जैसे ही हंस अपनी हंसिनी को लेकर आगे बढ़ा तो पीछे से उल्लू चिल्लाया भैया हंस मेरी पत्नी को लेकर कहाँ जा रहे हो ?

      अब हंस चौंका- उसने कहा, आपकी पत्नी  ? अरे भाई यह हंसिनी है मेरी पत्नी है, मेरे साथ आई थी मेरे साथ जा रही है ! उल्लू ने कहा-  खामोश रहो, ये मेरी पत्नी है । दोनों के बीच विवाद बढ़ गया । पूरे इलाके के लोग एकत्र हो गये । पंचायत बुलाई गई , पंच भी आगये- बोले- भाई किस बात का झगडा है  ? लोगों ने बताया कि उल्लू कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है और हंस कह रहा है कि हंसिनी उसकी पत्नी है ! पंचों ने किनारे होकर विचार किया कि है तो हंसिनी हंस की पत्नी ही लेकिन ये हंस और हंसिनी तो थोड़ी देर में गाँव से चले जायेंगे, हमें तो उल्लू के साथ ही रहना है, इसलिए फैसला उल्लू के हक़ में सुनाना ही ठीक रहेगा, और पंचों ने अपना फैसला सुना दिया- कि सारे तथ्यों और सबूतों की देखने के बाद पंचायत इस नतीजे पर पहुँची है कि हंसिनी उल्लू की ही पत्नी है और हंस को तत्काल गाँव छोड़कर जाने का हुक्म दिया जाता है !

      यह सुनते ही हंस हैरान हो गया और रोते हुए बोला कि पंचायत ने गलत फैसला सुनाया है, इस उल्लू ने मेरी पत्नी ले ली ! रोते हुए जब वह जाने लगा तो उल्लू ने आवाज लगाई- मित्र हंस, रुको, हंस रोते हुए बोला- भैया अब क्या करोगे ? पत्नी तो तुमने ले ली अब क्या मेरी जान भी लोगे ? उल्लू ने कहा-  नहीं दोस्त ये हंसिनी तुम्हारी पत्नी  है और रहेगी ! लेकिन कल रात जब मैं चिल्ला रहा था तो तुमने अपनी पत्नी से कहा था कि यह इलाका उजाड़ और वीरान इसलिए है क्योंकि यहाँ उल्लू रहता है ! मित्र, ये इलाका उजाड़ और वीरान इसलिए नहीं है कि यहाँ उल्लू रहता है, बल्कि इसलिए है क्यों कि यहाँ ऐसे पंच रहते हैं जो उल्लुओं के हक़ में ही फैसला सुनाते हैं !

      शायद 70 साल की आजादी के बाद भी अपने देश की दुर्दशा का मूल कारण यही है कि हम देश के कर्णधारों के चुनाव के समय उम्मीदवारों की योग्यता न देखते हुए,  हमेशा अपनी जाति, अपनी पार्टी के आधार पर अपना फैसला उल्लुओं के ही पक्ष में सुनाते हैं ।  देश क़ी बदहाली और दुर्दशा के लिए इस प्रकार हम सब भी जिम्मेदार हैँ 

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26.10.19

सबसे शक्तिशाली...

            
            एक पिता ने अपने पुत्र की बहुत अच्छी परवरिश की । उसे अच्छी तरह से पढ़ाया, लिखाया, तथा उसकी सभी सुकामनाओ की पूर्ति की ।

           
कालान्तर में वह पुत्र एक सफल इंसान बना और एक मल्टीनेशनल कंपनी में सी.ई.ओ. बन गया ।
  
           
उच्च पद,  अच्छा वेतन,  सभी सुख सुविधांए उसे कंपनी की और से प्रदान की गई । समय गुजरता गया उसका विवाह एक सुलक्षणा कन्या से हो गयाऔर उसके परिवार में एक सुन्दर कन्या भी पुत्री स्वरुप आ गई । पिता अब बूढा हो चला था । एक दिन पिता को पुत्र से मिलने की इच्छा हुई और वो पुत्र से मिलने उसके ऑफिस में गया ।

            वहां उसने देखा कि उसका पुत्र एक शानदार ऑफिस का अधिकारी बना हुआ है, उसके ऑफिस में सैंकड़ो कर्मचारी उसके अधीन कार्य कर रहे है ! ये सब देख कर पिता का सीना गर्व से फूल गया ।
    
