31.7.11

वास्तुशास्त्र के सर्वत्र उपयोगी प्रचलित नियम.

         जीवन में तनाव, बीमारियों का नियमित क्रम, लगातार प्रयत्न करते रहने पर भी सफलता से दूरी व इस जैसी अनेक समस्याओं के कारण के रुप में वास्तुशास्त्र के जानकार दिशाज्ञान के मुताबिक रहने, खाने-पीने, सोने व काम न कर पाने को एक प्रमुख कारण मानते हैं और वास्तुशास्त्र दिशाओं के मुताबिक ही अपनी नित्य क्रियाओं का संचालन हमें सिखाता है । माना जाता है कि जानते हुए या संयोगवश जिनके जीवन में रहना, काम करना वास्तु (दिशा) नियमों के अनुकूल होता है वे लोग अपने जीवन में दूसरों की तुलना में अधिक सुखी, स्वस्थ व काम धंधे में अधिक सफल पाए जाते हैं ।

प्रयास : स्वस्थ बने रहने का...
              
          दिशाओं की जानकारी से सम्बन्धित इन नियमों को जानने के बाद आप चाहे किसी छोटे से कमरे में रहते हों या फिर अनेकों कमरों वाले किसी बडे मकान/महल में । आपका व्यापार किसी आफिस या दुकान के रुप में चलता हो अथवा कारखाने या फेक्ट्री के रुप में । अपनी व्यवस्थाएँ आप वास्तु शास्त्र के इन नियमों के मुताबिक संशोधित कर इस विधा से लाभान्वित हो सकते हैं-


         

          1. किसी भी मकान में जहाँ आपका परिवार निवास करता हो उसमें उत्तर-पूर्व वाला कोण ईशान कोण होता है । अतः अपने निवास के इस क्षेत्र में आपके आराध्य देव हेतु (चाहे एक छोटी सी तस्वीर रखकर ही) एक छोटा सा देव स्थान बनावें जिसमें तस्वीर या मूर्ति का मुख पश्चिम की ओर हो । यहाँ यथासम्भव आप पूर्व की ओर मुख करके सम्भव हो तो कुशा या ऊनी आसन पर बैठकर धूप-दीप अगरबत्ती द्वारा चन्द मिनीट नियमित देव आराधना करें । जल भंडारण हेतु कुआँ, टेंक, या पानी की टंकी जैसे इन्तजाम भी देव-स्थान से हटकर लेकिन इसी क्षेत्र में रखें ।

          यह देखलें कि इस कोण के दायरे में कोई भी बाथरुम या शौचालय आपके निवास स्थान में न आता हो, यदि हो तो अविलम्ब उसे वहाँ से हटवा दें ।
            
            2. दक्षिण-पूर्व का कोण आग्नेय कोण होता है । परिवार हेतु किचन इसी क्षेत्र में रखने के साथ ही गेस चूल्हा इसी कोण में लगवाएँ जिसमें भोजन बनाते समय गृहिणी का मुँह पूर्व दिशा में रहे । घर व व्यापार संस्थान में बिजली का मेनस्वीच भी इसी कोण में लगवाने का प्रयास करें । किन्तु यदि यह सम्भव न हो सके तो इस कोण पर (अग्नि प्रतीक) बिजली का एक लाल बल्ब अधिक से अधिक समय तक जलते रहने की व्यवस्था करलें ।

           3. दक्षिण-पश्चिम का कोण नेऋत्य कोण होता है । दुकान में स्टाक भार, फेक्ट्री में कच्चे माल का भंडारण व घर के किचन में अनाज के वार्षिक संग्रह की व्यवस्था इसी क्षेत्र में करें । यदि यह सम्भव न हो तो यहाँ हमेशा कोई भारी वजन अवश्य रखें । किसी भी प्रकार की पानी की भूमिगत टंकी या गड्ढा यहाँ न होने दें । यदि घर में ऐसी व्यवस्था हो तो उसे बन्द करदें ।
            
