24.4.18

दर्द का एहसास...


          मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था, अचानक मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई । उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जा कर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका । अंदर जा कर मैंने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती ।  मैंने आगे हो कर पूछा - बहनजी आप इस बच्चे को क्यों मार रही हो ? जब कि आप खुद भी रो रही हो ।

          उस ने जवाब दिया - भाई साहब इस के पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उन के जाने के बाद मैं लोगों के घरों में काम करके घर और इस की पढ़ाई का खर्च मुश्किल से उठा पाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और रोज़ाना घर देर से आता है । जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है, पढ़ाई की तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता, जिस की वजह से रोज़ाना अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है ।  मैंने बच्चे और उसकी माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया ।

          इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह-सुबह कुछ काम से मैं सब्जी मंडी गया । अचानक मेरी नज़र उसी छोटे  बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर में मार खाता था । मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी बोरियों में डालते और उन से कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती तो वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता ।

          मैं यह नज़ारा देख परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या हैमैं उस बच्चे का चोरी-चोरी पीछा करने लगा । जब उस की झोली सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची-ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा । मुंह पर मिट्टी, गन्दी वर्दी और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।

          अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा- जिस की दुकान के सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी, उसने आते ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी उठा कर धक्का दे दिया । वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुपचाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरी दुकान के सामने डरते-डरते लगा ली । भला हो उस शख्स का जिस की दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स ने बच्चे को कुछ नहीं कहा ।

          थोड़ी सी सब्ज़ी थी, ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत । जल्द ही बिक्री हो गयी, वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की और चल पड़ा । मैं भी उस के पीछे-पीछे चल रहा था ।

          बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धोया और स्कूल चल दिया । मैं भी उस के पीछे स्कूल चला गया । जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था । जिस पर उस के टीचर ने डंडे से उसे खूब मारा । मैने जल्दी से जा कर टीचर को मना किया कि मासूम बच्चा है इसे मत मारो । टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे देर से ही आता है और मैं रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई बार मै इस के घर पर भी खबर दे चुका हूँ ।

          खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा । मैंने उसके टीचर का मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया । घर पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम के लिए सब्ज़ी मंडी गया था वह तो भूल ही गया । मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार फिर मार खाई । सारी रात मेरा सर चकराता रहा ।

          सुबह उठकर मैंने फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम पर हर हाल में मंडी पहुंचें । वो मान गए । सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला । मैंने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो, मै आपको बताता हूँ कि आपका बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है ।

          वह फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों खैर नही । छोडूंगी नहीं उसे आज । मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था । हम तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली और उस लड़के को छुप कर देखने लगे । आज भी उसे काफी लोगों से डांट-फटकार और धक्के खाने पड़े, आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया ।

          अचानक मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह  बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर लगातार रो रही थी, मैने फौरन उस के टीचर की तरफ देखा तो बहुत शिद्दत से उसके भी आंसू बह रहे थे । दोनों के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी गलती का एहसास हो रहा हो ।

          उसकी माँ रोते-रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया । बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे पैसे पूरे हो गए हैं । अपना सूट ले लो, बच्चे ने उस सूट को पकड़ कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया ।

          आज भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और बैग डेस्क पर रख कर मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से उसे मार ले । टीचर कुर्सी से उठा और फौरन बच्चे को गले लगा कर इस क़दर ज़ोर से रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका ।

          मैने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया और बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में सूट है वह किस के लिए है । बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं कोई जिस्म को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं है, लोग गंदी नजरों से भी देखते हैं, मेरी माँ के पास पैसे नही हैं, इसलिये अपने माँ के लिए मैंने यह सूट खरीदा है ।

          तो यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे ? मैने बच्चे से सवाल पूछा । जवाब ने मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी । बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल -  छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा । रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े-थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं ।

          टीचर और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों के साथ ऐसा होता रहेगा, उन के बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक । क्या ऊपर वाले की खुशियों में इन जैसे गरीब का कोई हक नहीं ? क्या हम अपनी खुशियों के मौके पर अपनी ख्वाहिशों में से थोड़े पैसे निकाल कर अपने समाज मे मौजूद गरीब और बेसहारों की मदद नहीं कर सकते ।

आप भी ठंडे दिमाग से एक बार जरूर सोचना  ! 
          अगर हो सके तो इस लेख को उन  सक्षम लोगों को भी बताना  ताकि हमारी इस छोटी सी कोशिश से किसी भी सक्षम के दिल मे गरीबों के प्रति हमदर्दी का जज़्बा ही जाग जाये और यही लेख किसी भी गरीब के घर की खुशियों की वजह बन जाये ।


15.4.18

तब और अब में अंतर ...!


          
      डाकू मानसिंह कभी चम्बल के बीहड़ों के सरताज हुआ करते थे । उन्होंने 1939 से 1955 तक अपने क्षेत्र में एकछत्र राज्य किया । एक बार आगरा में डकैती करने गए, सेठ को पहले ही सूचना भेज दी गयी थी (उस समय डकैतों के द्वारा डकैती करने से पहले ही चिठ्ठी के द्वारा सूचना भेज दी जाती थी) । अंग्रेजों का कप्तान छुट्टी लेकर आगरा से भाग गया । तय समय पर डकैती शुरू हुई ।  

          मानसिंह सेठ के साथ उसकी बैठक में बैठ गए, सेठ ने तिजोरी की सभी चाभियां मानसिंह को दे दी और बोला - मेरी चार जवान बेटियां घर में हैं, बस उनकी इज्जत मत लूटना !

         
मानसिंह ने कहा - हम धन लूटते हैं, इज्जत नहीं । इसी बीच एक डकैत सेठ की एक बेटी से छेड़खानी कर बैठालडकी चिल्लाने लगी..  लडकी की आवाज सुनकर सेठ घर के अंदर की ओर भागा, बेटी ने कहा एक डकैत ने मेरे साथ छेड़खानी की है, मानसिंह ने पुरे गिरोह को एक लाइन में खड़ा किया, लड़की को अपने पास बुलाया और बोले - बेटी पहचान इनमें से तेरे साथ छेडखानी करने वाला कौन था

          जैसे ही लड़की ने डाकू को पहचाना, मानसिंह ने तत्क्षण ही उस डाकू को गोली मार दी और सेठ से माफ़ी मांगकर व सारा सामान उसके घर में ही छोड़ अपने साथी की लाश लेकर लौट गए !

         
ये था पूर्व भारत के डकैतों का चरित्र । 

         जबकि आज के सफ़ेद पोश राजनैतिक व प्रशासनिक डकैतों ने अपनी सारी हदें पार कर दी हैं । देश के विभिन्न हिस्सों से बेटियों की चीखे लगातार सुनने में निरन्तर आ रही हैं । उन्नाव व कठुआ जैसी वीभत्स घटनाएँ आज  भी वीराने में गूंज रही है और कोई उस चीख को सुनना नहीं चाहता, कोई उन हैवानों के खिलाफ बोलना नहीं चाहता । सब देख रहे हैं कि वास्तविक दोषी कौन हैं, किंतु फिर भी पूरी व्यवस्था उन्हीं अपराधियों को बचाने में अपनी पूरी ताकत लगा रही है । अराजकता सर चढ़ कर बोल रही है !

          एक ओर तो हम स्त्रियों की निरंतर घटती संख्या के आधार पर लेंगिक असमानता का रोना रो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर जो लडकियां हैं उन्हें भी चैन से बढने, फलने-फूलने से रोक रहे हैं । क्या ये विनाश के लक्षण नहीं हैं ?