              वो चुपके से उसके चेंबर में पीछे से जाकर उसके कंधे पर हाथ रख कर खड़ा हो गया  और उसने प्यार से अपने पुत्र से पूछा - "यहाँ सबसे शक्तिशाली इंसान कौन है" पुत्र ने पिता को बड़े प्यार से हंसते हुए कहा "मेरे अलावा कौन हो सकता है पिताजी " ।

            पिता को इस जवाब की  आशा नहीं थी, उसे विश्वास था कि उसका बेटा गर्व से कहेगा - पिताजी यहाँ सब से शक्तिशाली इंसान आप हैं, जिन्होंने मुझे इस योग्य बनाया ।

            उनकी आँखे छलछला आई ! वो चेंबर के गेट को खोल कर बाहर निकलने लगे । न जाने क्या सोचकर उन्होंने एक बार पीछे मुड़ कर पुनः बेटे से पूछा- एक बार फिर बताओ यहाँ सब से शक्तिशाली इंसान कौन है ?
   
             पुत्र ने  इस बार कहा- "पिताजी आप हैं, यहाँ सब से शक्तिशाली इंसान" । पिता सुनकर आश्चर्यचकित हो गए उन्होंने कहा "अभी तो तुम अपने आप को यहाँ सब से शक्तिशाली इंसान बता रहे थे अब तुम मुझे बता रहे हो" ?
   
              पुत्र ने हंसते हुए ससम्मान उन्हें अपने सामने बिठाते हुए कहा - "पिताजी उस समय आप का हाथ मेरे कंधे पर था, जिस पुत्र के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ हो वो पुत्र तो सबसे शक्तिशाली इंसान ही होगा ना, बोलिए पिताजी" 
 
           
पिता की आँखे भर आई उन्होंने अपने पुत्र को कस कर के अपने गले लग लिया । सच ही है जिस के कंधे पर या सिर पर पिता का हाथ होता है,  वो ही इस दुनिया में सब से शक्तिशाली इंसान होता है ।

            सदैव अपने बुजुर्गों का सम्मान करें । क्योंकि न सिर्फ हमारी सफलता के पीछे वे ही होते हैं बल्कि वे होते हैं तो हम होते हैं ।

विवाहित साथ का महत्व...


           कॉलेज में पूर्व छात्रों का Happy married life पर एक कार्यक्रम हो रहा थाजिसमे लगभग सभी विवाहित छात्र हिस्सा ले रहे थे । जिस समय प्रोफेसर मंच पर आए तब उन्होने देखा कि सभी छात्र पति-पत्नी व शादी सम्बंधों पर जोक कर हँस रहे थे । यह देखकर प्रोफेसर बोले कि चलो पहले  एक Game खेलते हैंउसके बाद  अपने विषय पर बातें करेंगे । 

            सभी  खुश हो गए और कहा कोनसा Game ?

            प्रोफ़ेसर ने एक विवाहित लड़की को खड़ा किया और कहा कि तुम ब्लेकबोर्ड पर ऐसे 25-30 लोगों के  नाम लिखो जो तुम्हें अच्छे लगते हैं...

           लड़की ने पहले अपने परिवार के लोगों के नाम लिखे फिर अपने सगे-सम्बन्धीदोस्तों, पडोसियों और सहकर्मियों के नाम लिख दिए ।

            तब प्रोफ़ेसर ने उनमें से कोई भी कम पसंद वाले 5 नाम मिटाने को कहा-

           लड़की ने अपने सहकर्मियों के नाम मिटा दिए ।

            प्रोफ़ेसर ने और 5 नाम मिटाने को कहा-

            लड़की ने थोडा सोच कर अपने पड़ोसियो के नाम मिटा दिए ।

            अब प्रोफ़ेसर ने उनमें से कोई भी चार को छोडकर बाकि नाम मिटाने को कहा-

            लड़की ने अपने सगे-सम्बन्धी और दोस्तों के नाम मिटा दिए । अब बोर्ड पर सिर्फ 4 नाम बचे थे जो उसके मम्मी-पापा, पति और बच्चे के नाम थे ।

            अब प्रोफ़ेसर ने कहा इसमें से और 2 नाम मिटा दो-

            लड़की असमंजस में पड गयी बहुत सोचने के बाद कुछ दुखी होते हुए उसने अपने मम्मी-पापा के नाम मिटा दिए ।

            सभी लोग स्तब्ध और शांत थे क्योंकि वे जानते थे कि यह गेम सिर्फ वो लड़की ही नहीं खेल रही थी बल्कि उनके अपने दिमाग में भी यही सब चल रहा था ।

            अब सिर्फ दो ही नाम बचे थे । एक उसके पति का और दूसरा उसके बेटे का...