      घर में गृहस्वामी का कमरा इसी कोण में रखते हुए उनके शयन हेतु बिस्तर इसी दिशा में लगाकर यथासंभव उत्तर या फिर पश्चिम दिशा में पैर करके सोने की व्यवस्था करें । दक्षिण दिशा की ओर पैर करके हर्गिज न सोवें । सोते समय शरीर के किसी भी भाग पर टांड, छज्जा, बीम न आ रहा हो इसका ध्यान रखें । यदि पति-पत्नी में आपसी प्रेम अथवा परस्पर वैचारिक तालमेल का अभाव रहता हो तो शयन कक्ष में सारस के जोडे का या राधा-श्याम का चित्र लगावें ।

          4. उत्तर पश्चिम का कोण वायव्य कोण होता है । घर या संस्थान में रुपये-पैसे रखने के लिये अपनी अलमारी या तिजोरी इसी कोण में रखकर उसका दरवाजा पूर्व दिशा की ओर खुलने दें । वास्तुशास्त्रीय मान्यता के अनुरुप इससे आपके घर की श्री सम्पदा में बरकत रहती है व धन में निरन्तर वृद्धि होती है ।

            5. घर, दुकान या संस्थान कहीं भी अपने स्वामित्व के पूरे क्षेत्रफल के बीचों बीच 2'x2' फुट का स्थान बिल्कुल खाली रखकर इसे स्वच्छ रखें और इस जगह कोई भारी वजन न रहने दें ।

            6. अपने निजी मकान में मुख्य प्रवेश द्वार पर शुभ चिन्हों युक्त टाईल्स लगावें । किराये के मकान में प्रवेश द्वार के दोनों ओर कुंकू से स्वास्तिक चिन्ह बनावें । यथासम्भव बुरी नजर से बचाव हेतु मकान के मेनगेट को लाल, काला व सफेद तीनों रंगों के मिश्रण में परिवर्तित करवा दें ।

            7. पेड-पौधे - घर में जगह कम होने पर भी कम से कम एक गमले में तुलसी का पौधा अवश्य लगावें । सम्भव हो तो अशोक व अनार के पेड लगावें । पपीता हमारे पेट व शरीर के लिये चाहे जितना उपयोगी हो किन्तु हमारे स्वामित्व क्षेत्र में इसका पेड अनिष्ट व अमंगलकरी माना जाता है । अतः यदि आपके यहाँ पपीते का पेड हो तो उसे जड सहित निकलवा दें । इसके अलावा ऐसे कोई भी पेड-पौधे जिनसे दूध निकलता हो को अपने स्वामित्व क्षेत्र के अन्दर न रहने दें । गुलाब के फूल को छोडकर कोई भी कांटेदार वृक्ष विशेष रुप से 'केक्टस' के पौधे को घर में न लगावें ।

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            इसके अतिरिक्त हिंसक पशु, युद्ध, आंसू, उदासी दिखाते, डूबते जहाज को दिखाते चित्रों को घर में न लगावें । टूटे शीशे (कांच), एक पाये का पटिया, टूटी मूठ के कपडे धोने की मोगरी, जैसे काम न आने वाले अनावश्यक उपकरण घर में न रखें । बन्द घडी व पेन या तो चालू करवाकर घर में रखें अथवा उन्हें भी हटादें । घर में सुख-शान्ति के स्थाई निवास हेतु सुख-शान्ति व सफलता के लिये 'वास्तु-दीप' पोस्ट भी यहीं क्लिक करके देखें ।

           वैसे तो इस वृहद शास्त्र में हमारे स्वामित्व क्षेत्र के चप्पे-चप्पे का, भूखण्ड, मिट्टी, खिडकी-दरवाजे, उनकी लम्बाई-चौडाई का विस्तृत  उल्लेख मिलता है जिनकी चर्चा इस एक पोस्ट में कर पाना न तो सम्भव लगता है और न ही आवश्यक, किन्तु प्राथमिक जानकारी से जुडे उपरोक्त तथ्यों को भी समझकर यदि कोई व्यक्ति अपने जीवन में अपनाने का प्रयास कर सके तो सम्भव है भविष्य में उन्हें अपने जीवन में कुछ अधिक सफलता और घर में कुछ अधिक सुखानुभूति मिलती रह सके ।