            प्रोफ़ेसर ने कहा - अब और एक नाम इसमें से भी मिटा दो-

            अब तो वह लडकी सहमी सी रह गयी... बहुत सोचने के बाद लगभग रोती सी मनोदशा के साथ उसने अपने बेटे का नाम काट दिया । प्रोफ़ेसर ने  उस लड़की से कहा अब तुम अपनी जगह पर जाकर बैठ जाओ ।

            फिर सभी की तरफ गौर से देखते हुए पूछा- क्या आपमें से कोई बता सकता है कि ऐसा क्यों हुआ कि आखिर में सिर्फ पति का ही नाम बोर्ड पर रह गया।

            कोई जवाब नहीं दे पाया ।  सभी मुँह लटकाए बैठे थे...!  प्रोफ़ेसर ने फिर उस लड़की को खड़ा किया और पूछा -  ऐसा क्यों ? जिसने तुम्हे जन्म दिया और पाल पोस कर इतना बड़ा किया उनका नाम तुमने मिटा दियाऔर तो और अपनी कोख से जिस बच्चे को तुमने जन्म दिया उसका भी नाम मिटा दिया  ?

            लड़की ने जवाब दिया - मम्मी-पापा तो अब बूढ़े हो चले हैंकुछ साल के बाद वो मुझे और इस दुनिया को छोड़ के चले ही जायेंगे । मेरा बेटा जब बड़ा हो जायेगा तो जरूरी नहीं कि वो शादी के बाद मेरे साथ ही रहे ।

            लेकिन मेरे पति जब तक मेरी जान में जान है तब तक मेरा आधा शरीर बनके मेरा साथ निभायेंगे इसलिए मेरे पति ही मेरे लिये सबसे अजीज हैं ।

           प्रोफ़ेसर और बाकी स्टूडेंट ने तालियों की गूंज से लड़की की बात का समर्थन किया ।

          प्रोफ़ेसर ने कहा तुमने बिलकुल सही कहा कि तुम और सभी के बिना रह सकती हो पर अपने आधे अंग अर्थात अपने पति के बिना नहीं रह सकती ।

            मजाक मस्ती तक तो ठीक है पर हर इंसान का अपना जीवन साथी ही उसको सब  से ज्यादा अजीज होता है, यही सच है सभी पतियों और पत्नियों के लिये । यह कभी मत भूलना कि जिंदगी के साथ भी और  जिन्दगी के बाद भीअंत में तो दोनों ही होंगे ।

            भले ही झगड़ें, गुस्सा करें, एक दूसरे पर टूट पड़ें, एक दूसरे पर दादागीरी करलें किंतु अंत में ये दोनों ही होंगे ।

           
जो कहना है  वह कह लें, जो करना है वह कर लें, किंतु एक दूसरे के चश्मे और लकड़ी ढूंढने के लिये अंत में ये दोनों ही होंगे ।

           
मैं रूठूँ तो तुम मना लेना, तुम रूठो तो मैं मना लूंगा, एक दूसरे को लाड़ लड़ाने के लिए अंत में दोनों ही होंगे ।

           
आंखें जब धुंधली होंगी, याददाश्त जब कमजोर होगी, तब एक दूसरे को, एक दूसरे में ढूंढने के लिए अंत में ये दोनों ही होंगे ।

           
घुटने जब दुखने लगेंगेकमर भी झुकना बंद कर देगीतब एक दूसरे के पांव के नाखून काटने के लिए भी अन्त में ये दोनों ही होंगे ।

            "
अरे मुुझे कुछ नहीं हुआ बिल्कुल ठीक तो हूँ" ऐसा कह कर एक दूसरे को बहलाने के लिए भी अंत में ये दोनों ही होंगे ।

           
साथ जब छूट जाएगा, विदाई की घड़ी जब आ जाएगी, तब एक दूसरे को माफ करने के लिए भी अंत में यह दोनों ही होंगे ।
 
          
टिप्पणी : पति-पत्नी पर व्यंग्य कितने भी हों पर अकाट्य सत्य यही है और यही रहेगा ।
 

आज की आधुनिकता और पहले का स्नेह...


           चश्मा साफ़ करते हुए उस बुज़ुर्ग ने अपनी पत्नी से कहा - हमारे ज़माने में मोबाइल नही थे…!

           
पत्नी : पर ठीक पाँच बजकर पचपन मिनीट पर में पानी का ग्लास लेकर दरवाज़े पे आती और आप आ पहुँचते ।

           
पति : हाँ मैंने तीस साल नौकरी की पर आज तक में समझ नहीं पाया की मैं आता इसलिए तुम पानी लाती थी या तुम पानी लेकर आती इसलिये में आता था ।

            
हाँऔर याद है तुम्हारे रिटायर होने से पहले जब तुम्हें डायबिटीज़ नहीं थी और मैं तुम्हारी मनपसंद खीर बनाती तब तुम कहते थे कि आज दोपहर में ही ख़याल आया था की आज तो खीर खाने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए । 

            
हाँ .सच मेंऑफीस से निकलते वक़्त जो सोचताघर आकर देखता था की वही तुमने बनाया है ।

            
और तुम्हें याद है जब पहली डिलीवरी के वक़्त मैं मायके गई थीऔर जब दर्द शुरु हुआ मुझे लगा काश तुम मेरे पास होते ! और घंटे भर में ही जैसे कि कोई ख़्वाब हो- तुम मेरे पास थे ।

           
पति : हाँ उस दिन यूं ही ख़याल आया की जरा देखलूं तुम्हें. 
         
           पत्नी : और जब तुम मेरी आँखों मे आँखें डाल कर कविता की दो लाइनें बोलते……

            
पति : हाँ और तुम शर्मा के पलके झुका देती और मैं उसे अपनी कविता की 'लाइकसमझता ।

          पत्नी : और हाँ जब दोपहर को चाय बनाते वक़्त मे थोड़ा जल गई थी और उसी शाम तुम बर्नोल की ट्यूब अपनी जेब से निकालकर बोले इसे अलमारी मे रख दो । 

            
पति : हाँ पिछले दिन ही मैंने देखा था कि ट्यूब ख़त्म हो गई हैपता नहीं कब जरुरत पड़ जाए ये सोचकर मैं ले आया था ।

            
पत्नी : तुम कहते आज ऑफिस के बाद तुम वहीं आ जाना सिनेमा देखेंगे और खाना भी बाहर खा लेंगे ।

            
पति : और जब तुम आती तो जो मैंने सोच रखा हो तुम वही साड़ी पहन कर आती थी ।

            
फिर नज़दीक जा कर उसका हाथ थाम कर कहा- हाँ हमारे समय मे मोबाइल नही था पर… "हम दोनों थे ।"

            
आज बेटा और बहू  साथ तो होते है परबातें नही व्हाट्स एप होता हैलगाव नही टेग होता हैकेमिस्ट्री नही कमेन्ट होता हैलव नही लाइक होता हैमिठी नोकझोक नही अनफ्रेन्ड होता है । उन्हें बच्चे नहीं केन्डीक्रशसागाटेम्पल रन और सबवे होता है ।

            
छोड़ो ये सब बातें हम अब वायब्रंट मोड़ पर हैं और हमारी बेटरी भी १ लाईन पर है...

            
अरे..!  कहाँ चल दी  ? 

            
चाय बनाने 

           
भई वाह- मैं कहने ही वाला था कि चाय बना दो नापता है मैं अभी भी कवरेज में हूँ और मैसेज भी आते हैं । 
             
          दोनों हँस पड़े - हाँ हमारे ज़माने मे मोबाइल नही थे...

सुखी वैवाहिक जीवन ऐसे भी...!



         एक दंपत्ति नें जब अपनी शादी की 25वीं वर्षगांठ मनाई तो एक पत्रकार उनका साक्षात्कार लेने पहुंचा । वो दंपत्ति अपने शांतिपूर्ण और सुखमय वैवाहिक  जीवन के लिये प्रसिद्ध थे,  उनके बीच कभी नाम मात्र की भी तकरार नहीं हुई थी ।

          
लोग उनके इस सुखमय वैवाहिक जीवन का राज जानने को बेहद उत्सुक थे...

        
पत्रकार के पूछने पर पति ने बताया- हमारी शादी के फ़ौरन बाद हम हनीमून मनाने शिमला गयेवहाँ हम लोगो ने घुड़सवारी कीमेरा घोड़ा बिल्कुल ठीक था लेकिन मेरी पत्नी का घोड़ा थोड़ा नखरैल थाउसने दौड़ते-दौड़ते अचानक मेरी पत्नी को गिरा दिया ।

          
मेरी पत्नी उठी और घोड़े के पीठ पर हाथ फ़ेर कर कहा - "यह पहली बार है"  और फ़िर उस पर फिर सवार हो गई । 
 
          
थोड़ी दूर और चलने के बाद घोड़े ने फ़िर पत्नी को गिरा दिया । पत्नी ने घोड़े से फ़िर कहा - "यह दुसरी बार है"  और फ़िर उस पर सवार हो गयी । लेकिन थोड़ी दूर जा कर घोड़े ने फ़िर उसे गिरा दिया ।
 
          
इस बार मेरी पत्नी ने कुछ नहीं कहाचुपचाप अपना पर्स खोला,  पिस्तौल निकाली और उस घोड़े को गोली मार दी ।

          
मुझे ये देखकर बहुत गुस्सा आया और मैं जोर से पत्नी पर चिल्लाया - "ये तुमने क्या किया,  पागल हो गयी हो क्या ?"

          
तब पत्नी ने मेरी तरफ़ देखा और कहा - "ये पहली बार है" ।

          
और बस उसके बाद से हमारी ज़िंदगी सुख और शांति से चल रही है ।

वोट बैंक के फेर में पलते - ये मुफ्तखोर...!



         एक वास्तविक घटना- पान की दुकान पर खडे एक 36-37 वर्षीय युवक से बातचीत के कुछ अंश...

          मैनें पूछा- कुछ कमाते धमाते क्यों नहीं ?

          वह बोला--  क्यों ?

          मैं बोला--  शादी कर लो  ?

          वह बोला-- पहले ही हो गई ...

          मैं बोला--  कैसे  ?

          वह बोला--  मुख्यमंत्री कन्यादान योजना से...

          मैं बोला--  फिर बाल-बच्चों के लिये कमाओ  ?

          वह बोला--  जननी सुरक्षा से डिलिवरी फ्री और साथ मे 1400 रू का चेक...

          मैं बोला--  बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिये कमाओ  ?

          वह बोला--  उनके लिये पढ़ाई, यूनिफार्म, किताबें और भोजन सब सरकार की तरफ़ से फ्री  ! साथ में लड़का कॉलेज जा रहा है, BPL होने की वजह से उसे स्कॉलरशिप भी मिलती है,  हम  उससे ऐश करते हैं ।

          मैं बोला-- यार घर कैसे चलाते हो  ?

         वह बोला- छोटी लड़की को सरकार से साईकिल मिली है,  लड़के को लेपटॉप मिला है । माँ-बाप को वृद्धावस्था पेन्शन मिलती है,  और 1 रूपये किलो गेहूं और चावल भी तो मिलता है ।

          मैं झुंझला कर बोला-  यार माँ-बाप को तीर्थयात्रा के लिये तो कमाओ  ?

          वह बोला-  दो धाम करवा दिये हैं, मुख्यमंत्री तीर्थ यात्रा योजना से...

          मुझे गुस्सा आया और मैं बोला--

          माॅ बाप के मरने के बाद उनके क्रिया-कर्म के लिये तो  कमा  ?

          वह बोला--  1 रू में विद्युत शवदाह गृह है ना !

          मैंने कहा--  अपने बच्चों की शादी के लिये तो कमा..?

          वह मुस्कुराया और बोला-- फिर वहीं आ गये... वैसे ही होगी जैसे मेरी हुई थी !😀

          यार एक बात बता ये- इतने अच्छे कपड़े तू कैसे पहनता है ?

          वह बोला-- राज की बात है.. फिर भी मैं बता देता हूँ...

          "सरकारी जमीन पर कब्जा करो, आवास योजना मे लोन लो और फिर औने-पौने में मकान बेच कर फिर से जमीन कब्जा कर पट्टा ले लो !"

          तुम जैसे लाखों लोग काम करके हमारे लिए टैक्स भर ही रहे हैं ।  किसान भी मेहनत से खेती करके अनाज पैदा करता है और सरकार उनसे लेकर हमें मुफ़्त भी देती है, तो फिर हम काम क्यों करें ।

          बस यही है बेसहारा कहे जाने वाले निम्न वर्ग के लिये सरकारी रियायती योजनाओं का सच...